ना ना फरवरी में टूटेगी नहीं लेकिन बिखर जायेगी । बिखर जायेगी से मतलब....मतलब यही कि कोई कल तक जो कहता था वह पत्थर की लकीर मान ली जाती थी । पर अब वही जो कहता है उसे कागज पर खिंची गई लकीर के तौर पर भी कोई मान नहीं रहा है । तो होगा क्या ? कुछ नहीं कहने वाला कहता रहेगा क्योकि कहना उसकी ताकत है । और खारिज करने वाला भविष्य के ताने बाने को बुनना शुरु करेगा । जिसमें कहने वाला कोई मायने रखेगा ही नहीं । तब तो सिरफुटव्वल शुरु हो जायेगा । टकराव कह सकते है । और इसे रोकेगा कौन सा बडा निर्णय ये सबसे बडे नेता पर ही जा टिका है ।
स्वयंसेवक महोदय की ऐसी टिप्पणी गले से नीचे उतर नहीं रही थी क्योकि भविष्य की बीजेपी और 2019 के चुनाव की तरफ बढते कदम के मद्देनजर मोदी सत्ता के एक के बाद एक निर्णय को लेकर बात शुरु हुई थी । दिल्ली में बारिश के बीच बढी ठंड के एहसास में गर्माती राजनीति का सुकुन पाने के लिये स्वयसेवक महोदय के घर पर जुटान हुआ था । प्रोफेसर साहेब तो जिस तरह एलान कर चुके थे कि मोदी अब इतनी गलतियां करेगें कि बीजेपी के भीतर से ही उफान फरवरी में शुरु हो जायेगा । पर उसपर मलहम लगाते स्वयसेवक महोदय पहली बार किसी मंझे हुये राजनीतिज्ञ की तर्ज पर समझा रहे थे कि भारत की राजनीति को किसी ने समझा ही नहीं है । आपको लग सकता है कि 2014 में काग्रेस ने खुद ही सत्ता मोदी के हाथो में सौप दी । क्योकि एक के बाद दूसरी गलती कैसे 2012-13 में काग्रेस कर रही थी इसके लिये इतिहास के पन्नो को पलटने की जरुरत नहीं है । सिर्फ दिमाग पर जोर डाल कर सबकुछ याद कर लेना है । और अब ..मेरे ये कहते ही स्वयसेवक महोदय किसी इमानदार व्यापारी की तरह बोल पडे ...अभी क्या । हमलोग तो कोई कर्ज रखते नहीं है । तो मोदी खुद ही काग्रेस को सत्ता देने पर उतारु है । यानी प्रोफेसर साहेब गलत नहीं कह रहे है कि मोदी अभी और गलती करेगें । जी, ठीक कहा आपने । लेकिन इसमें थोडाी सुधार करना होगा । क्योकि मोदी की साख जो 2017 तक थी , उस दौर में यही बाते इसी तरह कही जाती तो आप इसे गलती नहीं मानते ।
अब प्रोफेसर साहेब ही बोल पडे ...मतलब ।
मतलब यही कि 2014 से 2017 का काल भारत के इतिहास में मोदी काल के तौर पर जाना जायेगा । पर उसके बाद 2018-19 संक्रमण काल है । जहा मोदी है ही नहीं । बल्कि मोदी विरोध के बोल और निर्णय थिसीस के उलट एंटी थीसीस रख रहे है । और ये तो होता ही या होना ही है ।
तब तो बीजेपी के भीतर भी एंटी थीसीस की थ्योरी होगी । वाह वाजपेयी जी । आपने नब्ज पर अंगुली रख दी । मेरे कहने से स्वयसेवक महोदय जिस तरह उचक कर बोले उसमें चाय की चुस्की या उसकी गर्माहट तो दूर , पहली बार मैने तमाम चर्चाओ के दौर में महसूस किया कि डूबते जहाज में अब संघ भी सवार होने से कतरा रहा है । क्योकि जिस तरह का जवाब स्वयसेवक महोदय ने इसके बाद दिया वह खतरे की घंटी से ज्यादा आस्तितव के संघर्ष का प्रतिक था ।
आपको क्या लगता है राजनाथ सिंह संकल्प पत्र तैयार करेगें । या फिर गडकरी सामाजिक संगठनो को जोडने के लिये निकलेगें । या जिन भी जमीनी नेताओ को 2019 के चुनाव के मद्देनजर जो काम सौपा गया है वह उस काम में जुट जायेगें । या फिर ये नेता खुश होगें कि उन्हे पूछा गया कि आप फंला फंला काम कर लें । मान्यवर इसे हर कोई समझ रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी का भविष्य कैसा है । और 2014 में जब जीत पक्की थी जब संकल्प पत्र किसने तैयार किया था । बेहद मशक्कत से तैयार किया गया था । पर संकल्प पत्र पर अमल तो दूर संकल्प पत्र तैयार करने वाले हो ही दरकिनार कर दिया गया ।
किसकी बात कर रहे है आप....अरे प्रोफेसर साहेब मुरली मनोहर जोशी जी की । और उस संकल्प पत्र में क्या कुछ नही था । किसान हो या गंगा । आर्थिक नीतिया हो या वैदेशिक नीतिया । बकायदा शोध करने सरीखे तरीके से बीजेपी सत्ता की राह को जोशी जी ने मेहनत से बनाया । पर हुआ क्या । मोदी जी ने जितनी लकीरे खिंची । जितने निर्णय लिये उसका रिजल्ट क्या निकला । राजनीतिक तौर पर समझना चाहते है तो तमाम सहयोगियो को परख लिजिये । हर कोई मोदी-शाह का साथ छोडना चाहता है । बिहार - यूपी में कुल सीट 120 है । और यहा के हालात बीजेपी के लिये ऐेसे बन रहे है कि अपने बूते 20 सीट भी जीत नहीं पायेगी । जातिय आधार पर टिकी राजनीति को सोशल इंजिनियरिंग कहने से क्या होगा । कोई वैकल्पिक समझ तो दूर उल्टे पारंपरिक वोट बैक जो बीजेपी के साथ रहा पहली बार मोदी काल में उसपर भी ग्रहण लग रहा है । तो बीजेपी में ही कल तक के तमाम कद्दावर नेता अब क्या करेगं । क्या कोई कल्पना कर सकता है कि राफेल का सवाल आने पर प्रधानमंत्री इंटरव्यू में कहते है कि , पहली बात तो ये उनपर कोई आरोप लगी है । दूसरा ये निर्णय सरकार का था ।यानी वह संकेत दे रहे है कि दोषी रक्षा मंत्री हो सकते है । वह नहीं । और इस आवाज को सुन कर पूर्व रक्षा मंत्री पार्रिकर संकेत देते है कि राफेल फाइल तो उनके कमरे में पडी है । जिसमें निर्णय तो खुद प्रधानमंत्री का है । फिर इसी तरह सवर्णो को दस फिसदी आरक्षण देने के एलान के तुरंत बाद नितिन गडकरी ये कहने से नहीं चूकते कि इससे क्या होगा । यानी ये तो बुलबुले है । लेकिन कल्पना किजिये फरवरी तक आते आते जब टिकट किसे दिया जायेगा और कौन से मुद्दे पर किस तरह चुनाव लडा जायेगा तब ये सोचने वाले मोदी-शाह के साथ कौन सा बीजेपी का जमीनी नेता खडा होगा । और खडा होना तो दूर बीजेपी के भीतर से क्या वाकई कोई आवाज नहीं आयेगी ।
आप गलतियो का जिक्र कर रहे थे....मेरे ये पूछते ही स्वयसेवक महोदय कुर्सी से खडे हो गये . बकायदा चाय की प्याली हाथ में लेकर खडे हुये और एक ही सांस में बोलने लगे....अब आप ही बताइये आरक्षण के खिलाफ रहनी वाली बीजेपी ने सर्वर्णो को राहत देने के बदले बांट दिया । बारिकी से परखा आपने सर्वोणो में जो गरीब होगा उसके माप दंड क्या क्या है । यानी जमीन से लेकर कमाई के जो मापदंड शहर और गांव के लिये तय किये गये है उसमें झूठ फरेब घूस सबकपछ चलेगा । क्योकि 8 लाख से कम सालाना कमाई । 5 एकड से कम कृर्षि जमीन । एक हजार स्कावयर फीट से कम की जमीन पर घर और म्यूनिस्पलटी इलाके में सौ यार्ड से कम का रिहाइशी प्लाट होने पर ही आरक्षण मिलेगा । और भारत में आरक्षण का मतलब नौकरी होती है । जो है नहीं ये तो देश का सच है । लेकिन कल्पना किजिये जब पटेल से लेकर मराठा और गुर्जर से लेकर जाट तक देश भर में नौकरी के लिये आरक्षण की गुहार लगा रहा है तो आपने कितनो को नाराज किया या कितनो को लालीपाप दिया । असल में अभी तो मोदी-शाह की हालत ये है कि जो चाटुकार दरबारी कह दें और इस आस से कह दे कि इससे जीत मिल जायेगी ...बस वह निर्णय लेने में देर नहीं होगी । पर बंटाधार तो इसी से हो जायेगा ।
तो रास्ता क्या है । अब प्रोफेसर साहेब बोले ......और ये सुन कर वापस कुर्सी पर बैठते हुये स्वयसेवक महोदय बोल पडे रास्ता सत्ता का नहीं बल्कि सत्ता गंवाने का ठिकरा सिर पर ना फुटे इस रास्ते को बनाने के चक्कर में समूचा खेल हो रहा है ।
तो क्या अखिलेश के बाद अब मायावती पर भी सीबीआई डोरे डालेगी ।
नही प्रोफेसर साहेब ये गलती तो कोई नहीं करेगा । लेकिन आपने अच्छा किया जो मायावती का जिक्र कर दिया । क्योकि राजनीति की समझ वही से पैदा भी होगी और डूबेगी भी । क्यों ऐसा क्यो ....मेरे सवाल करते ही स्वयसेवक महोदय बोल पडे...वाजपेयी जी समझिये ...मायावती दो नाव की सवारी कर रही है । और मायावती को लेकर हर कोई दो नाव पर सवार है । पर घाटा मायावती को ही होने वाला है ।
वह कैसे...
प्रोफेसर साहेब जरा समझे .मायावती चुनाव के बाद किसी के भी साथ जा सकती है । काग्रेस के साथ भी और बीजेपी के साथ भी । और ये दोनो भी जानते है कि मायावती उनके साथ आ सकती है । और मायावती ये भी जानती है कि अखिलेश यादव के साथ चुनाव से पहले गठबंधन करना उसकी मजबूरी है या कहे दोनो की मजबूरी है । क्योकि दोनो ही अपनी सीट बढाना चाहते है । पर अखिलेश और मायावती दोनो समझते है कि राज्य के चुनाव में दोनो साथ रहेगें तो सीएम का पद किसे मिलेगा लडाई इसी को लेकर शुरु होगी तो वोट ट्रांसफर तब नहीं होगें । लेकिन लोकसभा चुनाव में वोट ट्रासफर होगें । क्योकि इससे चुनाव परिणामो के बाद सत्ता में आने की ताकत बढेगी । पर मायावती के सामने मुश्किल यह है कि जब चुनाव के बाद मायावती कही भी जा सकती है तो उसके अपने वोटबैक में ये उलझन होगी कि वह मायावती को वोट किसके खिलाफ दे रही है । और जिस तरह मुस्लिम-दलित ने बीजेपी से दूरी बनायी है । और अब आरक्षण के सवाल ने टकराव के नये संकेत भी दे दिये है तो फिर मायावती का अखिलेश को फोन कर सीबीआई से ना घबराने की बात कहना अपने स्टेंड का साफ करने के लिये उठाया गया कदम है । पर सत्ता से सौदेबाजी में अभी सबसे कमजोर मायावती के सामने मुश्किल ये भी है कि काग्रेस का विरोध उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तिसगढ में और कमजोर कर देगा ।
चाय खत्म करने से पहले एक सवाल का जवाब तो आप ही दे सकते है ....जैसे ही प्रोफेसर साहेब ने स्वयसेवक से कहा ...वह क्या है ....संघ क्या सोच रहा है ।
हा हा हा ...ठहाका लगाते हुये स्वयसेवक महोदय बोल पडे । संघ सोच नहीं रहा देख रहा है ।
तो क्या संघ कुछ बोलेगा भी नहीं ....
संघ बोलता नहीं बुलवाता है । और कौन बोल रहा है और आने वाले वक्त में कौन कौन बोलेगा....इंतजार किजिये फरवरी तक बहुत कुछ होगा ।
Kya jabardast analysis kie ho bajpei ji....aa jao na tv pe..
ReplyDeleteजब से मोदी सरकार केंद्र में आई है तब जनता ने सोचा था कि देश तरक्की करेगा पर जब धीरे धीरे वक़्त गुजरा और देश मे विदेशी निवेश आना बंद हो गया, और नोकरी मिलनी मुश्किल हो गई और फिर 2016 में मालूम नहीं कि किसके कहने पर मोदी जी ने नोटबन्दी की जिसका असर पूरे देश के व्यापार पर बहुत बुरा पड़ा और जब RBI की रिपोर्ट आई जिससे पता चला कि नोटबन्दी के बाद पुराने सभी नोट जमा हो गए तो फिर काला धन कहाँ गया. नोटबन्दी ने देश की अर्थव्यवस्था को तहस नहस कर दिया जिससे बेरोजगारी बढ़ गई और फिर 2017 में मोदी सरकार ने जटिल GST लागू कर दी जिसने पूरे देश के व्यापारियों को कंगाल कर दिया.2014 में मोदी जी ने कई वादे किए थे जिसमें से कोई भी वादा पूरा नहीं कर पाए. मोदी सरकार में कोई नया AIIMS, कॉलेज, यूनिवर्सिटी नही बनी
ReplyDeleteसही लेख है जनाब
DeleteBjp की दशा दिशा तय करेगा फरवरी
ReplyDeleteMost interesting article.good job sir
ReplyDeleteआपके द्वारा किया गया कार्य पत्रकारिता की एक मिसाल काम करता है. आप की देश के प्रति बेहतरीन सोच के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteजिस तरह मोदी जी ने पहले देश का बंटाधार किया अब अपना बंटाधार करने की तैयारी में लगे हुए हैं, इनके निर्णयों को देखकर तो यह लग रहा है कि ना घर के रहेंगे ना घाट के।
ReplyDeleteYes only one thing I must say you are ultimate.
ReplyDeletebilkul sahi kaha sir aapne
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख वाजपेई जी।
ReplyDeleteशानदार ।
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ReplyDeleteराजनीति का यही खुबसूरती है की हम जो भी करते हैं लगता है की चुनाव जीताऊ है चापलूस इसमे एसा समां बनाते हैं कि लगता है सभी बाजी हमारे हाथ मे है लेकिन जनता जिसके लाठी मे आवाज नही होती बो चापलूस नहीं होती उसे कोई उम्मीद नहीं होता उसका कोई नहीं होता
ReplyDeleteसर खबर है कि आप अब सूर्या समाचार के संपादक है,,सत्य है क्या
ReplyDeleteलगभग छ: हजार वर्ष से हमारे देश में लोकतन्त्र/प्रजातन्त्र/जनतन्त्र/जनता का शासन/पूर्णत: स्वदेशी शासन व्यवस्था नहीं है। लोकतन्त्र में नेता / जनप्रतिनिधि चुनने / बनने के लिये नामांकन नहीं होता है। नामांकन नहीं होने के कारण जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार की नाममात्र भी आवश्यकता नहीं होती है। मतपत्र रेल टिकट के बराबर होता है। गुप्त मतदान होता है। सभी मतदाता प्रत्याशी होते हैं। भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं होता है। लोकतन्त्र में सुख, शान्ति और समृद्धि निरन्तर बनी रहती है।
ReplyDeleteसत्तर वर्ष से गणतन्त्र है। गणतन्त्र पूर्णत: विदेशी शासन प्रणाली है। गणतन्त्र का अर्थ है- गनतन्त्र = बंदूकतन्त्र, गुण्डातन्त्र = गुण्डाराज, जुआंतन्त्र = चुनाव लडऩा अर्थात् दाँव लगाना, पार्टीतन्त्र = दलतन्त्र, तानाशाहीतन्त्र, परिवारतन्त्र = वंशतन्त्र, गठबन्धन सरकार = दल-दलतन्त्र = कीचड़तन्त्र, गुट्टतन्त्र, धर्मनिरपेक्षतन्त्र = अधर्मतन्त्र, सिद्धान्तहीनतन्त्र, आरक्षणतन्त्र = अन्यायतन्त्र, अवैध पँूजीतन्त्र = अवैध उद्योगतन्त्र - अवैध व्यापारतन्त्र - अवैध व्यवसायतन्त्र - हवाला तन्त्र अर्थात् तस्करतन्त्र-माफियातन्त्र; फिक्सतन्त्र, जुमलातन्त्र, विज्ञापनतन्त्र, प्रचारतन्त्र, अफवाहतन्त्र, झूठतन्त्र, लूटतन्त्र, वोटबैंकतन्त्र, भीड़तन्त्र, भेड़तन्त्र, भाड़ातन्त्र, भड़ुवातन्त्र, गोहत्यातन्त्र, घोटालातन्त्र, दंगातन्त्र, जड़पूजातन्त्र (मूर्ति व कब्र पूजा को प्रोत्साहित करने वाला शासन) अर्थात् राष्ट्रविनाशकतन्त्र। गणतन्त्र को लोकतन्त्र कहना अन्धपरम्परा और भेड़चाल है। अज्ञानता और मूर्खता की पराकाष्ठा है। बाल बुद्धि का मिथ्या प्रलाप है।
निर्दलीय हो या किसी पार्टी का- जो व्यक्ति नामांकन, जमानत राशि, चुनाव चिह्न और चुनाव प्रचार से नेता / जनप्रतिनिधि (ग्राम प्रधान, पार्षद, जिला पंचायत सदस्य, मेयर, ब्लॉक प्रमुख, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि) बनेगा। उसका जुआरी, बेईमान, कामचोर, पक्षपाती, विश्वासघाती, दलबदलू, अविद्वान्, असभ्य, अशिष्ट, अहंकारी, अपराधी, जड़पूजक (मूर्ति और कब्र पूजा करने वाला) तथा देशद्रोही होना सुनिश्चित है। इसलिये ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमन्त्री तक सभी भ्रष्ट हैं। अपवाद की संभावना बहुत कम या नहीं के बराबर हो सकती है। इसीलिये देश की सभी राजनैतिक, आर्थिक, सामरिक, भौगोलिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी और प्रान्तीय समस्यायें निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनैतिक दल देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्रहित में इन राजनैतिक दलों का नामोनिशान मिटना / मिटाना अत्यन्त आवश्यक है।
विदेशी शासन प्रणाली और विदेशी चुनाव प्रणाली के कारण भारत निर्वाचन आयोग अपराधियों का जन्मदाता और पोषक बना हुआ है। इसलिये वर्तमान में इसे भारत विनाशक आयोग कहना अधिक उचित होगा। जब चुनाव में नामांकन प्रणाली समाप्त हो जायेगा तब इसे भारत निर्माण आयोग कहेंगे। यह हमारे देश का सबसे बड़ा जुआंघर है, जहाँ चुनाव लडऩे के लिये नामांकन करवाकर निर्दलीय और राजनैतिक दल के उम्मीदवार करोड़ो-अरबों रुपये का दाँव लगाते हैं। यह चुनाव आयोग हमारे देश का एकमात्र ऐसा जुआंघर है, जो जुआरियों (चुनाव लड़कर जीतने वालों) को प्रमाण पत्र देता है।
Right sir bjp harnee walii
ReplyDeleteसच कि परख और सच के रहते कहि झुकना हि नहि सिखा इस आदमि ने, उस सच्चे सच को सलाम
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