Thursday, April 18, 2019

स्वयंसेवक जब कहे मोदी आखरी लडाई लड रहे है तो.....



ये कलयुग है और कलयुग में ना तो महाभारत संभव है ना ही गीता का पाठ । या फिर न्याय के लिये संघर्ष । जोडतोड की भी कलयुग में उम्र होती है । कलयुग में तो ताकत ही सबकुछ है और ताकत का मतलब ज्ञान नहीं बल्कि धोखा -फरेब के आसरे उस सत्ता का जुगाड है जिस जुगाड का नियम है खुद के साथ सबकुछ स्वाहा करने की ताकत । और जबतक ताकत है तबतक स्वाहा होते हालात पर कोई अंगुली नहीं उठाता । सवाल नहीं करता ।
स्वयसेवक साहेब का यह अंदाज पहले कभी नहीं था । लेकिन आप ये कह क्यो कह रह है और हम सभी तो चाय के लिये आपके साथ इसलिये जुटे है कि कुछ चर्चा चुनाव की हो जाये । लेकिन आज आप सतयुग और कलयुग का जिक्र क्यो कर बैठे है । मुझे टोकना पडा । क्योकि मेरे साथ आज प्रोफेसर संघ के भीतर की उस हकीकत को समझने आये थे जहा प्रज्ञा ठाकपर को भोपाल से उतारने के पीछे संघ है या बीजेपी । या फिर संघ अब अपने पाप-पुण्य का परिक्षण भी मोदी के 2019 के समर में कर लेना चाहता है ।
दरअसल प्रोफेसर साहेब के इसी अंदाज के बाद स्वयसेवक महोदय जिस तरह कलयुग के हालात तले 2019 के चुनाव को देखने लगे उसमें स्वयसेवक ने खुले तौर पर पहली बार माना कि मोदी-शाह की खौफ भरी बाजीगरी तले बीजेपी के भीतर की खामोश उथलपुथल। संघ का हिन्दु आंतक को लेकर प्रज्ञा क जरीये चुनाव परिक्षण । और जनादेश के बाद जीत का तानाबाना लेकिन हार के हालात में बीजेपी को जिन्दा रखने का कोई प्लान ना होना संघ को भी डराने लगा है ।
तो क्या संघ मान रहा है मोदी चुनाव हार रहे है । प्रोफेसर साहेब ने जिस तरह सीधा सवाल किया उसका जवाब पहली बार स्वयसेवक महोदय के काफी हद तक सीधा भी दिया और उलझन भी पैदा कर दी । ....मैने आपको कहा ना ये महाभारत काल नहीं है लेकिन महाभारत का कैनवास इतना बा है कि उसमें कलयुग की हर चाल समा सकती है । सिर्फ आपको अपनी मनस्थिति से हालात को जोडना है । और अब जो मै कहने जा रहा हूं उसे आप सिर्फ सुनेगे....टोकेगें नहीं ।
जी...मै और प्रोफेसर साहेब एक साथ ही बोल पडे ।
तो समझे ...संघ तो भीष्म की तरह बिधा हुआ युद्द स्थल पर गिरा हुआ है । संघ जब चाहेगा उसकी मौत तभी होगी । लेकिन मौजूदा हालात में संघ की जो ताकत बीजपी को मिला करती थी वह मोदी के दौर में उलट चुकी है । कल तक संघ अपने सामाजिक-सास्कृतिक सरोकारो के जरीये राजनीति का परिषण करता था । अब संघ को परिषण के लिये भी बीजेपी की जरुरत है । और इसकी महीनता को समझे तो काग्रेस की सत्ता के वक्त  हिन्दु आंतकवाद का सवाल संघ को नहीं बीजेपी को डरा रहा था । क्योकि बीजेपी को संघ की ताकत और समाज को प्रभावित करने की उसकी क्षमता के बारे में जानकारी थी । और राजनीतिक तौर पर संघ की सक्रियता के बगैर बीजेपी की जीत मुश्किल होती रही ये भी हर कोई जानता है । ऐसे में मोदी सत्ता काल में हिन्द आंतकवाद की वापसी का भय सत्ता जाने के भय के साथ जोड दिया गया ।
किसने जोडा....प्रोफेसर बोले नहीं कि ...संवयसेवक महोदय बोल पडे । प्रोफेसर साहेब पुरी बात तो सुन लिजिये..क्योकि आपका सवाल बचकाना है । अरे सत्ता जिसके पास रहेगी वह कतई नहं चाहेगा कि सत्ता उसके हाथ से खिसक जाये । तो सत्ता बररार रखने के लिय उसके अपने ही चाहे नीतियो का विरोध करते रहे हो लेकिन सभी को जोडने के लिये कोई बडा डर तो दिखाना ही पडेगा । तो हिन्दु आंतकवाद का भय दिखाकर संघ को सक्रिय करने की बिसात भी मौजूदा सत्ता की ही होगी । और उसी का परिणाम है कि प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से बीजेपी के टिकट पर उतारा गया है ।
लेकिन आप तो डर और खौफ को बडे व्यापक तौर पर मौजूदा वक्त में सियासी हथियार बता रहे थे ।
वाजपेयी जी आप ठीक कह रहे है लेकिन उसकी व्यापकता का मतलब पारंपरिक तौर तरीको को खारिज कर नये तरीके से डर की परिभाषा को भी गढना है और ये भी मान लेना है कि ये आखरी लडाई है ।
आखरी लडाई....
जी प्रोफेसर साहेब आखरी लडाई  ।
तो क्या चुनाव हारने के बाद मोदी-शाह की जोडी को संघ भी दकरिनार कर देगा ।
अब ये तो पता नहीं लेकिन जिस तरह चुनावी राजनीति हो रही है उसमें आप ही बताइये प्रोफेसर साहेब क्या क्या मंत्र अपनाये जा रहे है ।
आप अगर मोदी का जिक्र कर रहे है तो तीन चार हथियार तो खुले तौर पर है ।
जैसे
जैसे मनी फंडिग ।
मनी फडिग का मतलब ।
मतलब यही कि ये सच हर कोई जानता है कि 2013 के बाद से कारपोरेट फंडिग में जबरदस्त इजाफा हुआ है । आलम ये रहा है कि सिर्फ 2013 से 16 के बीच 900 करोड की कारपोरेट फंडिग हुई जिसमें बीजेपी को 705 करोड मिले । इसी तरह 2017-18 में अलग अलग तरीके से पालेटिकल फडिग में 92 फिसदी तक बीजेपी को मिले । यहा तक की 221 करोड के चुनावी बाड में से 211 करोड तो बीजेपी के पास गये । लेकिन जब बैक में जमा पार्टी फंड दिखाने की स्थित आई तो 6 अक्टूबर 2018 तक बीजेपी ने सिर्फ 66 करोड रुपये दिखाये ।  और जिन पार्टियो की फंडिग सबसे कम हुई वह बीजेपी से उपर दिके । मसलन बीएसपी ने 665 करोड दिखाये और वह टाप पर रही । तो सपा ने 482 करोड और काग्रेस ने 136 करोड दिखाये ।
तो इससे क्या हुआ ।
अरे स्वयसेवक महोदय क्या आप इसे नहीं समझ रहे हैकि जिस बीजेपी के पास अरबो रुपया कारपोरेट फंडिग का आया है अगर उसके बैक काते में सिर्फ 66 करोड है जो कि 2013 में जमा 82 करोड स भी कम है तो इसके दो ही मतलब है । पहला , चुनाव में खूब धन बीजेपी ने लुटाया है । दूसरा , फंडिग को किसी दूसरे खाते में बीजेपी के ही निर्णय लेने वाले नेता ने डाल कर रखा है । यानी कालेधन पर काबू करेगें या फिर चुनाव में धनबल का इस्तेमाल नहीं होना चाहिये । इसे खुले तौर खत्म करने की बात कहते कहते बीजेपी संभालने वाले इतने आगे बढ गये कि वह अब खुले तौर पर बीजेपी  के सदस्यो को भी डराने लगे है ।
कसे डराने लगे है ।
डराने का मतलब है कि बीजेपी के भीतर सत्ता संभाले दो तीन ताकतवर लोगो ने बीजेपी के पूर्व के  कद्दावर नेताओ तक को एहसास करा दिया दिया है कि उनके बगैर कोई चूं नहीं कर सकता । या फिर जो चूं करेगा वह खत्म कर दिया जायेगा । इस कतार में आडवाणी , जोशी या यशंवत सिन्हा सरीखो को शामिल करना जरुरी नहीं है बल्कि समझना ये जरुरी है कि मोदी सत्ता के भीतक ताकतवर वहीं हुये जिसनी राजनीतिक जमीन सबसे कमजोर थी । सीधे कहे तो हारे,पीटे और खारिज कर दिये लोगो को मोदी ने कैबिनेट मंत्रि बनाया । और धीरे धीरे इसकी व्यापकता यही रही कि समाज के भीतर लुपंन तबके को सत्ता का साथ मिला तो वह हिन्दुत्व का नारा लगाते हुये सबसे ताकतवर नजर आने लगा ।
तो दो हालात आप बता रहे है । वाजपेयी जी अपको क्या लगता है मोदी सत्ता ने जीत के लिये कौन से मंत्र अपनाया ।
स्वयसेवक मोहदय जिस अंदाज में पूछ रहे थे मुझे लगा वह भी कुछ बोलने से पहले हमारी समझ की थाह लेना चाहते है । बिना लाग लपेट मैने भी कहा । डर और खौफ का असल मिजाज तो छापो का है । चुनाव का एलान होने के बाद नौ राज्यो में विपक्ष की राजनीति करते नेताओ के सहयोगी या नेताओ के ही दरवाजे पर जिस तरह इनकम टैक्स के अधिकारी पहुंचे । उसने साफ कर दिया कि मोदी अब आल वर्सेस आल की स्थिति में ले आये है । इसलिये परंपरा टूट चूकी है क्योकि मोदी को एहसास हो चला है कि जीत के लिये सिर्फ प्रज्ञा ठाकुर सरीखे इक्के से काम नहीं चलेगा बल्कि हर हथियार को आजमाना होगा । और इसी का असर है कि मध्यप्रदेश , कर्नाटक , तमिलनाडु,यूपी, बिहार, कश्मीर , बंगाल, ओडिसा में विपक्ष के ताकतवर नेताओ के घर पर छापे पडे ।
तो क्या हुआ ....
हुआ कुछ नहीं बंधुवर ..अब मुझे स्वयसेवक महोदय को ही टोकना पडा । दरअसल हालात ऐसे बना दिये गये है कि सत्ता से भागेदारी करते तमाम सस्थानो के प्रमुख को भी लगने लगे कि मोदी हार गये तो उनके खिलाफ भी नई सत्ता कार्रवाई कर सकती है .... तो आखरी लडाई संवैधानिक संस्थाओ समेत मोदी सत्ता से डरे सहमे नौकरशाहो की भी है ।
तो क्या ये असरकारक होगी । कहना मुश्किल है । लेकिन मोदी का खेल इसके आगे का है इसलिये लास्ट असाल्ट के तौर पर इस चुनाव को देखा जा रहा है और संघ इससे हैरान-परेशान भी है ।
क्यो...
बताता हूं । लेकिन गर्म चाय लेकर आता हूं फिर ...
जारी ....

8 comments:

  1. पहले डर बनाओ (दिखाओ) फिर ये बताओ कि इस डर से हम ही बचा सकते है ...

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  2. ऐसा कोई माध्यम नहीं है जिसमें बीजेपी का एड न आता हो इतना धन राशि जो पार्टी खर्च कर रही है जाहिर है एक नम्बर की तो कतई न होगी।उन्माद भरे संदेश हर तरफ से जनता को दिखाकर लोगों का ब्रेन बास किया जा रहा है और इसमे काफी हद तक बीजेपी सफल भी हो चुकी है।वह लोगो के दिमाग में यह धारणा बनाने में कामयाब हो रही है या यूं कहें कामयाब हो गई है कि हिंदूओ की हितैशी सिर्फ और सिर्फ मोदी है।विकास की गति तीव्रता से अगर कोई बढ़ा सकता है तो वह मोदी है।इसे बीजेपी की जीत कहें या विपक्ष की कूटनीतिक हार दोनो मायनो में कुछ भी कहना जनता के हित में तो नहीं है।

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  3. सर, मैं भी एक पत्रकार हूं, आप मेरे प्रेरणास्रोत है।मुझे आपसे मिलना है। 7737551112

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  4. Sir. Me aapke vichar se sahmat hun. Thankyou

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