तो वाजपेयी जी गर्म चाय पिजिये और आप फंडिग या छापो की सियासत से आगे बढ नहीं पाये । लेकिन जहा से हमने बात शुरु की थी वही दोबारा लौट चलिये । सवाल सिर्फ हिन्दू आंतकवाद शब्द के आसरे संघ को राजनीति मैदार में प्रज्ञा क जरीये लाने भर की चौसर नहीं है । बल्कि उसी महीनता को फिर पकडिये कि कैसे बीजेपी ने कार्यकत्ताओ का दायरा कितना बडा कर लिया है । यानी संघ के सवयसेवको की तादाद भी छोटी पड गयी है दस करोड बीजेपी सदस्यता के सामने । और इस ताकत को संख्याबल पर मोदी-शाह संघ को भी आईना दिखाने की स्थिति में है या कहे पार्परिक बीजेपी का तानाबान अब कितना बदल चुका है जरा इसे भी समझना जरुरी है । कयोकि संवयसेवक बिना वेतन काम करता है लेकिन बीजेपी ने बूथ स्तर पर भीकार्यकत्ताओ की संख्या बल को जिस तरह सुविधा या कहे वेतन के जरीये जोडा उससे जीत नहं मिलती ये बात बीजेपी की नई सोच समझ नहीं पा रही है । लेकिन बीजेपी बदली है तो फिर संघ को भी बदलना होगा ।
क्यो , संघ का अपना रास्ता है
प्रोफेसर साहेब आप बार बार इ हकीकत को भूल रहे है कि कल तक संघ का इशारा बीजेपी सत्ता के लिये काफी होता था लेकिन मोदी काल में सत्ता का इशारा संघ के लिये जीवन-मरण का सवाल इसलिये बना दिया गया क्योकि संघ की नीतियों या विचारधारा से इतर सत्ता पर बने रहने को संघ की जीत के तौर पर भी इस दौर में स्वीकार कर लिया गया है ।
लेकिन बंधु क्या ये सच नहीं है कि जब जनसंघ का स्थिपना हो रही थी तब से लेकर 2019 तक की बीजेपी के हिन्दुत्व में बहुत अंतर आ गया है । और मोदी काल में हिन्दुत्व के नाम पर भी दो तरह के वोटर है । पहला जो शांत है पैसिव है । दूसरा जो वोकल है एक्टिव है । और जो वोकल है वह ज्यादा मध्य-उच्चवर्ग का तबका है । और उसके लिये मोदी भगवान सरीखे भी हो चले है ।
हा हा ...और आप इसे भक्त भी कहते है । क्यों
कह सकते है । जिस तरह स्वयसेवक बोले उसमें तंज भी था और मुश्किल हालात भी ।
मुझे बात ये कहकर आगे बढानी पडी कि अटल बिहारी वाजपेयी के दौर और मोदी के दौर में हिन्दुत्व को लेकर भी सोच बदल गई है ।
मेरे ये कहते ही स्वयसेवक महोदय बोल पडे । आपने उस नब्ज को पकडा है जिस नब्ज पर संघ भी ध्यान दे नहीं रहा है । क्योकि अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी का ट्रासफारमेशन काग्रेसी तर्ज पर कर रहे थे । इसलिये ध्यान दिजिये कि हिन्दु शब्द की गूंज वाजपेयी के सत्ता काल में नहीं थी । और धीर धीरे दलित-मुसलमान भी बीजेपी के साथ आ खडा ह रहा था । और मोदी इस सच को समझ नहीं पाते कि 2014 में मुसलमानो का वो भी बीजेपी को मिला और उसके पीछे वाजपेयी काल की खूशबू थी और मोदी काल को लेकर उम्मीद । लेकिन 2014 के बाद जिस तरह उग्र या कहे लुपंन हिन्दुत्व राजनीति के आसरे हिन्दु समाज में मो सत्ता ने सेंघ लगायी उसमें बीजेपी तो कही पीछे छूट ही गई । संघ को भी समझ नहीं आया कि वह कैसे हिन्दुत्व को सत्ता के नजरिये से इतर परिभाषित करें । असर इसी का है कि अब मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं करेगा और संघ को साजिश के कटघरे में खडा कर ही देखेगा ।
ये आप कह रहे है ।
बिलकुल .... हालात को समझे 18 अप्रैल को जब दूसरे चरण का मतदान हो रहा था तब इन्देश कुमार दिल्ली में मुसलमानो को मोदी के गुण समझा रहे थे । और वोट देने की गुहार लगा रहे थे । सवाल यही है कि भोपाल मे साध्वी को और श्रीनगर में खालिद जहांगीर को टिकट देने भर से क्या होगा ।
तो क्या संघ इन हालातो को समझ रहा है ।
प्रोफेसर साहेब मुश्किल ये नहीं है कि संघ क्या समझ रहा है ...मुश्किल तो ये है कि जिस रास्ते बीजेपी निकल पडी है उसमें अगर मोदी चुनाव हार जाते है तो फिर बीजेपी 20 बरस पीछे चली जायेगी । क्योकि सत्ता विचारधारा हो नहीं सकती और जिस तरह मोदी का खौफ दिखाकर सबको समेटने की चाहत ही विचारधारा हो गई है उसमें ये सवाल तो कोई भी अब कर सका है कि वाकई मोदी चुनाव हार गये तो बीजेपी का होगा क्या । क्योकि चुनावी जीत विचारधारा हो नहीं सकती और जीत के लिये चुनावी मंत्र सोच हो नहीं सकती है । ऐसे में चुनावी हार हो जाये तो फिर कौन सी नई सोच या कौन सी विचारधारा बीजेपी के पास बचेगी ये सवाल तो है कि क्योकि वैचारिक तौर पर बीजेपी को चुनावी हार के बाद खडा करना अनुभवी नेता के ही बस में होता है । और जब अनुभव को पार्टी में मान्यता ही नहीं दी जा रही हैतो फिर बीजेपी को पटरी पर लायेगा कौन । ये सवाल भी है । जो पटरी पर ला सकते है उन्हे खारिज कर हाशिये पर ढकेल दिया गया । और इसी दौर में काग्रेस ने बीजपी या कहे संघ के ही उन मुद्दो को अपना लिया जिन मुद्दो के आसरे संघ हमेशा काग्रेस को खारिज करती रही ।
मसलन..
मसलन किसान की कर्ज माफी । मजदूरो को न्यूनतम आय । बेरोजगारो को राहत । कारपोरेट विरोध । और ध्यान दिजिये को मोदी कारपोरेट प्रेम में और पालेटिकल फंडिग में इतने आगे बढ चुके है कि बीजेपी कार्यकत्ताओ या संगठन की पार्टी है ये शब्द भी तो गायब हो गया है ।
तो इसके मतलब मायने क्या निकाले जाये ।
हा हा .....खौफजदा शख्स ही खौफ पैदा करता है ।
तो क्या आप भी फंडिग या छापो या फिर संस्थानो को धराशाही करने केअक्स में ये देख रहे है ।
मेरे सवाल पर स्वयसेवक महोदय पहली बार बोले... हो सकता है लेकिन चार दिन पहले गुजरात में जब मोदी गुजरातियो को संबोधित करते हुये कहते है कि .... देख लेना काग्रेस के निशाने पर हो सभी .... तो संकेत कई है ।
आपने जब इतना कह ही दिया तो आखरी बात मै भी कह दूं...अचानक प्रोफेसर साहेब बोले ...
बिलकुल
तो अगर मोदी चुनाव जीत जाते है तो फिर उस नब्ज को भी समझने की कोशिश किजिये कि हिन्दुस्तान का लोकतंत्र कैसे चलता है । लोकतंत्र का मतलब है संविधान की वो कारिगरी जिसमें सारी व्यवस्थाये स्वायत्त भी है और एक बिंदु से आगे एक दूसरे पर निर्भर भी है । यही चैक एंड बैलेस हमारा लोकतांत्रिक अनुशासन है । विधायिका स्वायत्त है । वह कानून बनाये । नौकरशही स्वायत्त है कि वह उसे लागू करें । लेकिन विधायिका का वह कानून खारिज भी हो सकता अगर न्यायापालिका की संवैधानिक कसौटी पर खरा नहीं उतरती हो । न्यायापालिका संविधान की रोशनी हर फैसला करने का अधिकार और सामर्थ्य रखती है लेकिन उसका कोई भी फैसला संसद पलट भी सकती है । रिजर्व बैक , कैग , सीबीआई, संसदीय समितिया , चुनाव आयोग , प्रसार भारती , मीडिया सभी के साथ यही सच है ।
तो इसमें गडबडी क्या है प्रोफेसर साहेब ...
यही कि मोदी सत्ता इनको अपनी सत्ता के आगे रोडा समझती है और इन्हे खत्म करने पर तुली है । इसलिये लोकतंत्र कमजोर पड रहा है । और यही दिशा आगे बढती चल गई तो लोकतंत्र ही टूट जायगा ।
अगर आप ऐसा सोच रहे है तो फिर ये भी समझ लिजिये .... मोदी सिर्फ बनारस से चुनाव नहीं लडेगें । खासकर तब जब प्रियकां के जरीये समूचा विपक्ष मोदी को घेर रहा है । और सच ये भी है कि 2014 में मोदी महज तीन लाख वोट से जीते थे । और तब मैदान में केजरीवाल के अलावे काग्रेस सपा बसपा सभी के उम्मीदवार मैदान में थे ।
तो क्या आप संकेत दे रहे है कि मोदी बनारस में निपट भी सकते है ।
जी नहीं प्रोफसर साहेब मै सकेत दे रहा दूं कि मोदी आखिरी दम तक हार मानगें नहीं । इसलिये वह दूसरी सीट से भी चुनाव लड सकते है ।
और वो दूसरी सीट होगी कौन सी .....मेरी उत्सुकता जागी । तो स्वयसेवक महोदय ठहाका लगाते हुये बोले... सवाल तो सबसे बडा यही है ।
लेकिन आपको क्या लगता है । वह भी दक्षिण की कोई सीट......ना ना ये गलती मोदी नहीं करेगें ।
तो
तो क्या दिल्ली ।
क्या कह रहे है आप....
आप नहीं वाजपेयी जी ....दिल्ली का मतलब क्या होगा जरा समझे....
ये तो ब्रेकिग न्यूज होगी ।
हो सकता है ..... जी एक तीर से कई निशाने ..... लेकिन अभी सिर्फ हम सोच सकते है ।
कमाल है .... आप सोचने की बात कर रहे है । ये रणनीति तो वाकई कमाल की होगी....
पर अब प्रोफेसर साहेब ने मेरी तरफ देख कर कहा.....वाजपेयी जी...दिल्ली का सुल्तान या दिल्ली का ठग
क्यों आप ये क्यो कह रहे है .... समझे जरा दिल्ली वाटरलू भी साबित हो सकती है ।
और सुल्तान भी बना सकती है । स्वयसेवक महोदय ने कहते हुये जोरदार ठहाका लगाया......
जबरदस्त विश्लेषण सर।। आप टीवी पर कब आ रहे है।। इस blog को adsense से जोड़ लीजिए ।।।
ReplyDeleteया donation का कोई उपाय बताइए।। हम आपकी मदद करना चाहते है ।।। please reply. ..
प्रसून जी भारतीयता को जीवित और संगठित रखने में आपका योगदान सराहनीय है धन्यवाद
ReplyDeleteजब सत्ता का परिवर्तन हो जाएगा तब आपको बहुत याद किया जाएगा कि आप ही एक अकेले पत्रकार थे जिसने आखिरी समय तक हार नहीं मानी और भारत वासियों को सच्चाई का मार्ग दिखाते रहें किसी से डरे भी नहीं।
ReplyDeleteवीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो सामने पहाड़ हो या सिंह की दहाड़ हो, तुम कभी रुकना नहीं तुम कभी झुकता नहीं।
नही नही ये आपको चनेके पेड पर चढादेंगे ।
DeleteBhooot badya sir g lage raho
ReplyDeleteआदरणीय बहुत दिनों से कुछ पढ़ने को नहीं मिल रहा
ReplyDeleteVery good sir hi pranam!
ReplyDeleteआज से कुछ बरस बाद जब इस समय किचर्चा होगी aapko जरूर याद किया जाएगा कि एक शख्स था जक दर दर की ठोकरे खाता रहा लेकिन कभी झुका नही। Keep it on.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसर को प्रणाम,
ReplyDeleteसर जवाब सूर्या चैनल में आए उसके बाद गोरखपुर से सूर्या चैनल के लिए मुझे जोड़ा गया और हम आपकी टीम का हिस्सा बन गए।
आपकी कार्यशैली, खबरों का चुनाव और आपके कार्यालय से लगातार मिल रहे निर्देशों से बहुत ही कम दिनों में मैंने बहुत कुछ सीखने की कोशिश की।
क्योंकि गोरखपुर में हम लखनऊ से प्रकाशित होने वाले दैनिक अवधनामा जो हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित होता है के लिए काम कर रहा हूं और टेलीविजन की पत्रकारिता मेरे लिए नई थी । लेकिन फिर भी आपकी टीम से मिल रहे निर्देशों के अनुसार मैंने काम किया। जय हिंद में आपने हमारी कई खबरों को पढ़ा तो हमको बहुत गर्व हुआ।
सर आपके जाने के बाद से सूर्या समाचार पर खबरों को भेजने में मन ही नहीं लगता । आप के रहते हुए जहां मैंने 33 खबरें भेजी तो आपके जाने के बाद से सिर्फ दो।
सर मैं गोरखपुर से आपकी टीम का हिस्सा बनना चाहता हूं कृपया करके मुझे अपनी शागिर्दी में रख ले, मैं आपसे बहुत कुछ सीखना चाहता हूं।
धन्यवाद
मुनव्वर रिजवी, गोरखपुर
मोबाईल - 9336340288, 8299005197
मेल- yaadrizvi@gmail.com
Is this conversation real or your imagination
ReplyDeleteबहुत खूब जनाब
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने
सत्ता नशे में चूर है
ReplyDeleteगरीबों और बेसहारा लोगों से बहुत दूर है।
दिलीपकुमार.....
Deleteये पारटीबराबर है न ?३०३+५२
सर क्या संवाद ओरीजनल रहते है???
ReplyDeleteबहोत ही बढीया रहता है पढने मे
बहुत खूब जमीन खिसकती जा रही है bJP के पाँव के निचे से
और सर एक बात सोलापूर महाराष्ट्र से bjp की सीट नही आ रही है क्युकी वहाँ से VBAसे अॕड.प्रकाश आंबेडकर ही आयेंगे Thank you
Why all surveys are showing in favour of BJP but scene is different in your view..pls reply
ReplyDeleteExcellent work sir
ReplyDeletePrasoon ji. hats off to your sprit. Pray 🙌👏🙏🙇 to God to give you strength & hope after election things will be normal.
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