क्या बोफोर्स का जिन्न 22 बरस बाद फिर सत्ता पलट सकता है? भाजपा चाहे इसके कयास लगाने लगे लेकिन इन बीस बरस में भ्रष्टाचार कैसे देश की नसों में दौडने लगा है और विकास की अंधी दौड में हर सरकारी मंत्रालय के लिये भ्रष्टाचार अगर राहत का सबब बना है तो भ्रष्ट्राचार के आसरे विकास की लकीर खींचने को ही कॉरपोरेट समूह जायज भी मान चुके हैं। इसीलिये बोफोर्स का सवाल उठाने से पहले अभी के हालात समझ लें।
देश के सामने पहली बार कैबिनेट मंत्री से लेकर राज्यों के सीएम और बैंकों के अधिकारियों से लेकर केन्द्र में सचिव स्तर के नौकरशाह, साथ ही सरकारी नौरत्न से लेकर टाटा-अंबानी सरीखे बेशकीमती कॉरपोरेट समूह भ्रष्टाचार के घेरे में फंसते दिखे हैं और इनके भ्रष्टाचार के अक्स में देश का विकास देखने की हिम्मत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाले भी हुये हैं। यानी भ्रष्टाचार आर्थिक सुधार की जरुरत है। विकास का पर्याय है। और इसे सरकारी लाइसेंस देने में कुछ हर्ज नहीं है। कुछ इसी तरह की उदारवादी सोच भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ मनमोहन सिंह ने विकास की थ्योरी के जरिये जोड़ दी है। इसीलिये भ्रष्टाचार के जिन मामलो को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है और भाजपा को अब यह लग रहा है भ्रष्टाचार को राजनीतिक मुद्दा बनाकर सत्ता पलटी जा सकती है उसकी हकीकत है क्या, इसे परखने से पहले जरा भ्रष्ट्राचार की नींव पर विकास और राहत की नीतियों को समझना जरुरी है, जिस पर किसी ने कोई हंगामा इस देश में नहीं मचाया। किसानों की राहत के लिये देश में ग्रामीण बैकों और राष्ट्रीयकृत बैंकों को सरकार ने नीतियों और पैकेज के तहत बीते दस बरस एक हजार आठ सौ करोड से ज्यादा की रकम पहुंची। लेकिन किसानों तक इस राहत का कितना अंश पहुंचा होगा, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि विदर्भ और तेलांगना क्षेत्र के किसानों को बीते पांच साल में औसतन राहत ढाई हजार रुपये प्रति किसान प्रति बरस की मिली। यानी हर महीने दो सौ आठ रुपये। जबकि सरकारी खाता बताता है कि उन्हें सालाना साठ हजार से सवा लाख रुपये तक मिलने थे तो बाकी रकम कहां गयी ?
अभी सीटी बैंक के 300 करोड़ के घोटाले को लेकर हंगामा मचा है कि ग्राहकों का पैसा कैसे बिना पूछे बाजार में बैंकों के अधिकारियो ने लगा दिया। लेकिन छह दस बरस में राष्ट्रीयकृत बैकों ने उघोगों को बसाने और चलाने के नाम पर पचपन लाख करोड से ज्यादा का लोन अपने बूते दिया। लेकिन इस लोन की एवज में देश को उघोगों का काफिला मिल गया ऐसा भी नहीं है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा दस लाख करोड़ का लोन उघोगों को शुरु करने और फिर बीमार बताकर डकारने का खेल बैंकों के अधिकारियों और उघोगपतियों के साझी सहमति के बीच हुआ। इतना पैसा कहां गया, इसका जवाब बैकों की यूनियन आज भी पूछती है तो कोई जबाव नहीं मिलता। रिजर्व बैंक ने भी कई सवाल इस पर खड़ा किये लेकिन गोल-मोल जवाब का अर्थ यही निकला कि कोई उद्योग बीमार हो जायेगा इसकी जानकारी पहले से कैसे लगेगी। संयोग से एमआईडीसी यानी महाराष्ट्र औघोगिक विकास निगम के तहत बीते दस बरस में तीस हजार से ज्यादा उद्योग बीमार यानी सीक यूनिट में तब्दील हो गये। लेकिन इस सीक यूनिट का खेल यही नहीं रुका बल्कि दोबारा एमआईडीसी की नयी जमीन पर उसी उघोगपति ने दोबारा उघोग नये नाम से लगाया और बैंको ने उसे फिर से लोन दिया। चूंकि हर उद्योगपति के रिश्ते राजनीति से हैं या राजनेता ही उघोगपति है तो बैंको का दोहन रोक कौन सकता है।
पुणे के पिपरीं चिंचवाड से लेकर नागपुर के बूटीबोरी के एमआईडीसी इलाके में एनसीपी,काग्रेस, भाजपा,शिवसेना सभी के नेताओ के उद्योग लगे, बीमार हुये और फिर दूसरे नाम से उन्ही मशीनो के आसरे चल पड़े, जो बैको के दस्तावेजो में पहले बीमार हो चुके थे। मुंबई के आदर्श सोसायटी और पुणे की लवासा सीटी की जमीन को लेकर राजनीतिक हंगामा जो भी मचा लेकिन उघोग और जनहितकारी योजनाओ के नाम पर नेताओ ने ही खेती की जमीन सरकार से कैसे और कितनी हडपी इसकी सूची हर राज्य में इतनी लंबी है कि उसका ओर-छोर पकडने वाला भी उसमें शरीक दिखायी देता है, इसलिये यह मामला कहीं उठता ही नहीं।
महाराष्ट्र के तीस राजनेताओ के पास तीन हजार एकड़ की अवैध खेती योग्य जमीन है। इन्होने अलग-अलग योजनाओ के नाम पर यह जमीन ली। योजना कोई शुरु हुई नहीं और जमीन पर नेता के परिवार का धंधा चल पडा । मध्यप्रदेश में 21 नेताओ के नाम सरकारी फाइलों में हैं, जिन्होंने खेती ही नहीं आदिवासियो की जमीन भी विकास के नाम पर हथियाई है। यह जमीन छिंदवाडा, जबलपुर, देवास, सतना, दामोह तक फैला है। यहा कोई उघोग , कोई योजना शुरु हुई नहीं। हां, जबलपुर जैसी जगह पर योजना के नाम की जमीन रीयल स्टेट में तब्दील जरुर हो गयी। कॉमनवेल्थ गेम्स में पैसा बनाने के लिये कैसे सात सौ करोड की योजना एक लाख करोड तक जा पहुंची इसको लेकर जो भी हंगामा मचा हो लेकिन देश में पावर प्रोजेक्ट लाने के लिये जिन जिन लोगो या कंपनियों को बीते दस बरस में ठेके मिलते चले गये और पावर प्रोजेक्ट के नाम पर जो लोन बैको से उन्होने उठाया अगर उसी को जोड़ दिया जाये तो देश के सारे घोटालो की सारी रकम भी पार कर जायेगी। चूकि उससे पावर प्रोजेक्ट को लेकर कोई रकम निर्धारित रही नहीं या कहे किसी को पता नहीं थी, इसलिये पावर प्रोजेक्ट के नाम पर ही औसतन दो सौ करोड से ज्यादा पहली किश्त देश के अलग अलग बैको ने साठ से ज्यादा प्रोजेक्ट को लेकर दी है। महाराष्ट्र , आध्रंप्रदेश, कर्नाटक, उडीसा में सबसे ज्यादा पावर प्रोजेक्ट के लाइसेंस बंटे। हालांकि, आज की तारीख में भी पावर प्रोजेक्ट की तय रकम की जानकारी बैको के पास नहीं है और सरकार भी अब पावर प्रोजेक्ट का लाइसेंस देने से पहले सिर्फ इतना ही पूछती है कि पावर प्रोजेक्ट बनने के बाद वह प्रति यूनिट बिजली कितने में बेचेंगे। जिसपर आज भी कोई आखिरी निर्णय नहीं लिया जा सका है। लेकिन जिन्हे भी पावर प्रोजेक्ट का लाइसेंस मिला, उसका दूसरा सच यही है कि 2 जी स्पेक्ट्रम की तर्ज पर लाइसेंस लेने वालो ने लाउसेंस ही दो सौ करोड से पांच सौ करोड़ तक में उन कंपनियो को बेचा, जो पावर प्लांट बनाने और चलाने में अनुभवी थी।
यानी यह सवाल दूर की गोटी है कि नीरा राडिया सरीखे बिचौलिये कैसे किस योजना का लाइसेंस सरकार के किस मंत्रालय से किस-किस के लिये कितनी रकम देकर निकाल लेते हैं और मंत्री उन्ही लाइसेंसो के जरीये देश को बताता है कि विकास की फलां लकीर वह फलां योजना के तहत ला रहा है। इसी पर देश भी खुश होता है और प्रधानमंत्री भी मंत्री की पीठ ठोंकते हैं। फिर वही लाइसेंस बाजार में बेचा जाता है। छत्तीसगढ में बन रहा बीएचईएल का पावर प्लांट कितने में कैसे एनटीपीसी ने दिया यह सिर्फ इसका एक नमूना मात्र है। लेकिन पावर प्लांट का सवाल बैंकों के लोन से शुरु हुआ था तो उसका असर यही है कि जितने लाइसेंस बांटे गये, उसका सिर्फ नौ फिसदी पावर प्रोजेक्ट ही अभी तक शुरु हुये हैं। और लोन की रिकवरी का कोई अता-पता किसी को नहीं है। यही हाल एसईजेड के सवा तीन सौ लाइसेंसो का है। जिन्हें विकास की आधुनिक रेखा माना गया। खुद प्रधानमंत्री ने भी एसआईजेड से देश की तस्वीर बदलते हुये देखी। तो वाणिज्य मंत्रालय से लेकर वित्त मंत्रालय ने गरी झंडी देनी शुरु की।
लेकिन अरबो के वारे-न्यारे कर जमीन भी हथियाई गई और जमीन हथियाने को विकास से भी जोड़ा गया। लेकिन छह बरस में एसईजेड का बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर भी खड़ा नहीं हो पाया। घपलों-घोटालों की यह फेरहिस्त कितनी लंबी हो सकती है, यह पूछना जायज इसलिये नहीं है क्योकि देश की अर्थव्यवस्था को ही जब भ्रष्टाचार से जोड़ दिया गया है तो फिर किसे कौन भ्रष्ट कहे और किसे ना कहे यह सवाल बेमानी है। क्योकि जांच करने वाली सीबीआई के कान अदालत ने उस बोफोर्स मामले में ऐंठें है, जिसके जरीये दो तिहाई बहुमत पर बैठे राजीव गांधी की सत्ता पलट गयी थी। ऐसे में बोफोर्स तोप खरीदी में घूस का सवाल 22 साल पहले के राजनीतिक नास्टेलिजिया को जगाकर सत्ता पलट सकता है, यह कहने से पहले किसी भी राजनीतिक दल को पहले ईमानदार होना होगा। जिसका लाइसेंस कहीं नहीं मिलता। यह फ्री में जनता देती है। और फिलहाल यह किसी राजनीतिक दल के पास है नहीं।
You are here: Home > राजीव गांधी > बोफोर्स का जिन्न सत्ता पलट सकता है
Friday, January 7, 2011
बोफोर्स का जिन्न सत्ता पलट सकता है
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:01 AM
Labels:
कॉरपोरेट,
बोफोर्स घोटाला,
राजीव गांधी
Social bookmark this post • View blog reactions
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
आज सुबह आरुषी हत्या काडं पर आपका कार्यक्रम देख रहा था तो इस मामले में एक विरोधाभास की तरफ आपका ध्यान दिलाने का ख्याल हो आया। मामला है नौकरानी भारती के बयान का, हमें याद है कि टेलीवीज़न पर दिखाया गया नौकरानी का ब्यान था कि घर में प्रवेश करने पर ही नुपुर तलवार ने रोते हुए कहा कि “ देखो क्या करके रखा है?” जबकि अब यह बताया जा रहा है कि आरुषी के कमरे में जाकर कहा कि “देखो हेमराज ने क्या कर दिया?” आप अपनी आर्काइव से उस समय की वीडियो क्लिप्स निकालकर नौकरानी का ब्यान फिर से देखिये आप लोगों को बहुत से और क्लू मिलेंगें।
६४ करोड रुपल्ली का बोफ़र्स को तो अब कम रकम के कारण हमेशा के लिये बंद कर दिया जाये .
जब एक बैन्क मैनेजर ४०० करोड का घपला करता है तो ६४ करोड की औकात ही क्या है
NAA..........AB YE MUMKIN NAHI
आरुषी/बोफ़र्स और राममंदिर , सी बी आई और मीडिया के लिऐ एक उद्वोग बन गया हैं, और नेताओ के लिऐ घात प्रतिघात का औजार/हथियार हैं
सतीश कुमार चौहान भिलाई
यानी यह सवाल दूर की गोटी है कि नीरा राडिया सरीखे बिचौलिये कैसे किस योजना का लाइसेंस सरकार के किस मंत्रालय से किस-किस के लिये कितनी रकम देकर निकाल लेते हैं और मंत्री उन्ही लाइसेंसो के जरीये देश को बताता है कि विकास की फलां लकीर वह फलां योजना के तहत ला रहा है....haan sir yahi to desh ka durbhaagy hai ki kaise facts ko toda madoda jata hai....
Post a Comment