सीबीआई अब क्या करेगी। अगर वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सच को अपना सच बनाती है तो उसे एफआईआर वापस लेनी होगी। और अगर अपनी जांच को सही मानती है और एफआईआर वापस नहीं लेती है तो प्रधानमंत्री का सच बेमानी हो जायेगा। यानी पहली बार सीबीआई की जांच और प्रधानमंत्री की साख में से कोई एक को ही बचना है। लेकिन इन न्याय के तराजू के इन दो पाटों पर निगरानी चूंकि सुप्रीम कोर्ट कर रहा है तो सीबीआई को कोई भी जवाब पहले सुप्रीम कोर्ट को देना है। इसलिये अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर है कि वहा सीबीआई अपनी जांच पर सुप्रीम कोर्ट को कैसे संतुष्ट करती है क्योंकि कोलगेट पर सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है और 22 अक्टूबर यानी कल सीबीआई को पहली स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करनी है। और खासकर यह पहला मौका है जब सीबीआई की एफआईआर के ठीक उलट पीएमओ ने तीन लाइन का बयान जारी कर सीबीआई की ही सांस अटका दी है। ध्यान दें तो सीबीआई की एफआईआर में कई पेंच ऐसे हैं, जिसे अनदेखा सुप्रीम कोर्ट कर ही नहीं सकता चाहे सीबीआई एफआईआर वापस लेने की बात कहें। पहला पेंच है अगर हिंडाल्को की फाइल पीएम ने क्लियर की, जो वह मान चुके है तो कोल ब्लाक्स की बाकी फाइलों को भी पीएम ने ही बतौर कोयला मंत्री क्लियर की होगी। दूसरा पेंच है -सीबीआई अगर हिंडालको के खिलाफ केस बंद करती है तो फिर पूर्व कोयला सचिव पारेख पर उसका रुख क्या होगा। क्या पारेख को भी सीबीआई क्लीन चीट दे देगी।
क्योंकि एक तरफ सीबीआई ने पूर्व कोयला सचिव के ताल्लुकात दूसरी कंपनियों के साथ होने का जिक्र भी किया है और पूर्व कोयला सचिव ने अपने बयान में पीएम को कटघरे में खड़ा किया है। और तीसरा पेंच है कैग की रिपोर्ट में पूर्व कोयला सचिव को व्हीसल ब्लोअर माना गया। क्योंकि पारेख ने ही कोल ब्लाक बांटने की जगह बोली लगाने की वकालत की थी। जिसे उस वक्त कोयला मंत्री यानी पीएम ने नहीं माना। यानी हर पेंच में सीबीआई की जांच ही पहली बार कटघरे में है और सबसे बड़ा सवाल है कि सीबीआई के एफआईआर ने कोल गेट के पूरे मुद्दे की असल जड़ से ही ध्यान भटका दिया है। क्योंकि सवाल यह नहीं था कि कोल ब्लाक किसे मिले।
सवाल था कि कैसे राजस्व को चूना लगाकर कोल ब्लॉक बकायदा सरकार की नीतियों के तहत औने पौने दाम में बांट दिये गये। इसलिये अब हर किसी की नजर सुप्रीम कोर्ट पर है जहां कल सीबीआई स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करेगी। और सुप्रीम कोर्ट आवश्यक दिशा निर्देश देगी। वहीं दूसरी तरफ मनमोहन सिंह इस सच को समझ रहे है कि 2003 से 2010 के दौरान आंवटित की गई जिन 192 कोल ब्लॉक्स की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई कर रही है उसके कठघरे में बतौर कोयला मंत्री उनका नाम बार बार आयेगा। इसलिये पहली बार पीएमओ ने हिंडाल्को पर सफाई देकर बेहद बारीकी से खुद को पाक साफ किया है। ध्यान दें तो हिंडाल्को को आवंटित की गई खादान को सही करार देते हुये पीएमओ ने जिन तीन लाइन का बयान जारी किया गया उसमे दो तथ्यों को रखा। पहला जो निर्णय लिया गया वह सही था। और जो केस उनके सामने रखा गया वह मेरिट के लिहाज एकदम सही था। यानी संकेत साफ है कि ना सिर्फ हिंडालको के मामले में बल्कि जिन भी कोल ब्लाक्स को आंवटित किया गया, उसकी मेरिट को जांचने का काम कोल सचिव या कोयला मंत्रालय का ही था। ना कि कोयला मंत्री का जो उस वक्त प्रधानमंत्री ही थे। जाहिर है पीएमओ का यह बयान चाहे हिंडालको को क्लीन चीट दें लेकिन पूर्व कोल सचिव को क्लीन चीट मिलेगी यह मुश्किल है। क्योंकि सीबीआई की जांच ने कई सवाल कोल ब्लाक्स आवंटन को लेकर किये है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण आरोप यह है कि कोल ब्लाक्स आंवटन का निर्णय स्क्रीनिंग कमेटी से बाहर किया जा रहा था। और दूसरा पूर्व कोल सचिव उस वक्त नवभारत पावर के डायरेक्टर थे जब कोल ब्लाक के लिये उसने अप्लायी किया। लेकिन मनमोहन सिंह की मुश्किल यह है कि सरकार कोल ब्लाक देने की प्रक्रिया में ही गडबड़ी पायी गयी और आंवटन के तौर तरीके सरकार ने यानी पीएम ने ही तय किये थे।
और यह ठीक वैसे ही है जैसे 2 जी स्पेक्ट्रम मामले में ट्राई की पॉलिसी खारिज कर नीतियां सरकार की थीं और इसी चक्कर में संचार मंत्री ए राजा को जेल जाना पड़ा। ऐसे में सीबीआई 22 अक्टूबर को तो सीलबंद लिफाफे में अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेगी। लेकिन यह सीलबंद लिफाफा खुलेगा 29 अक्टूर को। और तबतक सरकार की सांस तो अटकी ही रहेगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का भी निर्देश 29 को ही जारी होगा। जो किस किस को कठघरे में खड़ा करता है यह महत्वपूर्ण होगा।
Monday, October 21, 2013
सीबीआई अब क्या करेगी?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 7:12 PM
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2 comments:
सर, सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के बावजूद सीबीआई ने फाईलों को सीधे कोर्ट में पेश करने की हिम्मत नहीं की। दृश्य साफ है सीबीआई पूरी तरह से काँग्रेस नियंत्रित है। यह तो पत्थर की लकीर है कि काँग्रेस के प्यादे बन चुके पीएम पर कोइ सिकंजा नहीं कसेगा। अगर सु को सीबीआई को तोते की जगह चमचा कहे तो भी नहीं।
हां सर...लगता तो यही हैं..कुछ और हो रहा हैं और कुछ और दिखाया जा रहा हैं...
हमारे यहाँ तो बार बार मंत्री जी ही बोल देते हैं.."न्याय पालिका अपनी हद मैं रहे".
प्रधान मंत्री की जिम्मेदारी तो बनती हैं...
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