Thursday, September 27, 2012

बेटी, भतीजा या दिल्ली में पावर


महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार ने जिस सियासी जूते को महज 38 बरस में पहन लिया, उस सियासी जूते को अजीत पवार 53 बरस की उम्र में शरद पवार की तर्ज पर ही पहनने निकले हैं। 1978 में शरद पवार ने इंदिरा गांधी को ठेंगा दिखा कर पहले कांग्रेस को तोड़ा फिर वंसतदादा पाटिल को हाशिये पर छोड़ कर विपक्षी जनता संघ के साथ मिलकर प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाकर मुख्यमंत्री बन बैठे। और अब अजीत पवार महाराष्ट्र की राजनीति को डगमगाकर मुख्यमंत्री बनने के रास्ते को पकड़ने निकले हैं। शरद पवार अपने पिता गोविंदराव पवार की बनायी किसानों की सहकारी खारेडी बिक्री संघ के रास्ते राजनीति में आये तो अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार की बनायी शुगर को-ओपरेटिव लॉबी और जिला सहकारी बैक को आधार बनाकर राजनीति में आये।

लेकिन संयोग से राजनीति के ऐसे मोड़ पर दोनों एक दूसरे के खिलाफ आ खड़े हुये हैं, जहां शरद पवार महाराष्ट्र के जरीये दिल्ली को साधना चाहते हैं और अजीत पवार दिल्ली के जरीये महाराष्ट्र को साधना चाहते हैं। शरद पवार फिलहाल केन्द्र की सत्ता में सौदेबाजी का आधार महाराष्ट्र में कांग्रेस को टिकाये रखकर करना चाहते हैं तो अजीत पवार महाराष्ट्र को कांग्रेस की मजबूरी बता कर अपनी सौदेबाजी का दायरा बढ़ाना भी चाहते हैं और महाराष्ट्र में खुद को एनसीपी के केन्द्र में खड़ा भी करना चाहते हैं। सीधे तौर पर महाराष्ट्र सत्ता का संघर्ष चाचा भतीजे के आपसी संघर्ष का नतीजा दिखायी दे सकता है। लेकिन यह स्थिति भी क्यों और कैसे आ गई यह अपने आप में एनसीपी की अनकही कहानी और महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार पर सियासी सहमति की अनकही कहानी की तरह है। असल में जिस सिंचाई योजनाओं के नाम पर  72 हजार करोड़ के घोटाले को लेकर हंगामा मचता है,उसके घेरे में सिर्फ अजीत पवार के दस बरस सिचाई मंत्री,जलसंसाधन मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री के तौर पर रहना भर नहीं है। या फिर सवाल सिर्फ उनके जरीये डैम परियोजनाओं की उन फाइलों पर चिड़िया बैठाने से पहले मुख्य सचिव से लेकर राज्य के वित्त, योजना, कृषि और जलसंसाधन मंत्रालयों के अधिकारियो की अनदेखी करना भर नहीं है। बल्कि विदर्भ से लेकर मराठवाडा और पश्चिमी महाराष्ट्र में डैम बनाने के नाम पर करीब 42निजी कंपनियों को ठेका देकर कमोवेश हर राजनीतिक दल के नेताओं को साथ खड़ा करना भी है, जिनका नाम उस श्वेत पत्र में आ सकता है जिसे लाने की धमकी पृथ्वीराज चौहाण दे रहे हैं। कृष्णा प्रकल्प में अगर शिवसेना के नेताओ ने पैसा खाया है तो विदर्भ के भंडारा के घोसीखुर्द में भाजपा का एमएलसी मितेश भंगेडिया और विदर्भ की ही तीन अन्य योजनाओं में भाजपा के राज्यसभा सांसद अजय संचेती का नाम है। विदर्भ में तो बकायाद महेन्द्र कन्सट्रक्शन ने कंपनी के साथ मिलकर एस जी भंगेडिया ने करोडो के वारे न्यारे किये।

यही स्थिति मराठवाडा की है। आंकड़ों में घोटाले के सच को समझे तो डैम परियोजनाओ से 80 लाख किसान परिवारों को सीधा लाभ होना था। लेकिन कागजों में तैयार डैम जमीन पर बंजर और सूखी जमीन के तौर पर ही मौजूद है। लेकिन भ्रष्टाचार पर सहमति का नजारा यही नहीं रुकता। 2005 और 2009 में उन्हीं किसानों को सिचाई के लिये 5 हजार करोड़ देने पर विधानसभा में सहमति बनी, जिन्हें डैम योजना से सिंचाई की सुविधा मिल जानी चाहिये थी। यानी पृथ्वीराज चौहाण से पहले दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने इसपर कोई नजर नहीं डाला कि सिचाई के खेल में कौन करोड़ों कमा गया या राज्य को चूना लगा गया। असल में पहली बार पृथ्वीराज चौहाण ने जिस ईमानदारी का सवाल सिंचाई घोटाले पर श्वेत पत्र लाने को लेकर कहा है, उसने ना सिर्फ अजीत पवार बल्कि शरद पवार की सियासी जमीन को भी हिलाया है। क्योंकि इससे पहले एनसीपी नेता तटकरे और उसके बाद भुजबल भी भ्रष्टाचार के दायरे में हैं। और उन्हें घेरा पृथ्वीराज चैहाण ने ही है। यानी कांग्रेस अगर पृथ्वी राज चौहाण को बरकरार रखती है तो संकट एनसीपी पर गहरायेगा । शरद पवार की सियासत पर असर पड़ेगा। इसलिये सरकार पर संकट ला कर अजीत पवार और शरद पवार ने ना सिर्फ अपनी अपनी चाल चली है बल्कि उसके घेरे में कांग्रेस के साथ सीधी सौदेबाजी का दायरा भी खोला है। अजीत पवार अपने इस्तीफे से एनसीपी को अपने साथ खड़ा कर शरद पवार को कमजोर बता रहे हैं। और शरद पवार अजित पवार के इस्तीफे की सौदेबाजी कांग्रेस से कर रहे हैं। यानी जिन परिस्थतियों में अजीत पवार फंसे हैं, उसमें इस्तीफे के अलावा अजीत पवार के पास कोई विकल्प बचता नहीं था क्योकि राज्यपाल तक ने अंगुली उठा दी थी। और अजीत पवार को लेकर एनसीपी के मंत्री से लेकर निर्दलीय विधायक भी जिस तरह एकजुट हुये, उसमें कांग्रेस के सामने सरकार बचाने के लिये शरद पवार का दरवाजा खटखटाने के अलावे कोई विकल्प बचता नहीं है।

शरद पवार यहीं पर अपनी सियासी ताकत का इस्तेमाल कर दो तरफा चाल भी चल रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस की सरकार गिरेगी नहीं इसका भरोसा तो दूसरी तरफ पृथ्वाराज चौहाण उनके मुताबिक चले इसका भरोसा चाहने की चाल। इसीलिये शरद पवार ने अजीत पवार के इस्तीफे पर तो अपनी मोहर लगायी लेकिन बाकि 19 मंत्रियों के इस्तीफे को भावनात्मक करार देकर अगले 48 घंटे का वक्त भी यहकर कर निकाल लिया कि शुक्रवार को वह खुद बात करेंगे। लेकिन इस कड़ी में पहली बार एक मोहरा सुप्रिया सुले भी हैं। जिनको लेकर यह कयास लगाये जा रहे हैं कि कही वह शरद पवार की विरासत ढोने की तैयारी में तो नहीं हैं। क्योंकि शरद पवार ने अपने राजनीतिक गुरु यशंवतराव चौहाण संस्थान का सबकुछ सुप्रिया सुले को सौंपा है और महाराष्ट्र में इसे एक राजनीतिक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। यहीं पर अजित पवार का इस्तीफा शरद पवार से बगावती मूड में दिखायी देता है जो शरद पवार के 1978 के तेवर की याद दिलाता है जो गठबंधन में भी नये सिरे बनाता है। इसलिये महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार एक सवाल यह भी है कि क्या एनसीपी के नये कर्ता-धर्ता अजीत पवार होंगे जो संगठन को मथ रहे हैं और शरद पवार के सबसे करीबी प्रफुल्ल पटेल पर यह कहकर निशाना साधते रहे हैं कि दिल्ली की सियासत में एनसीपी महाराष्ट्र में एक मंडी बन चुकी है। जहां सत्ता ना हो तो हर कोई एनसीपी छोड़ भाग जाये। और शरद पवार इसी सच को समझते हुये एनसीपी का मतलब सत्ता में बने रहना ही बनाये हुये हैं। और इस बार भी रविवार तक एक बार फिर समझौते और सौदेबाजी से ही एनसीपी की ताकत दिखायी देगी । जहां इंतजार सिर्फ इस बात का है कि शरद पवार अबकि बेटी के लिये जगह बनाते है या भतीजे का कद बढाते है या फिर दिल्ली के मनमोहन विस्तार में अपनी ताकत को बढाने की ढाई चाल चलते हैं।

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