Thursday, June 29, 2017

मोदी,संसद और गांधी....आधी रात का सच

" कई सालों पहले, हमने नियति के साथ एक वादा(Tryst with Destiny) किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें. आधी रात के स्ट्रोक के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा."

ये उस आधी रात का सच है जब आधी दुनिया सो रही थी और भारत आजादी के लिये जाग रहा था। 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात संविधानसभा को सत्ता हस्तांतरित होनी थी। एतिहासिक और यादगार अवसर। रात 11 बजे वंदे मातरम से सभा की शुरुआत हुई। और ठीक बारह बजे नेहरु ने प्रसिद्द भाषण दिया । लेकिन संयोग देखिये आजादी की मशाल जिस शख्स ने उठायी और गुलामी के अंधेरे को जिस शख्स ने दूर किया, वह शख्स 15 अगस्त 1947 को संसद में नही बल्कि दिल्ली से डेढ हजार किलोमीटर दूर कलकत्ता के बेलियाघाट के घर में अंधेरे में बैठे रहे। ये शख्स और कोई और नहीं महात्मा गांधी थे। जो दिल्ली में आजादी के जश्न से दूर बेलियाघाट में अपने घर से राजगोपालाचारी को ये कहकर लौटा दिये कि घर में रोशनी ना करना। आजदी का मतलब सिर्फ सत्ता हस्तांतरण नहीं होता। लेकिन आजादी कैसे सिर्फ एक तारीख तले कैद हो गई। ये 1972 में आजादी के सिल्वर जुबली और 1997 में आजादी के गोल्डन जुबली को आधीरात के वक्त इसी संसद में मनाकर बताया गया। और आज कांग्रेस ने संसद को आधीरात को जगमग करने का खुला विरोध करते हुये बायकाट कर दिया, जिसे मौजूदा सत्ता ने जीएसटी तले देश को आर्थिक आजादी से जोड़ते हुये आधीरात को संसद को जगमग करने की सोची। तो सवाल सत्ता-विपक्ष के टकराव का नहीं है।

सवाल तो उस संसद की मर्यादा का है, जहा 70 बरस पहले नेहरु ने राष्ट्रसेवा का प्रण  लिया था। और 70 बरस बाद आजादी से आर्थिक आजादी के नारे तले भारत को संसद की जगमग तले चकाचौंध मानने के सपने संजोये जा रहे हैं। जबकि इन 70 बरस में किसान-मजदूरों की मौत ने खेती को श्मशान में बदल दिया है। औद्योगिक  मजदूरों की लड़ाई न्यूनतम को लेकर आज भी है। गरीबी की रेखा के नीचे 1947 के भारत से दोगुनी तादाद पहुंच चुकी है। पीने के साफ पानी से लेकर भूख की लडाई अब भी लड़ी जा रही है। तो 30 जून की आधीरात को पीएम क्या कहेंगे उसका तो इंतजार कीजिये लेकिन याद कर लिजिये 15 अगस्त 1947 की आधी रात  पहले पीएम नेहरु ने कहा, "भारत की सेवा मतलब लाखों पीड़ित लोगों की सेवा करना है. इसका मतलब गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना है. हमारी पीढ़ी के सबसे महानततम व्यक्ति [ महात्मा गांधी ] की महत्वाकांक्षा हर आंख से एक-एक आंसू पौंछने की है. हो सकता है ये कार्य हमारे लिए संभव न हो लेकिन जब तक पीड़ितों के आँसू ख़त्म नहीं हो जाते, तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा."

महात्मा गांधी ने तो गौ रक्षा का सवाल हो या किसानों का, हर सवाल को उठाया। संघर्ष किया तो क्या वाकई आधी रात को संसद को जगमग कर हालात सुधारने का ऐलान किया जा सकता है। क्योंकि याद कीजिये जिस गौ रक्षा के सवाल को लेकर देश के मौजूदा पीएम मोदी ने महात्मा गांधी को याद कर लिया। तो गांधी जी का क्या कहना था। छह अक्टूबर, 1921, को महात्मा गांधी ने  यंग इंडिया में लिखा , "हिंदू धर्म के नाम पर ऐसे बहुत से काम किए जाते हैं, जो मुझे मंजूर नहीं है....और गौरक्षा का तरीका है उसकी रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देना. गाय की रक्षा के लिए मनुष्य की हत्या करना  हिंदू धर्म और अहिंसा धर्म से विमुख होना है। हिंदुओं के लिए तपस्या द्वारा, आत्मशुद्धि द्वारा और आत्माहुति द्वारा गौरक्षा का विधान है. लेकिन आजकल की गौरक्षा का स्वरूप बिगड़ गया है।" तो करीब 96 बरस पहले  महात्मा गांधी ने गो रक्षा को लेकर जो बात कही थी-आज 96 बरस बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हीं बातों के साए में गौ रक्षा पर अपनी बात कहनी पड़ी। तो क्या आजादी से 26 बरस पहले और आजादी के 70 बरस बाद भी सत्ता को गो रक्षा के नाम पर मानव हत्या के हालात से रुबरु होना ही पडाता है । तो भारत बदला कितना। संविधान अपना है। कानून अपना है। कानून की रक्षा के लिये संस्थाएं काम कर रही हैं। बावजूद इसके सिस्टम फेल कहां हैं,जो देशभर में कल लोग सडक पर उतर आये । सोशल मीडिया से शुरु हुए नॉट इन माई  नेम कैंपेन के तहत लोगो ने बोलना शुरु इसलिये कर दिया क्योकि सत्ता खामोश रही । और सिस्टम कही फेल दिखायी देने लगा । फेल इसलिये क्योकि गौरक्षा के  नाम पर पहलू खान से लेकर जुनैद तक। और 11 शहरों में 32 लोगो की हत्या गौ रक्षा के नाम पर की जा चुकी है। यानी शहर दर शहर भीड ने गो रक्षा ने नाम  पर जिस तरह न्याय की हत्या सडक पर खुलेआम की। और न्याय की रक्षा के लिये तैनात संस्थान ही फेल नजर आये उसमें महात्मा गांधी को याद कर पीएम का भावुक होना कैसे न्याय दिलायेगा ये सवाल भी उठा । तो राजनीति की अक्स तले गो रक्षा का सवाल भी अगर उठेगा तो फिर गोरक्षा के नाम पर मानवाता की
हत्या का सवाल उठाने वाले महात्मा गांधी की उस आवाज को सुन लें जो उन्होने 19 जनवरी, 1921 को गुजरात के खेड़ा जिले में स्वामीनारायण संप्रदाय के तीर्थस्थान पर एक विशाल सभा को संबोधित करते हुए कही , " आप अंग्रेज अथवा मुसलमान की हत्या करके गाय की सेवा नहीं कर सकते, बल्कि अपनी ही प्यारी जान देकर उसे बचा पाएंगे. ...मैं ईश्वर नहीं हूं कि गाय  बचाने के लिए मुझे दूसरों का खून करने का अधिकार हो. ...कितने हिंदुओं ने बिना शर्त मुसलमानों के लिए अपने जीवन को उत्सर्ग कर दिया है. वणिकवृत्ति से गाय की रक्षा नहीं हो सकती’"

फिर महात्मा गांधी ही क्यो विनोबा भावे  को भी याद कर लिजिये । क्योकि पीएम ने उन्हे भी तो याद किया । विनोवा भावे ने गौरक्षा के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी-देश में गौरक्षा के  लिए एक कानून बनाने की मांग को लेकर आंदोलन खड़ा किया, वो विनोबा भावे भी यह कहने से नहीं चूके , "हमें बचपन में सिखाया गया कि एक अस्पृश्य को छूने से जो अपवित्रता आ जाती है, वह गाय को छू लेने से दूर हो जाती है. जो जड़ बुद्धि एक मनुष्य को अपवित्र मानने की बात कहती है, वही एक पशु को मनुष्य से भी पवित्र मानने की बात कहती है. इस युग में यह मानने योग्य नहीं कि गाय में सभी देवताओं का निवास है और दूसरे प्राणियों में अभाव है. इस प्रकार की अतिशयतापूर्ण पूजा को मूढ़ता ही कहना होगा." तो अतीत की इन आवाजों का मतलब है क्या। क्योंकि महात्मा गांधी ने तो नील किसानो की मुक्ति के लिये चंपारण सत्याग्रह भी किया । और किसानों के हक को लेकर कहा भी , " मैं आपसे यकीनन कहता हूं कि खेतों में  हमारे किसान आज भी निर्भय होकर सोते हैं, जबकि अंग्रेज और आप वहां सोने के लिए आनाकानी करेंगे...... किसान तलवार चलाना नहीं जानते, लेकिन किसी की तलवार से वे डरते नहीं हैं.......किसानों का, फिर वे भूमिहीन मजदूर हों या मेहनत करने वाले जमीन मालिक हों, उनका स्थान पहला है। उनके परिश्रम से ही पृथ्‍वी फलप्रसू और समृद्ध हुई हैं और इसलिए सच कहा जाए तो जमीन उनकी ही है या होनी चाहिए, जमीन से दूर रहने वाले जमींदारों की नहीं।" तो गांधी ने किसानों से ऊपर किसी को माना ही नहीं। लेकिन गांधी का नाम लेकर राजनीति करने वालों के इस देश में किसानों का हाल कभी सुधरा नहीं-ये सच है। आलम ये कि मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान गोली चलने से 5 लोगों की मौत पर तो हर विपक्षी दल ने आंसू बहाए और विरोध जताया-लेकिन उसी मध्य प्रदेश में 6 जून के बाद से अब तक 42 किसान खुदकुशी कर चुके हैं,लेकिन चिंता में डूबी आवाज़े गायब हैं। हद तो ये कि 9 किसानों ने उसी सीहोर में खुदकुशी की-जो शिवराज सिंह चौहान का गृहनगर है। और मध्य प्रदेश में ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा-जब किसान खुदकुशी नहीं कर रहा। और उससे सटे धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तिसगढ में बीते 15 दिनो में 10 किसानों ने खुदकुशी कर ली । मसलन , कुलेश्वर देवांगन, दुर्ग, 11 जून , भूषण गायकवाड़, ग्राम गोपालपुर डोंगरगढ़ 16 जून , रामझुल ध्रुव, लोहारा कवर्धा 17 जून , मंदिर सिंह ध्रुव भोखा बागबाहरा 22 जून , हीराधर निषाद जामगांव बागबाहरा 24 जून , ज्ञानी राम ग्राम अण्डी कांकेर 24 जून , सीताराम कौशिक मोहतरा
कवर्धा 24 जून , कुंवर सिंह निषाद बरसांटोला डोंगरगढ़ 25 जून , डेराह चंद ग्राम घुमका राजनांदगांव 25 जून , चन्द्रहास साहू ग्राम कुरुद जिला धमतरी 26 जून । तो किसानों के अच्छे दिन के बजाय हर सूबे में बुरे दिन क्यों आ गए और तमाम दावों के बावजूद देश के किसानों के अच्छे दिन नहीं आ पा रहे-ये सच है। तो सवाल यही है कि किसानों की दशा सुधरेगी कैसे। क्योंकि मौजूदा सत्ता कर्ज माफी से आगे देख नहीं पा रही है । जबकि महात्मा गांधी ने अपने हर आंदोलन के केन्द्र में किसानो को रखा। क्योंकि उनका मानना था कि भारत अपने सात लाख गांवों में बसता है, न कि चंद शहरों में।

6 comments:

Anonymous said...

Prasun ji,
Don't u think everything has become variable on parameters of votes,profit & loss and the greed of chair. Why is it so that most of politicians who come in the name of social welfare become stakeholders of crores of rupees and poverty remains at same stage. Who should we blame for the existing poverty ? Politicians ,Policies or Intention. Who benefits from political divide,Politicians or Public. And on whose money all of these events happen ,The Taxpayers. So y even after so long time Indian judiciary not given harsh punishments to all those corrupt,or because parliament never wants to frame a law that wud stop corruption. After Independence lot of scams and corruption Indian public tolerated,Indian judiciary cudnt hang them bcoz its good to see farmers suicide than hanging a corrupt. At end of day I hate rules without punishment. So hang one corrupt,thousands wud fear. At end everyone takes advantage of slow nature of judicial process,so there is no fear and yes if u hav good lawyers, matter become even worse. At end of day there is nothing which changes.

Manish said...

So you are quoting Gandhiji who dismissed his own Swatantra movement to support Khilafat! For Bharatiya Muslims BHARAT WAS MORE IMPORTANT THEN PALESTINE.

Oh! Can you find this Gyan was ever offered to British to prevent Bhagat Singh execution?

#LiarJournalist you just pick selective words from Gandhiji & don't mention in what context he said so ....

pushpendra dwivedi said...

waah bahut khoob such ko ujaagar karta lekh

Unknown said...

निष्पक्ष,तर्क की कसौटी पर ख़रे

Unknown said...

निष्पक्ष,तर्क की कसौटी पर ख़रे

Unknown said...

Sir ji mujhe achi tarah yaad hai ki newspaper padhne ka interest mujhme prabhas joshi sir k article ne hi paida kiya tha .Halaki us daur me jansatta hamare sahar 1 din late se aata tha kbhi kbhi 2 din v par fir v intezar rahata tha. Wo style hi alag tha . Aaj aapne fir bite dino ki yaad dila di thanks