दरवाजे पर टक-टक की आवाज होती है। कौन है..अंदर से एक आवाज आती है। बाहर दरवाजा खटखटाने वाला शख्स कहता है मै वोडाफोन से आया हूं। दरवाजा खुलता है । आपसी बातचीत शुरु होती है। जी कहिए...मै वोडाफोन से आया हूं..आपने एक और सिम लेने को कहा था। अंदर वाला शख्स कहता है..जी मैने तो ऐसा कुछ नहीं कहा था। तो आपके साथी ने कहा होगा। आपके साथ कोई और भी रहता है क्या, आप उससे पूछेगे....क्योंकि कंपनी ने मुझे पता तो यहीं का दिया है। अंदर वाला शख्स अपने साथी को आवाज दे कर पूछता है...वोडाफोन वाले को तुमने बुलाया है..कुछ चाहिये । नहीं, मैंने तो कुछ नहीं मंगाया था...यह कहते कहते एक दूसरा शख्स भी दरवाजे तक आ पहुंचता है। लेकिन आ ही गये हो तो कोई नयी स्कीम है तो बता दो जनाब...यह कहते हुये दूसरा शख्स पूछता है...आपको एड्रेस कहां का दिया गया है...दिखाइये।
कमीज और टाई लगाया वोडाफोन वाला शख्स एक कागज निकाल कर दिखाता है ।..हां,एड्रेस तो यहीं का है लेकिन जनाब हो सकता है इस बिल्डिंग में रहने वाले किसी और जनाब ने आपको बुलाया हो। बिल्डिंग में छत्तीस लोग रहते है आप पता कीजिये जरुर कोई होगा । वोडाफोन कंपनी से आया शख्स कहता है...हो सकता है लेकिन पहली मंजिल वाले ने मुझे ऊपर भेज दिया था कि तीसरी मंजिल पर जाइये। वहीं पर कुछ लड़के रहते हैं, जो मोबाइल और कम्यूटर रखते है...खैर मै नीचे देखता हूं आप मुझे एक गिलास पानी पिलायेगे । अरे बिलकुल जनाब..आप अंदर बैठिये । दोनों लडके अंदर जाते है..इसी बीच वोडाफोन से आया शक्स मोबाइल से किसी को फोन करता है और बहुत ही छोटी सी जानकारी देता है...पानी लेकर आने वाले शख्स के पहुंचने से पहले ही बात पूरी कर लेता है। पानी आता है तो पानी पी कर यह कहते हुये जाता है कि वोडाफोन का कोई आइटम चाहिये तो बता दीजिएगा। चलता हूं.....
दरवाजा बंद होता है। लेकिन पांच से सात मिनट के भीतर ही दरवाजे पर फिर टक टक होती है। और इस बार बाहर से कोई जोर जोर से खटखटाते हुये सीधे कहता है ...अबे खोल...खोलता हे कि नहीं ..खोल दरवाजा । अंदर से भी उसी अंदाज में आवाज आती है...अबे खोलता हूं..रुक काहे ठोके जा रहा है । दरवाजा खुलते ही गोलियो की आवाज कौघने लगती है और समूची बिल्डिग में अफरा तफरी । उसके बाद क्या हुआ यह सभी को मालूम है । क्योंकि उसके बाद उस कमरे से मरे लोगो को ही निकलते हमने देखा। एक पुलिस वाला भी खून से लथपथ देखा और टाई पहने उस एक शख्स को भी देखा जो खून से लथपथ पुलिसवाले को सहारा देकर ले जा रहा था । बाद में पता चला टाईवाला भी पुलिस का आदमी है । स्पेशल सेल का । और उसने जिसे मोबाइल से फोन किया खून से लथपथ इंसपेक्टर शर्मा थे..जो सिग्नल का इंतजार कर रहे थे। जिन्होंने दरवाजा खुलते ही गोलियां दागी । और उन लडकों ने भी गोलिया दागीं ।
यह कहानी हो या हकीकत, लेकिन जामिया नगर के बाटला हाउस में जुमे के दिन जो हुआ उसका कच्चा-चिट्टा कुछ इसी तरह सोमवार को सामने आया । बाटला हाउस में जो हुआ उसपर कितनी खामोशी है और कितना खुलापन इसका एहसास जामियानगर में बाहर से अंदर जाते वक्त ही हुआ । वाकई दिल्ली के भीतर एक दूसरी दिल्ली बसी है जामियानगर में। कांलदीकुंज से जामियानगर की तरफ जाते वक्त पहली बार लगा जैसे कश्मीर के शोपांया के इलाके में जा रहे हैं। वहां हर कदम पर सेना का पहरा किसी को भी बेखौफ आंगे बढ़ने नहीं देता । यहां भी पुलिस के बैरीकेट और उसकी मौजूदगी हर सहम कर चलते शख्स को रोक कर पूछताछ करने से नही चूकती।
लेकिन घाटी सेना की मौजूदगी को लेकर अभ्यस्त है, जबकि जामिया नगर की पहचान बेखौफ आवाजाही की है। सुबह हो या रात, लोगो की आवाजाही रात के अंधेरे को भी घना नहीं होने देती । वहां पर दिन में घुमने-टहलने के दौर में खाकी वर्दी की मौजूदगी ने पहली बार उस जामिया की पहचान को तोड़ दिया है, जो दिल्ली के भीतर किसी छोटे शहर की महक देती रही है। नयी दिल्ली में कहीं मुस्लिम की पैठ सबसे ज्यादा है तो जामिया नगर में ही है । जामिया यूनिवर्सिटी का मोह अगर पढ़ने के लिये युवाओं को यहां तक पहुचा देता है तो छोटे छोटे शहर में बढ़ते बाजार की वजह से बेरोजगार हुनरमंदो का भी सराय यही जामियानगर है। जामिया यूनिवर्सिटी से जामिया नगर में घुसते हुये यह एहसास तो साफ छलका कि बाटला की घटना ने हर निगाह में शक पैदा कर दिया है। कोई कुछ कहता नहीं । पूछने पर हिकारत की नजर या फिर खाकी वर्दी को दिल्ली का सच मान कर चुप रहने की हिदायत हर नजर देती है। आम लोग और खाकी के बीच कितनी दूरी है या राज्य और जनता के बीच संवाद कैसे बंद होता है उसका एहसास जामिया नगर में हर क्षण होता है। क्योंकि यहां कोई चाह कर भी अकेले अपने बूते रह नहीं सकता या कहे जी नहीं सकता।
जामिया नगर में लोग अपने गांव या छोटे शहरो से कट कर नहीं पहुंचते बल्कि जड़ों को लेकर यहां पहचते हैं। इसलिये कोई ऐसा है ही नहीं जो दिल्ली की भागम-भाग में खो कर अकेलेपन में जी रहा हो । इसलिये बाटला को लेकर जामिया नगर के एक छोर से दूसरे छोर तक किस्से-कहानी अनेक है, लेकिन सवाल कमोवेश एक से है । जामिया के भीतर जैसे जैसे आप घुसते जाते है खाकी वर्दी कम होती हुए गायब होने लगती है । और लोगो की निगाहो में बसा शक भी धूमिल हो जाता है। बाटला में रहने वाले अगर जुमे यानी शुक्रवार के दिन बाटला की घटना को सिलसिलेवार बताते है तो किसी चक्रव्यू की तरह बसे जामिया नगर में घुसते हुये कई सवाल खड़े होते चले जाते है जिनका ताल्लुक बाटला या जामियानगर से नहीं बल्कि उन शहरो से होता है जहां पलायन हो रहा है। और दिल्ली आने के लिये लोग मजबूर हैं। आजमगढ में सरायमीर भी है और मुबारकपुर भी। आरोपी अबु बशर तो सरायमीर का है, लेकिन मोहम्मद आफताब मुबारकपुर का है। अस्सी के दशक तक इनके परिवार की उगलियां बनारसी साड़ी को कढाई के जरीये एक नयी पहचान देती थी । नब्बे के दशक में यह पहचान सस्ती या नकली बनारसी साडियों के नाम पर मिलने लगी और पिछले एक दशक में मुबारकपुर छोड जामिया में बेहतरीन चाय बनाने की पहचान मिली हुई है। मोहम्मद अफताब का सवाल सीधा है मशीन से तो हमारी हुनरमंदी मात खा गयी लेकिन देश के नये हालातो में क्या जिन्दगी मात खायेगी। वहीं कैफी आजमी के गांव मैहजीन के मोहम्मद आसिफ होटल मैनेजमेंट की पढाई कर रहा है। जायके के शौकिन आसिफ को शारजहा में काम मिल रहा था लेकिन पढ़ने और अपने मुल्क की चाहत में आसिफ मा-बाप के कहने पर भी शारजहां नही गया, जहा मोटी कमायी होती। अब उसका सवाल है..मै कहां लौटूं । चाहता हूं एड्रेस में मुल्क का नाम इंडिया लिखा रहे। लेकिन यहां तो मोहल्ले दर मोहल्ले को ही मुल्क का नहीं माना जा रहा। पिछले 72 घंटो से हर दिन की तरह रात दस बजे लौटता हूं तो पुलिस घर तक साथ आती है। सामान टटोलती है फिर कुछ भी सवाल पूछती है, जिसका जबाब टालने पर अंदर करने की धमकी देती है। आसिफ तल्खी के साथ कहता है कि सवाल भी सुन लीजिये । बिरयानी बनानी आती है तो बम बनाना भी आता होगा। हमें बिरयानी खिलाओगे या बम मारोगे । चूडियां बेचने वाले अखलाख का सवाल कहीं ज्यादा त्रासदी भरा है। अखलाख कम्यूटर साइंस का विघार्थी है । फिरोजपुर का होने की वजह से चूडियो के धंधे से भी जुड़ा है । थोक में चूडियां लाता है और फुटकर विक्रेताओं को बेच देता है । संयोग से चूडिया लेकर वह रविवार के दिन जामियानगर पहुंचा तो सामान देखने के बाद पुलिस को जब उसके कम्पयूटर साइंस की पढ़ाई करने के जानकारी मिली तो पहला सवाल था बाटला की घटना जानने के बाद भी उसने लौटने की हिम्मत कैसे की। तीन घंटे तक पुलिस की निगाह के सामने रहने के दौरान आसिफ की सोलह दर्जन चूडिया टूटीं । मोबाइल के सभी मैसेज को पुलिस ने पढ़ा। घर में रखे कम्पयूटर और टेक्नॉलॉजी के सारे सामान पुलिस ने जांच के लिये अपने पास रख लिये लेकिन जब पता चला कि आसिफ के चाचा कांग्रेस से जुडे नेता है और राहुल गांधी की उत्तरप्रदेश यात्रा को सफल बनाने में लगातार जुटे रहे तो आनन-फानन में आसिफ को छोड दिया गया।
बाटला की घटना पर खामोश रहते हुये आसिफ ने यह जरुर कहा कि दिल्ली और फिरोजपुर की दूरी इस घटना ने जरुर बढा दी है । जामियानगर में सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही नहीं बिहार-बंगाल-आंध्र प्रदेश- महाराष्ट्र से लेकर कश्मीर तक के लोग हैं। जो अपने अपने गांव-शहरो की मुश्किलात से जुझने के लिये दिल्ली पहुंचे हैं। पुरानी दिल्ली में कभी भी कोई भी खाकी वर्दी में उन्हे धमका सकता है लेकिन जामिया नगर में खाकी धमकी से उन्हे राहत है। लेकिन नये हालात में नया ठिकाना क्या रखें यह सवाल गुटके की दुकान चलाने वाले खालिद ने भी पूछी और बेकरी के मालिक रजा खान ने भी। करीब पांच घंटों के दौरान जब कोई ऐसा शख्स नहीं मिला जो बाटला के सच को बिना सवाल के कहे तो लौटते हुये दोबारा बाटला हाउस पहुचा और देखा पुलिस का जमघट बढ़ गया है क्योंकि मारे गये आरोपी आंतकवादियों के शव यहां लाए जाने हैं।
संयोग से वही शख्स दोबारा सामने आ गया जो सुबह मिल कर उस दिन की घटना के मिनट्स की जानकारी दे रहा था, इस बार बिना पूछे ही उस शख्स ने मुझे देखकर मुझसे कहना शुरु कर दिया , कैसे कैसे लडके दहशतगर्दी फैला रहे हैं। ब्लास्ट कर दिया और खुद खुशियां मना रहे थे। खुदा इन्हें कभी माफ नहीं करेगा। मै कोई सवाल करता, इससे पहले ही वह एक सांस में यह कहकर चल दिया । मै भौचक था , यह शख्स महज चार घंटो में बदल गया। क्या वाकई इनपर भरोसा नहीं किया जा सकता है...यह सोच कर मैं जैसे ही मुड़ा.. मैंने अपने पीछे पुलिसकर्मियो की टोली को खड़े पाया । अब सवाल मेरे सामने था ....जामियानगर का सच बाटला से निकल कर लोगो के जहन में पैदा होते अविश्वास के इस खौफ और आंतक का तो नहीं है। बांटती राजनीति और संवाद खत्म करती पुलिस की सफलता कहीं आंतकवाद के खिलाफ एक नये आंतक को तो नही परोस रही जो बाटला से कहीं आगे निकल चुकी है। ऐसे में इसे पाटेगा कौन...यह सवाल अनसुलझा है।
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Wednesday, September 24, 2008
जामियानगर का आतंक और बाटला हाऊस की तीसरी मंजिल
Posted by Punya Prasun Bajpai at 9:08 AM
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103 comments:
खुदा इन्हें कभी माफ नहीं करेगा...
बहुत अच्छा चित्रण किया आपने..
कश्मीर से बाहर जहाँ जहाँ कश्मीर बनाने की कोशिश होगी, हालात कश्मीर जैसे ही होंगे ना...
बहुत खूब, इसीलिये आप पुण्य प्रसून वाजपेयी हैं...औरो से जुदा..नायाब...बेहतरीन लिखा है
बहुत खूब, इसीलिये आप पुण्य प्रसून वाजपेयी हैं...औरो से जुदा..नायाब...बेहतरीन लिखा है
@यह सवाल अनसुलझा है।
पर कौन सुलझायेगा इसे? जो हो रहा है उसके बारे में आप तो काफ़ी नजदीक से जानते हैं. आप मीडिया वाले पंक्तियों के बीच में भी पढ़ना जानते हैं. आप बताइये न कि कौन सुलझायेगा इस सवाल को?
मैं एक आम आदमी हूँ. मैं तो सिर्फ़ यह जानता हूँ कि किसी इंसान की हत्या करने को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता. कोई किसी के साथ अन्याय करता है तो कोई किसी अनजान आदमी की हत्या कर देगा? पुलिस किसी नागरिक पर जुल्म करती है तो वह बम रखकर कितने ही अनजान इंसानों का खून बहा देगा? कुछ और लोग, अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए, गिरफ्तार लोगों की हिमायत करना शुरू कर देंगे? धर्म को बीच में ले आयेंगे? मेरे विचार में यह सब ग़लत है. हर नागरिक की समाज और राष्ट्र के लिए कुछ जिम्मेदारी है. यह जिम्मेदारी सब को पूरी ईमानदारी, सत्य और निष्ठा के साथ निभानी है. और यह हो सकता है तब जब आपस में प्रेम हो. प्रेम करो सब से, नफरत न करो किसी से.
बहुत लोचे हैं आपकी इस कहानी में. अगर उन छोकरों को ठोकना ही लक्ष्य था तो ऐसा करने का सबसे बढ़िया मौका उस वोडाफोन टाई वाले पुलिसवाले के पास था. दोनों उसकी ओर से लापरवाह थे और उसे पानी पिला रहे थे. और इंसपेक्टर शर्मा भी अगर उन्हें निपटाने के इरादे से ही पहुंचे थे तो जोर-जोर से दरवाजा क्यों पीटते? उन्हें चौकन्ना करने के लिए और बराबरी से गन फायर का मौका देने के लिए? बकवास कहानी है.
संजय बैंगाणी से पूर्णतया सहमति
वैसे कुछ नौकरी के चाहने वाले आपकी बातों पर तालियां पीटते हुये दिख जायेंगे भले ही आपकी बातों पर वो शर्मिन्दा होते हों
धिक्
पुण्य प्रसून बाजपेई भईया, रामगोपाल वर्मा की आग क्या आपने ही लिखी थी क्या?
आप की कल्पना शक्ति की उड़ान इतनी ही घटिया दिखती है
पुण्य प्रसून बाजपेयी जी
सच्च को झुठ और झुठ को सच्च बनना कोई पत्रकार से सीखे
आपका ये लेख पढ़ कर कोई थोडा़ भी समझदार आदमी रहेगा
तो कह सकता है ये एक मनगठंत कहानी भर है आतंकवादियों को
बचाने के लिये लिखा गया सफेद झुठ क्या आप बता सकतें है कि
जब इन्काउन्टर चल रहा था तब आप क्या मारे गये महेश चन्द्र शर्मा जी
के बगल में खडे़ थे या एयरकण्डिसन बाले कमरे में बैठे थें या आपका
कोई पत्रकार इन पुलिस बाला के साथ था । अगला लेख लिख कर पाठकों
के इन सबाल का जबाब दिजीये। पुलिस बालों का मजबुरी है ये कुछ करे
तब पत्रकारों से गाली सुने और ना करें तब सुने। बहुत दिन बात पुलिस ने
मर्दानगी भरा काम किया है अगर आपके जैसा पत्रकार तारिफ नही कर सकता
तो कृप्या इस तरहा का लेख तो मत लिखा किजीये़ जो आतंकवाद को सर्मथन देती है
http://wohchupnahi.blogspot.com/2008/09/blog-post_290.html
अजीब बात है ना! आपका चैनल उसी शर्मा को शहीद बता रहा है .. उसकी बीवी अपने आंसू जब्त कर कर इस सवाल का जवाब भी बहादुरी से देती है की अगर उसका बेटा पुलिस में जाना चाहे तो ?किसी आदमी की चिता की राख अभी ठंडी होती नही ...हम सच ओर झूठ उसकी राख से कुरेदने लगते है....बाईट की इतनी हड़बड़ी है की ....हम इंतज़ार नही करना चाहते ..अभी फ़ैसला कर देते है.....मुठभेड़ होती नही संदेह के बादल.....शब्द लोगो के मुह में डाले जाते है....मुलायम फ़ौरन घर पहुँच जाते है......उधर अमर १० लाख की घोषणा कर रहे है शर्मा के परिवार को....दोनों ओर की बाजी बिखेर दी है......जाने किस करवट मुड जाये हालात.....इस देश का आम आदमी दुखी है...उसकी आँखे नम है.... ..ब्लास्ट तो हूए है .लोग भी मरे है....किसने किए ब्लास्ट ??/....तिरंगा कश्मीर में जलता है.....मीडिया के लिए बड़ी ख़बर नही है...शायद मीडिया भी अब कश्मीर को हाथ से गया मान रहा है.....कौन तय करता है खबरे....गिने चुने १० चैनल देश के करोडो लोगो को अपने अपने हिस्से का सच दिखाते है....... जोर शोर से बोला गया सच....किसी की त्रासदी अब बस ब्रेकिंग न्यूज़ है......नंदा जिसकी bmw लोगो को कुचलती है उसका बाप भी अपने बेटे को निर्दोष मानता है .....सच का भी बाजारीकरण हो गया है...बुद्दिजीवी अपने अपने हिस्से की चुप्पी का इस्तेमाल कर रहे है.....
अब असली मुठभेड़ करने के लिए पुलिस वालो को चैनल की टीम को साथ लेना पड़ेगा ....या चैनल को मुठभेडी करनी होगी......
हमें ब्रेकिंग न्यूज़ नही चाहिये ,हमें बस इतना सकूं चाहिये की जब बच्चे स्कुल जाये तो विस्फोट ना हो ....लोग घर वापस चैन से लौटे ....हर आदमी को दो वक़्त की रोटी मुहैय्या हो....ये देश आम देशो की तरह सुबह उठे ओर थका हारा नींद में सोये ....हमें कोई मजहब नही चाहिये ......कोई नही ......ना मेरा .ना तुम्हारा...ना उसका......
बेहतरीन आलेख है...अच्छा सवाल उठाया है आपने...
सही सवाल उठाया है आपने। आतंकवाद को मिटाने के लिए समस्या की जड़ को समझना जरूरी है। नफरत की खाद जितनी अधिक डाली जाएगी आतंक की फसल उतनी ही पैदा होगी। जो भी लोग नफरत को बढ़ाने का काम कर रहे हैं वे परोक्ष रूप से आतंकवाद की ही मदद कर रहे हैं।
डॉ.अनुराग की बातों से मैं भी इत्तेफाक रखता हूँ।
अब ये भी बता दो महान पत्रकार जी कि अगला बम विस्फ़ोट कहाँ होने वाला है? आपके मित्र यासीन मलिक ने आपको बताया होगा ना…… और टिप्पणी करने वाले भी नादान हैं, अरे भाईयों जिनके समर्थन में एक-दो चैनल खड़े हैं एक वाईस चांसलर खड़ा है, वह दोषी हो ही नहीं सकते…
डा. अनुराग ठीक कह रहे हैं, उनकी बातों से पूर्ण सहमति है।
मारे गये आतंकवादियों से आपको बड़ी सहानुभूती है आपको लेकिन उनका क्या जो बम धमाकों में मारे गयें....और सरायमीर के बारे में आप क्या जानते हैं मै सरायमीर का ही हूँ मैं बताता हूँ सरायमीर भारत का हवाला कैपिटल है....जितने पी.सी.ओ.सरायमीर में है उतने तो एक साथ पूरी दुनिया में किसी जगह नही होंगे....जो हवाला के कारोबार में मददगार हैं...सरायमीर के चचा लोगों के घर की तलाशी ली जाए तो इतना असलहा निकलेगा कि जितना हिन्दुस्तानी फौज के पास भी नही होगा....और बाटला हाऊस में मारे गये आतंकियो से आपकी हमदर्दी देखकर लगता है कि बेचारो को विस्फोट के बाद गोली नही परमवीर चक्र मिलना चाहिए था....चलिए अच्छा अब बता भी दीजिए कि मुस्लिम लीग ने आपको किस मुस्लिम बाहुल्य इलाके से अगले चुनाव में टिकट दिया है जो आप पासवान ,लालू और मुलायम से भी ज्यादा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की भाषा बोल कर अपने मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत कर रहें हैं....
khuda aapko lambi umar de .aap hi to hai atankvadion ke kraty ko sahi sabit karne ke liye .shukriya
azamgarh se ticat lekar m.p. ka chunab ladiye .
आप जैसे लोगो का भगवान भी भला नही कर सकता.. खैर लगे रहिए..
प्रसून जी.
हमारी कही गई बातें लोगों के खयालों को एक दिशा देती हैं. उन्हें किसी मुद्दे पर अपनी एक राय रखने का चारा हम ही देते हैं. मीडिया जो कहता है लोग उसे उसी भाषा में समझते हैं. कुछ दिन पहले ही हमने एक वैज्ञानिक परीक्षण को धरती के खात्मे का परीक्षण करार दे लोगों में जबरदस्त दहशत फैलाई. हमने सिक्के के दूसरे पहलू को दिखाया और लोगों ने उसे ही हकीकत समझा.
यहां बटाला हाउस के जरिए आप भी यही कर रहे हैं. क्या एक वर्ग विशेष से सहानुभूति जताकर ही कोई बडा पत्रकार बनता है.
हम चीजों को उनके असली रूप में पेश क्यों नहीं करते. क्यों हम डरते हैं यह कहते हुए कि कठमुल्लाओं और धर्म के ठेकेदारों खुद को सुधारो वरना..
कुछ लोगो की वजह से पुरी कोम परेशान होती है. इसका जीता जागता सबूत है ये बोम्ब ब्लास्ट . कोई भी मज़हब इस अमानवीय क्रत्य की इज़ाजत नही देता.
अगर धर्म के ठेकेदारों ने इनपर प्रतिबन्ध नही लगाया तो यह बीमारी यू ही फैलती रहेगी क़तरा-क़तरा
अनिल यादव ने सही जवाब दिया। पुण्य प्रसून बाजपेयी को कभी मुरादाबाद भी जाना चाहिए। जहां मुगलपुरा और कटघर जैसे इलाकों से हिंदू आबादी को पूरी तरह खदेड़ दिया गया है। कांठ रोड और दिल्ली रोड पर बन रही कालोनियां मुरादाबाद के विकास की नहीं विनाश की कहानी हैं। ये शहर अपने को दो हिस्सों में कब का बांट चुका है। अमर उजाला के लिए मुरादाबाद से पहले मैं रामपुर में भी रहा हूं और वहां ज़रा किले के आसपास के इलाके में जाकर देखिए, क्या हालत है। ऐसा नहीं कि सब जगह यही हालात है, गांव में मेरा घर मुसलमानों की आबादी से सटा इकलौता घर है, लेकिन अपने घर वालों से बात करने के लिए दुबई, कतर या मुंबई में काम करने वालों के सबसे ज़्यादा फोन मेरे ही घर आते हैं। पत्रकारिता किसी गलियारे में चलने को नहीं कहती है, इसे तो बस खबर देने का पेशा माना गया है। फैसला लेने के लिए अदालत है, और तफ्तीश करने के लिए पुलिस। लेकिन अपना काम ईमानदारी से करने की बजाय दूसरे के पैजामे में टांग डालने की आदत बड़े पत्रकारों की पुरानी है।
कहा सुना माफ़,
- पंकज शुक्ल
Firozpur nahin Firozabad.
aap atankwadiyon ka samarthan na kare
एक बकवास भरा लेख और कुछ नही
यहां कोई इंसान नहीं दिख रहा....सब हिन्दू और मुसलमान हैं....कब देखेंगे इंसानो की नज़र से....पुन्य आपका लेख पता नहीं कितनी सच्चाई पर आधारित है....पर ऐसा भी नहीं कि विश्वास न किया जाय.....पुलीसिया चरित्र पर सवाल तो हमेशा से ही रहा है....पता नहीं सच क्या है?
अनुराग जी ने लिखा है.. "अजीब बात है ना! आपका चैनल उसी शर्मा को शहीद बता रहा है .. उसकी बीवी अपने आंसू जब्त कर कर इस सवाल का जवाब भी बहादुरी से देती है की अगर उसका बेटा पुलिस में जाना चाहे तो ?किसी आदमी की चिता की राख अभी ठंडी होती नही ...हम सच ओर झूठ उसकी राख से कुरेदने लगते है....बाईट की इतनी हड़बड़ी है की ....हम इंतज़ार नही करना चाहते ..अभी फ़ैसला कर देते है.....मुठभेड़ होती नही संदेह के बादल.....शब्द लोगो के मुह में डाले जाते है....मुलायम फ़ौरन घर पहुँच जाते है......उधर अमर १० लाख की घोषणा कर रहे है शर्मा के परिवार को....दोनों ओर की बाजी बिखेर दी है......जाने किस करवट मुड जाये हालात.....इस देश का आम आदमी दुखी है...उसकी आँखे नम है.... ..ब्लास्ट तो हूए है .लोग भी मरे है....किसने किए ब्लास्ट ??/....तिरंगा कश्मीर में जलता है.....मीडिया के लिए बड़ी ख़बर नही है...शायद मीडिया भी अब कश्मीर को हाथ से गया मान रहा है.....कौन तय करता है खबरे....गिने चुने १० चैनल देश के करोडो लोगो को अपने अपने हिस्से का सच दिखाते है....... जोर शोर से बोला गया सच....किसी की त्रासदी अब बस ब्रेकिंग न्यूज़ है......नंदा जिसकी bmw लोगो को कुचलती है उसका बाप भी अपने बेटे को निर्दोष मानता है .....सच का भी बाजारीकरण हो गया है...बुद्दिजीवी अपने अपने हिस्से की चुप्पी का इस्तेमाल कर रहे है.....
अब असली मुठभेड़ करने के लिए पुलिस वालो को चैनल की टीम को साथ लेना पड़ेगा ....या चैनल को मुठभेडी करनी होगी......
हमें ब्रेकिंग न्यूज़ नही चाहिये ,हमें बस इतना सकूं चाहिये की जब बच्चे स्कुल जाये तो विस्फोट ना हो ....लोग घर वापस चैन से लौटे ....हर आदमी को दो वक़्त की रोटी मुहैय्या हो....ये देश आम देशो की तरह सुबह उठे ओर थका हारा नींद में सोये ....हमें कोई मजहब नही चाहिये ......कोई नही ......ना मेरा .ना तुम्हारा...ना उसका......"
अनुराग जी, आपने मेरे मन कि बात कह डाली है..
बाजपेयी जी ये बकवास अपने चैनल पे क्यो नही करते ? कहानी गढ़ने का शौक पाला है तो टिप्पणियों का ज़वाब भी सोच के रखो। जो लोग इन धमाकों मे मारे गये उनके बारे मे भी कहानी बनाओगे?
पंकज शुक्ल जी, मुरादाबाद के बारे में आपने बिल्कुल सही कहा है. मैं संभल का रहने वाला हूँ, जहाँ हर बार जाने पर पता लगता है कि इस गली से भी कुछ हिन्दू पलायन कर गए और मुसलमानों ने उनके घर खरीद लिए. यहाँ के मुसलमानों के पास बहुत पैसा है. वह सब नंबर दो के धंदे करते हैं. कोई टेक्स नहीं देता. और सरकार कहती है कि वह गरीब हैं. किसी तरफ़ से भी शहर में घुसिए, मुस्लिम बस्तियों से होकर जाना पड़ेगा. कितनी ही सरकारी जमीन पर मुसलमानों ने अनाधिकृत कब्जा कर लिया है. हिंदू यहाँ अल्पसंख्यक हैं. कुछ ही दिनों में यहाँ बस मुसलमान ही रह जायेंगे.
वाह.. जनाब पुण्य प्रसुनजी. क्या खूब पत्रकारिता की है आपने* तौकीर की माँ, इन आतंकवादियों का परिवार जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने बेटे को निर्दोष बताता है* कहता है कि हम निर्दोष है.. हम पर मुस्लिम होने की वजह से यह आरोप लगाया जा रहा है. उनसे यह क्यों नहीं पूछते कि आपका बेटा निर्दोष है तो फरार क्यों है? क्यों नहीं वह देश के सामने आता है. देश की मीडिया में उसे आतंकी ठहराया जा रहा है* फिर भी तौकीर और उसके साथी फरार है* उसका परिवार सिर्फ अपनी बात रखता है और आप लोग चुपचाप उसे लिखते-सुनाते रहते हैं. बात सही है पत्रकारों सब तरफ से लिफाफे आते रहते हैं* ध्यान तो रखना ही पडेगा.
पुण्यप्रसून वाजपेयी, तरुण तेजपाल, राजदीप सरदेसाई. इन्हें भी प्रभु चावला की तरह कोई बडा सम्मान पीछे के दरवाजे से चाहिए*या फिर राज्यसभा की सदस्यता. इसीलिए ऐसा लिखो-बोलो कि सरकार को अच्छा लगे. देश गया तेल लेने.
दिल्ली में हुए बम धमाको के बाद एक ऐसा नक्शा देश के सामने आया जो देश के नक्शे से भी बड़ा था । ये नक्शा है आजमगढ़ का । दिल्ली बम धमाको में जितने भी आतंकवादी का नाम सामने आया है उसमें आजमगढ़ का नाम सबसे बड़ा है । और यह भी खुलकर सामने आ रहा है कि दिल्ली बलास्ट में मुम्बई से गिरफ्तार पांच आतंकवादियो के तार २००५ से लेकर अबतक के धमाको से है । और इन धमाको के तार कही न कही आजमगढ़ से जुड़े रहे है । जो भी हो उत्तर प्रदेश के नक्शे पर आजमगढ़ काफी समृद्ध रहा है । कारण यह है कि यहां के लोग कुशल कारीगर रहे है । जिसकी झलक बनारसी साड़ियो में देखी जाती है । इसके अतिरिक्त यहां के लोगो के लिए समृध्दि की लहर अरब देश से भी आती रही है ।अरब देश में काम करनेवाले लगभग ४०० परिवार आजमगढ़ के रहे है । आजमगढ़ का महत्व विद्वान से लेकर मशहूर शायक तक रहे है । राहुल सास्कृतायन से लेकर मशहूर शायर कैफी आजमी तक का धर आजमगढ़ रहा है । लेकिन इस सब के बाबजूद आजमगढ़ की नयी फसल आतंक औऱ दहशत से तैयार हो रही है ।कारण जो भी हो लेकिन अभी जो स्थिति आजमगढ़ की है इसमें यही कहा जा सकता है कि इस आजमगढ़ में आतंकवाद की नई फसल तैयार हो रही है । दिल्ली बम धमाको में गिरफ्तार किये गये ये आतंकी इसके सबूत है ।
लेकिन सवाल यह है कि आजमगढ़ में आतंक की इस फसल का कारण क्या है ...इसके बीच यह भी हो सकता है कि इन नये चेहरो को आजमगढ़ में अबु सलेम का घर लुभा रहा है । कारण जो भी हो लेकिन आतंक के इस नये चेहरे ने आजमगढ़ की तस्वीर को बदल दिया है ।
बधाई हो प्रसून जी,
आपको आतंकवादी बताया जा रहा है, वो भी बिना कुछ किए-धरे। या फिर विचारों का धमाका बरदाश्त नहीं हो रहा। सोचा था कि ब्लाग जगत की बहस और चायखाने की बहस में कुछ फर्क होगा, पर कहां जनाब।
आखिर मुठभेड़ दूर बैठे लोगों को सही और मुहल्ले के लोगों को गलत लग रही है, तो कोई वजह तो होगी ही। मसला सिर्फ हिंदू-मुसलमान का नहीं है, पुलिस की साख का है। जामिया विश्वविद्यालय के तमाम हिंदू शिक्षक और छात्र भी मुठभेड़ के बाद की जा रही पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ खड़े हैं। इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत पर अफोसस किसे नहीं होगा, लेकिन सवाल ज्यादा बड़े हैं। आखिर अल्पसंख्यकों में पुलिस की छवि बेहद खराब यूं ही नहीं है। मेरठ, मलियाना से लेकर अयोध्या और गुजरात तक की घटनाओं में उसका रोल सब जानते हैं। सुरक्षित सवर्ण खोहों से खाकी पर निसार जाना दूसरी बात है और दलित, अल्पसंख्यक और आदिवासी होकर उसका कहर झेलना दूसरी बात है। कभी पूरे देश की तस्वीर पर नजर डालिए तो समझ में आ जाएगा।
और हां, कभी सोचा है कि ये एन्काउंटर स्पेशलिस्ट जैसा शब्द एक सभ्य समाज में कैसे स्वीकार्य है। इसका एकमात्र अर्थ सरकारी हत्यारा होना होता है। तमाम लोगों की नजर में ये हीरो हैं लेकिन समाज का बड़ा हिस्सा इन्ही की वजह से अविश्वास मे डूब-उतरा रहा है। और ये सफर थमता कहां है, कोई करोंड़ों की बेनामी संपत्ति जुटाने में फंसता है तो कोई प्रापर्टी डीलिंग के चक्कर में मारा जाता है। कानून से ऊपर होने का अहसास ऐसे ही रास्तों पर ढकेलता है।
जामिया नगर की मुठभेड़ हो सकता है पूरी तरह सही हो, पर असल सवाल अविश्वास से मुठभेड़ करने की है जाहिर है, सवाल बड़े हैं।
छेड़ा न करो गुरु वरना आपके चक्कर में हम भी धरा जाएंगे। और ए वेन्सडे सिंड्रोम से देश का भला होने से रहा।
पंकज..
प्रसून जी क्या खुब कहा आपने ,आप तो अप्रत्क्ष रुप से मोहन चंद शर्मा को ही आतंकी ठहरा दिया ।फिर ये बाते जी न्यूज की 10 बजे वाली खबर में क्यों नहीं बताया ।वैसे ही जैसे सहारा में कहा था । भागलपुर भी मुस्लिम बहुल इलाका है तय कर लीजिए कौन लोकसभा के लिए टिकट लेगा ।आप या फिर विनोद दुआ। मोदी के जितने के बाद राज्य सभा जाने की उनकी महत्वाकांक्षा परवान नहीं चढ़ी। अब पता चला आप भी दबाव में काम करपते हो ।बोलते कुछ और लिखते कुछ हो । बेरोजगार होने का डर सला रहा है ।आपकी कहानी फिल्मी है जो समाज का दर्पण तो कतई नई है ।अपनी नई कहानी को महेशभट्ट को जरुर सुनाइएगा ,एक फिल्म बनाएँगे ।
भैया लगता है आप भी उस दिन बटाला हाउस के उसी कमरे में थे या फ़िर आप महाभारत के संजय हो । मेरी एक राय है , आप फिल्मों की कहानी क्यों नही लिखने लग जाते। आप धन्य हो।
हद कर दी आपने...
प्रसूनजी,आपके लेख पर टिप्पणी करने के लिये मेरे पास पर्याप्त ज्ञान अभी नहीं है..लेकिन कुछ बातें मैं जरूर कहूंगा..पहेली बात ये है कि अगर हम अपनी सुरक्षा एजेंसियों,अपनी पुलिस पर भरोसा नहीं करेंगे..तो कौन करेगा...अगर हमारी पुलिस धमाकों की जांच नहीं करेगी..तो क्या पाकिस्तान की आईएसआई,या अमेरिका की एफबीआई..को ब्लास्ट के आरोपियो की तलाश के लिये आउट सोर्स करेंगें..फर्जी मुठभेड़ कई बार हुई हैं..होती हैं...इस बात से इंकरा नहीं किया जा सकता...बटला हाउस वाली मुठभेड़ भी फर्जी हो सकती है..लेकिन प्रसूनजी ये भी सच है कि दिल्ली में ब्लास्ट हुए हैं..कई घरों के चिराग हमेशा के लिये बुझ गये हैं...एक पुलिस वाले का घर भी उजड़ा है...किसी ने तो इन धमाकों को अंजाम दिया होगा.दहशतगर्द..चुनौती दे रहे हैं कि हम तो ब्लास्ट कर रहे हैं..रोक सको तो रोक लो...दूसरी बात ये कि...कहा जा रहा है कि पढ़ने-लिखने वाले लड़कों को पुलिस ने इस मामले में उठा लिया..वो निर्दोष हैं..ये बताइये कि..बटला हाउस में बाहर से आये..आजमगढ़ से आये और भी तो लड़के रहते हैं.. उनको क्यों..पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया...प्रसूनजी इस देश के ज्यादातर मुसलमान..हम सभी की तरह इस मुल्क से बराबर का प्यार करते हैं...लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता...बहुत से ऐसे भी हैं..जो खाते या हैं...और गाते कहीं और का हैं...प्रसूनजी, सौ खून से बड़ा गुनाह...मुल्क के साथ गद्दारी करना..मुल्क में बारूद बिछाना है...मुल्क सब का बराबर है तो..सबको बराबर जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी...जो गलत है..वो गलत है..इस बात को मजहब से उठकर मानना पड़ेगा...
विपिन देव त्यागी
Great Imagination KEEP IT UP!!!
and when are you coming in politics???
प्रसून जी,
बड़ी दिलचस्प बहस छिड़वा दी है आपने। आधे से ज्यादा लोग गरिया रहे हैं। कुछ दो-चार टिप्पणियों में तो आपका बहिष्कार करने की मांग भी है।मजेदार बात है कि आपका यही लेख दैनिक भास्कर के संपादकीय पेज पर प्रकाशित हुआ था तो क्या दैनिक भास्कर का भी विरोध करने वाले महानुभावों ने बहिष्कार कर दिया है? उसे भी मुसलमानों का पैरोकार समाचार पत्र करार दे डाला है?जहां तक मैंने टिप्पणियों पर नज़र डाली है,वहां भास्कर का कहीं जिक्र भी नहीं है,तो क्या इसका मतलब आपको गरियाने वाले बुद्धिजीवी बंधु देश का सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाला अखबार पढ़ते नहीं हैं। खैर,लोकतांत्रिक समाज और लोकतांत्रिक माध्यम ब्लॉग की यही खूबी है कि सबको अपनी बात कहने का अधिकार देता है। जहां तक,जामियानगर की मुठभेड़ का सवाल है तो निश्चित तौर पर आतंकवादियों के सफाए के लिए जो कदम जरुरी हैं,वो उठाए जाने चाहिएं।पर,पुलिस को न्यूनतम सतर्कता तो बरतनी चाहिए। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट स्वर्गीय मोहन चंद शर्मा शहीद हुए हैं,इसमें कोई शक नहीं,पर उन्होंने आतंकवादियों की सूचना होने के बावजूद बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहनी थी,इसका कहीं कोई जवाब नहीं। पुलिस कमिश्नर से पत्रकारों ने सवाल पूछा तो वो भड़क उठे।दरअसल,बात सिर्फ जामियानगर की नहीं है। किसी भी रिहायशी जगह मुठभेड़ होगी,तो हालात बिगड़ेंगे। लेकिन,जहां एक खास समुदाय बड़ी तादाद में रहता है,वहां अविश्वास तेज़ी से पनपता लाजिमी है। प्रशासन की बड़ी भूमिका तो यही है कि इस अविश्वास को न पनपने दे क्योंकि यही तो विद्रोह बनकर फिर हमारे सामने आता है।
आदित्य
पुण्य प्रसून बाजपेयी जी
Shame shame shame
सच्च को झुठ और झुठ को सच्च बनना कोई पत्रकार से सीखे
आपका ये लेख पढ़ कर कोई थोडा़ भी समझदार आदमी रहेगा
तो कह सकता है ये एक मनगठंत कहानी भर है आतंकवादियों को
बचाने के लिये लिखा गया सफेद झुठ क्या आप बता सकतें है कि
जब इन्काउन्टर चल रहा था तब आप क्या मारे गये महेश चन्द्र शर्मा जी
के बगल में खडे़ थे या एयरकण्डिसन बाले कमरे में बैठे थें या आपका
कोई पत्रकार इन पुलिस बाला के साथ था । अगला लेख लिख कर पाठकों
के इन सबाल का जबाब दिजीये। पुलिस बालों का मजबुरी है ये कुछ करे
तब पत्रकारों से गाली सुने और ना करें तब सुने। बहुत दिन बात पुलिस ने
मर्दानगी भरा काम किया है अगर आपके जैसा पत्रकार तारिफ नही कर सकता
तो कृप्या इस तरहा का लेख तो मत लिखा किजीये़ जो आतंकवाद को सर्मथन देती है
बाजपेयी जी,
आप के विचार ऐसे होंगे, उम्मीद नही थी. आतंकवादियों को बिना सबूत के गोली मारनी चाहिए. संसद पर हमले का आरोपी अभी जिन्दा है. कोई जवाब है आपके पास. अबू सलेम चुनाव लड़ने की तयारी कर रहा है. इसका भी जवाब नही होगा आपके पास. कम से कम ऐसे विचार देश पर नही थोपें.
प्रसून भाई आप हमेशा की तरह इस वार भी अच्छा लिखा है । जहा तक एनकाउंटर को लेकर जो सुगबुगाहट है उसको लेकर सवाल खड़ा किया है वो लाजमी है क्यूंकि पुलिस के थिओरी में कई लुपहोल साफ साफ दिख रहे है। पहला तो ये की ब्लास्ट का सरगना दिली पुलिस के मुताबिक जहा आतिफ है वही गुजरात.राजस्थान .मुंबई पुलिस के अनुसार कोई और है .जबकि दिल्ली पुलिस का ये दावा की आतिफ ही अहमदाबाद से लेकर जयपुर तक के ब्लास्ट में अहम् रोल प्ले किया । एनकाउंटर और उसके बाद की गिरफ्तारी रोज नए सवाल खड़े कर रहे है । आपने न सिर्फ़ एनकाउंटर की बात को बताने की कोशिश की है बल्कि आजमगढ़ के भूगोल और इतिहास को बताया है । जो आपने को काबिल समझने वाले पत्रकार को भी शायद ही इससे मालूम हो लेकिन हा आपके थिओरी पर लंबा ज्ञान जरूर दे रहे है ।
अमित कुमार ए एन आई
kehte hai "negative things last more than positives in people's mind". Aisa laga aapki encounterwali kahani isi vichaar se prerit hai. khud ko alag dikhane ki chah mei kuch bhi keh dena, chahe uska matlab kuch bhi ho mai to intellectual hu so mai to aisi hi baatei bataunga,sabse alag. Saath hi kuch patrakar bhaiyo ki aapko di hui badhaai aapke saath sambandh banane ya behtar karne ki koshish lagi. Aap jaise senior journalist ka aisa vichaar bahut shocking laga.
लेखन क्षमता का जवाब नहीं.....खूबसूरत चित्रण......
शानदार लेखन....कायल हूं आपकी इसी क्षमता का.....
वाह.....शानदार लेखन.....कायल हूं इसी लेखन का......
वाह.....शानदार लेखन.....कायल हूं इसी लेखन का......
आपके ब्लॉग पर पहली बार आई, सच कहूँ तो लिखने के अंदाज़ ने दिल मोह लिया, वाकई आपने जो लिखा पढ़कर लोगों की मानसिकता पर शर्म आगई, लेकिन ये भी सच है न प्रसून जी की आप जैसे सच्चे और खुले विचारों वाले इंसान के होते हुए, आपका चैनल जो कुछ दिखा रहा है, वो कितना ग़लत है...अगर आप सचमुच सच दिखाना चाहते हैं तो चैनल के थ्रू उन लोगों को बेनकाब कीजिये, जिन्होंने कुछ मासूम लोगों का जीना हरम कर दिया है, जो मासूम बेगुनाह लोगों को जीने नही दे रहे हैं..ब्लोग्स कितने लोग पढ़ते हैं? आपका सच कितने लोग जान पाएंगे....लोग तो आपके चैनल की झूटी और सनसनी खेज़ ख़बरों पर ही विशवास कर लेते हैं...अन्दर की नफरतें उन्हें सच जानने या सोचने को मजबूर ही नही करतीं...सोचिये..अगर वो लड़के मासूम थे तो उनके खून का हिसाब कौन देगा? प्रसून जी, आने वाला कल आपसे भी इसका हिसाब मांगेगा..होसके तो सच्चाई दुनिया के सामने लाइए...
aise hi kuch sawal mere jahan mein bhi uthte rahe hai. main hamesha se sochta raha hoon ki dahshatgard kaun hai? hum, aap, sarkar ya koi aur. kyonki baar baar kisi sangathan ke logon ko hum aatankvadi nahi keh sakte. Kahi aisa to nahi, ki hamari soch, hamari agyanta hi seedhe sadhe logon ko aatankvadi banne par majboor kati hai. Hum jis nazar se unhe dekhte hai, veh behad sharmnaak hai.
mujhe dilli mein aye hue do saal hue hai. maine Zakir nagar ka naam bhar suna tha. Jaane ki himmat kabhi nahi juta paya. lekin apne proffessional commitment ke liye ab main wahan itni visit kar aaya hoon ki ,sab kuch apna sa lagta hai. Vo anjana sa dar, vo kauf ab nahi hai.Batla house ke shoot out ne mujhe ander se hila ke rakh diya tha.Lag raha tha ki apne hi shareer k kise hisse mein chot lagi hai. Fir agle hi din mujhe camera le kar kuch document karne jana tha. aur dinon ki tarah sab kuch samaan tha. Bas ek cheez thi jo khatak rahi thi voh thi police. Aj tak maine vahan to kya poori dilli mein itni police nahi dekhi.aisa lag raha tha maano saare dilli ki police vahan maujood ho. Kuch atpata sa lag raha tha . Aj tak maine vaha par, gaadi chala rahe shakhs ko bhi helmet pehne nahi dekha. vahan ek alag hi dunia basti hai . shaam hote hi dhaabon par bheed umad parti hai. Lazeez Khane ke shaukeen logo ko kahin kisi ki nazar na lag jaye. azad panchiyon ke par na kutre jaye. Unhe azad hi ghoomne diya jaye.Iss me unki bhi aur hamari bhi bhalyi hai.
main logon se gujarish karoonga ki vahan ek baar jaye aur apne bevajah ke shak ko door karein ki- Har musalmaan atankvadi nahi hota lekin har atankvadi musalmaan hota hai.
zara soche ki Kandhmal,Manglore aadi mein Church jalane wale aur nirih logon ko marne wale kaun the?
-- Prashant Negi
महरौली मै हुआ बम धमाका आन्तकवाद कॆ िहमायती लोगो के मुह पर करारा तमाचा है. जो लोग एन्काउन्तर को गलत बता रहे है वो या तो भारतीय नही है या न्याय व्यवस्था पर भरोसा नही है.
vinod gautam
इसमें कोइ दो राय नही कि आतंकवाद के नाम पर किसी खास मजहब के लोगों को निशाना बनाने की कोशिशें की जा रही है । आतंकी घटनाओं को मजहबी तानेबाने से देखना देश और उसकी अखंडता को बचाये और बनाये रखने में काफी मुश्किल साबित होगा । आप देख सकते है कि जब भी मजहबी दंगे हुए है उसका शिकार आम आदमी हुआ है चाहे वो मुस्लिम हो या हिंदू । एक बात जो हर जातियों में जहर की तरह युवा वर्ग के दिलों दिमाग में तैर रही है वो यह है कि युवा वर्ग का आर्दश अब महात्मा गांधी या मोलाना आजाद सरीखे लोग नही रहें ...कहीं रज्जू भइया है तो कही आनंद मोहन ..कहीं अबू सलेम है तो कहीं मोहम्मद शहाबुद्दीन ..और इन परिस्थितियों के लिये हमारे तथाकथिच राजनेता जिम्मेदार है ..राजनीति दूषित हुइ है ..और इसे शुद्दता का जामा समाज का युवा वर्ग ही पहना लकता है ..दोषारोपन करना छोडकर हमें आतंकवाद नाम के असुर से लडना होगा ...और उसके लिये हर धर्म और मजहब के लोगों को इसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी ।
Ek sawal poochna chahti hoon un logon se, jo sochte hain ki nafrat se nafrat ko kaata ja sakta hai- kya waqai, aatankwad police ya sarkar ki samasya hai, aur ise hal karne ki zimmedari bhi unhi ki hai..Kya ye hamare samaj ki samasya nahi hai..hamari mushkil ye hai ki hum bina samasya ko jane uska hal talaash karne ki koshish kar rahe hain..sirf newspaper/channel ke kisi bhi aaropi ko aatnakwadi keh dene se hamare beech ka aatank khatm nahin hoga..Aap aur main..kal ya aaj..aatank ka mohra ban hi rahe hain..lekin Jis tarha se hum patrakar aur police milkar iss samasya ka hal dhoondne lage hain ( dhoondte hue dikhayi dena chahte hain) , to adaalaton ka kya hoga..
Nafrat ke beej se sirf nafrat ki kheti kategi.Ek Samudae ko vishwas main lijiye, lekin usse pehle unpar vishwaas kijiye..ye kuch shatir magar gumrah log..kab samudaye se nikaal phenk diye jayenge..pata bhi nahin chalega..aatankwad hamare beech se aise ghayab hoga, jese kabhi tha hi nahin..Sirf ek baar vishwaas kijiye..
arfa
सर सादर प्रणाम, आपने अपनी बेबाक राय रखी है जो शायद आप चैनल पर ना कह सकें. लेकिन यहाँ पर लिखी टिप्पणियां पढ़ कर और आये दिन तथाकथित समाजसेवियों के उदगार सुनकर ऐसा लगता है कि अलगाववादी अपने मकसद में सफल हो गए हैं.
एन डी टी वी 24/7 पर पिछले दिनो प्रसारित एक रिपोर्ट में ( http://in.youtube.com/watch?v=EwDlZEtjJhk ) सिमी के (अ)भूतपूर्व प्रेजिडेंट शाहिद बद्र फलाही ने कहा कि बोमियान की मूर्तिया गिराना जायज था क्योकि वहा कोई इबादत नही करता था, उन्होंने अपने बाप दादा का भी उदहारण दे डाला. फलाही से क्या कोई पूछने का कष्ट करेगा कि उसने बाबरी मस्जिद में कितनी बार नमाज़ पढ़ी थी और क्या फलाही का बयान ख़ुद बाबरी मस्जिद को गिराना सही साबित नही करता ? अगर तालिबान का बोमियां कि मूर्तियाँ गिराना सही था तो बाबरी मास्जिद को गिराए जाने पे इतनी हाय तौबा क्यों ? सारा आतंकवाद और जिहाद उसी का तथाकथित बदला लेने के लिए ही तो है ? क्या फर्क है मोदी का विरोध करने वालों और मोदी में ?
जिस तरह से प्रशांत भूषण जैसे कानून के जानकार भी टी आर पी के चक्कर में पड़ गए दिखते हैं, और तुंरत फुरत फैक्ट फाइंडीन्ग़ टीम लेकर बाटला हाउस पहुँच गए प्रशांत जी से कोई पूछे कि कितनी बार वे देश भ्रमण पे निकलें हैं बेगुनाह लोगो को झूठे मुक़दमों से बचाने. देश भर के आंकडों पे भी ध्यान देकर प्रशांत भूषण की फैक्ट फाइंडीन्ग़ टीम अगर काम करे तो शायद देश भर के लोग झूठे मुकदमों में फंसने से बच जायेंगे.
तथाकथित मानवाधिकारवादी ब्लास्ट में मारे गए लोगों और उनके परिवार की चीखें तो नही सुन पाते लेकिन अचानक जैसे ही कोई आतंक का आरोपी पकड़ा जाता है , इनकी सेकुलरिज्म की दुकान का शटर उठ जाता है. जब आतंक और आतंकवादी का कोई मज़हब नही, तो पकडे गए आरोपियों का मज़हब अचानक क्यों सामने आ जाता है? क्या कभी इन मानवाधिकार संगठनों ने आतंक के शिकार लोगों से जाकर यह पूछा है कि उन लोगो को सरकारी वायदों के हिसाब से मुआवजा मिला या नही, परिवार के मुखिया या कमाने वाले की मौत के बाद गुजर बसर कैसे हो रही है ?
राजनेता हों, पुलिस हो, जांच एजेन्सी हो, मीडिया हो और खासतौर पे ये मानवाधिकारवादी सभी के लिए आजमगढ़, आबो हवा बदलने के लिए एक जगह बनकर रह गयी है, गोया कि आजमगढ़ एक चिडियाघर और आजमगढ़ के लोग इस चिडियाघर के बाशिंदे. कहाँ थे ये सभी, ज़ब अंडरवर्ल्ड यहाँ के नौजवानों को बहुत लुभावनी नौकरियां दे रहा था ? काश ! तब इनको आजमगढ़ कि याद आई होती. जामिया नगर क्या अभी तो पता नही इस देश में और कितने कश्मीर बनेंगे?
खैर, जो भी हो आतंक और अलगाव फैलाने वालों का मकसद राजनेताओं , पुलिस, जांच एजेंसियों , मीडिया ने और विशेषतौर पर इन मानवाधिकारवादियों ने पूरा कर दिया है. विडम्बना यह है कि इन्ही पर समाज को बांधे रखने कि ज़िम्मेदारी थी और इन्होने ही आतंक के शिकार समाज का ध्रुवीकरण कर दिया है. एक समाज है, जो आतंकवादियों के मुसलमान होने का जख्म झेल रहा है और एक समाज है जो एक विवादित ढांचे के गिरने का दंश झेल रहा है और कीमत चुका रहा है. दोनों कौमों के अलगावादी सही कहते हैं यह देश राम भरोसे या इस देश का अल्लाह हाफिज़....
आपके लेख में सबसे बड़ी कमी ये है कि आपने लेख एक खास तरह के भावनात्मक आवेग में लिखा है जैसा कि आखिर के पैराग्रॉफ्स को पढ़ने के बाद साफ हो जाता है...आपने शुरूआत में जो लिखा है वो एक कहानी है...इसलिए उसको तथ्यों पर तोलना ही उचित नहीं होगा... मैं 60वां शख्स हूं जो आपके लेख पर टिप्पणी कर रहा हूं इससे पहले आपको जो 54 झिड़कियां मिली है मैं उसमें एक और इजाफा नहीं करना चाहूंगा ... ईश्वर आपकी नौकरी सलामत रखे
प्रसुन जी....आपके लेख मैं भी पूरी तरह सहमत नही हूं...क्योकि जामियानगर में सबके सब देशभक्त मुसलमान है मैं ऐसा बिलकुल नही मानता...और पुलिस पूरी तरह सक्षम और सही है मैं ये भी नही मानता...आपके लेख में कई खामियां है पर आपने इतना ज़रूर है किया कि...हड्डी फेंक दी... इस लेख पर प्रतिक्रिया को देखें तो कईयों की क़लई खुल गई...लेकिन...आपको नही लगता की ब्लाग पर पत्रकार का लबादा ओढे ज्यादातर प्रचारकों के सामने आप पत्रकारिता से जुड़े बुनयादी सवाल उठा कर अपना समय बरबाद कर रहें हैं....क्योकिं यहां पर मौजूद सवंभू प्रचारकों(इन्हे पत्रकार कहना पत्रकारिता का अपमान है)को सहाफियत के उसूलों से कोई लेना देना नही है...इन्हे गोधरा कांड दिखता है लेकिन वो क्यों हुआ उसे ये देख कर भी नही देखना चाहते...इन्हे गुजरात का ब्लास्ट दिखता है पर उससे पहले परिवार के परिवार हुड़दंगियों की भेंट चढ़ गए वो नही दिखा...इन्हे नही दिखा कि एक हामला का बच्चा उसके गर्भ से निकाल कर उसी के साथ जला दिया गया...इन्होने अपने किसी लेख में कभी इन अमानवीय हरकतों की निंदा की....क्या कभी ये सवाल उठाया कि एक पढ़ा लिखा नौजवान आंतकवादी क्यो बन रहा है...क्यों अपने शरीर पर बम बांधने आमादा है..ये प्रचारक कुंठा का शिकार हैं...प्रसून जी ये बहस आपने उन लोगों के बीच छेड़ी है जो माता के जगराते में कान में रूई डाल कर सोतें हैं और आजान की आवाज पर एतराज करतें हैं...अब वो लोग कहां जो...भोर में दूर मंदियों से आते हुए भजन के स्वर और आजान की आवाज के मिलेजुले संगीत का रूहानी सुकून महसूस कर सकें...
prasun ji apne jo bhi likha ek achi kahani ho sakti he. Mein aap se sehmat hoon ki har bar atanki vardat ke baad musalmano par shak kiya jata he. Prasun ji apse ek jawab chahnoonga Har muslaman atanki nahi hota lekin har atnki mulman kyon hota he. is sawal ka jawab apse jaroor chahoogha kyon ki me antakbad grast jammu kashmir ka nivasi hoon aur apka jawab jahan par antakbad ko samapt karne mein madahar hoga.
सयैदन जैदी भाई, आपका सन्दर्भ ( ...इन्हे गोधरा कांड दिखता है लेकिन वो क्यों हुआ उसे ये देख कर भी नही देखना चाहते...इन्हे गुजरात का ब्लास्ट दिखता है पर उससे पहले परिवार के परिवार हुड़दंगियों की भेंट चढ़ गए वो नही दिखा...इन्हे नही दिखा कि एक हामला का बच्चा उसके गर्भ से निकाल कर उसी के साथ जला दिया गया...)
उम्मीद यही कर सकता हूँ कि एक ज़हीन और जिम्मेदार पत्रकार होने के नाते आपने कहीं से भी इन सभी आतंकी घटनाओं को वाजिब ठहराने के कोशिश नही की है. साथ ही, यह भी उम्मीद करता हूँ कि आपने फ़िर वो ही पुरानी घिसी पिटी बहस नही छेड़ दी कि पहले किसने किसको तमाचा मारा है. चाहे वो पोस्ट-गोधरा रहा हो या प्री-गोधरा मरने वाला इंसान ही था जो उसका जिंदा रहते ज़ख्म झेल रहा है, वो भी इंसान ही है.
किसी ने किसी को क्यों मारा? चाहे वो नानावटी कि रिपोर्ट हो या फ़िर यू. सी. बनर्जी कि रिपोर्ट वो बस याद रहेगी कि एक रिपोर्ट मोदी की रिपोर्ट थी और एक रिपोर्ट लालू प्रसाद की थी, आप सभी टेलिविज़न पत्रकारों ने तो कम से कम यही बहस छेड़ रखी है.
सभी भूल गये हैं कि इन घटनाओं में मरने वाले लोग कौन थे? कहाँ रहते थे? उनके पीछे जो बच गए वो किस हाल में हैं? किसी को कोई परवाह नही है,
कम से कम एक न्यूज़ चैनल के न्यूज़ एडिटर होने के नाते आप यहाँ पर लिखने वाले स्वयं भू पत्रकारों को ज़रूर सही रास्ता दिखायेंगे
प्रसून जी,सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं मानता कि राज्य असफल हो गए हैं बल्कि ये हमारे समय की भयानक पंक्ति है कि राज्य सचमुच असफल हैं.मध्यप्रदेश के हरदा जिले में अपने परिवार मॆं मुसलमान मित्र के साथ बैठकर खाना खाने पर लड़ने वाली दादी के लिए यही सोचती थी उस वक्त कि वो जाहिल हैं शायद इसीलिए..लेकिन आज तो जहालत का पूरा का पूरा समुद्र दिखाई देता है वो भी इतना गहरा कि अच्छा तैराक भी डूब जाए..यहां सच लिखने और अभिव्यक्ति के नाम पर बेहूदगी,बेशर्मी और शाब्दिक हिंसा फैलाने वालों से मेरा यही पूछना है कि क्या वो वाकई संवेदनशील हैं..इसी दिल्ली में दो साल पहले अपने (मुस्लिम) एंकर मित्र के लिए उनके साथ मकान खोजने गई थी मैं..विचलित हो गई थी लोगों के रवैए से..जहां उसे मकान मिलना ही दूभर हो गया था और ताने अलग मिल रहे थे..सोचिए जरा इस देश के एक नागरिक को जो एंकर बाद में है नागरिक पहले हैं..अपने परिवार के साथ मकान नहीं मिल पा रहा था और उसे गिड़गिड़ाना पड़ रहा था ये कहकर कि हां जी मैं मुसलमान तो हूं लेकिन मैं खराब नहीं हूं..ईमानदार व्यक्ति हूं..ईमानदार नागरिक हूं..मेरे दो बच्चे हैं..मै अकेला रहता हूं पत्नी बच्चों को अपने पास बुलाना चाहता हूं लेकिन मकान मालिक नहीं पिघले..कितनी हास्यास्पद बात है कि इस लोकतांत्रिक गणराज्य में तमाम इंस्टीट्यूशन बॉडीज, मीडिया सहित राज्य के नागरिकों को सुरक्षा देने वाली तमाम शक्तियां मजबूर हैं और आम जनता अपनी सीमित मानसिक शक्तियों के कारण मजबूर..
ऋचा साकल्ले..
लोगो के विचार अलग-अलग होते है. सच ज्यादातर कड़वा ही रहा है, देश के धमाकॉ मे मुसलमानॉ का हाथ सामने आया है. हम आज भी नाही भूल पाये है भागलपुर के दन्गे कॉ, जब मा रेडियो पर सामाचार सुनकर रोने लग्ती थी ये कह्ते हुए कि मेरा छोटका (भाई) पता नही कैसा होगा. मै तो काफी छोता था. आपको ज्यादा याद होना चाहिये. समय के साथ आदमी मा-बाप को भूल जाता है, विभत्स घटना को आप क्यु याद रखने लगे.
अभी दौर है काग्रेस मे नम्बर बढ़ाने का, लोग इसके लिये कई बार मुसलमान प्रेम दिखते है, आपको राज्यसभा मे जाने का मन तो नही है काग्रेस के तरफ से.
TO FIR THEEK HAI. POLISH YA SURAKSHHA AGENCYON KO HATAKAR PATRAKAR BHAION KO HI SAUNP DENA CHAHIYE AATANKWAAD ROKNE KA KAAM. STING OPRATION KARTE KARTE YE JAB LOGON KE BED ROOM TAK PAHUNCH SAKTE HAIN TO ATANKWADION KE PLAN KO VARDAAT SE PAHLE JAAN LENA INKE LIYE KOI BADI BAAT NAHI HOGI.YADI YE CHAHEN TO MANAVADHIKAAR VALON KO BHI APNE SAATH RAKH SAKTE HAIN, UNKE HRIDAY PARIVARTAN KE LIYE.
किसी भी चीज़ का विरोध करना हो तो ज़रूरी नहीं है कि आप उसे गाली ही दें
आप लिखेंगे तो आप महान कहलायेगें कोई और लिखे गा तो वो कट्टर कहलायेगा
बटला में क्या हुआ ये कोई नहीं जानता सच क्या है किसी को नहीं पत्ता ।पर अब जो हो रहा है एक कौम को कटघारे में खड़ा किया जा रहा है क्या ये सही है ये भी कोई नही बोल रहा .. क्योकि हमने कभी सही और साफ बोलना सीखा ही नहीं.. क्योकि हम मीडिया में हैं और जानते है की वाहवही विवाद से ही मिलती है ।
धन्यवाद
अनुराग साहब...मैं प्रसुन जी के लेख से ओतप्रोत हूं ऐसा बिलकुल नही है...लेकिन उस लेख पर आ रही प्रतिक्रिया से मैं आहत हूं... प्रसून जी ने अपने लेख को मुस्लिम समाज से हमदर्दी जामा पहनाया... तो हमारे सवंभू पत्रकार अपनी प्रतिक्रया में उससे कहीं ज्यादा आगे निकल गए...कुछ विद्वान तो मूल विषय की बहस से हट कर अफगानिस्तान में प्रतिमा तोड़े जाने को उदहरणस्वरूप रख कर अपनी कुंठित और खोखली दलीलों पर मुहर लगवाना चाहतें हैं...मुस्लिम अकसरियत वाले इलाक़े से हिंदुओं के चले जाने का उदहरण देने वाले ये दानिश मंद हिंदु बाहुल्य क्षेत्र से मुस्लिम के पलायन को भूल जातें हैं..ये ध्रुविकरण क्यो है इस पर तो ये सोचना ही नही चाहते...मान्यवर आपने बड़ी सहजता से मेरे उठाए सारे सवालों को बाउंस करा दिया...आपसे विनम्रता पूर्वक केवल ये जानना चाहता हूं कि क्या मरीज़ को मार देना मर्ज़ का इलाज है...और अंत में इतना जरूर कहूंगा कि प्रसून जी को उनके चैनल पर अपने विचार रखने की चुनौती देने वाले ये सवंभू पत्रकार चौथे स्तभं की वो इंटे है जो फिरक़ापरस्ती और हसद की बीमारी से बोसीदा हो चुकी हैं...कुछ बदलने से पहले इन्हे बदलना जरूरी है...मेरी टिप्पणी को आतंकवाद के समर्थन से जोड़ कर देखना ....अहमक़ाना सोच है और मै आश्वस्त हूं की आप उनमें से नही हैं
सयैदन जैदी भाई
ज्यादा कुछ न बोलते हुए आपसे बस इतना आग्रह करूंगा कि जिस कार्यक्रम का जिक्र मैंने किया था उसका विडियो (http://in.youtube.com/watch?v=EwDlZEtjJhk) आप एक बार ज़रूर देख लें, ये कार्यक्रम तहलका के रिपोर्टर श्री अजित साही जी द्वारा खोजे गए तथ्यों पर ही आधारित था. जिसमे उन्होंने शायद एक कोशिश की थी कि उस मुस्लिम समाज के दर्द को लोगों के सामने ज़ाहिर कर सकें, जिसको फासिस्ट ताकतों ने पूरी तरह देशद्रोही साबित कर दिया है.
उसी विडियो में आप देख सकेंगे कि बोमियां का ज़िक्र आने पर साही जी के प्रयास पर डॉ. शाहिद बद्र फलाही ने किस कदर झाडू लगायी है. मै भी यही सवाल पूछना चाहता हूँ कि मर्ज़ के इलाज़ के लिए मरीज़ को मारना ज़रूरी है क्या? और क्या इस तरह के अहमकाना बयान ध्रुवीकरण नही करते?
सर, मै फ़िर दोहरा रहा हूँ कि चाहे वो प्री-गोधरा,रहा हो, गोधरा रहा हो या पोस्ट-गोधरा मरने वाला इंसान ही था, जो उसका जिंदा रहते ज़ख्म झेल रहा है, वो भी इंसान ही है. किसी ने किसी को क्यों मारा? चाहे वो नानावटी कि रिपोर्ट हो या फ़िर यू. सी. बनर्जी कि रिपोर्ट वो बस याद रहेगी कि एक रिपोर्ट मोदी की रिपोर्ट थी और एक रिपोर्ट लालू प्रसाद की.
सभी को ईद और दशहरे की अग्रिम शुभकामनाओं, प्रसून सर और आपसे गुस्ताखियों के लिए माफ़ी की इल्तिजा के साथ आपका अनुज
अनुराग
क्या बात है.
प्रसून जी , कुछ भी लिखने से पहले मैं एक शेर आपको नज़र करता हूं , 'हम उस महफिल में सिर्फ एक बार सच बोले थे ऐ वाली, ज़बां पर उम्र भर महसूस की चिंगारियां मैने ' तो प्रसून जी अब जब आपने सच बोला है तो झेलेंगे तो ही, कोई कहता है कि आप मुस्लिम लीग के टिकट पर चुनाव लड़ ले , तो कोई कहता है कि भइया विस्फ़ोट की जगह बता दो और तो और कुछ ने तो आपको फिल्म राइटर ही बना डाला, खैर ये सब तो नासमझी है अब आता हूं मैं मुद्दे पर , हालांकि कुछ मेरे भाई ये इल्ज़ाम भी लगाएंगे कि मैने मुस्लिम होने के नाते ज़ैदी साहब के कुछ सवालों का समर्थन किया, क्या मेरे ये सो काल्ड पत्रकार भाई ये बताएंगे क्यूं एक पढ़ा लिखा नौजवान आंतकवादी बन रहा है...क्यों कोई अपने शरीर पर बम बांधने आमादा है , इन लोगो को एक दो परिवारों का मकान छोड़ना तो दिखता है पर जब मोहल्ले के मोहल्ले उनमादी भीड़ का शिकार हो जाते है तो इनकी आंखों में रौशनी नहीं रहती, न ही इनको उन बच्चो उन मज़लूम औरतों की चीखे सुनाई देती है जिन्हे उनके परिवार के सामने ही नंगा करके दौड़ाया जाता है और उनकी अस्मत , आबरू के साथ खिलवाड़ किया जाता है, मेरे मित्रों ज़ुल्म कश्मीर से लेकर गुजरात तक हर जगह हुआ है , आप लोग तो लोकतंत्र के मज़बूत स्तंभ के तौर पर जाने जाते हो , अगर आपकी ही ये सोंच होगी तो देश का तो जाने क्या होगा। भाइयों फाइव स्टार होटेल में बैठकर बकार्डी में मिनरल वाटर मिलाकर पीने के बाद देश की दुर्दशा पर चर्चा करना आसान है , हकीकत से दोचार होना और बात है ,चलते-चलते एक बात की गुज़ारिश करूंगा कि मेरे इस लेख का ये मतलब हर्गिज़ न निकालिए कि मैं आतंकवाद का समर्थन कर रहा हूं बल्कि आतंकवाद वो कोढ़ है जिसे हर क़ीमत पर समाज से मिटा देना चाहिए , लेकिन जब तक हम किसी भी बात की जड़ तक नहीं जाएंगे तो उसका निपटारा मुश्किल हैं , भाइयों आप सभी से निवेदन है इस तरह के लेखो से समाज बंटता है जुड़ता नहीं, अंत में सभी को गरबा और ईद की शुभकामनाएं , किसी को अगर मेरी कोई भी बात बुरी लगी तो अनुज समझकर माफ कर दीजिएगा।
Aarif Bhaiya Kashmiri panditon ko kisne bhagaya? Duniya bhar me Aatank ko Mazhabi Jihaad kissne banaya.
Achcha hua aapne dard bayan kar diya. Aapki baat solah aane sahi hai
Achcha hota ki aap ye bhi keh gaye hote ki ye so called majority wale hi hain jinhone Talibaaniyon ko Maar Kat sikhaai. Jo pehle Afghanistan ko kha gaye fir Pakistan ko barbaad kar rahe hain.
Itne jyada zulm hua ki padha likha nauzawan bomb baandh ke nikal pada badla lene. Kya sahi me wo padha likha tha?
Kafeel Ahmed bhai shahab ke upar kaun sa zulm hua tha India me jo badla lene ke liye Glasgow Airport pe pahunch gaye.
Ishara saaf hai ki bhaiya ab to bomb blast me maare gaye logon aur kashmiri panditon ke rishtedaaron ko bhi Bomb lekar nikal padna chahiye apna hisaab chukta karne.
Sahi kaha aaapne kisi samasya ke Jad me jaiye aur khod daliye Insaniyat ki zad aaatankwadi baankar. Na rahegi samasya naahi samasya ki zad.
Shayad tab sunai de 13 saal ke Santosh ki cheekhen aarif bhai ko.
Kabhi kabhi to lagta hai ki jo saathi Doosare mulkon me jakar bas gayen hai wohi sahi hain.
"achcha hua sailab baha le gaya shahar ko, Sar pe uthaye firte kahan ghar apna jalaa hua...."
वाजपेयी जी मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। आपने जो सवाल देशवािशयों के समक्ष उठाए हैं। उन पर हम सबको सोचना चािहए। यह सभी की िजम्मेदारी है।
वाजपेयी जी मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। आपने जो सवाल देशवािशयों के समक्ष उठाए हैं। उन पर हम सबको सोचना चािहए। यह सभी की िजम्मेदारी है।
वाजपेयी जी मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं। आपने जो सवाल देशवािशयों के समक्ष उठाए हैं। उन पर हम सबको सोचना चािहए। यह सभी की िजम्मेदारी है।
"AMAN HO JAYEGA GHADI BHAR ME, ASLAHA PHENK DO SAMANDAR ME" Phir wo chahe shabdon ka hi kyon na ho.. Syedain zaidi sahab aur Anurag ji ki "war of the words" kaafi dilchasp hai... Rahi baat Prasoon sir aap k iss LEKH ki... to aap ne ye likh kar bahut badi galti kar di.. galti isliye nahi ki aapne kuch galat likha.. galti isliye ki aapne yahan maujood logon ko aaina dikha diya.. aap k iss article ki pratikriya se pure hindustaan k mizaaj ka andaza lagaya ja sakta hai...
"AMAN HO JAYEGA GHADI BHAR ME, ASLAHA PHENK DO SAMANDAR ME" Phir wo chahe shabdon ka hi kyon na ho.. Syedain zaidi sahab aur Anurag ji ki "war of the words" kaafi dilchasp hai... Rahi baat Prasoon sir aap k iss LEKH ki... to aap ne ye likh kar bahut badi galti kar di.. galti isliye nahi ki aapne kuch galat likha.. galti isliye ki aapne yahan maujood logon ko aaina dikha diya.. aap k iss article ki pratikriya se pure hindustaan k mizaaj ka andaza lagaya ja sakta hai...
एक सवाल पूछना चाहती हूं उन लोगों से जो सोचते हैं कि नफ़रत से नफ़रत को काटा जा सकता है । क्या वाक़ई आतंकवाद का हल निकालना सिर्फ़ सरकार की समस्या है और हमारा काम सिर्फ़ बहस करना। क्या ये हमारे समाज की समस्या नहीं है । हमारी मुश्किल ये है कि हम बिना बीमारी जाने इसका इलाज ढूंढ रहे हैं। आप सबकी प्रतिक्रियाएं पढ़कर अब आश्चर्य नहीं होता कि आख़िर क्यों सभी न्यूज़ चैनल्स एक मिशन चलाते दिखाई पड़ते हैं । मेरा आप सबसे सवाल है कि क्या सिर्फ़ न्यूज़पेपर/न्यूज़चैनल के किसी भी आरोपी को आतंकवादी कह देने भर से हमारे बीच का आतंक ख़त्म हो जायेगा। आप और मैं, कल या आज, आतंक का मोहरा बन ही रहे हैं ना। लेकिन जिस तरह से हम पत्रकार और पुलिस मिलकर इस समस्या का हल हल ढ़ूडने लगे हैं ( या ढ़ूढ़ते हुए दिखाई देते हैं ) तो क्या अदालतो को बंद कर देना चाहिये। नफ़रत के बीज डालेंगे तो नफ़रत की ही फ़सल कटेगी। अगर एक स्कूल में पढ़ने वाला 16-17 का बच्चा बम फेंक रहा है तो एक समुदाय को नहीं पूरे राष्ट्र को उठ खड़ा होना चाहिये। आखिर क्या है जो उसे ज़िदगी नहीं मौत से प्यार हो गया। एक समुदाय को विश्वास में लीजिये लेकिन उससे पहले उनपर विश्वास कीजिये। ये कुछ शातिर मगर गुमराह लोग कब समुदाय से निकाल फेंक दिये जायेंगे पता भी नहीं लगेगा । आतंकवाद हमारे बीच से ऐसे ग़ायब होगा जैसे कभी था ही नहीं। सिर्फ़ एक बार विश्वास करना सीखिये।
आरफ़ा
prsun ji apki report gajab ki hai jisko padkar socha ki is samaj me kis kis tarah ke log hai lakin ek baat or sochne par majboor karti hai ke hum log jo journalist hai unki awaz me kya kuch bhi dum nahi reh gaya jo hum apne ye vichro ko blog ke zariye share kar rahe hai, waqt ke sath sab kuch badal raha hai, lakin aj bhi apni baaton ko, vicharo ko bolne ke liye hum cafe club ka area ka choose karte hai, akhir kyo, anyways u done a good job bye
आपकी इस पोस्ट से ब्लाग जगत में भूचाल आ गया। मैने आज एक बार फिर इसे पढ़ा। मैं सोच रहा था कि शायद इससे पहले मुझसे पढ़ने में चूक हुई हो। ध्यान से न पढ़ा हो। सरसरी नजर डाली हो, सो आज फिर पढ़ डाला। मेरी समझ में नहीं आया कि तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी क्यों चड्डी से बाहर हो रहे हैं। अगर आपकी समझ में आए तो अगली पोस्ट में जरूर बताना भाई।
chaitanya
सभी का लेखन बेहतरीन
prasoon jee aapko shayad 20 saal ho gaye hein patrakarita mein yaar ab to apni bhrasht bhasha aur uchcharan sudhar lo !
ऱाज्यतंत्र ने राजनीति को एकतरफा बना दिया
लोकतंत्र से हमेंशा देश को उम्मीदे रही है । हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है । जाहिर है कि जनता का विश्वास लोकतंत्र से जुड़ा रहा है । जनता के वोटो से जीते गए उम्मीदवार के दिल में भी यही रहता है कि जनता हमसे नाराज न हो इसलिए वे ऐसा कोई काम नही करना चाहते है जिससे जनता का दिल या कोई खास वगॆ उस दल या पाटीॆ से टूटे । लोकतंत्र में प्रजा यानी जनता की तमाम उम्मीदो का ख्याल रखा जाता है । लेकिन राज्यतंत्र से इस तरह की उम्मीद नही की जा सकती है । न्याय करना और जनता को उचित न्याय दिलाना राज्यतंत्र का काम होता है । अगर ऐसा नही होगा तो देश नही चल सकता है ।
जनता को भी ऐसी उम्मीदे रहती है कि राजा उसके साथ औऱ राज्य की नीतियो के साथ भेदभाव न करे या सरकार एकपक्षीय न हो । लेकिन कांग्रेस सरकार इस समय देश में जो कर रही है उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि सरकार वोट बैंक से ज्यादा कुछ नही सोच नही पा रही है या सरकार में अल्पसंख्यक या इससे अधिक सोचने की दमखम रखती ही नही है । आतंकवाद के मसले पर सरकार ने जो अपनी रणनीति दिखाई उससे यह नही कहा जा सकता है कि सरकार ने पूरे तंत्र को पंगु बना दिया है । दिल्ली में बम धमाके हुए लेकिन सरकार ने क्या किया । सरकार ने आतंकबादियो को पकड़ने के नाम पर जनता के साथ ठगी किया । शायद उसे लग रहा है कि आतंकवादियो को गिरफ्तार करने से उनका मुसलिम वोट खिसक जाएगा । यही माना जाए कि सरकार अल्पसंख्यको के वोट को पाने के लिए पूरे देश को खौफ और दहशत में जीने के लिए छोड़ देना चाहती है । सरकार ने दहशतगदो को पकड़ने कि लिए कोई कदम नही उठाए । अगर दिल्ली में कुछ आतंकवादियो को पकड़ने में सफलता मिली है तो उसका कारण भी गुजरात सरकार है जो अहम सुराग देकर आतंकवादियो के बारे में अहम सुराग दिए जिसके कारण कुछ गिरफ्तारियां हुई । उसको अगर अलग मानकर देखा जाए तो सरकार आतंकवाद के नाम पर उदासीन रही है ।
सरकार यह सोचती है कि इससे उसे अल्पसंख्यको वोट मिल जाएगा । लेकिन कितना बड़ा नुकसान देश को है सरकार नही सोच रही है । सरकार के इस व्यवहार से हमारा देश दो हिस्सो में बंट रहा है । जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है ।
आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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कुमार धीरज सहाब...अपकी टीप्पणी पढ़ कर ऐसा लगता है कि या तो आप ख़ुद नही जानते की आप कहना क्या चाहतें हैं या फिर बहुत अच्छी तरह जानतें है और तर्क को ताक़ पर रख कर...बस कह देना चाहतें हैं.... सरकार से जनता को क्या क्या उम्मीदें होती हैं..ये कहने में आप पूरा पैराग्राफ खा गए...और फिर लीख पर आ गए कि सरकार हर जगह असफल...गुजरात सरकार अपने यहां ब्लास्ट रोक नही पाई और दिल्ली में ब्लास्ट को आरोपियों को पकड़वा दिया...पढ़ने वाला बिचारा घनचक्कर....प्रजातंत्र में जनता ओर अल्पसंख्यक दोनो अलग हैं ये भी बता दिया आपने....यानी जो जनता को उम्मीदें हैं वो अल्पसंख्यक को क्यो होनी चाहिए...मान्यवर लोकतंत्र की परिभाषा को नया आयाम दिया आपने...महोदय ....कौमार्य से निकलये कुंठा से परे जाकर कुछ सोचिए...जीवन सुखी रहेगा अच्छी नींद आएगी वरना आप जनता और अल्पसंख्यक की उधेड़बुन में बुजुर्ग हो जाएंगे...मेरी सलाह को अन्यथा ना लीजएगा मुझे वाक़ई आप जैसे तमाम लोगों की फिक्र है
Great Going.. The Great Blog School of Secular Journalism ...
Justifications of terror blasts given as reaction of Gujarat.... And Gujarat was Reaction of Godhara?
Godhara was reaction of 1993 riots. (Someone please provide the misssing links...)
1993 riots was reaction of 1993 blasts,
the 1993 blasts were reaction of Babri Masjid demolition..... and the great SAGA of communal division traces back to History....
Very true, so now the blast affected majority community across the country should react and kill other community?
Keep on digging the new graveyards by exploring the history, one will keep blaming Modi, BJP, VHP and Bajrang Dal and other will keep blaming Ghouri-Ghazanavi,Babar and SIMI.
Shouldn't we Change the cliche- "Murgi pehele aayi ki Anda" to "Pehle Hindu ne mara Ya Musalman ne"
I was wondering if the real mastermind must have sent a report to his Bosses-
Blast... these number of people dead.... BONUS points Achieved- Psychological Aftermath- People Divided over religious beliefs (vote banks ready). Please raise invoice and collect the remaining amount from Political Aakas.
Friends do anyone of you have great connections in foreign embassies? Please let me know I want to apply for immigration.
YES I WANT TO DECLARE MYSELF AS COWARD AND BANKRUPT OF COURAGE TO FACE THE SITUATION.
MIND YOU, THIS IS NOT THE FRUSTRATION.
THIS IS THE FEAR OF GETTING SUFFOCATED DUE TO EPIDEMIC OF INTELLECTUALISM GETTING ROTTEN AND BANKRUPT.
अवीनाश और बिरादरी की नज़र एक लिंक...पढ़िये ओर सेक्युलर पत्रकार के ख़ुराफाती दिमाग़ को कोसिये...
http://www.thedailystar.net/story.php?nid=57106
syedain zaidi और बिरादरी की नज़र some links ...पढ़िये ओर Super Communal Journalists के ख़ुराफाती दिमाग़ को कोसिये...
After reading these links, will it solve the Communal Hatred Issue, Mr. News Editor???
Aag Ugalna Aasan hai Bujhana Mushkil. This fact is ignored by such senior journalist.
14 years of Journalism and such narrow mindedness, GROW UP ZAIDI SAHAB....
Instead of leading the society to right way you are passing on your rotten Medieval fanatic thoughts. if you are still with Lehren Entertainment News Channel, may GOD save it...
You Justified my point-
THIS IS THE FEAR OF GETTING SUFFOCATED DUE TO EPIDEMIC OF INTELLECTUALISM GETTING ROTTEN AND BANKRUPT
Amar Ujala
http://www.amarujala.com/today/28.asp or
http://www.amarujala.com/today/editnews.asp?edit=28.asp
Pioneer
http://www.dailypioneer.com/columnist1.asp?main_variable=Columnist&file_name=surya%2Fsurya16.txt&writer=surya
Views of Tasleema Nasreeen http://www.rationalistinternational.net/archive/en/rationalist_2008/20080211.html
Views of Asghar Ali Engineer
http://indianmuslims.in/attack-on-taslima-love-of-islam-or-love-of-power/
One look at this World बिरादरी 's Comments:
Next 9/11-type target will be Britain, warn Muslim fanatics
http://www.andhranews.net/Intl/2008/September/13/Next-type-target-63812.asp
Muslims will conquer UK by having more babies, says fanatic
http://www.andhranews.net/Intl/2008/September/13/Muslims-conquer-63793.asp
See this Google search Link and see how prominently this has been covered worldwide,
http://www.google.co.in/search?q=Muslims+will+conquer+UK+by+having+more+babies%2C+says+fanatic&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a
http://jihadwatch.org/dhimmiwatch/archives/009125.php
मोहतरम जनाब अवीनाश साहब...मैने तो फक़त एक लिंक भेजा था...आप तो जैसे भरे बैठे थे...जनाबेआली पूरी दुनिया में मुसलमानो के जिहाद और दहशदगर्दी का हवाला देकर आप मुझे बेगुनाह और अमनपसंद मुसलमानो के साथ हूई नाईंसाफी पर आवाज उठाने से नही रोक सकते...आपको मेरी सोच एकतरफा लग रही होगी जरूर लग रहा होगा कि ब्लास्ट में मरने वालों से मेरी कोई हमदर्दी नही है...और अगर नही है तो अजमेर,हैदराबाद और तमाम ब्लास्ट में जो मुसलमान मरे हैं उनसे भी मेरी कोई हमदर्दी नही होनी चाहिए...बल्कि कल से आज हुए दो तीन ब्लास्ट में तो सिर्फ मुसलमान ही मरे हैं...आपके हिसाब से तो मैं मुसलमानो के साथ भी नही हूं...तो फिर आप मुझे फिरक़ापरस्ती की क़तार में कैसे खड़ा कर सकतें हैं....अविनाश साहब आईना दिखाना आपको नगावार गुज़रेगा इसका अंदाज़ा था मुझे पर इतना ये नही पता था....ख़ैर मुझ पर ज़ाती हमला करके आपने अपनी तंगदिली का मज़ाहिरा कर दिया है ...जिन्होने भी मेरे साथ काम किया है या कर रहे हैं वो जानतें हैं मेरी सोच ....अविनाश साहब आप बीमार हैं....और मुझे अपनी सोच पर एक बीमार की मुहर की ज़रूरत नहीं
mr zaidi well said avinash jaise log na hindu hai na hi hindustani
jin ki koi pehchan koi profile nahi bus bolna hai kyu kuch nahin pata ...
आपने तो सवालों को गुल कर दिया ज़नाब, और अपने आप को शहीद साबीत करने लगे, सवाल यही था की कहीं रोक लगेगी इन इल्जामों की झड़ी पर? इल्जामों की इस झड़ी से आपको लगता है कि फिरकापरस्ती रुक जायेगी?
अगर रुक जायेगी तो पेश है मेरा सर आपके सामने, उठाइये शमशीर ले लीजिये बदला मेरे हिसाब से बेगुनाह इंसानों के ऊपर होने वाले ज़ुल्म का (कोई अचरज न होगा अगर आप अभी भी उन्हें सिर्फ़ हिंदू-मुसलमान के आईने में देखें ).
आपने सवाल का जवाब नही दिया कि इतिहास कि कब्र में कब तक खुदाई करेंगे आप और इस से किसे साबित करेंगे दोषी ?
मैंने तो सिर्फ़ एक लिंक के जवाब में सारे लिंक इसलिए दिए थे कि हर ख़बर के दो पहलू हैं आप सिर्फ़ एक तरफ़ के पहलू को दिखाकर अपना तर्क साबित नही कर सकते. क्या आपकी अमन पसंदगी सिर्फ़ एक तरफा है ?
अगर आपके दिए लिंक पर आइना था, तो बाकि लिंक्स पर भी एक सवाल उठ सकता है, कि दुनिया भर में सिर्फ़ एक ही अमन पसंद कौम पर इतना अविश्वास क्यों?
मुझे नही है, अभी भी अविश्वास, क्योंकि मेरा एक्स- एम्प्लोयेर वो शख्स रहा है, जो दुनिया का सबसे अमीर मुसलमान है , आज भी मै अपने खान अंकल पैर छूकर ईदी लेता हूँ और इस बार भी वही करूंगा.
बात आप पर व्यक्तिगत हमला करने कि तो मुझे एक क्रिकेट कप्तान कि कहानी याद आ गई जब उसे मैच फिक्सिंग के आरोप में बहार निकाल दिया गया, उसने भी आप ही कि तरह कुछ रीएक्शन दिया था- उसके हिसाब से उसे इसलिए निकाला गया क्योंकि उसकी कौम अलग थी....
यहाँ हर किसी को आइना दिखाने वाले को आईने से ख़ुद इतनी नफरत क्यों?
पेश है कुछ आप की ही लिखीं बातें- इन बातों के हिसाब से सिर्फ़ एक ही इंसान को समझदारी है .... बाकी सब अहमक हैं , बीमार हैं, सभी के अन्दर कौमार्य से निकली कुंठा है.
• ..... पत्रकार का लबादा ओढे ज्यादातर प्रचारकों के सामने आप पत्रकारिता से जुड़े बुनयादी सवाल उठा कर अपना समय बरबाद कर रहें हैं....क्योकिं यहां पर मौजूद सवंभू प्रचारकों(इन्हे पत्रकार कहना पत्रकारिता का अपमान है) को सहाफियत के उसूलों से कोई लेना देना नही है...इन्हे गोधरा कांड दिखता है लेकिन वो क्यों हुआ उसे ये देख कर भी नही देखना चाहते...
• ….. अवीनाश और बिरादरी की नज़र एक लिंक...पढ़िये ओर सेक्युलर पत्रकार के ख़ुराफाती दिमाग़ को कोसिये...
http://www.thedailystar.net/story.php?nid=57106
• महोदय ....कौमार्य से निकलये कुंठा से परे जाकर कुछ सोचिए...जीवन सुखी रहेगा अच्छी नींद आएगी वरना आप जनता और अल्पसंख्यक की उधेड़बुन में बुजुर्ग हो जाएंगे...मेरी सलाह को अन्यथा ना लीजएगा मुझे वाक़ई आप जैसे तमाम लोगों की फिक्र है
• ....अविनाश साहब आप बीमार हैं....और मुझे अपनी सोच पर एक बीमार की मुहर की ज़रूरत नहीं
अगर आप दुनिया भर अमन पसंद मुसलमानों के पक्ष को सामने रखने का बीडा उठाये हुए हैं तो ज़नाब दूसरों को भी हक है कि दहशतगर्दी और नफरत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायें, और उसके लिए किसी को भी आपके विशेषण (कौमार्य, अहमक, स्वयम्भू पत्रकार, बीमार ) और लंगडे सेकुलरिज्म के मुहर की आवश्यकता नही है.
पिछले 4-5 कमेंट पढने के बाद तो सोचता हूं कि वापस अंग्रेजी ब्लौग की दुनिया में चला जाऊं.. जहां ना तो अपनी पहचान बताने का झंझट और ना ही व्यक्तिगत छिंटा-कशी और आरोपों का डर.. ऊपर से हिट्स भी ज्यादा मिलते हैं..
*प्रसुन जी....आपके लेख मैं भी पूरी तरह सहमत नही हूं...क्योकि जामियानगर में सबके सब देशभक्त मुसलमान है मैं ऐसा बिलकुल नही मानता...और पुलिस पूरी तरह सक्षम और सही है मैं ये भी नही मानता...
*मैं प्रसुन जी के लेख से ओतप्रोत हूं ऐसा बिलकुल नही है...लेकिन उस लेख पर आ रही प्रतिक्रिया से मैं आहत हूं... प्रसून जी ने अपने लेख को मुस्लिम समाज से हमदर्दी जामा पहनाया... तो हमारे सवंभू पत्रकार अपनी प्रतिक्रया में उससे कहीं ज्यादा आगे निकल गए...
*अब वो लोग कहां जो...भोर में दूर मंदियों से आते हुए भजन के स्वर और आजान की आवाज के मिलेजुले संगीत का रूहानी सुकून महसूस कर सकें...
I have put few portions of my comments for you and your cult
Mr. Avinash...your first line in one of your post "Great Going.. The Great Blog School of Secular Journalism ..." which clearly suggests that you have stereotype...
You picked up the lines as per your convenience and served with extra toppings, though out of context… you have to vent out your contaminated, sickened and disgruntled thoughts
I sent the link with my comments because I wanted you and your cult to see the other side of the picture…. the article is penned by a well known columnist Praful Bidwai…I wanted you to study that if people are raising concerns… then one must give a fair thinking to the issues. Also since you had chosen to call it “School of Secular Journalism” I thought may be your juvenile delinquencies will get a cure.
During my education I fought with the fanatic Muslims who, in my view, are responsible for the perception of Muslims today. But, for your information, Mr. Avinash unfortunately after collage I had to fight it out with my fellow Indian who are not Muslims
Mr. Avinash….it is depressing to know that you are another kid from that very pigeonhole
PS: I will take the issue of going into the history and digging the old grave etc…later.. and will tell you why it was worth mentioning
हाथ कंगन को आरसी क्या........
बिल्कुल सही कहा आपने, यहाँ आपको छोड़कर सभी स्टीरियो टाइप ही हैं, आपने अपनी सहूलियत के हिसाब से ज़ब चाहा जिसे चाहा एक उपमा प्रदान कर दी. (अकेला मै ही हूँ जिसने आपसे ज़बान लड़ाने की हिमाकत की इसलिए आपने मेरे ऊपर विशेषण और उपमाओं की झड़ी लगा दी है, भाई प्रसाद समझ कर ग्रहण कर रहा हूँ )
आप बुद्धजीवियों के बीच बोलना मेरी गलती इसलिए है कि मै एक बहुसंख्यक सेकुलर होने का ढोंग नही कर पा रहा जिनका सेक्लुँरिज्म शायद बदकिस्मती से लंगडा और काना होने पर ही बुद्धजीवियों और समाज के ठेकेदारों को वाजिब लगता है.
जब जब आपसे पूछा गया कि आरोप प्रत्यारोप से किसका भला होने वाला है , तब तब आप एक फ़िल्म स्टार के मानिंद मूल प्रश्नों को ताक पर रख कर इधर उधर के प्रश्नों के जावाब देने में लग गए हैं.
मूल प्रश्न अभी भी वहीँ है जनाब. अगर यूहीं आप प्रश्न उठाते रहेंगे कि गोधरा कांड क्यों हुआ लोगों को यह नही दिखता, तो मित्रवर उस प्रश्न पर प्रति प्रश्न उठेंगे, जिसका जवाब देने से आप बचते रहे हैं. उस से भी बड़ा सवाल तो ये है कि क्या आरोप प्रत्यारोप से समस्या सुलझ जायेगी? कब तक पुरानी क़ब्रों को खोद कर नई कब्रें बनाते रहेंगे? अमन पसंद सिर्फ़ एक ही कौम में नही हर कौम में है और नाइंसाफी हर कौम के साथ होती रही है.
मैंने भी आपको किन्ही ऐसे वैसे लोगों के लेखों के लिंक फॉरवर्ड नही किए थे, लेकिन मेरा मकसद ये नही था कि मै उन बातों को बहस का मुद्दा बनाना चाहता हूँ .
शायद आपके द्वार भेजा गाया लिंक कुछ किस्मत वाले, अंग्रेज़ी जानने वाले,समझदार और सुविधा संपन्न लोग ही इन्टरनेट पर पढ़ पाए होंगे, लेकिन अमर उजाला में, हिन्दी में छपा लेख, हर गली नुक्कड़ पर मौजूद चाय की दूकान पर पढ़ा गया होगा, शायद मुंबई में आप अमर उजाला अखबार न पढ़ पाते हों पर यहाँ आपके गृह प्रदेश में बहुतायत में पढ़ा जाने वाला आखबार है,
प्रफुल बिदवई जी का लेख पढने वाला एक बुध्ध्जिवी रहा होगा, लेकिन अमर उजाला का लेख पढने वाले केवल बुद्धजीवी ही नही बल्कि अन्य फिरकापरस्त लोग भी होंगे, चाय की दूकान और कुछ ऐसी जगहों पर जिस जनता ने लेख पढा, उनमे से बहुतों के सामने तो उडीसा में हुई हिंसा जस्टीफाइड हो गई.
वो भी कारण समझ गए होंगे की कंधमाल में हिंसा क्यों हुई. आपके ही शब्दों में " इन्हे कंधमाल दिखता है लेकिन वो क्यों हुआ उसे ये देख कर भी नही देखना चाहते...".
एक ने हमदर्द बनकर धोखे से ज़मीन ली और दूसरे ने हाथ में हथियार थमा दिए.... पता नही कौन था अपना? कारण लाख वाजिब रहें हो ज़नाब, लेकिन चर्च पे हुआ हमला कोई अहमक ही कहेगा कि सही था.
जनाब आपका जब जी चाहे आप अपनी बात " I will take the issue of going into the history and digging the old grave etc…later.. and will tell you why it was worth mentioning" को पूरा करें या ना करें, ये आपका अपना अधिकार क्षेत्र है.
मेरा मकसद आपसे बहस करने का एक ही था कि मै आपके हिंसा के किसी भी वारदात को किसी भी कारण, किसी भी तर्क से सही ठहराने से सहमत नही हूँ , मेरी राय में पत्रकारों को कम से कम राजनेताओं की तरह इतिहास का सहारा लेकर जम्हूरियत की कब्र खोदने से बाज आना चाहिए.
तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ की इतनी तल्ख़ बहस के बाद भी मुझे "fellow Indian" ही कहा, कहीं कुछ तो है अभी भी बाकी, जो मुझे आपको कहीं अभी भी जोड़े हुए है. अल्लाह, इश्वर, जो भी है वो उपरवाला सलामत रखे इस जुडाव को!
आपकी लडाई अभी भी ख़त्म नही हुई है, बात सिर्फ़ मुसलमानों के इमेज या परसेप्शन की नही है मेरे भाई, आज एक जिला आजमगढ़ बदनाम हुआ है, कल मेरा बनारस बदनाम होगा तो परसों आपका उतरौला, फ़िर नम्बर आएगा हमारे गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश का और फ़िर पूरा हिंदुस्तान. (सवाल उठ खड़े हुये है की पकिस्तान में क्रिकेट खेलने से मना करने वाले भारत में कैसे खेल रहे हैं ).
अगर आपकी लडाई सिर्फ़ इतिहास के पन्नो में कारण ढूँढने तक सीमित नही तो, आपका "fellow Indian" आपके साथ है.
जैदी साहव आपका विचार अच्छा लगा । आपको हमारी फ्रिक है इसे जानकर और प्रसन्नता हुई कि इस भागम-भाग की जिन्दगी में मेरे लिए भी कोई सोचने वाला है । प्रजातंत्र के बारे में मेरे विचार को जानकर आपको चोट पहुंची ...लोकतंत्र की नई परिभाषा जानने की कोशिश कर रहा हूं । आप हमारे विचार से सहमत नही है तो कोई बात नही लेकिन हकीकत को बयां करने में हमें खुशी होती है । पत्रकारिता से जुड़ने के बाद देश की हालात के बारे में बंद एसी कमरे में खबरो पर नजरे जमाए रखता हूं । देश की हालात और मौजूदा बैसाखियो की सहारे चलनेवाली सरकार के बारे में ज्यादा कुछ न कहे तो बेहतर । ये देश खुद चल रहा है ...कांग्रेस सरकार के मंत्री जनता के वोट से जीतकर नही आए है न ही वे चुनाव लड़ने जनता के बीच जाएगे ।इसलिए उन्हे फिक्र नही है ....मसलन इस सरकार को बोट बैक से ज्यादा कुछ सरोकार नही रहा है,खासकर जिसे आप अल्पसंख्यक कह रहे है उन्ही के वोटो के चक्कर में अपना ६० साल बिता चुकी है । जरूरत पड़े तो थोड़ा इतिहास पढिए ...जनाव जहां तक देश के बम धमाको का सवाल है तो पता होना चाहिए कि धमाको और दहशत को अंजाम देने वाले देश में कौन है । जनाव कुछ पचाने की भी छमता रखिए केवल निगल जाने से काम नही चलेगा । विशेष कहना यह है कि अपने विचार को मेरे ब्लांग पर रखे तो ज्यादा बेहतर होगा ।बाजपेयी जी के ब्लांग पर मेरा कमेंट न भेजे । मै अपना ब्लांग आईडी भेज रहा हूं Khalihaan.blogspot.com
सुनील पाण्डेय said
ये पर्दे की पीछे की कहानी है शायद ही किसी को मालूम हो. आपका आलेख पढ़ कर मालूम हुआ...बहुत अच्छा काम आपने किया है..
धन्यवाद
पहली बार ब्लॉग पर आया। कुछ दोस्तों के कहने पर प्रसूण्य जी का लेख पढ़ने। बटला हाउस एनकाउंटर पर। पर लेख के बाद आप तमाम लोगों की जो राय पढ़ी तो खुद से वादा किया कि आइंदा ब्लॉग से दूर ही रहूं। क्योंकि यहां मुझे हर लाइन, हर हर्फ़, हर लफ्ज़ में या तो कोई हिंदू दिखा या कोई मुसलमान। इंसान तो नजर ही नहीं आया। शम्स
सर जी एक चीज जो काबिले तारिफ है वो ये कि ऐसे समय में भी आप ऐसा लेख लिखने का माद्दा रखते हें...आप समझ रहे होंगे की मैं ऐसा क्यूं कह रहा हूं...
मैं लेख पर ना जाकर मुद्दे पर आना चाहूंगा जिसको आपने उठाया है..ये घटना अपने अंदर कई कड़ियां समेटे हुए है ...जिसे परत-दर-परत उचाड़ने पर हमारे ही घाव हरे होंगे...व्यवस्था,पुलिस,मीडिया,बहूसंख्यक और अल्प संख्यक तबका सभी पर उंगलियां उठेंगी..अगर आज समाज का एक तबका खुद को इस समाज या देश का न मानकर प्रतिवाद करने को तैयार हो रहा है तो हमें ये देखना होगा उसकी जमीन कैसे तैयार हो रही है और उसे तैयार करने के लिए असल में जिम्मेदार है कौन.एक साधारण सा उदाहरण जो कि एक बहुत बड़ी कहानी कह देता हैं उससे बताना चाहुंगा..मैं अपनी बात करता हूं खुद पर हिन्दू होने का गर्व करता हूं .. क्या मैं किसी मुस्लिम को अपने घर पर किराये पर रख सकता हूं..क्यों जामिया नगर और उससे लगे इलाके में ही मुस्लिमों की तादाद ज्यादा है...क्या हम खुद मुस्लिमों को दिल से अपने हिस्सा मान पाते हैं?यहां उस व्यवस्था और राजनीति पर भी सवाल उठाना चाहूंगा जिसने आजादी के इतने सालों के बाद भी दोनों कौमों के बीच के खाई को बढ़ाने के सिवाय किया क्या है...यहां अल्पसंखयक तबके के चंद ठेकेदारों (ध्यान रहे यहां पूरे तबके की बात नही कर रहे हैं... देश के लिए दिए उसके योगदान की सफाई उसे देने की जरुरत नहीं होनी चाहिए..देश के लिए उसके बलिदान को मेरा नमन है) पर भी सवाल उठते हैं जो अपने स्वार्थ के लिए देश के खिलाफ षडयंत्र को न सिर्फ बढ़ावा देतें हैं बल्कि उसका पालन पोषण भी करते हैं..न्यायतंत्र और पुलिस भी क्या गरीब और कुचलों को उनका हक दिला पातें हैं...मीडिया भी क्या चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी निभाने में सफल है?तो ऐसे समय में हमें दूसरे को आईना दिखाने से पहले खुद की सूरत आईने में देख लेनी चाहिए...सिर्फ इन पंक्तियों से अपनी बात खत्म करना चाहुंगा
आईए आज इस फर्के नजरिए को मिटा दें
आईए आज इस फर्के नजरिए को मिटा दें
लोग समझते हैं हम और तुम और......
सर जी एक चीज जो काबिले तारिफ है वो ये कि ऐसे समय में भी आप ऐसा लेख लिखने का माद्दा रखते हें...आप समझ रहे होंगे की मैं ऐसा क्यूं कह रहा हूं...
मैं लेख पर ना जाकर मुद्दे पर आना चाहूंगा जिसको आपने उठाया है..ये घटना अपने अंदर कई कड़ियां समेटे हुए है ...जिसे परत-दर-परत उचाड़ने पर हमारे ही घाव हरे होंगे...व्यवस्था,पुलिस,मीडिया,बहूसंख्यक और अल्प संख्यक तबका सभी पर उंगलियां उठेंगी..अगर आज समाज का एक तबका खुद को इस समाज या देश का न मानकर प्रतिवाद करने को तैयार हो रहा है तो हमें ये देखना होगा उसकी जमीन कैसे तैयार हो रही है और उसे तैयार करने के लिए असल में जिम्मेदार है कौन.एक साधारण सा उदाहरण जो कि एक बहुत बड़ी कहानी कह देता हैं उससे बताना चाहुंगा..मैं अपनी बात करता हूं खुद पर हिन्दू होने का गर्व करता हूं .. क्या मैं किसी मुस्लिम को अपने घर पर किराये पर रख सकता हूं..क्यों जामिया नगर और उससे लगे इलाके में ही मुस्लिमों की तादाद ज्यादा है...क्या हम खुद मुस्लिमों को दिल से अपने हिस्सा मान पाते हैं?यहां उस व्यवस्था और राजनीति पर भी सवाल उठाना चाहूंगा जिसने आजादी के इतने सालों के बाद भी दोनों कौमों के बीच के खाई को बढ़ाने के सिवाय किया क्या है...यहां अल्पसंखयक तबके के चंद ठेकेदारों (ध्यान रहे यहां पूरे तबके की बात नही कर रहे हैं... देश के लिए दिए उसके योगदान की सफाई उसे देने की जरुरत नहीं होनी चाहिए..देश के लिए उसके बलिदान को मेरा नमन है) पर भी सवाल उठते हैं जो अपने स्वार्थ के लिए देश के खिलाफ षडयंत्र को न सिर्फ बढ़ावा देतें हैं बल्कि उसका पालन पोषण भी करते हैं..न्यायतंत्र और पुलिस भी क्या गरीब और कुचलों को उनका हक दिला पातें हैं...मीडिया भी क्या चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी निभाने में सफल है?तो ऐसे समय में हमें दूसरे को आईना दिखाने से पहले खुद की सूरत आईने में देख लेनी चाहिए...सिर्फ इन पंक्तियों से अपनी बात खत्म करना चाहुंगा...
आईए आज इस फर्के नजरिए को मिटा दें
आईए आज इस फर्के नजरिए को मिटा दें
लोग समझते हैं हम और तुम और......
yahan koi bhi kisi sampraday vishesh ka virodh nahi kar raha. sab atankvadi ghatnaon ka, usko anjaam dene walon ka aur iska jane anjane samarthan karne walon ka virodh kar rahe hain. ghatna ho jati hai to polish doshi... apradhi pakade nahi jate to polish doshi.... apradhi pakre jate hain to polish doshi...... kya kare bechari pulish...? hame, khas kar media ko unka hausla aafzai karni chahiye.
एक बात तो है कम से कम यहाँ लोग अपनी झिझक छोड़कर बात तो कर रहे हैं , अच्छा कुछ तो बर्फ गलेगी, बहस के बाद निकला गुबार तो लोगो में भाईचारा पैदा करेगा.
स्येदैन भाई, अविनाश भाई, डॉ. अनुराग, पार्थ प्रतिमजी, दूसरे अनुराग भाई और अन्य मुखर वक्ताओं को साधुवाद कम से कम आप सभी ने मौलिकता के साथ, बेलौस, खुलकर अपने दिल की बात तो की. उम्मीद है यह बहस सार्थक मोड़ लेगी और सभी इस बहस को इसके सही मायने में लेकर इसके सार्थक पहलुओं पर ध्यान देंगे.
यहाँ तो छोटे परदे पर माफियाओं की खबरें देने वाले खबरों के माफिया आए और सिर्फ़ हिंदू, मुसलमान का तमगा भेंटकर, यहाँ से चले गए, चले गए या कछुयों की तरह अपने खोल में अपना सर छिपा कर बैठ गए.
भइया, ये ब्लॉग है जहाँ लोग बिना भय के बोल रहे हैं, यहाँ इंसान ही लिखकर मौलिकता के साथ बोलता है. इंसान का चेहरा, क्रोमा की वर्चुअल दुनिया, एडिटेड तस्वीरें और पकाई गई खबरें नही बोलती.
वरना टी आर पी के चक्कर में में लोग ज़रायाम की ही खबरें घुमा फिरा के दिखाते हैं . कंटेंट कम पड़ जाए तो नेशनल जेओग्रफिक से चुराकर एयर क्रेश इन्वेस्टीगेशन दिखायेंगे.
होना तो यह चाहिए की लोगों को ब्लॉग पर ज्यादा आना चाहिए और टी वी को कम देखना चाहिए, जहाँ खबरें बनाई और पकाई जाती हैं
वहां तो अपना मकड़ जाल फैला ही रखा है, आवाम की आवाज़ का गला घोंट रखा है, अब क्या यहाँ भी बोलने की आज़ादी पर रोक लगाओगे. कहीं ऐसा तो नही कि अपने पुराने वरिष्ठ सहयोगी को सलामी बजाने आए और यहाँ गरमा गरम बहस देख कर पतली गली से निकल गए.
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मै बड़ी ही धृष्टता के साथ सभी पत्रकार बंधुओं को खुली चुनौती देता हूँ. भइया पत्रकार हैं तो जाइए अपनी टीम के साथ और उजागर करें की लखनऊ में फ्लाई ओवर गिरने की ख़बर किस तरह दबाई गयी. फ्लाई ओवर तो गिरकर लोगों को दबा गया और पत्रकार बंधुओं ने वो ख़बर ही दबा कर हलकी कर दी.
शाम को मरने वालों की संख्या ७ थी और बढ़ने की उम्मीद थी अचानक सुबह तक वो ३ हो गई, कमाल है पत्रकारिता अचानक भौंडी कॉमेडी में हँसी के फुहारे दिखाते दिखाते मैजिक शो दिखाने लगी जिसमे लाशें ही गायब हो जाती हैं (या सुबह तक कुछ मृतक जिंदा हो गए )......
धन्य हैं राजनेता,धन्य हैं उनके चाटुकार अफसर और चाटुकार _______ क्या लिखकर और शर्मिंदगी का और एहसास कराऊँ !!!!!
waah vajpayeeji sahi line par jaa rahe hain....lage rahiye....
Amar Singh aur mulllayam singh se secular hone ka certificate to mil hi jayega....
MC Sharma jaise jawan to shaheed hone ke liye hi hai ....
malaayee khane ke liye aap ke jaise ptrakaar aur politicians hi hain....
ye desh ab rahne layak nahi rah gaya hai....lekin sawal ye bhi hai ki insaan kahan jaye....aapki daarhi ho ya na ho aap maare jayenge.
Avichal
पुण्य प्रसून जी आपको बहुत-बहुत बधाई क्योंकि आज आपने एक इतिहास रच दिया... ब्लॉगजगत में शायद आप पहले पत्रकार हैं जिसके किसी लेख पर 100 कमेंट आ चुके हैं... आप ऐसे ही विवादास्पद और देशद्रोह से ओतप्रोत लेख लिखते रहें और आपको खूब ढ़ेर सारे कमेंट मिलते रहें..पुनश्च बधाई..
पिछले दिनों पटना में मोदी जी की सभा मे सिरियल विस्फोट हुआ था। उसकी इनक्वायरी मे रांची के एक लाज से कुछ विस्फोटक मिला था, और विस्फोटक जिस कमरे से मिला था, उसमे रहने वाला लड़का घर और समाज की नजर मे UPSC कि तैयारी कर रहा था। यदि पुलिश से मुठभेड़ होती और ईश्वर ना करे वह मारा जाता तो आप जैसे पत्रकार और मीडिया हाथ धोकर उस लड़के को होनहार प्रतिभाशाली और ना जाने क्या क्या बताने पर लग जाते। उसकी बचपन से जीवनी दिखायी जाती और मुठभेड़ को फर्जी बताने पर आमादा हो जाती। सोहराबुद्दीन के केश पर आज तक खबर आती रहती है, पर किसी चैनेल ने यह नही दिखाया कि सोहराबुद्दीन कौन था, उसके जनाजे के साथ उसके गाँव मे कितना भारत विरोधी नारे लगे थे। आज बिना पुक्ता सबुत के पुलिश आतंकवादीयों/दहशत्गर्दो पर हाथ डालने मे घबराती है, (मुस्लिम हुआ तो) श्रीनगर मे एक फिल्म के सुटिंग के दौरान तिरंगा को फहराने नही दिया जाता है उसे जला दिया जाता है, प्रिट मिडिया मे खबर आयी पर किसी राष्ट्रीय न्युज चैनेल का ब्रेकिंग न्युज नही बन सका। पिछले 10 दिनो से एक लडकी की जासुसी जैसा मामुली न्युज मुख्य समाचार बना हुआ है। आप जैसे सम्मानित और वरिष्ट पत्रकार भी आँख मुंदकर आतंक का समर्थन और पुलिश की बहादुरि पर अविश्वास का लेख लिखेंगे तो इस देश मे युं ही बम विस्फोट होता रहेगा।.
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