इंदिरा गांधी होतीं तो पाकिस्तान के आतंकवादी कैपों पर 28 नवबंर को ही हमला बोल देतीं। मुंबई हमलों में आतंवादियों को मार गिराये जाने की खबर के साथ ही दुनिया तब पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सैनिक कार्रवाई की खबर सुनता। लेकिन देश में लीडरशीप है नहीं तो घुडकी का अंदाज भारत की कूटनीति का हिस्सा बना हुआ है। समूची कूटनीति का आधार देश के भीतर बार बार यही संकेत दे रहा है कि चुनाव होने है...उससे पहले सरकार बांह चढाकर आम वोटरों की भावनाओं में राष्ट्रप्रेम का चुनावी संगीत भरना चाहती है...समूची कवायद इसी को लेकर हो रही है।
करगिल के जरिए जो काम एनडीए सरकार कर सत्ता में बनी रही, वैसा ही कुछ यूपीए सरकार भी करके सत्ता में बने रहने के उपाय ही करना चाह रही है। दरअसल, यह सारी सोच आम जनता के बीच चर्चाओं में जमकर घुमड़ रही है। पहली बार देशहित या राष्ट्रप्रेम को भी चुनावी रणनीति में लपेट कर कूटनीति का जो खेल खेला जा रहा है, उससे यह तो साफ लगने लगा है कि राजनीति अपने सत्ता प्रेम को पारदर्शी बनाने से भी नही कतराती। और जनता हाथों में हाथ थाम कर या मोमबत्ती जलाकर ही अपने आक्रोष को शांत करना चाहती है। टेलीविजन स्क्रीन पर वाकई रंग-रोगन कर तीखी बहस के जरिए देश पर हमले का जबाब देने को उतारु है।
जाहिर है इन सभी के पेट भरे हुये है और सुरक्षित समाज में सत्ता के करीब रहने का सुकून हर किसी ने पाला है तो युद्दोन्माद की स्थिति बरकरार रख जीने का सुकून सभी चाहने लगे हैं। सरकार से इतर बाकि राजनीतिक दल क्या कर रहे हैं, यह कहीं ज्यादा त्रासदी का वक्त है। जो आरएसएस
1961 में चीन युद्द के दौरान जनता और सेना का मनोबल बढाने के लिये समाज के भीतर और सीमा पर सैनिकों के साथ खड़ा हो गया था, वह अब इस मौके पर आडवाणी की ताजपोशी की रणनीति बनाने में जुटा है। चीन युद्द के दौर में भारतीय सैनिकों के पास गर्म जुराबे तक नहीं थीं। हाथ में डंडे और दुनाली से आगे कोई हथियार नहीं था। उस वक्त आरएसएस गर्म कपड़े सैनिको में बांटा करता था। समाजवादी और लोहियावादी नेता नेहरु-मेनन की नीतियो के खिलाफ खुले रुप में खड़े हो गये थे। मेनन को तभी नेहरु ने हटाया भी। चीन को लेकर उस दौर में समाजवादी-लोहियावादी नेहरु की वैदेशिक नीति के खिलाफ थे। उसी विरोध के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने वैदेशिक नीति में अंतर लाया। वहीं अब खुद को समाजवादी-लोहियावादी कहने वाले सरकार से राजनीतिक सौदेबाजी का हथियार भी राष्ट्रहित को बनाने से नही चूक रहे।
हां, अभी के वामपंथियो को लेकर अच्छा लग सकता है कि वह किसी भूमिका में नहीं है । क्योंकि चीन युद्द के दौरान वामपंथी सीमा पर रहने वाले लोगो को राहत देने के लिये पार्टी सदस्य बनाकर कार्ड होल्डर बना रहे थे और कह रहे थे जब चीनी सैनिक आयें तो उन्हे यह लाल कार्ड दिखा दें, जिससे वामपंथी होने के तमगे पर उन्हे कोई कुछ नही कहेगा। असल में पाकिस्तान को लेकर कौन सी कूटनीति अब अपनायी जा रही है, जिसमें अमेरिका के बगैर भारत कुछ कर नही सकता और जबतक चीन पाकिस्तान के साथ खडा है अमेरिका कुछ कह नहीं सकता ।
26 नबंबर 2008 यानी मुबंई हमलो के बाद के सवा महिनों में अमेरिका और चीन की सक्रियता भी गौर करने वाली है । हमलों के तुरंत बाद अमेरिकी विदेश मंत्री कोडलिजा राइस ने दिल्ली होते हुये इस्लामाबाद की यात्रा की । बचते-बचाते जिस तरह के बयान राइस ने दिये, उसमें दिल्ली यात्रा के दौरान भारत खुश हो सकता है और इस्लामाबाद यात्रा के दौरान पाकिस्तान को थर्ड पार्टी के होने की गांरटी मिल सकती है। यानी अमेरिकी हरी झंडी के बगैर भारत कुछ नहीं करेगा उसके संकेत राइस ने इस्लामाबाद यात्रा के दौरान ही दे दिया । लेकिन अमेरिकी कूटनीति की जरुरत पाकिस्तान है, इसलिये राइस के बाद अमेरिकी मंत्रियो और अधिकारियो की यात्राओं का सिलसिला थमा नहीं। जान मैकेन भी इस्लामाबाद पहुचे और सुरक्षा अधिकारियो के लाव-लश्कर के अलावा अमेरिकी रक्षा टीम ने पाकिस्तान का दौरा किया। हर यात्रा के बाद यही रिपोर्ट अमेरिकी मिडिया में निकल कर आयी कि भारत और पाकिस्तान के बीच सैनिक कार्रवाई की छोटी सी भी शुरुआत अमेरिका के 9-11 के बाद की पहल को खत्म कर देगी । जो अफगानिस्तान के भीतर और बाहर पाकिस्तान के सहयोग से नाटो फौजें कर रही हैं । पाकिस्तान के लिये भी कूटनीतिक सौदेबाजी में अमेरिका की कमजोरी से लाभ उठाना है। और उसने उठाया भी। भारत किसी तरह की सैनिक कार्रवाई नहीं करेगा । सिर्फ घुडकी देते रहेगा...तभी अल-कायदा और कट्टरपंथी कबिलायियों के खिलाफ पाकिस्तान की फौज नाटो को मदद जारी रख सकती है। लेकिन पाकिस्तान की रमनीति यहीं नहीं रुकी । जिन कबिलायी गुटों ने पिछले तीन महिनों से सीजफायर किया हुआ था, उन्होंने दुबारा युद्द का ऐलान कर दिया। पाकिस्तान के दौरे पर पहुंचे अमेरिकी सेक्रेटरी आफ स्टेट रिचर्ड बाउचर के सामने पाकिस्तान ने इससे पैदा होने वाली परेशानी को रखा।
बलूचिस्तान में सक्रिय विद्रोही कबिलाइयों को लेकर 2 दिंसबर को पहली बार पाकिस्तान के सेना प्रमुख असफाक कियानी ने यही कहा था कि कबिलाईयो के साथ तो बातचीत कर उन्हे समझाया जा सकता है लेकिन भारत ने किसी तरह की सैनिक पहल की तो पाकिस्तान की एक लाख फौज तत्काल एलओसी पर तैनात कर दी जायेगी । बाउचर ने पाकिस्तान की पीठ सहलायी और राष्ट्रपति जरदारी ने यह कहने में कोई देर नहीं लगायी कि रिचर्ड बाउचर की वजह से अमेरिका के साथ पाकिस्तान के द्दिपक्षीय संबंध खासे मजबूत और विकसित हुये है, इसलिये हिलाल-ए-कायदे-आजम सम्मान बाउचर को दिया जायेगा । महत्वपूर्ण है कि यह वही वाउचर हैं, जिन्हे अमेरिका के साथ भारत के परमाणु डील होने के बाद पाकिस्तान में ही यह कहते हुये लताडा गया था कि वह पाकिस्तान के हित को अनदेखा कर भारत के पक्ष में ही रिपोर्ट तैयार करते हैं। वहीं इस दौर में भारत और अमेरिका किस रुप में नजर आये इसका नजारा अबतक की सबसे बडी हथियारो की डील के जरीये सामने आया । नौसेना के लिये भारत ने अमेरिकी प्राइवेट कंपनी के साथ आठ मेरीटाइम एयरक्राफ्रट खरीदेने पर हस्ताक्षर किये । 600 नाउटीकल मील तक मार करने वाले इस एयरक्राफ्रट की पहली डिलीवरी चार साल बाद होगी और सभी एयरक्राफ्रट 2015-16 तक मिलेगे । लेकिन महत्वपूर्ण यह नही है , ज्यादा बड़ा मामला आर्थिक मंदी के दौर में इस सौदे की रकम है जो 2.1 बिलियन डालर की है । यानी दस हजार करोड़ की रकम का मामला है। ये रकम चार किस्तों में भारत देगा। अमेरिका के लिये कूटनीति का यही पैमाना भारत और पाकिस्तान को अलग करता है। पाकिस्तान दुनिया के पहले तीन देशो में आता है, जिनका सैनिक बजट सबसे ज्यादा है । जीडीपी का करीब साढे सात फिसदी । लेकिन पाकिस्तान के हथियारों की पूंजी उसके अपने विकास से नहीं जुड़ती बल्कि अमेरिका-चीन और अरब देशो के साथ कभी रणनीति तो कभी कूटनीतिक आधार पर पूंजी समेटने के आधार पर जुड़ती है। वहीं भारत का हथियारो पर खर्च उसके अपने विकसित होते पूंजीवादी परिवेश से निकलता है।
सरल शब्दो में अपनी कमाई का हिस्सा भारत को हथियार पर लगाना है और पाकिस्तान को कमाई के लिये हथियार खरीदने की स्थिति बनानी है। अमेरिका के साथ चीन की सक्रियता भी मुबंई हमलो के बाद समझनी होगी । चीन के उप विदेश मंत्री हे याफी दिल्ली पहुंचने से पहले इस्लामाबाद में थे । दिल्ली में उन्होंने पाकिस्तान को सौंपे गये सबूतो को लेकर या आतंकवादी हिंसा को लेकर कुछ भी कहने से साफ इंकार कर दिया । सिर्फ आर्थिक सुधार के मद्देनजर दोनो देशो के संबंधो पर चर्चा की । लेकिन इस्लामाबाद पहुंचते ही याफी ने साफ कहा कि पाकिस्तान खुद दोहरे आतंकवाद से जुझ रहा है,अल-कायदा और कट्टरपंथियो की हिंसा से। इसलिये दुनिया को पहले पाकिस्तान को आतंकवाद से मुक्ति दिलाने का प्रयास करना चाहिये। जाहिर है चीन की कूटनीति भारत को उस दिशा में ले जाना चाहती है जहां पाकिस्तान अमेरिका के करीब आये और अमेरिक की कूटनीति भारत को चीन से दूर ले जाती है। इन परिस्थितयों में भारत आतंकवाद के घाव से कैसे बचेगा और आतंकवाद से सही ज्यादा खतरनाक जब देश की संसदीय व्यवस्था में सत्ता का जुगाड़ हो जाये तो पहले किस आतंकवाद से कैसे लड़ा जाये पाकिस्तानी आतंकवाद या देशी राजनीतिक आतंकवाद से ।
14 comments:
बहुत उचित बात कहि आपने लेकिन इन नेताओं पर अंकुश केसे लगाया जाये केसे इन्हें नंगा क्या जाये शाय्द मीडिया ये काम कर सकता है मगर-----क्या करें-आप जेसे सचेत लोगओण की कमी है
बाजपेयी जी आपने सही कहा है । हर जगह यही चचाॻ है कि लोकसभा चुनाव नजदीक होने के कारण भारत सरकार पाकिस्तान के साथ युध्द का राग अलाप रही है । युध्द की जो स्थिति बनी थी उसे भारत ने खुद गवा दिया है ..अमेरिका के हाथ में रिपोटॻ सौपकर भारत सरकार अब यह सोच रही है कि अमेरिका किसी तरह की कारवाई करेगा । लेकिन अमेरिका तो दो ढ़ारी तलवार लिये खड़ा है । भारत से इस्लामाबाद और इस्लामाबाद से भारत आते-आते अमेरिका और चीन के नेताओ के बयान उलट जाते है । ऐसी स्थिति में क्या कहा जाय कि विश्व समुदाय मुम्बई हमलो के बारे में सुनेगा और पाक को खरी खोटी सुनाएगा । अमेरिका जैसा दोस्त हो तो दुश्मन की क्या आवश्यकता है । अपन देश के नेताओ का तो कहना ही क्या । हमारे बदले अब अमेरिका ही कारवाई करेगा । आपका धन्यवाद
आपकी इस खरी-खरी के हम भी कायल हैं.
बहुत खूब.
द्विजेन्द्र द्विज
हम लेखक पाकिस्तान को चेतावनी अपनी कलम से दे सकते हैं। नेताओं को नींद से जगा सकते हैं, पर जागे हुए नेताओं को कैसे जगाएं।
पड़ौसी देश से
कुछ सीख ले इंसानियत तेरा विश्व में सम्मान हो
हम नहीं चाहते तुम्हारा नाम कब्रिस्तान हो
विध्वंश की बातें न कर और छोड़ आदत आसुरी
न रहेगा बांस और फिर न बजेगी बांसुरी
उड़ चली अग्नि अगर आवास अपना छोड़कर
मेट देगी फिर तुम्हें वो दिल जिगर को फोड़कर
इंदिरा गांधी होतीं तो यह कर देतीं, इंदिरा गांधी होतीं तो वह कर देतीं. अजी छोडिये , जो नहीं हैं उनकी बात क्या करना. जो हैं उनकी बात करिए. मनमोहन जी और उनकी पीठ पर बैठी इंदिरा गांधी की पुत्रवधू क्या कर रही है, और क्या नहीं कर रही है, यह असली बात है. अपन एक आम आदमी हैं. अखबार में पढ़ते हैं इस्राइल के बारे में और अपने देश भारत के बारे में. कुछ अच्छा नहीं लगता.
Respected Bajpeyee ji,
Hamara desh pichhale dinon jin sthitiyon se gujara hai,un halaton men hamara desh kya kare ..kya na kare..iska sahee nirnaya lene ka madda hamare vartaman netaon men naheen hai.Aise men hum,ap sirf Indira ji,Lal bahadur shastree ji ko hee yad kar sakte hain.
Vartman samaya men mujhe to naheen lagta ki hamara koi neta America se alag hat kar kuch soachne ya nirnaya lene kee himmat dikha sake.
Mumbai hamle ke turant bad har party ne jis tarah se us aag men rotiyan senknee shuroo kar diya hai us par yahan kee janta,yahan ke buddhi jeeviyon ko jis tarah react karna chahiye ,sarkar kee neetiyon par virodh darj karana chahiye vah bhee to naheen ho raha hai.
Pata naheen yahan kee janta kis bat ka intjar kar rahee hai.vo kyon naheen poochhtee in khaddardhariyon se ki ..kab tak..akhir kab tak ham sahan karte rahenge pakistan kee ye dadageeree.
apka prashna bilkul vajib hai ki ham laden kisase...pakistanee atankvad se ya deshee atankvad se..?
Naye varsh kee shubhkamnaon ke sath.
Hemant Kumar
Kuchh nidan aur gugar par lekh likhe. Janta kya chahti hai in netao se. Kyun janata gundo-mabali aur uchchakko ko VOTE karati?
प्रसून भैया,
आपने जो भी लिखा ठीक ही लिखा, दर-असल आज कल की राजनीति तुष्टी-करण के सिद्धान्तों पर चल निकली है । हर राजनेता किसी भी काम को करनें से पहले अपने फ़ायदे और नुकसान का आंकलन कर लेना चाहता है । अब हाय हाय पीट रहे हैं मगर संवेदना कितनी है जनता को लेकर यह तो सभी को पता चल ही रहा है ।
आपके आलेख ने कम से कम आम आदमी के मन में एक चेतना का संचार तो किया है, उसके लिए धन्यवाद.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, अलविदा २००८ और
2009 के आगमन की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करे,
Welcome to the Cg Citizen Journalism
The All Cg Citizen is Journalist"!
प्रसून जी एक बार आपका आलेख पढने के बाद मैने आपको मुस्लिम लीग का ठहराया था....लेकिन आज की पोस्ट पढकर लगता है कि मै गलत था इसलिए आज अपने उन शब्दों को वापस लेता हूँ....इस पोस्ट के जरिये आज आपने एक आम राष्ट्रवादी भारतीय के मन की बात कही है.....साधुवाद....
सर मेंने आपकी छत्तीसगढ़ पे लिखी स्टोरी पढ़ी उसी से प्रभावित हो के में ने यह प्रयास किया है आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है हिन्दी में भी परेशनी हो रही है सो जायदा नही लिख रहा हू पर आपके से मुझे बहुत कुछ कहना है । नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, अलविदा २००८ और
2009 के आगमन की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करे,
Welcome to the Cg Citizen Journalism
The All Cg Citizen is Journalist"!
आदरनीय भारत के भाग्य विधाता,
नेता जी
अब तो बस किजिए जितनी पीङा मुंबई में हुए आतंकी घटनायों से नही हुई उससे कही अधिक पीङा आप सबों के अर्नगल बयान बाजी से हो रही हैं।
आम भारतीय अपमान के साथ जीने की कला सीखने लगा हैं।मेहरवानी करके अमेरिका की बात न करे।अमेरिका के बल पर भले ही आप की नयी अर्थनीति चल रही हो लेकिन आम भारतीयों के जीवन शैली से अमेरिकी मानसिकता अभी भी कोसो दुर हैं।अमेरिकी परस्त बने रहना आप की मजबूरी हो सकती हैं आम भारतीय को इसकी मजबूरी नही हैं।
आम भारतीयों ने कभी गांधी के रुप में तो कभी सचिन के रुप में तो कभी कल्पना चावला के रुप में विश्व के मानस पटल पर भारतीयता का परचम लहराता रहा हैं।और जलील मत करे समय आयेगा तो एक आम भारतीय अपनी प्रतिभा और कौशल से अमेरिका की दोगली नीति और चीन के अहंकार का मुंहतोङ जबाव देगा।आप अपनी राजनीत करे और देश के सफल प्रधानमंत्रीयों की सूची में नाम दर्ज कराये इन्ही शुभकामनाये के साथ
आपका
आम भारतीय
hamari kamjor videsh niti, aatankwadiaoo ko saja nahi dilane ka ek karan hai, par jab tak hamre politicians sarifii ka chola udheye rahenge tab tak 26 november jaise hadsey hote rahenge........
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