किसानों की जमीन पर सपनों के शहर का सपना
कर्नाटक के रेड्डी बंधुओ पर आरोप है कि उन्होंने अवैध खनन के जरीये करीब 60 हजार करोड़ का चूना सरकार को लगाया। छत्तीसगढ की रमंन सरकार पर आरोप है कि उन्होंने विकास के नाम पर अवैध खनन की इजाजत आधा दर्जन कंपनियों को दी, जिसमें करीब 5 लाख करोड़ के वारे न्यारे हो गये। झारखंड में मधु कोडा ने मुख्यमंत्री रहते हुये इसी तरह करीब 90 हजार करोड़ के वारे न्यारे किये और उड़ीसा में तो सिर्फ पास्को में ही 50 हजार करोड़ के वारे न्यारे हुये। कमोवेश हर राज्य में विकास की लकीर खींच कर जिस तरह चंद हाथों को मुनाफा कमाने का लाइसेंस देते हुये सरकार भी करोड़ों का वारे-न्यारे करते हुये अपनी राजनीति को साधती है, उससे अब यह साफ होता जा रहा है कि सत्ता का मतलब उस अर्थव्यवस्था को पोसना है, जिसमें एक तबका ही राज्य है। उस तबके की जरुरत, उसकी सुविधा और अर्थव्यवस्था का ढांचा कुछ इस तरह मिला हुआ हो कि देश को इन हाथों में बेचने पर भी खूशबू विकास की ही आये। यानी इस घेरे में किसान, आदिवासी, ग्रामीण, मजदूर जैसे तत्व मायने ना रखें।
इतना ही नहीं इन तत्वों को कीड़े-मकौडे की तरह मसल कर इन्हीं की जमीन पर विकास का ढांचा कुछ उस तरह खड़ा किया जाये, जिससे लगे कि देश प्रगति की राह पर है। प्रगति की यह राह बनायी कैसे जाती है, उसका एक चेहरा दिल्ली से सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बीच बहती हिंडन नदी के किनारे करीब पांच सौ एकड़ जमीन के आसरे समझने की कोशिश कीजिये। हालांकि यहा हरित जमीन तकरीबन एक हजार एकड़ है, जिसमें खेती भी होती है और कई गांवों के लोगों का पेट भी इसी खेती के आसरे भरा जाता है। करीब दो हजार पेड़ भी यहां मौजूद है और हिंडन नदी का पानी भी सिंचाई में मदद करता है। यानी दिल्ली से महज बीस किलोमीटर की दूरी पर खड़े होकर कोई भी यह महसूस कर सकता है कि कंक्रीट के जंगल से इतर खुली हवा और खेत-खलिहान का मतलब भारत जैसे देश में क्यों महत्वपूर्ण है और अभी तक यही वातावरण देश में कई पीढियों का पेट कैसे भरते आया है । और सोना उगलने वाली इसी जमीन के आसरे आजादी के लिये संघर्ष का बिगुल भी देश में बजा और दुनिया के सबसे संपन्न और उन्नति वाले देश के होने का सपना भी सपना के बाद देश ने देखा।
खैर सपने को छोड़िये और अब वापस इस एक हजार एकड़ वाली हरी-भरी जमीन पर लौटिये। महज तीन साल बाद यानी अगले आम चुनाव के वक्त यानी 2014 में अगर इस जमीन को देखने आप पहुंचेंगे तो आपको सिवाय कंक्रीट के यहां कुछ नहीं मिलेगा। उन हजारों हजार किसानों को भूल जाईये, जिनका पेट यह जमीन भरती होगी। इसके उलट 25 हजार लोगों के लिये यहा 50 लाख करोड़ का एक ऐसा एशगाह बन चुका होगा, जिसमें विकास की चकाचौंघ का हर सपना मौजूद होगा। और अगर कुछ नही होगा तो वह जमीन, जो आज भी अन्न देती है। लेकिन इस सपने के शहर में पैकेट बंद चावल, गेहू और दाल की आधुनिक दुकान भी होगी, जिसमें अमेरिका और जापान का अन्न बिकेगा। और इसे खरीद पाने की हैसियत वाले इंडिया की छवि यहां दिखायी देगी। किसान-मजदूर-आदिवासी-गांव जैसे शब्द कितने छोटे लगते है कंक्रीट के इस मुनाफे के खेल में और कैसे एक तबका इसमें शरीक हो जाता है और विकास की उस लकीर पर सहमति का ठप्पा लग जाता है, यह समझना कहीं ज्यादा जरुरी है। जिस 500 एकड़ हरित जमीन को उत्तरप्रदेश सरकार ने विकास के लिये हड़पा, उसके एवज में सरकार को सिर्फ दस करोड़ देने पड़े। यानी औसतन दो लाख रुपए प्रति एकड़। यह अलग सवाल है कि अभी इतना भी नहीं दिया गया है । लेकिन यह जमीन यूं ही सरकार को नजर नहीं आयी कि इस पर सपनों का एकशहर बना दिया जाये बल्कि रियल इस्टेट का धंधा करने वालो की पैनी निगाह इस जमीन पर गयी और उन्होंने इस जमीन की कीमत 500 करोड़ लगायी। यानी एक करोड़ रुपये एकड़। यानी सरकार को जमीन के एवज में मिले 490 करोड़। और जमीनों के मालिको को मिले दस करोड़ रुपये। पांच सौ करोड़ रुपये कोई रियल स्टेट वाला कैसे कैश दे सकता है और खासकर मामला जब ब्लैक का हो तो। यानी 490 करोड़ कहां से आये और कौन दे रहा है और कौन ले रहा है जब यह किसी दस्तावेज में लिखा हुआ नहीं है तो जमीन का खेल यहां रुकेगा भी नहीं। फिर सपनो के शहर को बसाने का मॉडल तैयार कर करीब बीस हजार घर बनाने की प्लानिंग हुई। जनवरी 2010 में बिल्डरों के हाथ जमीन आयी और अगले ही महीने यानी फरवरी से ही करोड़ों के वारे न्यारे का खेल शुरु हुआ।
सपनो का शहर कितनी कम कीमत में दिल्ली से सटा हुआ होगा। इसके प्रचार प्रसार में दस करोड़ रुपये तीस दिन के भीतर फूंक दिये गये। यानी होर्डिंग से लेकर पर्चे और क्षेत्रीय अखबारो से लेकर राष्ट्रीय समाचार पत्रो में विज्ञापन । और मार्च से ही घरो की बुकिंग शुरु हो गयी। मंदी में रियल स्टेट को लगे झटके की वजह से पहला बड़ा खेल शुरु करने के लिये घरों की जो रकम तय की गयी उसमें 9 लाख रुपये लेकर 50 लाख रुपये तक के घरो की बुकिंग शुरु हुई। मार्च से जून तक के दौरान ही पहले दस हजार घरों की बुकिंग ने ही बिल्डरों को इसके संकेत दे दिये कि अब खेल बड़ा किया जा सकता है तो जुलाई में अगले पन्द्रह हजार घरो की बुकिंग में उन्हीं घरो की कीमत से पचास से सौ फिसदी तक का इजाफा हो गया। यानी मार्च में जो घर 9 लाख रुपए का था, वह जुलाई में साढे तेरह लाख और जो घर 50 लाख का था वह जुलाई में एक करोड़ का हो गया।
इसी तरीके से 12 लाख वाल घर 18 लाख तो 18 लाख वाला 26 लाख रुपये का हो गया । यह सिलसिला 23 लाख, 28 लाख, 33 लाख और 40 लाख रुपये वाले घर के साथ भी हुआ जो मार्च में था और जुलाई या उसके बाद घर बुकिंग कराने वालो को क्रमश 32 लाख, 41 लाख , 52 लाख और 72 लाख में पड़ा । यानी छह महीने में ग्रोथ का यह अदभूत रुप कैसे इजाद हुआ यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि इस सपनों के शहर के मॉडल को अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार का लाइसेंस नहीं मिला है। यानी योजना अभी पास हुई नहीं है और तीस हजार घरों को लेकर एक लाख करोड़ रुपये की बुकिंग सिर्फ घरो की कर ली गयी। इसके सामानातंर मल्टीप्लेक्स , स्टेडियम, पांच सितारा होटल , पांच सितारा अस्पताल, स्कूल, पेट्रोल पंप से लेकर अत्याधुनिक शॉपिंग माल को बुक करने का खेल भी शुरु हुआ। जिसकी बुकिंग के जरीये करीब पांच लाख करोड़ का खेल झटके में हो गया। बात यही खत्म नहीं होती। दूसरे फेस की जमीन में से बिल्डर ने दो प्लॉट भी बेचे। यानी सपनों के शहर के भीतर भी रियल स्टेट ने अपने सहयोगियो को पैदा किया। 50 एकड़ का यह प्लाट भी 300 करोड़ में बिका। जो किसानो से एक करोड़ में लिया गया था। अब सवाल है जो कुल जमीन किसानों से 10 करोड़ में ली गयी उस पर छह लाख करोड़ तुरत फुरत में जुटा लिये गये। और जिन लोगो ने इन घरो की बुकिंग की या कहें बहुत होशियारी से बिल्डरो ने सत्ता के ताने-बाने को समझते हुये जिस तबके को इसमें घेरा, वह खेल भी निराला है।
नौ लाख के इक्नामी प्लैट से लेकर एक करोड़ के विला को बुक कराने वाले में देश का राजनेता,क्रीम बुद्दीजिवी , पत्रकार,नौकरशाह से लेकर कानून और न्याय की गोटी तय करने वाला भी शरीक हैं। खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के लोगो की ही फेरहिस्त देखे तो 16 सांसद , 65 विधायक, 125 आईएस, 95 आईपीएस, 600 सरकारी नौकरशाह, 345 पुलिसकर्मी, 1200 कारपोरेट में नौकरी करने वाले न्यायपालिका से जुडे 19 लोग और दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार के 64 पत्रकार भी हैं। तीन राष्ट्रीय न्यूज चैनलो को तो बुकिंग के लिये कारपोरेट छूट का ऐलान किया गया। राजनेताओ के लिये तो शुरु में संसद विहार नाम से दरअसल एक इमारत खड़ा करने का विचार था । लेकिन यह सोच चल नहीं पायी और राजनेताओ ने ही इस पर अंगुली उठा दी। जारी..........
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Monday, August 23, 2010
10 करोड़ के मुआवजे पर 6 लाख करोड़ का धंधा
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:23 PM
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नोएड़ा किसान
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12 comments:
क्या कहें जब प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे सम्माननीय,कार्यवाही तथा देश की निगरानी की जिम्मेवारी वाले पदों पर बैठा व्यक्ति ही कार्यवाही के प्रति आँखें मूंद ले तो इश देश में जो नहीं हो रहा है वही बहुत है ,कोमनवेल्थ गेम में घोटाला या ऐसा खनन घोटाला की जानकारी PMO को ना हो ये हो ही नहीं सकता ...शर्म आती है इस देश की व्यवस्था तथा इस देश के नागरिक होने पर ...
अजीब बात है न हमारी सहन शक्ति कितनी बढ़ गयी है ...अब हमें कोई भ्रष्टाचार ....कोई घटना आवेशित नहीं करती .....हमारी अपनी व्यस्त्त्ताये है ....हमारे सरोकार अब निजी रह गए है ......
मुझे याद आयी नोएडा में हुई उस समय (2006-07)की सबसे बड़ी ज़मीन नीलामी की घटना जिसमे शायद 10 एकड़ जमीन के दाम 3000 करोड़ रुपये लगे थे!
10% की आर्थिक रफ्तार से बड़ना है तो ऐसे खेल तो और होंगे.. और बड़े स्तर पर होंगे...
"कबीरा खड़ा बाज़ार में..." का अब तो यही मतलब निकलेगा!!
Sir i m great fan of urs. Sir Aapne zee news par khabar dikhaya tha ki MP ki Sailary badhni chahiye ki nahi. mere khyal se wo (Poltician)kehte hain ki wo Janta ke Sewak hain. Yani ki Samajsewi aur samajsewiyon ki to sailary nahi hoti.In logon ko itni sari Feslities milti hain to phir sailary ki kya jarurat. Ager inhe sailary chahiye to Phir inse wo sari Feslities wapas le leni chahiye. aana-jana free, Ferniture free phone free ghar free. phir sailary kis baat ki. Aur waise bhi o apne chetra se itna kama lete hain ki unko kisi ke jarurat nahi hoti. Sirf Bank Balance karne ke liye diya jaye. MP ki Sailary 50,000/- aur unke chhetra ki janta 60% Belo Poor Line. Kya yeh hain loktantra.
Aaj is desh ka durbhagay hai ki jishe sirf luta aur luta gaya. Pahle muslim luteron ne luta, phir angrejon ne aur aaj apne lut rahen hain. Aur is trah lut rahe hai ki angrej bhi sharm se pani-pani ho jaye. Pata nahi is desh ko kab tak tula jayega. Humara desh ajaad jarur hua mager phir se gulam banne ke liye. Aaj humare neta kya luteron aur angrejon se kam hain kya phark shirf itna hain ki who (luteron aur angrej) ankh dikha ker lut te the aur neta (Politician) ankh milakar. Shayad ayhi is desh ka nashib hain.
क्या कहें जब प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे सम्माननीय,कार्यवाही तथा देश की निगरानी की जिम्मेवारी वाले पदों पर बैठा व्यक्ति ही कार्यवाही के प्रति आँखें मूंद ले तो इश देश में जो नहीं हो रहा है वही बहुत है ,कोमनवेल्थ गेम में घोटाला या ऐसा खनन घोटाला की जानकारी PMO को ना हो ये हो ही नहीं सकता ...शर्म आती है इस देश की व्यवस्था तथा इस देश के नागरिक होने पर ...
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aaj hamare desh ka durbhagya hai ki har 5 sal me kendra me ek nayi sarkar banti hai aur uske is 5 sal ke karyakal ke dauran anekon yojnayen banti hain aur unke liye budget bhi pas hota hai.
Yojna ka kam susu hue abhi sal ya 2 sal bhi nahin beetate tab tak ek Ghotale ki ghanti baj uthati hai ki is yojna mein ....carore ka ghotala ho gaya....ghotala ho gaya....
Hamari sarkar media ke dabav me aakar sirf ek vaktavya deti hai " HUM IS GHOTALE KI JANCH KARENGE. JANCH KAMETI GATHIT KAR DI GAYI HAI JISKI REPORT KUCHH DINON MEIN SADAN KE PATAL PER HOGI."
Bas ... itna hua nahin ki kaaaam samapt. case thanda. ab to jab tak report aayegi janta bhool chuki hogi ki kis ghotale ki "YE REPORT KIS GHOTALE KI HAI".
Kyonki ye roz ki kahani hai ki GHOTALA Hoga aur us ghotale ki "JANCH" bhi Hogi...
Hamari paresani ka sabab sirf ye chhota sa shabd "JANCH" hai. Kyoki hum bhi is janch shabd ko sunane ke aadi ho chuke hain......
Kyon na sarkar koi bhi yojna banane ke saath ek JANCH KAMETI bhi gathit kar de jiska kam yojna ke karyon ka sahi tarike se nispadan karana jimmedari ho aur yadi koi Ghotala ya Aniyamitata payi jati hai to us JANCH KAMETI per uski sari jimmedari ho.
Is Soch ko sarkar tak pahunchane ka kashta karen kyonki aap hamare liye ek prerna purush hain jisne patrakarita ke shetra me sarahniya karya kiya hai....
Hum sabhi doston ki or se aapko shubhkamnayen.....
विडंबना ये है कि... सब कुछ जानते हुए कुछ नहीं कर सकते है.. न हंस सकते हैं न ही लड़ सकते हैं..
भारत में हम यूरोप के इतिहास का भी दर्शन कर रहे हैं...रोम जल रहा है...नीरो बंसी बजा रहा है...यहां कई नीरों है...सब अपनी अपनी बंसी लिए राग भष्ट्रचार की तान छेड़ रहे हैं...कानों में रूई भी है ताकि ...किसानों और ग़रीबों की आवाज न आये...ये कोई पहला मामला नहीं है...किसानों की उपजाउ जमीनों को हड़पने का ... का चलन बडा पुराना है...पहले सेठ साहूकार करते थे...अब उनकी जगह बड़ी बड़ी कंपनियों ने ले ली है...दलाल की भूमिका में है सरकारें...लोकतंत्र की में घुसे ये दलाल अपना काम बखूबी कर रहे है...और ये साबित करने पर तुले हैं...कि लोकतंत्र मूर्खों की सरकार है....जो सबकुछ देखते हैं....समझते है....और जब करने की बारी आती है ...तो कन्यफ्यूज़ भीड़ की तरह व्यवहार करते है...भीड़ में बंट जाते है....और उन्ही दलालों को फिर से अपनी किस्तमत का फैसला करने के लिए चुन लेते हैं...किसान भुगत रहा है ...तो कहीं न कही उसने भी ग़लती की ..क्योकि वो भी किसान के अलावा....हिंदू है..मुस्लिम है..अगड़ा है..पिछड़ा है....एससी या एसटी है....और ऐसे बंटे किसान कभी कोई आंदोलने नहीं खड़ा कर सकते...इतिहास गवाह है...और अगर कुछ कर भी लिया तो वो हंगामें से ज्यादा कुछ नहीं होगा..जो इन दलालों की चिकनी चुपड़ी बातों से ठंड़ा पड़ जायेगा....इस देश में किसान और ग़रीब पेट भरते ही....अपनी ये पहचान खोने लगते हैं...और किसी खेमें या गुट का हिस्सा बन कर अपनी पहचान बदलते रहते है....जिसका फायदा उठाने के लिए ...दलाल और कॉरपोरेट दोनों जीभ लपलपाते हुए तैयार हैं....
कहाँ गए युवाओं के युवराज..... सपना दिखाया की एक भ्रसटाचार मुक्त समाज की रचना करेंगे, लेकिन उन्ही के राज में कलमाड़ी जैसे नेता हैं जो अपने स्वार्थ में देश को खुलेआम बेइज्जत करने से भी नहीं चुकते। आज जब मैं टीवी पर न्यूज़ देख रहा था तो दिल्ली की स्थिति बड़ी ही दयनीय महसूस हुई। एक तरफ तो भगवन इन्द्र का प्रकोप जो यमुना की सफाई कर रहा है और दूसरी तरफ राष्ट्र मंडल खेलों का दबाव जो सरकार को सांस भी नहीं लेने दे रहा है। शीला सरकार खेलों के मद्देनजर तैयारियां करने में जुटी है और भगवन इन्द्र उन तैयारियों पैर पानी बरसा रहे हैं। यदि यही स्थिति रही तो हो चूका "राष्ट्रमंडल खेल"।
कलमाड़ी ने ये स्वर्णिम इतिहास रचा है - भ्रष्टाचार का । युवराज ने कहा था की "एक भ्रसटाचार मुक्त समाज की रचना करेंगे" किन्तु यहाँ तो "एक भ्रसटाचार युक्ता समाज की रचना" हो रही है और पथ प्रदर्शक है श्री कलमाड़ी।
ये सब देख कर लगता है ....कहाँ गए युवाओं के युवराज॥
वे सिर्फ चुनावों में भाषण देने के लिए ही हैं...............
सोचना होगा हमें और आपको भी.......
वाजपई जी, अब आदत हो गई है - भष्ट्राचार अब जीवन का हिस्सा हो गया है, जल बोर्ड, स्थानीय निकाय, पुलिस ... जहाँ कहीं भी काम फंसता है - हम खुद ही रिश्वत दे कर काम निकलवाते हैं और आकार समाज में छाती थोक कर बताते हैं .... फलां काम अपन नें ऐसे करवा लिया..
पूरी की पूरी व्यवस्था ही भ्रष्ट हो चुकी है. और एक आम शहरी का इसमें पूरा योगदान है. मोटे मोटे घोटालों पर बस दो दिन संसद ठप रहती है... उसके बाद कोई न कोई रास्ता निकल जाता है.
और गाड़ी अपने ढरे पर चलती है.
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