Friday, April 27, 2012

तो यूं निपटे अन्ना-रामदेव


रामदेव ने दस्तक देकर दरवाजा खोला और अन्ना टीम दोराहे पर आ खड़ी हुई। यह दोराहा सड़क का नहीं बल्कि सत्ता के लिये प्यादा बनने और खुद को वजीर बनाने का  । दोराहे की प्यादे वाली एक राह में से भी तीन राह निकली। और रामदेव की दस्तक से पहले जो अन्ना टीम एकजुट नजर आ रही थी, असल में एकजुटता के दौर में भी  हां हर कोई आंदोलन को लेकर खुद के लिये परिभाषा लगातार गढ़ रहा था। लेकिन रामदेव की दस्तक ने हर किसी की मंशा को सतह पर ला दिया । क्योंकि रामदेव खुद   लड़ाई भी अपने हिसाब-किताब के गुणा-भाग वाले झोले तले ही लड़ रहे हैं। इसलिये जैसे ही अन्ना-रामदेव मुलाकात में जमीनी मुद्दे और जमीन के ऊपर खड़े वैचारिक मुद्दे टकराये तो दोनो को लगा कि उनकी सीमाएं ही उनकी ताकत है। रामदेव ने अपनी सीमा अपनी भगवा वस्त्र में छुपायी तो अन्ना ने भ्रष्टाचार की सत्ता को तोड़ने के लिये सत्ता से ही गुहार में अपनी सीमा दिखा दी। और जैसे ही अन्ना ने सीमा तय की वैसे ही अन्ना टीम के सदस्यों ने अपने अपने संघर्ष की परिभाषा भी गढ ली। रामदेव जानते है उनकी महाभारत कांग्रेस से ही है। और महाभारत के लिये कोई अलग से रामलीला मैदान बनाने का मतलब है दोबारा मात खाना। तो बीजेपी के मैदान पर खड़े होकर कांग्रेस को मात दी जा सकती है। इसलिये वह अन्ना के इस फैसले के साथ खड़े हो ही नहीं सकते कि कांग्रेस-बीजेपी दोनों को छोड़कर अपना मंच बनाकर चुनाव मैदान में कूदे। क्योंकि जैसे ही संघर्ष का अलग रास्ता राजनीतिक दिशा में जायेगा उसका सबसे बड़ा घाटा बीजेपी को ठीक वैसे ही होगा जैसे अन्ना-रामदेव के संघर्ष का राजनीतिक तौर पर सबसे ज्यादा लाभ बीजेपी को ही होगा। इसलिये रामदेव ने अन्ना टीम की उस कड़ी को पकड़ा, जिसके अंदर गुस्सा कांग्रेस को लेकर हो। वह कमजोर कड़ी किरण बेदी निकलीं क्योकि दिल्ली का पुलिस कमिशनर ना बन पाने का मलाल किऱण बेदी में आज भी है और कांग्रेसी सत्ता के राजनीतिक खेल को ही वह इसके लिये गुनाहगार भी मानती है । किरण बेदी के गुस्से को जगह बीजेपी की छांव तले मिलती है। तो रामदेव ने किरण बेदी के जरिये अन्ना हजारे के साथ बैठक तय की। यानी पहली बार अन्ना हजारे के साथ परछाई की तरह रहने वाले अरविन्द केजरीवाल इस बैठक को सेट करने में नहीं थे। बैठक के दौरान नहीं थे। वहीं रालेगण-सिद्दी से
लेकर हरिद्वार तक में जिस तरह बीजेपी-कांग्रेस के राजनेताओं ने इसी दौर में अन्ना और रामदेव के संघर्ष को मान्यता देते हुये अपनी बिसात बिछायी असर उसी का हुआ कि सियासत के प्यादे बनकर सौदेबाजी में संघर्ष को समेटने की कोशिश शुरु हो गई।

बैठक से पहले रालेगण में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीक केन्द्रीय मंत्री विलास राव देशमुख ने बिसात बिछायी। तो हरिद्वार में बीजेपी और संघ ने। चूकि इस बीच दिल्ली में अन्ना टीम 14 केन्द्रीय मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की चार्जशीट तैयार कर रही थी और सबसे पहला नाम विलासराव देशमुख का ही था। तो विलासराव की रालेगण और पुणे में बैठी चौकड़ी सक्रिय हुई। जिसने अन्ना को यही समझाया कि पहले महाराष्ट्र की लड़ाई लड़नी जरुरी है। महाराष्ट्र में लोकायुक्त की नियुक्ति प्राथमिकता
होनी चाहिये। जाहिर है अन्ना के संघर्ष की नींव महाराष्ट्र में रही है तो अन्ना ने ठीक उसी वक्त को महाराष्ट्र यात्रा के लिये दे दिया जो वक्त दिल्ली में अन्ना टीम हिमाचल समेत देश यात्रा के लिये तय कर रही थी। विलासराव देशमुख का निशाने ने दोहरा काम किया। एक तरफ अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहाण को ष्टाचार के निशाने पर लेकर जैसे ही लोकायुक्त का सवाल उठाया वैसे ही दिल्ली में एक बार फिर विलासराव देशमुख यह कहते हुये सक्रिय हुये कि उनके कार्यकाल में कभी
भ्रष्टाचार का मामला तो इस तरह नहीं उठा। फिर अन्ना ने दिल्ली पहुंचकर 14 मंत्रियों की उस फाइल को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया, जिसमें पहला नाम विलासराव देशमुख का था और तय हुआ था कि अन्ना इस फाइल को जनता के सामने जारी कर प्रधानमंत्री से जवाब मांगेंगे कि जब उनके मंत्रिमंडल में 14 भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री है तो फिर जिम्मेदारी कौन लेगा। चूंकि इस बार हर मंत्री सारा कच्चा-चिट्टा सिलसिलेवार तरीके से दर्ज किया गया था। लेकिन नाम जारी नहीं हुये तो सबसे बडी राहत मनमोहन सिंह को ही मिली और सबसे होशियार खिलाड़ी के तौर पर विलासराव का कद यहां भी बढ़ा। खास यह भी है 10 जनपथ के करीबी विलासराव देशमुख जो अन्ना टीम के भ्रष्टाचार के आरोपों की फेरहिस्त में सबसे उपर है अब वही दिल्ली में एकबार फिर महाराष्ट्र के लायक सीएम होने का दांवा भी ठोंक रहे हैं। और अन्ना हजारे महाराष्ट्र में
 विलासराव के अनुकुल बिसात बिछाने के लिये हर राजनीतिक नेता से मिलकरपृथ्वीराज को कटघरे में खड़ा भी कर रहे हैं।वहीं दूसरी तरफ बीजेपी और संघ के वरिष्ठ और प्रभावी नेता-स्वयसेवकों ने रामदेव को राजनीति का वही ककहरा पढ़ाया जिसमें अंगुलियों के मिलने से मुठ्ठी बनती है। जो संघर्ष को पैना कर सकती है। और अलग अलग राह पकडने से अंगुली टूट जाती है। जिससे संघर्ष भी भोथरा साबित होता है। रामदेव समझ गये कि उनका संगठन दवाई बेचने और योग सिखाने वालो के जमघट से आगे जाता नहीं लेकिन संघ का संगठन राजनीतिक दिशा देने में माहिर है। तो पहला सौदा राजनीतिक कवायद की जगह जागृति फैला कर कांग्रेस और केन्द्र सरकार को देश भर में कटघरे में खड़ा करने का ही रहा । और अन्ना को भी उस चुनावी रास्ते पर जाने से रोकने की बात हुई। जहां अन्ना निकल पडे तो बीजेपी का समूचा लाभ घाटे में बदल सकते हैं।

यह पूरा खेल अन्ना की कोर कमेटी की बैठक में कुछ इस तरह खुला कि रामदेव और अन्ना की ही तरह संघर्ष को लेकर अपनी अपनी परिभाषा गढते सदस्य एक दूसरे पर सियासत के प्यादे बनकर कूद पड़े। अन्ना ने हिमाचल प्रदेश में राजनीतक कवायद का जैसे ही विरोध किया, किरण बेदी ने रामदेव की लाइन पकड़ी और अलग से राजनीतिक मंच या चुनाव मैदान में कूदने का खुला विरोध किया। काजमी ने राजनीतिक तौर पर लड़ाई को अपने राजनीतिक मुनाफे का हथियार बनाया । मुलायम सिह यादव के साथ दिल्ली से लखनऊ सफर के बाद काजमी अन्ना टीम में रहते हुये भी मुलायम के प्यादे होकर संघर्ष की सौदेबाजी करने लगे। चूंकि भ्रष्टाचार की लकीर में मुलायम के खिलाफ भी अन्ना टीम लगातार दस्तावेज जुगाड़ रही है जिसके विरोध का नया तरीका सोदेबाजी के लिये बैठक में किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल के टकराव को मोबाइल में रिकार्ड कर किया। वहीं बैठक में यह भी खुला कि कोर कमेटी के एक 'कवि' सदस्य बीजेपी के उन मुख्यमंत्रियों को बचाने में लगे रहे जिनके  लाफ अन्ना टीम कार्रवाई करने में लगी । उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री निशंक और मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज चव्हाण के लिये काम करने वाले इस सदस्य पर "दलाली" करने  से आरोप भी लगे।

असल में इस बैठक ने अन्ना टीम के उस सच को सामने ला दिया जो जनलोकपाल के आंदोलन के दौर में अपने आप बनते गया। जिसने मंच संभाला, जिसने तिरंगा थामा, जो सरकार से बातचीत के लिये निकले, सभी कोर कमेटी के सदस्य भी बन गये और देश भर में अन्ना टीम का चेहरा भी। चूकि देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों के आक्रोश का कोई चेहरा इससे पहले था नहीं । हर शहर में बनते जंतर-मंतर और वहा जमा होते लोग वैसे ही संघर्ष करने वाले फौजी थे जिनका अपना कोई चेहरा होता नहीं। और चेहरा सियासत का होता है तो चेहरा बनने की कवायद में हर कोई संघर्ष करता तो दिखा लेकिन एक वक्त के बाद जब चेहरे बडे हो गये और संघर्ष छोटा तो किसी ने अपने संघर्ष की सौदेबाजी की । किसी ने संघर्ष को राजनीतिक प्यादा बना लिया तो कोई संघर्ष को जिलाये रखने के संघर्ष में जुटा। जो आखिरी कतार संघर्ष को करते रहना चाहती है उसके सामने अब दो ही रास्ते हैं। एक वह अन्ना हजारे के हर संघर्ष [चाहे महाराष्ट्र में ही सीमित क्यों ना हो ] में अपने आप को खपा दें। या फिर संघर्ष के ऐसे रास्ते तैयार करें जहां राजनीतिक विकल्प का सवाल अपने संघर्ष के मुद्दों के जरीये इस तरह खड़ा करते चलें कि अन्ना हजारे को भी महाराष्ट्र की राजनीति में गोते लगाने से अच्छा देश के लिये सुनहरा भविष्य का सपना संजोने के लिये दिल्ली लौटना पड़े। क्योंकि सौदेबाजी और सियासत से पैदा होने वाले संघर्ष को देश का बहुसंख्यक तबका मान्यता देगा नहीं। लेकिन ईमानदारी के साथ किये गये जमीनी संघर्ष से निकला कोई चेहरा देश को मिल सकता है। होगा क्या यह तो भविष्य के गर्भ है। लेकिन इंतजार करना होगा क्योंकि देश ने सियासी सौदेबाजी में रामदेव को भी गंवाया है और अन्ना को भी भटकाया है।

3 comments:

चन्दन गोस्वामी said...

प्रसुन्न जी मान गए आपके पत्रकार जीवन को और आपकी शैली को की किस प्रकार पत्रिकारिता के सही मायने और शब्दों को झिझोड़ कर वर्तमान में घट रहे ज्वलंत मुद्दे पर उन्हें पिरोना तो कोई आपसे सीखे. कई वर्षो से आपको देखता, ध्यान से सुनता रहा हु.और सीखता रहा हु .
धन्यवाद
चन्दन गोस्वामी नागपुर ९९७००५९५०५

dr.dharmendra gupta said...

u r absolutely correct



i had doubt over ramdev's movement from d day of beginning


i had no doubt over anna as he is very simple but sometimes he irritates by repeating abt his simple life style....

he showed his leadership quality by denying to come out from tihar jail.....

ramdev is lacking that quality....

in mumbai fast it was team who planned to hold fast in mumbai, which back fired.....
n it was team which purusued anna to break d fast in between....
n this tainted image of anna.....
if they were so worried abt anna's health then they all must had sit on fast with anna....

dr.dharmendra gupta said...

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if they were so worried abt anna's health then they all must had sit on fast with anna....