मोटा माल तो चंदन बसु ने भी बनाया
कोयला मंत्रालय के दस्तावेजों में 58 कोयला ब्लाक कटघरे में हैं। इनमें 35 कोयला ब्लाक पायी निजी कंपनिया ऐसी हैं, जो या तो राजनीतिक नेताओं से जुड़ी हैं या फिर मंत्री, सांसदों या सीएम के कहने पर आंवटित की गई हैं। किसी की सिफारिश मोतीलाल वोहरा ने की। तो किसी की सिफारिश शिवराज सिंह चौहान ने । किसी की सिफारिश नवीन पटनायक ने की तो किसी की सुबोधकांत सहाय ने। लेकिन यह सच आवंटन के भारी भरकम कैग रिपोर्ट के पीछे दबा ही रह गया कि कोयले का असल खेल तो पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार के नाक तले ना सिर्फ शुरु हुआ बल्कि चंदन बसु ने अपने पिता ज्योति बसु की लीगेसी तले इस खेल में पहले सिर्फ हाथ डाला और आज की तारीख में गले तक मुनाफा बना कर पर्दे के पीछे हर राज्य सरकार के साथ मिलकर खेल खेल रही है।
यह खेल शुरु कैसे होता है इसलिये लिये दो दशक पीछे लौटना होगा। पीवी नरसिंह राव के दौर में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने ही 1992 में सबसे पहले कोल इंडिया को केन्द्र से मदद देने से मना किया और बकायदा पत्र लिखा गया कि कोल इंडिया अब अपना घाटा-मुनाफा खुद देखे। उसके तुरंत बाद 1993 में कोल इंडिया के कानूनों में बदलाव कर उन निजी कंपनियों को खादान देने पर सहमति बनायी गई जो कोल इंडिया से कोयला लेकर अपना काम चलाते लेकिन उन्हे कोल इंडिया की बाबूगिरी में परेशानी होती। 1993 में ही ईस्टर्न माइनिंग एंड ट्रेडिंग एंजेसी यानी इमटा नाम से बंगाल में एक कंपनी बनी। और 1993 में ही इमटा की पहल पर पहला कोयला खादान आरपीजी इंडस्ट्रीज को मिला। इमटा ने आरपीजी इंडस्ट्री को मिली खादान को आपरेशनल बनाने और डेवलप करने का जिम्मा लिया । और इसके बाद इमटा ही बंगाल के खादानों को अलग अलग निजी कंपनियों से लेकर पावर और माइनिंग की सरकारी कंपनियो दिलाने भी लगी और खादान का सारा काम करने भी लगी। उस दौर में हर बरस एक या दो ही खादान किसी कंपनी को मिलती और संयोग से हर बरस बंगाल का नंबर जरुर होता। 1995 में बंगाल राज्य बिजली बोर्ड तो 1996 में बंगाल के ही पावर डेवलपमेंट कारपोरेशन को खादान आवंटित हुई। और इस कतार में 2009 तक पश्चिम बंगाल में 27 कोयला खादान आंवटित की गई। हैरत इस बात को लेकर नहीं होगी की रश्मि सीमेंट से लेकर आधुनिक कारपोरेशन और विकास मेटल पावर से लेकर राजेश्वर लौह उघोग तक को कोयला खादान मिल गया। जिनका कोई अनुभव कोयला खादान या पावर या स्टील उघोग में खादान मिलने से पहले था ही नहीं। हैरत तो इस बात को लेकर है कि हर खादान का काम इमटा कर रहा है। हर परियोजना में इमटा साझीदार है। और इमटा नाम ही सिफारिश का सबसे महत्वपूर्ण वाला नाम बन गया। क्योंकि माना यही गया कि इसके पीछे और किसी का नहीं बल्कि ज्योति बसु के पुत्र चंदन बसु का नाम है और सामने रहने वाला नाम यूके उपाध्याय का है, जो इमटा के मैनेजंग डायरेक्टर है। वह इमटा बनाने से पहले कोल इंडिया के खादानों में बालू का ठेका लिया करते थे।
कोल इंडिया के दस्तावेज बताते हैं कि उज्ज्वल उपाध्याय यानी यूके उपाध्याय को सालाना 10 लाख तक का ठेका झरिया से लेकर आसनसोल तक के खादानो में बालू भरने का मिलता। लेकिन चंदन बसु के साथ मिलकर ईस्ट्रन माइनिंग एंड ट्रेडिंग एजेंसी यानी इमटा बनाने के बाद यू के उपाध्याय की उडान बंगाल से भी आगे जा पहुंची। चूंकि चंदन बसु का नाम ही काफी था तो कोलकत्ता से लेकर दिल्ली तक यह बताना जरुरी नहीं था कि इमटा का डायरेक्टर कौन है या इसके बोर्ड में कौन कौन हैं। और आज भी स्थिति बदली नहीं है। इंटरनेट पर कंपनी प्रोफाइल में हर राजय के साथ इमटा के धंधे का जिक्र है लेकिन एक्जक्यूटिव डाटा, बोर्ट के सदस्यो का नाम या फिर कमेटी के सदस्यों में किसी का नाम अभी भी नहीं लिखा गया है। जबकि कोयला खादानों के जरीये इमटा ने अपना धंधा बंगाल से बाहर भी फैला दिया।
सबसे पहले बंगाल इमटा कोल माइन्स बना तो उसके बाद झारखंड के लिये तेनूधाट इमटा । पंजाब के लिये पंजाब इमटा कोल माइन्स। कर्नाटक और महाराष्ट्र के लिये कर्नाटक इमटा कोल माइन्स। कर्नाटक में बेल्लारी खादानो में भी इमटा ने पनी पकड़ बनायी और बेल्लारी थर्मल पावर स्टेशन प्रोजेक्ट में ज्वाइंट वेन्चर के जरीये कर्नाटक इमटा कोल माइन्स कंपनी जुड़ी। इसी तरह झारखंड के पाकुड में पंजाब राज्य बिजली बिजली बोर्ड के नाम पर खादान लेकर पंजाब इमटा कोल माइन्स के तहत काम शुरु किया। मुनाफे में बराबर के साझीदार की भूमिका है। लेकिन इस कड़ी में पहली बार इमटा को 10 जुलाई 2009 को बंगाल के गौरांगडीह में हिमाचल इमटा पावर लि.के नाम से कोयला खादान आवंटित हुआ। यानी इससे पहले जो इमटा अपने नाम का इस्तेमाल कर करीब 30 से ज्यादा कोयला खादानों को आवंटित कराने से लेकर उसके मुनाफे में हिस्सदार रही। वहीं सीधे कोयला खादान लेकर अपने तरीके से काम शुरु करने ने इमटा के प्रोफाइल को भी बदल दिया। अब इमटा सिर्फ खादानों को आपरेशनल बनाने या डेवपल करने तक सीमित नहीं है बल्कि देश के अलग अलग हिस्सों में एक्सक्लूसिवली कोयला सप्लाई भी करता है। और यह कोयला बेल्लारी से लेकर हिमाचल के पावर प्रोजेक्ट तक जा रहा है। झारखंड और बंगाल में खादानों को लेकर इमटा की सामानांतर सरकार कैसे चलती है यह दामोदर वैली कारपोरेशन [डीवीसी] के सामानांतर डीवीसी इमटा कोल माइन्स के कामकाज के तरीके से समझा जा सकता है।
पहले तो थोड़ा बहुत था लेकिन डीवीसी की 11 वीं और 12 वीं योजना में तो सारा काम ही डीवीसी इमटा के हाथ में है। यानी कंपनी का विस्तार कैसे होता है अगर इंटरनेट पर देखे तो लग सकता है कि इमटा सरीखी हुनरमंद कंपनी को जरीये देश के 17 पावर प्लांट, 9 स्पांज आयरन उघोग और 27 कोयला खादानों को आपरेशनल बनाने मे इमटा का जवाब नहीं। लेकिन जब इंटरनेट से इतर तमाम योजनाओं की जमीन को देखेंगे तो कोयला खादान के आवंटन का खेल समझ में आयेगा जो कैसे चंदन बसु या कहे इमटा के नाम भर से होता है। असल में कोयला आवंटन करने वाली स्क्रीनिंग टीम के नाम भी लाभ पाने और लाभ पहुंचाने वाले ही है। मसलन एक वक्त कोल इंडिया के चेयरमैन रहे यू कुमार । रिटायरमेंट के बाद कोल इंडिया के प्रतिनिधी के तौर पर स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य भी रहे और इसी दौर में आदित्य बिरला उघोग में सलाहकार के तौर पर काम भी करते रहे। लेकिन कोयला खादान के खेल को नया आयाम रिलांयस ने दिया । सिंगरौली के साशन में सरकारी बिड के जरीये 4000 मेगावाट थर्मल पावर प्लाट का लाइसेंस मिला। फिर इसके लिये 12 मिलियन टन की कोयला खादान मिली । जहां से 40 बरस तक कोयला निकाला जा सकता है। लेकिन रिलायंस ने इसके सामांनातर चितरंजी में भी 4000 मेगावाट का निजी पावर प्लांट लगाने का ऐलान कर कहा कि वह बिजली खुले बाजार में बेचेगा। मगर कोयला साशन की उसी खादान से निकालेगा। यानी सरकारी पावर प्लांट के लिये मिले सरकारी खादान का कोयला निजी पावर प्लाट के उपयोग में लायेगा। यानी सरकारी बिड में महज एक रुपये 19 पैसे प्रति यूनिट बिजली दिखायी। और खुले बाजार में नौ रुपये तक प्रति यूनिट बेचने की तैयारी। इस पर टाटा ने आपत्ति की। यह मामला अदालत में भी गया। जिसके बाद चितरंजी के पावर प्लांट पर तो रोक लग गई है । लेकिन इस तरीके ने इन निजी पावर प्लांट को लेकर नये सवाल खड़े कर दिये कि आखिर बीते आढ बरस में कोई सरकारी पावर प्लांट बनकर तैयार हुआ क्यों नहीं जिनका लाइसेंस और ठेका निजी कंपनियों को दिया गया। जबकि निजी पावर प्लांट का काम कहीं तेजी से हो रहा है और कोयला खादानों से कोयला भी निजी पावर प्लांट के लिये निकाला जा रहा है। यानी सरकार का यह तर्क कितना खोखला है कि खादानों से जब कोयला निकाला ही नहीं गया तो घाटा और मुनाफे का सवाल ही कहां से आता है।
असल में झारखंड के 22 खादान, उडीसा के 9 खादान, मध्यप्रदेश के 11 और बंगाल के 9 कोयला खादानो में से बाकायदा कोयला निकाला जा रहा है। और सिगरैली के साशन में रिलायंस की खादान मोहरे एंड अमलोरी एक्सटेंसन ओपन कास्ट में भी 1 सिंतबर 2012 से कोयला निकलना शुरु हो गया। यानी कोयला खादान घोटाले ने अब झारखंड,छत्तीसगढ,मध्यप्रदेश और उडीसा,बंगाल में काम तो शुरु करवाया है। लेकिन खास बात यह भी है कि करीब 60 से ज्यादा कोयला खादानें ऐसी भी हैं, जिनका एंड यूज होगा क्या यह किसी को नहीं पता। इसलिये यह एक सवाल ही है कि दिल्ली में जो कई मंत्रालयों से मिलकर बनी कमेटी जांच कर रही है वह महज खाना-पूर्ती कर कुछ पर तलवार लटकायेगी या फिर खादानो के खेल का सच सामने लायेगी।
Tuesday, September 4, 2012
आवंटन के बाद लूट का खेल
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:30 PM
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2 comments:
आदरणीय प्रसूनजी,
कोयला आवंटन घोटाले में आज जो आपने खुलासा किया है वो है वास्तविक खुलासा और सच्ची पत्रकारिता । साधुवाद और नमन ।
मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्यूंकि अब तक जो मीडिया में दिखाया गया है और जो हम अख़बार में पढ़ रहे है वो थोडा विश्वास से परे है । क्यूंकि जो सरकार सीबीआई के द्वारा अपनी सारी परदे के पीछे वाले काम करवाती है, क्या वो क्या अचानक उसे इतनी स्वतंत्रता दे देती है कि अपने ही सांसदों और मंत्रियों के द्वारा संचालित कंपनियों पर छापे डलवा रही है ? क्या ये वो कंपनियां हैं जिनसे किसी के पार्टी फंड में पैसा नहीं गया ? या फिर ये वो कंपनियां है जिनकी जानकारी खुले में थीं, पर कोई सवाल नहीं उठा रहा था, राजनितिक नजदीकियों के वजह से ? इसलिए सीबीआई के माध्यम से उन्हें प्रकाश में लाया जा रहा है, ताकि कोई नेता किसी दुसरे नेता से शिकायत न कर बैठे । ज्यादा उम्मीद तो ये लगता है है कि ये इस गंदे खेल रुपी तालाब कि सबसे छोटी मछलियाँ है, असली, मोटी और बड़ी मछलियाँ कोई और हैं और सरकार उनको बचाने में लगी है । तभी तो हमारे कोयला मंत्री सारे आवंटन रद्द करने के नाम पर ही बिफर जाते हैं और अगर सारे 142 आवंटन रद्द करते हैं तो कई सारे लोग और आग उगलने लगेंगे और फिर शायद आग और ऊपर न पहोच जाये ।
यह घोटाला राजनितिक रूप से बहोत मज़ेदार घोटाला है, और जैसे जैसे संसद पे बहस के लिए दबाव बढ़ रहा है वैसे वैसे हर दिन कुछ नया निकल कर आ रहा है । हाथ तो इसमें सभी राजनितिक दलों का काला है, पर मज़ेदार बात ये होगी कि कौन किसकी पोल खोलता है । 2G में radia tapes सबसे मज़ेदार कड़ी थी, इसमें तो उम्मीद करते है कि अभी बहोत कुछ आना बाकि है ।
ब्रजेश
मुंबई
The most important factor behind these corruption scams is division among the community. At present the country is deeply divided along caste and religious lines. Every petty politician is giving his full force to widen these chasms as they help them strengthen their vote banks further by instilling a fear psychosis. The deep divisions are also reflected in polity with emergence of regional and caste based parties. People supporting these parties are thinking that their local leaders will work for their benefit. However, industrilaists, FIIs, MNCs all have ganged up against the poor and have partnered with these regional lords by giving them a share of the loot. In fact, it is the divided society which is responsible for its exploitation and ill treatment. Now we see all smaller parties being ill treated by Congress, why?
But India can lay its hopes on its IT prowess. We need only to carry forward the Adhar project. once it is solidly in place we can move to opening bank accounts for all eligible voters and giving them a debit card/ATM card. Already about 50 percent population is using ATM cards effectively. What we need just is to universalise it in next 2-3 years. A very important and revolutionary suggestion I am making is that we start using ATMs as voting machines. This is possible once ATM literacy is ensured. Like applying for a position, we keep open the election lines for a month. Any person can go any time to the ATM and cast his/her vote in total privacy, without any coercion and inducement. This will also relieve our administration to make heavy arrangements for security, EVMs and deployment of personnel and security forces. Also, it will take convenience to vote to a high level. Also, it will make elections a hassel free and cost free exercise and will relieve opposition parties from guilt of toppling a corrupt party mid way for fear of being unjust to the people by burdening them with elections at short intervals .
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