तो संजय दत्त को माफी दे देनी चाहिये। वाकई संविधान अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को अधिकार देता है कि वह किसी भी सजायाफ्ता को माफी दे सकता है। तो माफी की फेरहिस्त खासी लंबी है । 1993 ब्लास्ट में दोषी पाये गये संजय दत्त को माफी देने की गुहार जिस तरह देश का विशेषाधिकार प्राप्त तबका लगा रहा है, उसने कई सवाल एक साथ खड़े कर दिये हैं। अगर संजय दत्त माफी के हकदार हैं तो संजय दत्त के घर से राइफल लेजाकर नष्ट करने वाला युसुफ नुलवाला क्यों नहीं। करसी अदेजानिया क्यों नहीं, रुसी मुल्ला क्यों नहीं। इसी फेहरिस्त को आगे बढ़ाये तो जैबुनिशा कादरी,मंसूर अहमद, समीर हिंगोरा, इब्राहिम मुसा चौहान सरीखे दर्जनों नाम 93 ब्लास्ट के दोषियों में से ही निकल कर आयेंगे, जिन्हें राज्यपाल चाहें तो माफी दे सकते हैं। सवाल सिर्फ 93 ब्लास्ट का नहीं है। अवैध या बिना लाइसेंसी हथियारों को रखने का खेल देश में कितना व्यापक है यह समझने से पहले जरा संजय दत्त को लेकर उठते माफीनामे की आवाज के पीछे के दर्द को देखिये।
सांसदों से लेकर बॉलीवुड के कई सितारे हैं, जिन्हें लगता है कि संजय दत्त की गलती लड़कपन वाली थी। कुछ को लगता है कि संजय दत्त की गलती नहीं थी बल्कि बुरी संगत का असर ज्यादा था। कुछ तो 92-93 के दौरान मुबंई के हालात को लेकर संजय के तर्क को सही मानते हैं। सिर्फ इन्हीं आधारों को माने तो 93 ब्लास्ट में 16 ऐसे दोषी हैं, जिनके साथ भी ऐसा ही कुछ है। तो क्या उन्हें माफी नहीं मिलनी चाहिये। हां, जो यह कहते हैं कि संजय दत्त के छोटे छोटे बेटे हैं और परिवार की त्रासदी या फिर सुनील दत्त या नरगिस के काम को याद करना चाहिये तो 93 ब्लास्ट के दोषियो की फेहरिस्त में कस्टम अधिकारियो से लेकर हथियारो को इधर उधर ले जाने वाले 9 दोषी ऐसे हैं, जो संजय दत्त के सामानांतर माफी के हकदार हैं। और जैसा जस्टिस काटजू की राय है कि बीते 20 बरस बहुत होते हैं, जिस दौरान संजय दत्त ने हर तरह की त्रासदी भोगी है तो देश के सच से जस्टिस काटजू इत्तेफाक नहीं रखते कि अलग अलग जेल में मौजूदा वक्त में तीन हजार से ज्यादा ऐसे कैदी हैं जो बीस बरस से ज्यादा वक्त से जेल में बंद इसलिये हैं क्योंकि उनकी जमानत देने वाला कोई नहीं है। उनके पास जमानत की रकम देने लायक कुछ भी नहीं है। वैसे भारत का सच अपराध को लेकर कितना भयावह है और कितनी बडी तादाद में मौजूदा वक्त में जंल में वैसे कैदी सड़ रहे है जिन्हें गैरकानूनी हथियारों को रखने भर से सालो साल से जेल में रहना पड़ रहा है उनकी तादाद 20 हजार से ज्यादा है। एक तरफ जमानत के पैसे नहीं है या फिर कोई जमानत लेने वाला नहीं है तो जेल में हैं तो दूसरी तरफ अवैध हथियारों को रखने के जुर्म में तयशुदा कैद से ज्यादा वक्त जेल में गुजारने के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है। जनवरी 2013 तक देश में 313635 कैदी अलग अलग जेलो में कैद हैं। इनमें से करीब 75 हजार कैदी अवैध हथियारों के खेल में ही फंसे हैं।
तिहाड़ जैसे जेल इस समय दो सौ से ज्यादा कैदी हथियारों की आवाजाही में ही फंसे हैं। किसी के तार खूंखार अपराधियों से जुंड़े हैं तो कोई देशद्रोहियों के साथ मिला हुआ पाया गया। यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, आर्म्स एक्ट और एक्सप्लोसिव सब्सटांस एक्ट के दायरे में आये कैदियों की सबसे लंबी फेहरिस्त पूरे देश की जेलों में है। लेकिन इनके लिये किसी विशेषाधिकार संपन्न सांसद या बालीवुड सरीके चमकदार तबके में से आजतक कोई आवाज नहीं उठी। वैसे हथियारों के मामले में हालात देश में कितने घातक हो चुके हैं, इसका अंदाज इसी से मिल जाना चाहिये कि मौजूदा वक्त में देश के भीतर 4 करोड़ राइफल या बंदूक हैं। जिनमें से सिर्फ 63 लाख राइफल रजिस्टर्ड हैं। यानी 3 करोड 37 लाख राइफल, बंदूक या पिस्टल गैर कानूनी हैं। और संयोग से 1993 के बाद के उन्हीं बीस बरस में जिस दौरान संजय दत्त त्रासदी भोगते रहे, देश में कुल 85 आतंकवादी धमाके हुये। जिसमें गैर कानूनी हथियारो का इस्तेमाल हुआ। और हथियारों की आवाजाही करने या हथियारो को रखने के आरोप में 1200 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी देशभर में हुई। इन 1200 आरोपियों में से तक सिर्फ 27 को ही दोषी माना गया है लेकिन पुलिस ने किसी को मुक्त नहीं किया है। क्या किसी सांसद या बालीवुड के किसी सितारे ने कभी अपने विशेषाधिकार के तहत यह सवाल उठाया कि इन्हें जेल में क्यों रखा गया है। यानी सिर्फ इस सोच के आधार पर आतंक की घटना से जुडे आरोपियों को कैद रखा गया है कि इनके तार कहीं ना कहीं जुड़े हो सकते हैं। या छूटने के बाद यह कैदी किसी विस्फोट को अंजाम ना दे दे। मुश्किल यह भी है कि जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी को भी भूल गये, जहां 93 के ब्लास्ट पर फैसला सुनाते हुए कस्टम अधिकारियो को सजा सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट सिस्टम फेल होने की बात कहती है।
तो सिस्टम काम नहीं कर रहा है और देश के हजारों हजार कैदी इसके भुक्तभोगी हैं लेकिन जस्टिस काटजू ही नहीं बल्कि कांग्रेस से लेकर समाजवादी पार्टी और एनसीपी से लेकर शिवसेना तक को लगता है कि संजय दत्त को माफी मिल जानी चाहिये। जबकि 93 के बाद से देश में हुये 85 धमाकों के अंतर्गत गिरप्तार हुये सैकड़ों आरोपियों में से कोई ऐसा नहीं है, जिसके पास वह हथियार जब्त किये गये हो जो आतंकवादी कार्रवाई का हिस्सा रहे हो। 1993 में संजय दत्त को मुंबई की कानून व्यवस्था या पुलिस प्रशासन पर भरोसा नहीं था जो उन्हे एके-47 चाहिये थी। तो बीस बरस बाद देश के विशेषाधिकार तबके को अपने देश के कानून पर भरोसा नहीं है जो संजय दत्त को आर्म्स एक्ट के तहत पांच साल की सजा दे रहा है। सभी को राहत चाहिये. क्योंकि फिल्में पूरी हो सकें। बच्चो को पिता का प्यार मिलता रहे। और सुनील दत्त - नरगित दत्त का परिवार अकेले ना दिखायी दे। जस्टिस काटजू में यह परिवर्तन या प्यार संजू बाबा के लिये क्यों छलका है, यह बड़ा सवाल इसलिये है क्योंकि पिछले दिनो निर्भया के बलात्कार पर दिल्ली में मचे हंगामे पर जस्टिस काटजू ने लिखकर टिप्पणी की थी कि जब देश में 90 फीसदी महिलायें हाशिये पर हैं....और भूखे पेट सोती है तो अच्छा लगा था।
Friday, March 22, 2013
..तो संजय दत्त को माफी दे देनी चाहिये !
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:42 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
संजय दत्त पिछले 20 साल में डेढ़ साल से भी कम अरसे तक ही जेल में रहे...बाकी साढ़े 18 साल में उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय किया...कई फिल्में प्रोड्यूस भी की...इससे करोड़ों रुपये भी कमाए...यहीं नहीं इसी अरसे में उन्होंने दो शादियां भी कीं...दो जुड़वा बच्चों के पिता भी बने...संजय दत्त को निर्णायक सज़ा सुनाने मे हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था को बीस साल लगे...इस दौरान डेढ़ साल को छोड़ दें तो बाक़ी वक्त में उन्हें वो सभी करने की छूट रही जो उन्होंने करना चाहा...ये भी नहीं भूलना चाहिए कि संजय दत्त अब तक ज़मानत पर रिहा रहे...जो ये विलाप कर रहे हैं कि संजय दत्त के अब साढ़े तीन साल तक जेल में जाने से प्रोड्यूसरों का करोड़ों का नुकसान होगा...तो क्या इन प्रोड्यूसरों को नहीं पता था कि वो ऐसे शख्स पर दांव लगा रहे है जो ज़मानत पर रिहा है...जिसे ज़मानत रद्द होने पर कभी भी जेल जाना पड़ सकता है...
जय हिंद...
इस देश में सत्ता का मतलब ही उसका दुरूपयोग होना हैं !!!
अपने किस्से किससे कहें
जो बच पाए बचा पाए
जब संजय दत्त के छोटा शकील के साथ बातचीत के टेप मौजूद है, वो भी 93 ब्लास्ट के दस साल बाद के, और जिसमे दोनों की बातचीत ऐसे लगती है जैसे गहरे दोस्त है, तो कैसे उसे शरीफ कहा जा सकता है। अगर उसके या माता-पिता के समाजकार्य को ही बुनियाद मानकर सजा में छूट मिलनी चाहिए तो नए नए क़ानून बनाने वाली कांग्रेस सरकार ऐसा भी क़ानून बनवा दे की दस लाख के समाजकार्य पर एक खून माफ। सरकार के ही काफी मंत्री राहत महसूस करेंगे। काटजू जी को सारे भारत के अपराधी छोड़ इस मामले में ही इंसानियत नजर आई है। हमदर्दी जतानेवाले उस ख़ास वर्ग के लोगों ने भारत की परेशान जनता के मानवाधिकार पर भी थोड़ी नजर डाली तो जिंदगी की हकीक़त समझ आ जायेगी।
ये बात समझ नहीं आती की हमारे देश के लोग अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग क़ानून की बात कैसे कर सकते हैं? गरीब और आम जनता की बड़ी-से-बड़ी तकलीफ किसी को नजर नहीं आती और एक सेलिब्रेटी गुनाहगार को खरोच भी नहीं आनी चाहिए...?
ऐसा कौन है जिसने कंभी कोई भी गलती न की हो .दूसरी बात ~~ गलती की सज़ा का quantum उचित होना चाहिये ~~तीसरी बात~~ गलती करना और क्रिमिनल होना अलग - अलग बात है .4~~जब सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कोई लेने को तैय्रार न हो तो किसी को क्या करना चाहिये ..?5~~ और कानून का पालन करने का बहुत शौक है तो up बिहार में बहुत लोग weapons से खेल रहे हैं। 6~~ और judiciary के बारे में क्या ख्याल है।।? कई लोग शायेद कभी कोर्ट नहीं गए होंगे ...वो सालो साल का मेंटल टार्चर किसी सज़ा में शामिल नहीं है। ये संजय दत्त की पैरवी नहीं है। सडे --गले सिस्टम पर सवाल है ..करोड़ो केस पेंडिंग पड़े है ..फिर भी कोर्ट में 12 बजे काम शुरू होता है और 3 के बाद सन्नाटा छा जाता है। लोग़ डेट लेने आते है सिर्फ।।सवाल बहुत हैं ...
satta par aasin logo ko chakachandh me hi dikhai deta hai aur chuki desh ke aur qaidi ke mamle gumnam aur hasiye par hain aur unke pas mulayam ki power ka sahara nahi hai jo manmohan ki remote hain aur na hi bollywood ki chakachaundh hai .............aane wale samay me salman saif aadi nam bhi ho sakte hai
Post a Comment