अगर संजय दत्त को राज्यपाल माफी दे सकते है और संजय दत्त इसके हकदार है तो प्रिया दत्त तो इसे खुलकर कह सकती है। लेकिन जिस देश में हजारो हजार कैदी हक़दार हैं तो प्रिया दत्त तो खुलकर कह सकती हैं। लेकिन जिस देश में हजारों हजार कैदी संजय दत्त से कहीं ज्यादा त्रासदी भोग रहे हों और माफी तो दूर उनकी जमानत तक देने वाला कोई ना हो तो संजय दत्त के लिये माफी का सवाल एक शर्म तो हो ही जाती है। और शायद प्रिया दत्त में यह शर्म होगी। यह सवाल इसलिये क्योंकि 25 मार्च को शाम 4 बजे जस्टिस काटजू से मुलाकात के लिये प्रिया दत्त को आना था। लेकिन वह नहीं आयीं। क्योंकि वहां मीडिया था। जस्टिस काटजू को लगता रहा कि जब वह खुले तौर पर संजय दत्त को माफी दिये जाने की पैरवी कर रहे हैं तो संजय दत्त की बहन प्रिया दत्त का तो यह हक है कि वह माफी की खुली वकालत करें। लेकिन प्रिया शायद इस सच को समझ गई कि उनकी अपनी राजनीतिक जमीन जिस वोट बैंक पर टिकी है वहां फिर उनकी नहीं चलेगी। क्योंकि संजय दत्त अगर माफी के हकदार होते हैं तो 93 ब्लास्ट में सहआरोपियों की एक लंबी लिस्ट है, जिन्हें संजय दत्त से पहले माफी मिलनी चाहिये। क्योंकि संजय दत्त के घर जिन हथियारो को रखा गया वहीं हथियार जाने-अनजाने ऐसे लोगों के हाथों भी गुजरा जिनका ब्लास्ट से कोई लेना देना नहीं था और वह सभी कभी दाऊद से मिले भी नहीं थे।
मसलन, जैबुशा कादरी, मंजूर अहमद, इब्राहिम मूसा, युसुफ नलवाला, करसी अदजनिया और ऐसे ही दर्जन भर दोषी हैं, जिनका केस संजय दत्त पर भारी है। या कहे राज्यपाल को अगर नैतिक तौर पर यह कहा जाये कि वह किसी एक को माफी दे दें तो संजय दत्त का नंबर दस के बाद ही आयेगा। जाहिर है प्रिया दत्त को चुनाव बी लड़ना है तो वह जस्टिस काटजू से शाम 4 बजे का वक्त लेकर नहीं पहुंची। क्योंकि मीडिया वहां पहुंच चुका था। और कानून के दायरे में फंसे सजाय़ाफ्ता लोगो के बारे में सवाल होते। उनके अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों को लेकर सवाल होते। असल में जस्टिस काटजू जिस दलील को दे रहे हैं और 20 बरस तक की त्रासदी भोगने के दर्द को संजय दत्त के साथ जोड़कर देख रहे है, अगर इस 20 बरस की त्रासदी को ही राज्यपाल से माफी की लकीर मान लें तो मौजूदा वक्त में उत्तर प्रदेश की जेल में 673 कैदी और बिहार में 467 कैदी ऐसे हैं, जो 20 बरस से ज्यादा वक्त से जेल में इसलिये है क्योंकि किसी की जमानत देने वाला कोई नही है तो किसी की सुनवाई हुई ही नहीं। और जेल ही घर बन चुकी है। दिल्ली के तिहाड जेल में सात कैदी बीते 38 बरस से जेल में हैं। और इन्हें सजा तीन से सात बरस की हुई थी। लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। मुश्किल यह है कि कांग्रेस के महासचिव को संजय दत्त 33 बरस में भी नादान ही दिखायी देते है। एनसीपी और शिवसेना भी मानते हैं कि संजय दत्त को बहुत दर्द मिल चुका है। जबकि देश में कुल सवा तीन लाख सजायाफ्ता कैदियो में से 75 हजार कैदी ऐसे हैं जो आर्मस् एक्ट के तहत संजय दत्त से ज्यादा सजा भोग चुके हैं।
असल में संजय दत्त संभवत: देश के पहले ऐसे सजायाफ्ता अपराधी हैं, जिन्हें जमानत मिली। और जमानत के दौर में ही फिल्मो में काम करके दौ सौ करोड़ से ज्यादा बनाये। दर्जनों बार विदेश चले गये। शादी भी इसी दौर में कर ली। 2007-08 में तो एक न्यूज चैनल ने संजय दत्त को इयर अवार्ड से नवाजा। और संजय दत्त को सम्मानित करने और कोई नहीं देश के प्रधानमंत्री पहुंचे। यानी सबकुछ जमानत के दौरान। और अब जब देश की सबसे बडी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सजा सुना दी तो संजय दत्त को माफी मिल जानी चाहिये। और यह बात भी और कोई नहीं प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के चेयरमैन और देश के जस्टिस रह चुके मार्कन्डेय काटजू कर रहे हैं। यानी दिल देश के लिये नहीं संजय दत्त के लिये धड़क रहा है। तो किन्हें नाज है इस हिन्द पर जहां सिस्टम फेल है। और सिस्टम ठीक करने की जगह सिस्टम में ही लाभ मिलने की कवायद वही कर रहे है जो खुद को हिन्द का नाज मानते हैं।
Monday, March 25, 2013
प्रिया दत्त क्यों नहीं आयीं काटजू से मिलने ?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:08 PM
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6 comments:
बहुत बढ़िया विचार !
@
यानी दिल देश के लिये नहीं संजय दत्त के लिये धड़क रहा है। तो किन्हें नाज है इस हिन्द पर जहां सिस्टम फेल है।
## आपसे १०० % सहमत
प्रसुनजी,
ये जो आप समज रहे है, वो दत्त की वकालत करने वाले क्यु नही समज रहे है. विदुर निति कहती है की एक परिवार हैतु एक कुलांगार को मारना भी पडे तो उचित है. एक गांव के हित मे एक परिवार को मारना पडे तो एसा करना चाहिए, और एक राष्ट्र के हित मे एक गांव का बलि देना पडे तो वो करना चाहिए. यहां तो एक राष्ट्र की व्यवस्था का सवाल है और राष्ट्र की पुरी व्यवस्था को दांव पर लगाकर कुछ लोग एक आदमी को रक्षण दे रहे है, उसकी वकालत कर रहे है. और वो भी वो कुछ साल जेल न जाये उसके लिए.
तमाशा ए अहले करम देखते है,
लगता है इस देश में अब देश से ज्यादा एक नचनिया महान हो गया है और पुरी व्यवस्था उसके इर्दगिर्द मुजरा कर रही है.
एनसीपी, शिवसेना, जया प्रदा, अमरसिंह, जस्टिस काट्जु और संजय दत्त की वकालत करने वाते सब वो दिन याद करे जब मुंबई धमाके में सेंकडो जान गई, और उस दिन के साथ घडीभर अपने आप को ये मान के जोड ले की वो धमाके में मरने वाला एक अपना भाई, बहन, पति, पत्नि भी था. और ये भी मान ले की अग्निसंस्कार के लिऐ उसका पुरा शरीर नही मिला था, सिर्फ सर मिला था.
हमे तो इस देश के वर्तमान पर रौना आता है.
बहुत ही बेहतरीन विचार ,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बिलकुल सही कहा है आपनें !!
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