सोनिया गांधी ने सत्ता टिकाये रखने की राह पकड़ी और राहुल गांधी ने टिकी सत्ता डिगे नहीं, इस राह को पकड़ा। दागियों के जीतने की संभावना मौजूदा चुनावी सिस्टम में सबसे ज्यादा है, इसे सोनिया गांधी समझती है और इस सिस्टम से आम वोटर परेशान और दुखी है इसलिये वोटरो की भावना के साथ खड़े होना जरुरी है इसे राहुल गांधी ने समझा। और देश के प्रधानमंत्री की टोपी सरेआम उछाल कर गांधी परिवार ने कांग्रेस को बचा लिया क्या इतिहास में यही दर्ज होगा। ध्यान दें तो गांधी परिवार पहली बार सरकार और पार्टी के बीच कुछ इस तरह खडा है, जहां सरकार भी उसके इशारो पर है और पार्टी संगठन भी उसे ही मथना है। यानी पीएम हो या संगठन दोनों जगहों का मतलब गांधी परिवार है। लेकिन पहली बार सत्ता की जिम्मेदारी से गांधी परिवार मुक्त है और रास्ता टकराने के बाद ही निकल रहा है। तो क्या सरकार के निर्णय को बेहुदा करार देना और कैबिनेट के अध्यादेश को फाड देना राहुल गांधी के निजी गुस्से का प्रतीक है या फिर चित भी मेरी और पट भी मेरी के खेल की बिसात गांधी परिवार खुद ही बिछा रहा है और अजय माकन से लेकर मनमोहन सिंह महज प्यादे बन सिर्फ एक एक चाल रहे हैं।
अगर 27 सितंबर को दिल्ली के प्रेस क्लब में अचानक अवतरित हुये राहुल गांधी के दागियों को बचाने के सरकारी अध्यादेश के धज्जियां उड़ाने से पहले और बाद के हालात को देखे तो तीन सवाल सीधे किसी के
भी जहन में आ सकते हैं। पहला , मनमोहन सिंह के पीएम होने की उम्र पूरी हो चुकी है। दूसरा, राहुल गांधी कमान संभालने की तैयारी कर रहे हैं। और तीसरा हर गलत निर्णय का ठीकरा मनमोहन सिंह के मत्थे मढकर खुद को पाक साफ बताने में गांधी परिवार हुनरमंद हो चला है। हकीकत जो भी हो लेकिन राहुल गांधी ने जैसे ही दागियों के अध्यादेश को बेहुदा करार दिया वैसे ही उन्हीं कैबिनेट मंत्रियों को सांप सूंघ गया, जो 48 घंटे पहले तक मनमोहन सिंह के साथ खड़े थे। और सभी एक एक कर मनमोहन का साथ छोड़ राहुल गांधी के पक्ष में आ गये। मनीष तिवारी, राजीव शुक्ला, ऑस्कर फर्नाडिस, शशि थरुर ने बयान बदलने में देर नहीं की और 24 घंटे पहले जो तीन कैबिनेट मंत्री राष्ट्रपति को समझा कर आये थे कि अध्यादेश क्यों जरुरी है,वे वह तो मीडिया से लुका-छिपी का खेल खेलने लगे। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, कानून मंत्री कपिल सिब्बल और संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ तो 27 सिंतबर को छुपते और भागते ही दिखायी दिये। जबकि इन्हीं तीनों मंत्रियों से जब 26 की रात राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पूछा कि अध्यादेश की इतनी जल्दबाजी क्यों है तो तीनों ने ही मौजूदा राजनीतिक समीकरण और संसद की सर्वोच्चता पर बड़े बड़े तर्क गढ़े। तो पहला जवाब है कि राहुल गांधी मौजूदा वक्त में नंबर एक हैं। चाहे वह कांग्रेस संगठन को ही मथने में लगे हो लेकिन मनमोहन सिंह के सभी मंत्री भी जानते-समझते हैं कि बिना गांधी परिवार ना तो कांग्रेस का कोई मतलब है न ही सरकार का। दूसरा जवाब है कि जिस रास्ते मनमोहन सरकार चल निकली है, उसमें कांग्रेस से ज्यादा फजीहत सरकार की हो रही है और सरकार से बाहर कांग्रेसी मान रहे हैं कि गलती मनमोहन सिंह को बनाये रखने में है इसलिये पीएम पद की अगर टोपी उछाली भी जाये तो वह कांग्रेस के ही पक्ष ही जायेगा। क्योंकि कांग्रेस की विचारधारा से इतर मनमोहन सिंह की नीतियां चल निकली हैं। और कांग्रेस के पारंपरिक वोट का बंटाधार किये हुये है। और
तीसरा जवाब है राहुल गांधी के अलावे कांग्रेस के पास ऐसा कोई हथियार नहीं है, जिससे वह 2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर हवा में भांजे और वह जमीन पर कुछ करता दिखे।
लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर वह कौन सी स्थितियां रही हैं, जिसने गांधी परिवार के सामने ऐसी परिस्थितियां ला खड़ी की हैं कि वह पीएम पद की टोपी को हवा में उछाल कर राजनीतिक सुकुन पा रहा है। तो इसकी जड़ में उसी आम जनता का गुस्सा है जो अपराध और भ्रष्टचार में गोते लगाती राजनीतिक व्यवस्था को बर्दाश्त करना भी नहीं चाहता है लेकिन उसके सामने इससे निकलने का कोई विकल्प भी नहीं है। और अन्ना के आंदोलन ने बाद कोई राजनीतिक दल मौजूदा राजनीति का विरोध करते हुये नजर भी नहीं आया। ध्यान दें तो नरेन्द्र मोदी इसी गुस्से को राजनीतिक तौर पर भुनाने के लिये लगातार मनमोहन सरकार के कामकाज के तौर तरीको पर सीधे कटाक्ष कर रहे हैं और जब जब वह मनमोहन सिह के तौर तरीके की खिल्ली उडाते हैं तो तालियां बजती हैं। और राहुल गांधी भी जिस गुस्से में 27 सितंबर की सुबह प्रेस क्लब में पहुंचे और उसी गुस्से को शब्दों में उतार 10 मिनट के भीतर अपनी बात कह निकल गये, उसने भी उसी जनता को तालियां बजाने का मौका दिया जो गुस्से में है। अब तालियां बजी या नहीं या फिर जनता के गुस्से से कोई सरोकार अपने ही पीएम की टोपी उछाल कर राहुल बना पाये या नहीं यह तो कांग्रेस का अपना आंकलन होगा लेकिन रांहुल ने सच कहा, इससे किसे इत्तफाक ना होगा। लोकसभा में 162 दागी हैं। राज्यसभा में 44 दागी हैं। देश भर की विधानसभा में 1258 दागी हैं। और 2009 के चुनाव में तमाम राजनीतिक दल या निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जो भी नेता उतरे उनकी तादाद सात हजार पार थी। और उसमें से 2986 उम्मीदवार ऐसे थे, जिनपर कोई ना कोई केस चल रहा था। 1490 उम्मीदवारो पर तो हत्या, लूट, बलात्कार, अपहरण सरीखे आरोप थे। तो जनभावना दागी अध्यादेश के पक्ष में थी नहीं और जमीन पर इसका उबाल पैदा होना शुरु हो गया था इसे कांग्रेस बाखूबी समझ रही थी। और राहुल गांधी ने इन्हीं परिस्थितियों को देखकर चाल चली। लेकिन यहीं से दूसरा सवाल निकलता है कि अध्यादेश के खिलाफ राहुल गांधी के तीखे तेवर के बावजूद वाशिंगटन में बैठे पीएम मनमोहन सिंह ने 27 सिंतबर को ही जब यह कहा कि वह लौट कर कैबिनेट में चर्चा करेंगे और सोनिया गांधी ने भी उनसे फोन पर बात की तो खुले तौर पर फिर वही सवाल सामने आया कि जो दागी हैं, उनके पक्ष में सरकार है या दागी अपनी नाजायज ताकत से चुनाव जीतने का दम-खम रखते हैं तो इससे सत्ता समीकऱण बनाये रखने के लिये सरकार दागियो के आगे नतमस्तक है।
सवाल है कि अब आगे क्या होगा। क्योंकि बीजेपी भी दागियो को बचाने के पक्ष में रही है। राज्यसभा में इसीलिये यह पास हो गया। लेकिन अध्यादेश लाने का विरोध करते हुये राहुल की तल्खी ने बीजेपी को ऑक्सीजन दे दिया। यानी राहुल गांधी अभी खामोश नहीं होंगे और जिस अध्यादेश के लेकर उन्होंने बेहुदा शब्द का इस्तेमाल किया है उसका सरलीकरण वह पीएम की टोपी को उछालनेवाला बताने से बचने के लिये फिर सामने आयेंगे। और पीएम एक बार फिर काजल की कोठरी में बैठ कर निर्णय लेते हुये भी कही ज्यादा झक सफेद हो कर निकाले जायेंगे। जो पीएम की बेबसी भी दिखायेगी और संसदीय मर्यादा का पालन करने वाले नेता के तौर पर मान्यता भी दिलायेगी। इसलिये सवाल यह नहीं है कि प्रधानमंत्री अपनी टोपी के उछाले जाने से रोष में आयेंगे या कोई खटास पैदा कर देंगे। कांग्रेस और सरकार के लिये सवाल सिर्फ इतना है कि राहुल गांधी इस विवाद में कौन सा आखिरी शब्द बोलेंगे, जिसके बाद आम जनता में यह भाव जगे कि राहुल गांधी पप्पू नहीं हैं। यह अलग बात है कि इतिहास के पन्नों में अपनी ही सरकार और अपने ही बनाये पीएम के कैबिनेट से निकले अध्यादेश को बेहुदा और फाड़ देने वाला राहुल गांधी का बयान इंदिरा से इंडिया की तर्ज पर दर्ज हो गया।
Saturday, September 28, 2013
राहुल गांधी ने पीएम की टोपी क्यों उछाली?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 4:37 PM
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6 comments:
फ़िल्मी पटकथा के इतर कुछ नजर नहीं आया क्योंकि यह तो हर कोई जानता है कि गांधी परिवार ही कांग्रेस है ! ऐसे में ऐसा हो नहीं सकता कि अध्यादेश उनकी रजामन्दी के बिना लाया गया हो !!
राहुल गांधी ने वो हथकंडा अपनाया, जो भाजपा अपना रही है, नेगेटिव पब्लिसिटी, एक एंग्री यंगमैन, को पैदा करना। भले ही कागजी हो, भले ही फिल्मी हो
ab to news paper ke jariye bhi politics saf saf ki ja rahi hai! feku !pura alag se aik pristh hi chap diya gaya!menan ji ki presswarta bhale hi nirasajanak ho par modi ka ye puchna " kya aapke sapno ko shabd de" remarkable tha!koi dhur birodhi kitna hi kyo na ho par modi ke atthas ko dekhkar koi bhi namo ko welcome karega! rahul angryman jaise dikh sakte hai par rajniti abhi bhi sikhni hogi lekin kosis unki achhi hai!
सियासत की कुर्सी पर बैठने के लिए पहले टोपी पहनाई जाती है फिर उछाली जाती है | आज तक जो इस कुर्सी पर बैठे हैं वे सब टोपी उछाल कर ही बैठे हैं | इस टोपी को छीनने का ये सरल उपाय है उसे हवा का रुख़ देख कर उछाल दो |
rahul ko to ye karna hi tha warna BJP is ordinanace ke wapas hone ka pura srey le jati......aur congress ke liye MMS ki izzat koi mayene nhi rakhti. Unke liye sirf kursi mayene rakhti h.
जनता की तालिओं का तो पता नहीं पर राहुल गाँधी ने सरकार के मुहँ पर ताली ज़रूर बजाई है! अध्यादेश वापस लेने के बाद आपने अपने एक संवादाता से पुचा था कि उनकी क्या राय है तो वह बोले थे कि "फैसला सही है पर तरीका गलत है"! मैं आपके संवादाता के इस कथन से 100% सहमत हूँ! माना कि प्रधानमंत्री और उनकी cabinet का यह फैसला गलत था पर राहुल गाँधी ने ऐसा कर प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का अपमान किया है! माना कि ऐसा निकामा नाकारा नालायक और निखटु अध्यादेश एवं बिल लाने बनाने वाले लोग सम्मान क योग्य नहीं पर फिर भी बेहतर होता अगर राहुल गाँधी ने यह सब सुपरमैन टाइप के काम प्रेस कांफेरेंस की जगह प्रधानमंत्री के साथ अकेले में किये होते! खैर एक बात तो माननी पड़ेगी, दिग्विजय सिंह जी ने कुछ महीने पहले कहा था कि "दो पॉवर सेन्टरस होने में कुछ गलत नहीं है" पिछले 5-6 सालों में यह शायद दिग्विजय जी का पहला अकलमंदी वाला बयान था! राहुल गाँधी ने दिग्विजय जी की इस बात कों prove कर दिया, मनमोहन सिंह जी के पास कुर्सी है पर पॉवर नहीं! पॉवर अभी भी 10 जनपथ में ही है जिसके दम पर राहुल गाँधी ने PM की टोपी उछालने की हिमाकत की!
एक टिप्पणी सिब्बल साहब पर :
प्रसून जी आपने अपने लेख में सिब्बल जी के बारे में भी एक छोटी सी लाइन लिखी है! अब सिब्बल साहब के बारे में क्या कहें! दिग्विजय सिंह, शिंदे, सिब्बल और चिदाम्बरम की चोकड़ी ने शायद कांग्रेस की लुटिया डुबोने के लिए ही पार्टी join की है! पहले दो व्यक्ति जहाँ अपने ऊट-पटांग बयानों से कांग्रेस की फजीयत कराते हैं वहीँ आखिरी दो अपने फैसलों से सरकार की बची खुची इज्ज़त कों मिट्टीपलीद करने में लगे हैं! चिदाम्बरम साहब ने तो केवल अन्ना और बाबा रामदेव के केस में ही सरकार की फजीयत कराई पर सिब्बल साहब ने तो
ना केवल अन्ना और बाबा रामदेव के केस में बल्कि पहले zero लॉस theory और अब यह अध्यादेश बना कर और इससे पास करने की जल्दी से सरकार की इज्ज़त का फालूदा कर दिया है! एक बात जो मुझे समहज नहीं आती वह यह है की अपनी इज्ज़त की इतनी बैंड बजाने के बाद भी सरकार अभी भी सिब्बल साहब पर इतनी depend क्यूँ रहती है!
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