राहुल गांधी डर रहे हैं या डरा रहे हैं। अगर डर रहे हैं तो उन्हें किस बात का डर है। और अगर वह डरा रहे हैं तो वह देश को किससे डराना चाहते हैं। राहुल गांधी का खुद की मौत को लेकर डर महज भावुकता में दिया गया वक्तव्य नहीं है। और ना ही खुद को इंदिरा या राजीव गांधी के समकक्ष खड़ा करने का इमोश्नल ब्लेकमेल है।
करीब 40 मिनट के भाषण में पहले 12 मिनट राहुल गांधी ने जिस तरह इंदिरा गांधी की हत्या के उस वातावरण को उभारा, जिसमें 1984 में 14 बरस का राहुल डरा हुआ था। उसने पहली बार ना सिर्फ 14 बरस के बालक राहुल के डर को उभारा बल्कि 1 सफदर जंग का वह घर जिसमें भारत की सबसे ताकतवर पीएम इंदिरा गांधी रहती थी, उनकी हत्या की परतों को भी कुछ इस तरह खोला, जिसने झटके में ना सिर्फ पीएम के घर के भीतर की सुरक्षा व्यवस्था बल्कि इंदिरा की हत्या के ठीक बाद सुरक्षा दायरे में भी गांधी परिवार किस तरह हत्या को लेकर खौफजदा था इस डर को उभार दिया। तो क्या राहुल गांधी ने उस डर को सार्वजनिक कर दिया है जो डर बार बार गांधी परिवार से ही निकलता है कि अगर गाधीपरिवार का कोई भी शख्स पीएम बना तो उसकी हत्या कर दी जायेगी।
ध्यान दें तो 2004 में सोनिया गांधी ने जब पीएम बनने से इंकार किया तो कई थ्योरी निकली। जिसमें एक थ्योरी हत्या के डर की भी थी। पिछले दिनो पंजाब में भाषण देते वक्त राहुल गांधी ने अपने पायलट पिता राजीव गांधी की मौत के डर को आसमान में बिगड़ने वाले मौसम को देख कर सोनिया गांधी के डर को ही उभारा। जिसके साये में राहुल और प्रियका भी मौसम के बिगड़ने पर आसमान देखकर सोचते की पिता राजीव लौटेंगे भी या नहीं। असल में यह डर है क्यों। आखिर क्यों गांधी परिवार हत्या के डर से खौफजदा है। ध्यान दें तो नेहरु परिवार में जवाहरलाल नेहरु को छोड़ कोई मौत सामान्य हालात में नहीं हुई। संजय गांधी विमान उड़ाते हुये मरे। इंदिरा गांधी की हत्या हुई। राजीव गांधी की भी हत्या हुई। और इसी दो पीढ़ी के साथ सोनिया गांधी जुड़ी और राहुल गांधी ने भी दादी इंदिरा और पिता राजीव की हत्या को सियासी तौर पर महसूस किया। तो क्या विरासत में मिले सियासी हत्या का डर राहुल को डरा रहा है या फिर जो हालात देश में बन रहे है उस हालात से राहुल डरे हुये हैं क्योंकि गांधी परिवार का दायरा देश में होकर भी कितना अकेला है यह किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में राहुल का डर कहीं यह तो नहीं कि सत्ता से बाहर होते ही सुरक्षा दायरा खत्म होगा और गांधी परिवार अलग थलग पड़ जायेगा। इसलिये डर के संकेत की रेखा राहुल गांधी ने राजनीतिक प्रतिद्वंदी बीजेपी की तरफ खींची।
क्योंकि यह पहली बार है जब दंगे और सियासी हिंसा से लेकर लोगो के गुस्से की वजह बीजेपी को बताते हुये राहुल गांधी ने मिशन 2014 को नये राजनीतिक संकेत खुले तौर पर दिये। ध्यान दें तो पहली बार देश के लोगों में कई मुद्दों को लेकर गुस्सा है। लेकिन गुस्से के निशाने पर मनमोहनसिंह से कहीं ज्यादा गांधी परिवार है। क्योंकि मनमोहन सिंह ना तो देश और ना ही कांग्रेस के पीएम पद के उम्मीदवार बनकर चुनाव के मैदान से पीएम बने। मनमोहन सरकार को सोनिया गांधी रिमोट से चलाती है और राहुल गांधी मनमोहन सरकार को अंगुठे की नोंक पर रखते हैं, यह कैबिनेट के अध्यादेश को फाड़ने वाला बताकर राहुल ने साबित भी कर दिया। तो गुस्सा गांधी परिवार से जरुर होगा। लेकिन जिस तर्ज पर राहुल गांधी बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया उसके पीछे कहीं ना कहीं मौजूदा राजनीति भी है।
क्योंकि पहली बार पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर संघ परिवार के कहने पर बीजेपी ने उस नरेन्द्र मोदी को उतारा है जो लुटियन्स की दिल्ली का नहीं है। जो उस राजनीतिक क्लास के भी नहीं है जो संसद में तो हर मुद्दे को लेकर कांग्रेस का विरोध करती है लेकिन संसद ठप होते ही गलबहिया करने से नहीं चुकती। ध्यान दें तो संघ परिवार भी दिल्ली के बीजेपी नेताओं से इसीलिये खफा है क्योंकि बीजेपी का भी कांग्रेसीकरण हो रहा था। और सियासी तौर तरीके इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के बौद्दिकों के आसरे चलते रहे। मोदी के पास तो गुजरात का फार्मूला है, जहां राजनीतिक सत्ता पर बने रहना सिर्फ सियासी तिकडम भर नहीं होता। इसलिये ध्यान दे तो पीएम उम्मीदवार बनते ही नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से गांधी परिवार को निशाने पर लिया है, वह बीजेपी की राजनीतिक परंपरा से हटकर है। सिर्फ सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही नहीं बल्कि दामाद रॉबर्ट वाड्रा को भी निशाने पर लेने से कोई कोताही नरेन्द्र मोदी ने नहीं बरती।
मोदी की राजनीति को समझे तो गांधी परिवार इस हालात से डरा हुआ नहीं होगा, ऐसा हो नहीं सकता है और राहुल 2014 के मिशन को अस्तित्व की लड़ाई नहीं मान रहे होंगे, यह भी संभव नहीं है। क्योंकि मोदी के सत्ता में आने का मतलब सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं होगा, यह राजनीतिक हालातों और उसके तौर तरीको को भी बदलेगा। राहुल गांधी इस हकीकत को समझ रहे हैं, शायद इसीलिये अपनी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी को गंवाने के बावजूद अपने गुस्से को अपनी समझदारी तले दफन करने को ही सियासी हथियार बनाने से नहीं चूक रहे हैं।
Wednesday, October 23, 2013
राहुल गांधी डर रहे हैं या डरा रहे हैं
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:42 PM
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3 comments:
यक मोदी सा आ का मतलब सफ सा परवतन नह होगा, यह राजनीतक हालात और उस तौर तरीको को भी बदगा।
सर आपका शब्दों का योग बेजोङ है। और २०१४ का रास्ता शायद मोदी से होकर ही निकलेगा।।।।।
bahut badhiya likha hai aapne .
main aapka program roz dekhta hu..
aapka mere blog ke is post par swagat hai..
ek baat awasy padhariye..
http://iwillrocknow.blogspot.in/2013/09/is-narendra-modi-is-solution-of-all.html
में आपका बहुत बड़ा फैन हूँ.. आपके दरअसल शब्द से में बहुत प्रभावित हूँ.....कई वक़्त से आपको फॉलो कर रहा हु आपकी तरह लिखने कि कोशिश करता हूँ, ब्लॉग बनाया है नाम भी दरअसल ही रखा है, प्लेस सर मेरा ब्लॉग देखें ....http://anokhiinajar.blogspot.in/
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