Tuesday, February 25, 2014

संघ की बिसात पर सोशल इंजीनियरिंग

नरेन्द्र मोदी, रामविलास पासवान और उदित राज। तीनों की राजनीतिक मजबूरी ने तीनों को एक साथ ला खड़ा किया है। या फिर तीनों के लाभालाभ ने एक दूसरे का हाथ थामने के हालात पैदा कर दिये हैं। 2014 के आम चुनाव को लेकर बिछते राजनीतिक बिसात पर बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग का यह नायाब चेहरा है। या फिर पहली बार संघ परिवार के ओबीसी नायक नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता की हवा में अपनी राजनीतिक जमीन बनाने का प्रयास उदितत राज और रामविलास कर रहे हैं। हो जो भी लेकिन राजनीतिक गठबंधन इस तरह करवट लेगें यह बीजेपी ने तो नहीं ही सोचा होगा बल्कि संघ परिवार को तो सोते में भी इसका अहसास नहीं होगा कि जिस जातीय राजनीति का पाठ उसने कभी अपने राजनीतिक स्वयंसेवकों को पढाय़ा ही नहीं, वह कैसे संघ परिवार के सबसे मुखर स्वयंसेवक के साथ आ खड़ा हुआ है। इतिहास के पन्नों को पलटे तो उदित राज हो या रामविलास पासवान दोनों ने जातीय राजनीति के आसरे पहला निशाना हमेशा बीजेपी पर ही साधा है। याद कीजिये 1990 में मंडल कमीशन का विरोध बीजेपी कर रही थी तो वीपी सिंह ने आडवाणी की राम रथ यात्रा को थामने के लिये सबसे पहले रामविलास पासवान को ही सड़क पर उतारा था। पासवान बकायदा दलित सेना लेकर सड़क पर उतरे थे और बीजेपी को जातीय जरुरत को समझने का पाठ सड़क से पढाना शुरु किया था।

उस वक्त पासवान सबसे मुखर होकर बीजेपी की राजनीति पर निशाना साध रहे थे और बीजेपी को मनुवादी करार देने से नहीं चूक रहे थे। इसी तर्ज पर 4 नवंबर 2001 में बौध धर्म अपना कर उदितराज ने संघ परिवार पर सीधा निशाना साधा था। और सर मुंडा कर आरएसएस के ब्राह्मणवादी सोच पर सीधा हमला बोला था। बीजेपी की हिन्दुत्व थ्योरी पर सीधी चोट की थी। और तो और 6 दिसबंर 2002 को तो चेन्नई में धर्म परिवर्तन की सबा में संघ पर जिस तरह सीधा हमला किया था, उसके बाद विहिप के गिरिराज किसोर ने तो खुले तौर पर उदितराज की राजनीति को नौंटकी करार देते हुये समाज में विष फैलाने वाला करार दिया था। ध्यान दें तो 1990 हो या 2001 संघ परिवार ने ही नहीं बीजेपी ने भी कभी इस तरह की सोशल इंजीनियरिंग को तरजीह दी नहीं। 90 में कमंडल तले मंडल के नीचे से समर्थन खींच लिया तो वीपी सिंह की सरकार गिर गयी और 2001 में गोविन्दाचार्य यूपी बिहार घूम घूम कर आरएसएस को सोशल इंजीनियरिंग पाठ पढ़ा रहे थे। लेकिन मुखौटे के मुद्दे पर गोविन्दाचार्य को बीजेपी ने झटका तो संघ ने भी आसरा इसीलिये नहीं दिया क्योकि तबतक कल्याण सिंह के जरीये अयोध्याकांड का सोशल इंजीनियरिंग का बुखार संघ से उतर चुका था ।

लेकिन अब इतिहास के पन्नो को मिटा कर जब नया इतिहास ही 2014 के लोकसभा चुनाव के लिये लिखा जा रहा है तो मोदी की चुनावी बिसात पर उदितराज और पासवान को प्यादा या वजीर के तौर पर मानना देखना होगा। क्योंकि लोकसभा की कुल 543 में से 120 सीटे सिर्फ यूपी और बिहार में है जहा बीजेपी दलित वोट में इन्दीं दो के आसरे सेंध लगाना चाहती है। यूपी और बिहार में दलित वोट बैक 22 से 24 फिसदी के बीच है। यूपी में मायावती को 2009 में दलितों के 55 फिसदी वोट मिले थे। लेकिन बिहार में दलित वोट बैंक के कई खिलाड़ी हैं और दलितों में महादलित का खेल नीतीश कुमार ने जैसे ही किया वैसे ही लालू पासवान का सिक्का भी कमजोर पड़ गया। दरअसल, नरेन्द्र मोदी पीएम की रेस में जिस तरह दौड़ रहे है उसमें पहली बार आरएसएस ने भी विचारधारा की लक्ष्मण रेखा तक को मिटा दिया है। और जातीय राजनीति का गणित अगर मोदी को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने के अनुकूल है तो फिर संघ ने भी अपनी बांहें समेट रखी हैं। असर इसी का है कि यूपी बिहार में लोकसभा की कुल 120 सीटो के लिये बीजेपी के सोशल इंजीनियरिंग का यह सबसे बड़ा सियासी दांव खेला जा रहा है। उदित राज यूपी के रामनगर के हैं। खटिक है तो यूपी में मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिये बीजेपी के पास अभी तक कोई चेहरा नहीं था। तो दलित वोट बैंक को लेकर उदितराज बीजेपी का नया चेहरा हो सकते हैं। वहीं बिहार में भी बीजेपी के पास दलित वोट के लिये कोई चेहरा नही है ऐसे में रामविलास पासवान अगर बीजेपी के साथ आ जाते है तो फिर बिहार में बीजेपी को बड़ा लाभ हो सकता है। क्योंकि पासवान के पक्ष में दलितों के वोट सबसे ज्यादा पड़ते रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के साथ पासवान अगर मिलते हैं तो जातीय गणित बीजेपी को भी जीत दिलायेगा और पासवान को भी राजनीतिक जीत का लाभ मिलेगा। आंकड़ों के लिहाज से समझे तो बिहार में 23 फिसदी दलित हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में दलित वोट बैंक में से रामविलास पासवान को सबसे ज्यादा 29 फिसदी वोट मिले थे। और बीजेपी को सबसे कम 8.5 फिसदी वोट मिले थे। ऐसे में अगर दोनो मिल जाते हैं तो 37.5 फिसदी वोट बीजेपी-एलजीपी गठबंधन के पास होगा। जो नीतिश कुमार के 23 फिसदी और लालू यादव के 16.5 फिसदी से कहीं आगे होगा। यानी बिहार की उन 12 सीटो पर बीजेपी-एलजेपी का सियासी गठबंधन मुसलिम वोट बैक की धार को बेअसर कर सकता है, जिसके आसरे लालू नीतिश या कांग्रेस अभी तक बीजेपी को मात देते आये हैं। हालांकि उदित राज के जरीये बीजेपी यूपी में कोई चुनावी गणित बदल देगी या मायावती के वोट बैंक में सेंध लगा देगी। यह कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन उदित राज की पहचान के साथ बीजेपी को तीन लाभ तो मिल ही सकते हैं। पहला यूपी में मायावती की काट के तौर पर इस्तेमाल, दूसरा बंगारू लक्ष्मण से हुए नुकसान की भरपाई का मौका मिलेगा और तीसरा उदितराज के जरीये दलितों की बनायी हुई मायावती की छवि को तोड़ा जा सकता है क्योंकि उदितराज पढे-लिखे अधिकारी रह चुके हैं और बाकायदा अंबेडकर की लीक पकड कर बौध धर्म अपनाया। और चूंकि उदितराज ने अपनी राजनीतिक पारी 13 बरस पहले 2001 में इंडियन जस्टिस पार्टी बनाकर शुरु की तो बीजेपी आंबेडकर की विरासत को उदितराज के साथ जोडकर मायावती की दलित सियासत में सेंध लगाने की चाल भी चलेगी।

लेकिन आखिरी सवाल संघ परिवार का है जिसकी पीठ पर मोदी सवारी कर भी रहे है और 2014 का डर दिखाकर संघ को झटकने से भी नहीं कतरा रहे है। ऐसे मोड़ पर आरएसएस चाहे उम्मीदवारो के नाम तय करें। चाहे संघ के स्वयंसेवक गली गली घूम कर हिन्दुत्व का राग अलापे और देश के लिये पहली बार हर किसी को वोट डालने के लिये घर से निकालने में भिड़े। लेकिन जब संसदीय चुनाव का रास्ता ही मोदी के नाम पर बन रहा होगा तो हर जीत के पीछे मोदी ही होंगे। संघ का चैक एंड बैंलेस काम कैसे करेगा। यह सवाल संघ को बैचेन तो जरुर कर रहा होगा लेकिन पहली बार संघ भी सत्ता देख रहा है और उम्मीद पाले हुये है कि सत्ता पाने के बाद किसी हिन्दी फिल्म की तर्ज पर पोयटिक जस्टिस होगी और मोदी भी संघ की विचारधारा तले लौट आयेंगे।

7 comments:

Unknown said...

Ek baat to pakki hai ki rajneeti me koi chiz choot nhi hoti...arr fyada ka hi sikka chalta hai

Unknown said...

Sir sunne main aya apne Aaj Tak chhosd diya hai kya yah sahi bat hai?

Unknown said...

Sir,aapkaa me bhut bada fan hu,aapka 10 TK rok dekhta hu arr newslaundary me aapka interview dekha arr shyad arr bada fan ho gya.sir mujhe aap jaisa journalist banna hai,sir is field me aap mere idle ho.sir koi guideline or advise sir dena chate ho to plss digeyega,malum hai aapke pass time nhi hoga lekin ummid hai aap denge,sir aap ne kisi bhi article me apna history nhi btaya ...sir aap apni biography pr article likhiye na.acha lagta hai app ko news padhte dekhna,apne vicharo ko kitne aasani se keh jate hai arr koi aapki tareef kr diya to halki si muuskuraht,sir uppar likhe hue comment me thoda Sa clerical mistake ho gya uske liye maaf kr dijeyega..aapka shyad sabse bada subhchintak arr chahne wala.....

Yashika sharma said...

वाजपई जी में आपको नोटिस कर रहा था आपके साथी पत्रकार अंजना ॐ कस्यप को भी आप लोग अरविन्द केजरीवाल को हीरो बनाना चाहते थे रात दिन आप अरविन्द अरविन्द केजरीवाल करना , अचानक से दिल्ली के स्टीग ऑपरेशन आना ...सर ये सब अचानक क्यों हुआ ....सब को अब समझ में आया ....इंडिया टुडे का प्लेन पहूचना ..

मेने तो आज तक जो ब्लाक कर दिया था .....किसी व्यक्ती विशेष को इतना बड़ा बना देना... सर जनता सच जानना चाहती है चाहे फिर वो मोदी जी हो या केजरीवाल जी ...

आप को हक़ नहीं दिया की आप अपनी पत्रकारिता से लोगो को मुर्ख बनाये ....

शायद पत्रकारिता का नैतिक पतन की शरुवात अन्ना हज़ारे के आंदोलन से शुरू हो गया था

सर आपने अरविन्द केजरीवाल को मुफ़त में बिन मागे बहुत सलाहे दे होगी.....
उसमे सीम पद से ईस्तीफा भी आप की सलाह का नतीज़ा है ....क्यों की ये सब पहले से प्री प्लान था..

Unknown said...

सर मै आपका बहुत बड़ा फेन था ....खासकर आपके बोलने के अंदाज़ को लेके ......और मुझे लगता था की आपके द्वारा बोला गया news पूरा सही लगता था....मै रात को १० तक हो या बड़ी खबर जिस चैनल पर आप जाते उसे देखता था पर केजू के साथ आपका इन्टरव्यू देखा तो मुझे अपने पे हँसी आ गयी की कैसे मैंने आपको सचा मन और आप भी वही निकले खैर सबका अपना लाइफ है आप भी आप के साथ एन्जॉय कीजिये

Unknown said...

सर मै आपका बहुत बड़ा फेन था ....खासकर आपके बोलने के अंदाज़ को लेके ......और मुझे लगता था की आपके द्वारा बोला गया news पूरा सही लगता था....मै रात को १० तक हो या बड़ी खबर जिस चैनल पर आप जाते उसे देखता था पर केजू के साथ आपका इन्टरव्यू देखा तो मुझे अपने पे हँसी आ गयी की कैसे मैंने आपको सचा मन और आप भी वही निकले खैर सबका अपना लाइफ है आप भी आप के साथ एन्जॉय कीजिये

Gaurav said...

"क्रांतिकारी बहुत ही क्रांतिकारी"