नरेन्द्र मोदी और प्रियंका गांधी। मौजूदा राजनीति के यही दो चेहरे हैं जो अपने अपने 'औरा' को लेकर टकरा रहे हैं। और दोनों का ही तिलिस्म बरकरार है। दोनों की राजनीतिक मुठ्टी अभी तक बंद है। लेकिन दोनों ही लीक तोड़कर राजनीतिक पहचान बनाने में माहिर हैं। लेकिन दोनों के तिलिस्म के पीछे दोनों के हालात अलग अलग हैं। प्रियंका इसलिये चमक रही हैं क्योंकि चमकदार राहुल गांधी फीके पड़ चुके हैं। मोदी इसलिये धूमकेतू की तरह नजर आ रहे हैं क्योकि बीजेपी अमावस में खो चुकी है। प्रियंका का औरा इसलिये बरकरार है क्योंकि इंदिरा का अक्स उसी में नजर आता है। मोदी का औरा इसलिये नहीं टूटा है क्योकि मोदी पॉलिटिशियन कम और प्रचारक ज्यादा है। लेकिन दोनों के लिये सबसे सकारात्मक हालात यही है कि दोनों ही उस राजनीतिक सत्ता के हिस्सेदार नहीं हैं जिस पर से आम जनता का भरोसा उठा है। जिस राजनीति को लेकर जनता में आक्रोश है।
इसलिये मोदी के भाषण में आक्रोश झलकता है तो लोग अपने हक में मोदी को खड़ा देखते है। वहीं प्रियंका गांधी के भाषण में सादगी है तो सुनने वालों को लगता है कि सियासत सरलता के साथ सरोकार जोड़कर भी हो सकती है। जो मुश्किल के वक्त दुर्गा भी बन जाये । जैसे इंदिरा बनी थी। तो प्रियंका की अपनी राजनीतिक उपलब्धि से कहीं ज्यादा इंदिरा के राजनीतिक कद की परछाई होने का लाभ मिल रहा है और मोदी राजनीति में होकर भी राजनेता से ज्यादा प्रचारक है तो भ्रष्ट होती राजनीति में मोदी पाक साफ नजर आ रहे हैं। जिसका लाभ मोदी को मिल रहा है। और दोनों मौजूदा राजनीति में अगर चमक रहे हैं या एक दूसरे को राजनीतिक चुनौती देने की स्थिति में आ खड़े हुये हैं तो उसकी एक बड़ी वजह दोनों दोनो के वह हालात है जिसके दायरे में दोनों ही अभी तक पारंपरिक राजनीति के खिलाफ खड़े होते आये हैं। लेकिन पहली बार दोनों आमने सामने हैं तो दोनों के तौर तरीके ही एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। निशाने पर कद्दावरों ने लिया और मोदी का कद बढता चला गया। मोदी के बढते कद की हकीकत गुजरात से आगे की है। गुजरात को कालिख मानने वालों ने मोदी का विरोध कर खुद को ही काजल की कोठरी में ला खड़ा किया। क्योंकि नीतिश कुमार ने मोदी का खुला विरोध किया तो बिहार में बीजेपी का गठबंधन टूटा। नीतिश खलनायक हो गये। मोदी नायक करार दिये गये । बालासाहेब ठाकरे ने पीएम पद के लिये मोदी को खारिज कर सुषमा स्वराज का नाम लिया। लेकिन बीजेपी ने ठाकरे को खारिज कर मोदी को ही चुना तो शिवसेना को बालासाहेब की बात छोडकर मोदी के पीछे खड़ा होना पड़ा। मोदी शिवसेना के भी नायक हो गये। क्षत्रपों की फौज में उड़ीसा के नवीन पटनायक हो या यूपी के मुलायम और मायावती। सभी ने मोदी को खारिज किया और किसी ने मोदी को सांप्रदायिक करार दिया तो किसी ने दंगों का खलनायक। लेकिन मोदी के पीछे संघ परिवार ही आ खड़ा हुआ तो फिर बीजेपी के वह धुरंधर भी झुक गये जो क्षत्रपों के आसरे खुद को सेक्यूलर बनाने में लगे थे। मोदी यहां भी नायक होकर निकले। और तमिलनाडु की सीएम जयललिता ने जब गुजरात से ज्यादा तमिलनाडु में विकास का राग छेड़ा तो झटके में मोदी का विकास मंत्र दक्षिण में भी जुबान पर आ गया । और दक्षिण में मोदी की रैली किसी तमिल सितारे की तर्ज पर सफल होने लगी । यानी हर के निशाने पर मोदी रहे और मोदी का कद इस तरह बढता चला गया कि दिल्ली में बैठे बीजेपी के कद्दावरो को जमीन चटा कर जब मोदी ने पीएम पद की हुंकार भरी तो फिर दिल्ली में बरसो बरस की राजनीति करने वाले नेता भी झटके में मोदी के सामने बौने नजर आने लगे । और मोदी कद थ्री डी की तरज पर हर प्रदेश में नजर आने लगा और सामने चुनौती देने के लिये फेल हो चुके गांधी परिवार में से राजनीति से दूर प्रियंका को सामने आना पड़ा।
इंदिरा का अक्स प्रियका में झलकता है तो प्रियका की राजनीतिक परछाई कई गुना बड़ी दिखती है। खासकर तब जब राजनीतिक तौर पर सोनिया गांधी का राजनीतिक प्रयोग मनमोहन सिंह हर किसी को फेल दिखने लगा हो । और राहुल गांधी का राजनीतिक मिजाज लडकपन की कहानी को ही ज्यादा कहता हो । ध्यान दें तो कुछ ऐसी ही चमक प्रियंका गांधी में है। नेहरु, इंदिरा और राजीव गांधी ने मौका मिलते ही सत्ता संभाली। लेकिन सोनिया और राहुल ने मौका होने पर भी सत्ता नहीं संभाली। इंदिरा गांधी ने तो सत्ता के लिये कांग्रेस को ही दो टुकडों में बांट दिया और राजीव गांधी ने पीएम की कुर्सी संभालने के लिये तो संसदीय बोर्ड की बैठक का भी इंतजार नहीं किया। लेकिन सोनिया गांधी ने पीएम की कुर्सी छोड़कर अपना कद तो बढाया लेकिन मनमोहन सिंह जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति को झटके में पीएम बनाकर खुद को कटघरे में खड़ा कर लिया । इसी लकीर को राहुल गांधी ने सुपर पीएम बनकर और बडा कर दिया । यानी काग्रेस के लिये जो परिवार सबकुछ है उसी परिवार की राजनीतिक जद्दोजदह ने काग्रेस को ही राशिये पर ला खडा किया । सोनिया राहुल का औरा यही से खत्म होता है और राजनीतिक दायरे से बाहर खडी प्रियका गांधी का औरा राजनीतिक मंच पर चमकने लगता है। असल में सोनिया राहुल के घूमिल पडने का ही असर हुआ कि कांग्रेस के विकल्प के तौर पर बीजेपी भी चमकी और बतौर पीएम उम्मीवार होकर मोदी में भी चमक आ गयी। लेकिन कांग्रेस के भीतर प्रियंका के जरीये मोदी की चमक पर वार करने का इरादा बरकरार है। इसीलिये कांग्रेस प्रियंका के जरीये पुनहर्विजिवत हो सकती है कांग्रेसियों का यह भरोसा और बीजेपी को काग्रेस का विकल्प ना मानने वालों के लिये प्रियंका गांधी मौजूदा वक्त में सबसे चमकता सितारा है ।
लेकिन सच यह भी है कि एक ने साड़ी बदली दूसरे ने सदरी। रायबरेली से लेकर अमेठी तक प्रियंका ने सूती साड़ियां इस तर्ज पर पहनी और लगातार बदली की इंदिरा का अक्स उसमें दिखायी देने लगा। और तीन महीने में लगातार सौ से ज्यादा चुनाव रैलियों में नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह रंग-बिंरगी सगरी पहनी और बदली उसने मोदी के कपड़े प्रेम को जगजाहिर कर दिया।
लुटियन्स की दिल्ली में प्रियका का फैशनबल टच जगजाहिर है। जिस तरीके से प्रियका दिल्ली में नजर आती है उसमें इंदिरा गांधी का कोई टच देखना मुश्किल है। लेकिन राजनीतिक जमीन पर प्रियंका इतना बदल जाती है जैसे किसी माहिर राजनेता की तर्ज पर आम जमता से उनके सरोकार पुराने हो । इसीलिये अपनी सादगी से ही प्रियका मोदी पर सियासी वार करती है तो उसकी गूंज भी सुनायी देती है । लेकिन मोदी को इससे फर्क नहीं पडता । आधी बांह के कुरते को पहनने का फैशन मोदी ने गुजरात सीएम की कुर्सी पर बैठकर बनाया । तो अब लगातार सदरी बदल बदल कर एक नयी पहचान अपने राजनीतिक पहचान को दी । लेकिन मुश्किल यही है कि प्रियका साडी बदले या मोदी सदरी । दोनो ने बार बार देश का ही जिक्र किया । यह अलग बात है कि देश के मौजूदा हालात ठीक नहीं है इसे तो दोनो ही बताते रहे है लेकिन हालात ठीक करने की दिशा में कोई ठोस पहल आजतक किसी ने नहीं की है । मोदी अभी तक 6 करोड गुजरात से बाहर निकले नहीं है और प्रियंका को रायबरेली और अमेठी के बाहर की राजनीतिक हवा लगी नहीं है ।
Thursday, May 1, 2014
किसका तिलिस्म पहले टूटेगा : नरेन्द्र मोदी या प्रियंका गांधी ?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:33 PM
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4 comments:
Once again a nice article....aapse ek request ki thi ki ek analysis kejriwal aur AAP ke chances par bhi kar do....pls
same speech in 10 tak on aaj tak .what is this prasoon ji?
प्रसूनजी अभिनन्दन,
चुनावी माहौल में बहुत सारे मौसमी नेता उल-जलूल की बकवास की दुकान खोल या तो अफवाहों बनाते है या फिर उनको हवा देते है वैसे ही आप के अनुभओं को देखते हुआ ऐसा लगता है की कुछ और कहने के किये कभी-कभी लम्बी भूमिका बनाने की उलझन में कुछ और कह जाते है
यह मै आलोचना के लिए नहीं लिख रहा हूँ। कहाँ इन्दिरा गांधी और कहा प्रियंका, मुझे पता नहीं सन चौरासी में आप स्कूल के कौन से दर्जे तक पहुंचे थे, पर आपकी लिखावट से लगता यही है की कुछ भाउक निम्न स्तरीय भूढाये हुए कांग्रेसी नेताओ की तरह आप सेब की तुलना खुशबर्री से कर रहे है।
प्रियंका पांच साल में एक बार दिखती बरसाती मेंढक की तरह और टर्राती हुयी और चुनाव के बाद गायब। गैरजिम्मेदारी की हद होती है जिस क्षेत्र में आप प्रचार करते हो लोगो में उम्मीद बढ़ाने के बाद पेड़ फ़िल्मी नायिकाओं की तरह गायब हो जाना कहा की नैतिकता है। उसपर तुर्रा ये की पार्टी में कोई भी जिमेदारी नहीं लेना और जाबाज में ये कहना की मुझे राजनीती में नहीं आना है वाह गुड खाना और गुलगुले से परहेज।
ये दोगलापन है की नहीं एक तरफ आप चुनाव प्रचार करे पर सरकार बनाने के बाद क्या करने वाले है इसकी कोई प्रस्तुति नहीं सिर्फ और सिर्फ प्रतिद्वंदी की बुराई। क्या यही आप की राजनीती है।
प्रसून जी आपको साधुवाद क्या तुलना की है आपने इंदिराजी का प्रियंका की चारण चालीसा लिख कर।
Tumhara aur kejriwal ka tilism toot gaya tha 9 March ko....jab tum dono changu-mangu ki "krantikari" footage YouTube pe leak ho gayi thi. Kab tak Modi ko kabhi Togadia...to kabhi Aseemanand to kabhi sadhvi pragya se jodne wale lekh likh kar Congress aur Kejru ki dukaan chalate rahoge....Bahut Krantikari....
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