दिल्ली में सुरक्षा और कश्मीर में हलचल। कुछ ऐसे ही हालात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीज के मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिये दिल्ली पहुंचने को लेकर है। मोदी को मिले जनादेश ने कैसे पाकिस्तान को लेकर सियासी परिभाषा बदल दी है, यह काग्रेस से लेकर शिवसेना और बीजेपी से लेकर संघ परिवार तक की खामोशी या संयम जुबान से दिखायी देने लगा है। लेकिन असल बैचेनी तो घाटी में है। ढाई दशक पहले धाटी में चुनाव को ही फ्राड करार देकर हुर्रियत की नींव रखने वालो में एक अब्दुल गनी बट को नवाज शरीफ का दिल्ली आना तो अच्चा लग रहा है। लेकिन कश्मीर के जख्मों को नजरअंदाज कर सिर्फ मुलाकात या व्यापार समझौतो के आसरे संबंधों को मजबूत करना महज वक्त गुजारने वाले हालात लगने लगे हैं। वहीं बचपन से लाइन आफ कन्ट्रोल के इसपार या उसपार की हिंसक सियासत से लेकर कूटनीति की बिसात पर कभी बंदूक उठाकर तो अब गांधी के अहिंसा का जिक्र करने वाले यासिन मलिक को डर लगने लगा है कि कश्मीर को मौजूदा वक्त में गैरराजनीतिक ही ना बना दिया जाये। सिर्फ बट या यासिन ही नहीं बल्कि अलगाववादियो की वह पूरी जमात ही पहली बार खुद को अलग थलग मान रही है जो कल तक भारत पाकिस्तान के बीच किसी भी मुलाकात या बातचीत के टेबल पर अपनी मौजूदगी को दिखलाने के लिये बेचैन रहते थे। इन सबके बीच दिल्ली -इस्लामाबाद के जुड़ते तार नये संकेत दे रहे है कि कश्मीर से आगे निकला जा सकता है या नहीं।
नवाज शरीफ ही नहीं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भी इस हकीकत को समझ रही है कि पाकिस्तान में भी मध्यवर्ग का विस्तार हो रहा है। युवा तबका विचारधारा या सियासत को रोमांच मानने से आगे देखने लगा है। और यह तबका हर चुनाव को प्रभावित कर सकता है। तो फिर पाकिस्तान अगर सिर्फ कश्मीर के आसरे लाइन आफ कन्ट्रोल की सियासत में फंसा रहा तो सेना और आईएसआई के इशारे से आगे ना तो राजनीति की जा सकती है ना ही कूटनीति। तो पहली बार बड़ा सवाल नरेन्द्र मोदी के सामने भी है कि क्या वह कश्मीर को आंतरिक मसला कहकर उस महासंघ की बात कह सकते है जिसका जिक्र कभी श्यामाप्रसाद मुखर्जी और लोहिया किया करते थे। क्योंकि आज नहीं तो कल कश्मीर राग की दस्तक पाकिस्तान की तरफ से आयेगी ही । और यह राग जैसे ही सियासत का रास्ता पाकिस्तान में बनेगा तो फिर इस्लामाबाद हो कराची वह कभी दिल्ली से होकर कश्मीर नहीं जायेगा। बल्कि बार बार एलओसी पर किसी का सर कटेगा और पीओके के रास्ते घाटी में दस्तक दे कर दिल्ली दरबार को घमकाने के हालात पैदा किये जायेंगे। जाहिर है हर किसी की नजर नरेन्द्र मोदी पर ही होगी। क्योंकि जो शिवसेना कल तक पाकिस्तान से बातचीत का जिक्र करना नहीं चाहती थी, जो बीजेपी सीमापार आतंक के गढ़ को ध्वस्त करने के बोल बोलने से नहीं कतराती थी। जो संघ परिवार अखंड भारत का जिक्र कर अपने गौरव को लौटाना चाहता था। वह सब खामोश हैं। या मोदी को मिले जनादेश के सामने हर किसी की बोली बंद हो चुकी है। तो क्या आज नहीं तो कल फिर पुराने जख्म हरे होने लगेंगे। दोबारा कश्मीर को लेकर दिल्ली से लेकर इस्लामाबाद तक कई सत्ता केन्द्र पनप उठेंगे। आजादी के बाद से भारत पाकिस्तान के रिश्तों को समझे तो बंटवारे के घाव से लेकर कश्मीर में खिंची एलओसी को दिल्ली और इस्लामाबाद की सियासत बीते 67 बरस में या तो समझ नहीं पायी या समझबूझकर सियासत करने से नहीं चूकी। लेकिन मौजूदा सच यह भी है 67 बरस बाद या कहे आजादी के बाद पहली बार भारत ने उस धारा के हाथ में सत्ता दी है, जिसका नजरिया कभी नेहरु से लेकर वाजपेयी तक दौर से मेल नहीं खाया। यह नजरिया पाकिस्तान को विबाजन के एतिहासिक सच से ज्यादा महत्व देता नहीं है। यह नजरिया दक्षिण एशिया में भारत को अगुवाई करने वाला मानता है। यह नजरिया चीन से दो दो हाथ करने से नहीं कतराता। यह नजरिया यूरोप-अमेरिका को अपनी सामाजिक सास्कृतिक ज्ञान से बहुत पिछडा हुआ मानता है।
यह नजरिया दुनिया मे भारत के जरीये हिन्दू राष्ट्रवाद का ऐसा प्रतीक बनना चाहता है जो समाजवाद से लेकर पूंजीवाद तक को ठेंगा दिखा सके। और कह सके कि भारत का मतलब सिर्फ नक्शे पर एक देश भर नहीं है। तो क्या मोदी इसी रास्ते पर चलकर अजेय बनना चाहते है। जाहिर है मोदी ऐसा कुछ कर देगें यह सोचना भी संभव नहीं है। तो फिर मोदी का रास्ता जाता किधर है। जाहिर है मोदी सियासत के उस सच के तार को ही पकड़ना चाहेंगे, जिससे सत्ता बनी रही। या फिर बीते साठ बरस की हर सत्ता से बडी लकीर खिंचते हुये वह नजर आये। तो ऐसे में पाकिस्तान को समझौतो की फेहरिस्त चाहिये या फिर पाकिस्त में बिजली-सड़क-पानी से लेकर रोजगार पैदा करने वाले हालात चाहिये। कारपोरेट और औघोगिक घरानों को तो काम और मुनाफा चाहिये। वह जमीन भारत की हो या पाकिस्तान की। तो फिर जिस महासंघ का जिक्र कभी श्यामाप्रसाद मुखर्जी कर गये और कश्मीर के जिस दर्द को लेकर श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत हो गई। अगर उस महासंघ की नयी परिभाषा पूंजी पर खड़ी हो तो फर्क क्या पड़ता है। असल में कश्मीर के सवाल को ही अगर विकास के नारे तले खत्म कर दिया जाये तो फिर पाकिस्तान में भी सेना और आईएसआई से टकराने के लिये नवाज शरीफ की सत्ता नहीं पलटनी होगी बल्कि पाकिस्तान के उन युवाओं से टकराना होगा जो दुनिया में पाकिस्तान की हैसियत कट्टरपंथ या आतंक से अलग बाजार और चकाचौंध के तौर पर चाहते होंगे । क्योंकि महासंघ का नजरिया एलओसी पर बंदूक के बदले व्यापार, विकास और जरुरतो को पूरा होते हुये देखना चाहता है। मोदी का नवाज शरीफ को पाठ भी बेहद साफ होगा। पाकिस्तान की जनसंख्या से ज्यादा लोगों को तो भारत अपने में समेटे हुये है जिनके रिश्ते आज भी पाकिस्तान में है। तो महासंघ के दायरे में जब हर चीज खुलेगी तो आने वाले वक्त में महासंघ यूरो और डालर की तर्ज पर अपनी करेंसी क्यो नहीं विकसित कर सकता। यानी जो चीन और अमेरिका गाहे बगाहे अपने हितों को साधने के लिये दोनो देशों के बीच लकीर खींचते रहते हैं, उन्हे मिटाने का मौका पहली बार मिला है तो नवाज शरीफ को साथ आना चाहिये। जाहिर है महासंघ की सोच झटके में पाकिस्तान के पीएम पचा ना पाये । तो यही से संघ परिवार का ही दूसरा नजरिया उभरता है। जहां मोदी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके का सवाल यह कहकर उठा दें कि पाकिस्तान बताये वह कब उसे भारत को लौटा रहा है। यानी कश्मीर हो या धारा 370.. । यह सब भारत के आंतरिक मसले है और पाकिस्तान को इस दिशा में सोचना भी नहीं चाहिये । उल्टे पाकिस्तान को उस आजाद कश्मीर का जबाब देना चाहिये जिसे भारत अपनी जमीन मानता है और कब्जे वाले कश्मीर के तौर पर देखता है ।
जाहिर है यह सवाल युद्द के हालात को पैदा करते है। लेकिन मौजूदा वक्त में मोदी की सत्ता पर समूचे भारत की मुहर है। लेकिन पाकिस्तान तो नवाज शरीफ से लेकर सेना, आईएसआई और तालिबान प्रभावित आंतंकी तंजीमों में बंटा हुआ है। फिर बलूचिस्तान का राग अलग है जहां भारत की पकड़ भी हैं। और इसके सामानांतर पहली बार बांग्लादेश को भी मोदी सीधे चेताने वाले हालात में है । यानी भारत में दो से ढाई करोड बांग्लादेशी घुसपैठियों को चिन्हित करने का काम भी शुरु होगा। और अगर मोदी ने सीधे बंग्लादेश को जता दिया कि अगले एक बरस में भारत में रह रहे बांग्लादेशियों की पहचान कर ली जायेगी ।
इस दौरान उन्हे वर्क परमिट भी दे दिया जायेगा। जिससे पहचान किये गये बांग्लादेशियों को एक साथ बांग्लादेश भेजे जाने का वक्त तय किया जा सके। तो बांग्लादेश की माली हालात यूं ही खराब है उसके बाद दो-ढाई करोड़ बांग्लादेशियों के वापस लौटने की सोच कर क्या हो सकता है इसका अंदाजा शेख हसीना को आज हो या ना हो लेकिन मोदी इस हकीकत को समझ रहे है कि उनके इस फैसले पर संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका तक को मुहर लगाने में कोई परेशानी नहीं होगी। और ऐसी परिस्थितियां बनती है तो फिर ढाई करोड घुसपैठ किये बंग्लादेशियो के लिये सीमा पर एक अलग राज्य की व्यवस्था करने वाले हालात भी बन सकते हैं। तब बंग्लादेश को जमीन भी इन्हें बसाने के लिये देनी होगी। यानी फिर मोदी पड़ोसियों को लेकर जिस महासंघ के रास्ते पर चलने की तैयारी कर रहे है, उसमें पहली बार भारत ने अपनी हथेली पर दोनो तरह के फांसे रखे है। पहला महासंघ का और दूसरा संघर्ष का। और दोनों ही हालात मोदी को संघ परिवार के दायरे पृथ्वीराज चौहान बना रहे हैं। इसलिये दिल्ली से इस्लामाबाद और इस्लामाबाद से दिल्ली के रास्ते में कश्मीर आता नहीं है इसे मोदी अपनी पहली मुलाकात में नवाजशरीफ को बता जरुर देंगे।
Sunday, May 25, 2014
पृथ्वीराज चौहान बनकर मिलेंगे नवाज शरीफ से मोदी
Posted by Punya Prasun Bajpai at 3:58 PM
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7 comments:
Aapka vishleshan hamesha hi galat raha hai....chahe wo U.P. election me netaji wala blog ho ya amit shah ko bjp president banane wala. Aapko aur rajnitik samajh chahiye...aap left parties ke samarthak lagte ho.
बेहतरीन। मुझे आपकी भाषा शैली हमेशा पसंद आई है।
one of the nice comment on modi ji. "subah ka bhula , sham ko ghar aa jaye to use bhula nahi kahte."
Nice...lekin main abhi wait karna chaunga ....modi g itni jaldu apne cards khilne walo mein se ni h....aapka visleshan to hamesha neutral hi rehta h but modi bhakton ko ye kaafi pasand aayega
मोदी किसी की भी नहीं सुनता ।
कहाँ गएगिरिराज सिंह जो मुसलमानों को पाकिस्तान परस्त कहते थे,जो उसी पाकिस्तान को मुसलमानों का मक्का-मदीना कहते थे.... आज उसी मक्का-मदीना के इमाम को तुमलोगों नेबुलाया है.... कहाँ गईंवो सुषमा स्वराज जो एक सर के बदले दस-दस पाकिस्तानी फौजी के सर लाने की बात कह रही थीं और बहुत सारी ऐसे बयानों का जवाब अब मैं क्या समझूँजिस बयान को देकर हम आम आदमी के दिल में नफरत की बिज बोया गया है और हम देशवासियों को बाँटने की कोशिश की जाती रही है... आज शहीदों का अपमान नहीं हुआ? आज शहीदों के परिवार से हमदर्दी ख़तम?आज शहीदों की विधवाओं के आंसू देखकर दिल को दर्द नहीं होता? आज उनबच्चों के लिए दिल में कोई प्यार नहीं जिनके बाप उसी पाकिस्तान के गोले-बारूद से शहीद हो गएऔर वो बच्चे यतीम हो गए?और भी बहुत सारे सवाल जो तुमलोगो नेउठाये हैं चुनाव से पहले, जो आज सब धूमिल होती नज़र आ रही है..!
अरे जाइये छोडिये, और बोलूँगा तो आपलोग बोलेंगे कि बोलता है...!
एक वक़्त था जब डाकू जंगल में रहते थे,
आज संसद में रहते हैं ,
आज देशकी संसद में नईपुराने 186डाकू पहुंचे हैं ,जिनके बारे में तो देशको जानकारी है ,बाकि अभी और कितने डाकू हैं सामने आना बाकि है ,बीजेपी ने98डाकुओ को संसद में पहुँचाया ,
देशमें डाकुओ का शासन है ,
जनता के लिए राशन नहीं भाषण है ,
35हज़ार करोड़ खर्च कर ,
डाकुओ को मिला सत्ता का सिहांसन है ,
नवाज शरीफ भारत आएंगे ,
पाकिस्तान की सेना कारगिल पर कब्ज़ा करेगी ,(पहले भी ऐसा हुआ है )
अडानी पाकिस्तान को बिजली देंगे ,
पाकिस्तान वाले भारत को बिजली के झटकेदेंगे ,
पाकिस्तान के खलाड़ी ,पाकिस्तान के कलाकार जब भारत आते थेतो कुछलोग बहुत हला मचाते थे,
आज भारत के डाकू पाकिस्तान के डाकू को भारत बोला रहे हैं ,
हला मचाने वाले डाकू ताली बजा रहे हैं क्या बात है ,
जिन्होंने भारत के संसद पर हमला किया ,
भारत का बार बार अपमान किया ,
आज उन्हें भारत के संसद में सम्मान देने की तैयारी हो रही है ,
ईमानदारी जेल में बेईमानी संसद में ,
देशबैठा है अच्छे दिन आने की उम्मीद में ,जय हिन्द
26-11 yaad raha.....Hemraj ko bhool gaye.....short term memory loss......???
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