Friday, July 10, 2015

मोदी का रास्ता मोदी के लिये

ना सरकार का कामकाज रुका है ना पार्टी का। प्रधानमंत्री अपने कार्यक्रम पर हैं तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के विस्तार में लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी जहां फेल हो रहे हैं, वहां फेल की नई परिभाषा अमित शाह गढ़ रहे हैं और जहां चुनावी समीकरण डगमगाते हुये दिखायी दे रहा है या मोदी के जादू के ना चलने का डर समा रहा है वहां अमीत शाह साम दाम दंड भेद पर उतर आये हैं। और असर इसी का है कि जातीय राजनीति खारिज करने वाली बीजेपी के लिये अब मोदी ओबीसी के हो गये। साठ महीने सत्ता के मांगने वाले पीएम के वादों को पूरा करने के लिये अब और वक्त की मांग हो रही है । दागदार सीएम और मंत्रियों की बढ़ती फेहरिस्त पर खामोशी बरतकर खुद को अलग थलग पाक साफ बताने की बिसात भी खामोशी से बनायी जा रही है। वहीं आर्थिक नीतियों से लेकर पाकिस्तान तक के साथ रिश्तों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह ट्रैक बदला है और बदले हुये ट्रैक को सही बताने-दिखाने की कोशिश बीजेपी अध्यक्ष कर रहे हैं, वह अपने आप में खासा दिलचस्प हो चला है। क्योंकि चुनाव जीतने के लिये जिन हालातों को प्रधानमंत्री मोदी ने भावनात्मक तौर पर खडा किया और सरकार चलाने के लिये जिस पटरी पर वह देश को दौड़ाना चाह रहे हैं, उसमें जमीन आसमान का अंतर है। इसलिये तीन नये सवाल मौजूदा वक्त के हैं।

पहला क्या प्रधानमंत्री मोदी अपनी ही पार्टी-सरकार के भीतर अपने विरोधियों को निपटाने में लगे हैं। दूसरा, क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच को नीतिगत तौर पर शामिल करना घाटे का सौदा है। और तीसरा क्या पाकिस्तान को लेकर कट्टर रुख को बदलने की जरुरत आ चुकी है। यह बदलाव कैसे आ रहा है और बदलाव के लिये कैसे अमित शाह शॉक ऑर्ब्जरवर की तरह काम कर रहे हैं, यह भी कम दिलचस्प नहीं हैं। जरा इस सिलसिले को समझें। राजस्थान की सीएम वसुंधरा ललित गेट में फंसी। मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहाण व्यापम घोटाले में फंसे। छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह घान घोटाले में फंसे। महाराष्ट्र के सीएम एयर
इंडिया रुकवाने से लेकर अपने दो मंत्रियों के फंसने पर क्लीन चीट देने पर फंसे। सुषमा स्वराज और स्मृति इरानी को लेकर सवाल उठे। और बेहद बारिकी से प्रधानमंत्री मोदी ना सिर्फ खामोश रहे। बल्कि अपने एजेंडे वाले मुद्दों पर खूब बोलते रहे। तो सवाल मोदी के बदले उन नेताओं को लेकर उठे जो अपने अपने घेरे में खासे
ताकतवर थे। तो क्या पहली बार अपने अपने दौर के कद्दावर इतने कमजोर हो चुके हैं कि उनकी कुर्सी हाईकमान के इशारे पर जा टिकी हैं या फिर इन कद्दावरों का कमजोर होना दिल्ली के पावर सेंटर 7 आरसीआर और 10 अशोक रोड को कहीं ज्यादा मजबूत बना रहा है। यानी प्रधानमंत्री मोदी की खामोशी ही इन कद्दावरों को कमजोर कर मोदी को ताकत दे रही है। क्योंकि बीजेपी के भीतर के सियासी समीकरण को समझें तो जो भी कद्दावर दागदार लग रहे हैं, कमजोर हो रहे हैं, वे हमेशा आडवाणी कैंप के माने जाते रहे। मोदी के पक्ष में खुलकर कभी नहीं रहे तो अपनी पहचान को ही अपनी ताकत बनाये रहे ।यानी झटके में पहली बार प्रधानमंत्री मोदी सरकार चलाते हुये कुछ उसी तरह पाक साफ दिखायी दे रहे है जैसे यूपीए के दौर में मनमोहन सिंह की छवि साफ दिखायी देती थी और उनके अपने मंत्री घोटालो में फंसते नजर आते थे।

शायद इसीलिये यह सवाल अब भी अनसुलझा है कि बीजेपी सासित राज्यो के सीएम से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक जिस तरह आरोपों से घिर रहे हैं लेकिन उसका असर ना सरकार पर है ना पार्टी पर । लेकिन इससे मोदी का कद बढ़ गया यह भी पूरी तरह सही नहीं है। तो अगला सवाल है कि जो जनता सिर्फ मोदी को ही बीजेपी और सरकार माने हुये है उसके लिये तो अच्छे दिन के नारे अब कमजोर पड़ते दिखायी दे रहे हैं। और इसका असर बीजेपी कार्यकर्ताओं पर भी पड़ा है और उनमें भी निराशा है। तो यहां बीजेपी अध्यक्ष की भूमिका बड़ी हो जाती है और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इस सच को समझ रहे हैं कि 2014 के लोकसबा चुनाव के वक्त के उत्साह और 2015 में खासा अंतर आ चुका है तो अमित शाह उस लकीर को नये तरीके से खिंचना चाह रहे है जिसे नरेन्द्र मोदी ने पांच बरस के लिये खींचा था। यानी अब मोदी के वादे पांच बरस में पूरे नहीं हो सकते बल्कि ज्यादा वक्त चाहिये। यानी वादों से बीजेपी अधयक्ष नहीं मुकर रहे है बल्कि वादों की मियाद से मुकर रहे है। और उसकी सबसे बडी वजह कार्यकर्ताओं के भीतर उम्मीद जगाये रखना है। क्योंकि कार्यकर्ताओ के भरोसे ही बिहार से लेकर यूपी चुनाव में कूदा जा सकता है । यानी अभी से चुनाव की तैयारी भी है और बाकी चार बरस के दौरान जिन आधे दर्जन राज्यो में चुनाव होने जा रहे है उसके लिये जमीन तैयार करने की मशक्कत भी हो रही है। क्योंकि मई 2014 में सत्ता के लिये साठ महीने यह कहकर मांगे थे कि हर गांव में पाइप से पानी पहुंचेगा/ हर राज्य में एम्स होगा/हर गांव इंटरनेट से जोड़ा जाएगा/हर व्यक्ति के पास पक्का मकान होगा/बुलेट ट्रेन शुरु की जाएगी/काला धन पैदा नहीं होने देंगे/ खाद्य सुरक्षा दी जाएगी यानी वादो के अंबार तले वोटरों ने दिल खोलकर मोदी का साथ दिया और मोदी ने भी जो अलघ जगाये वह संघ परिवार की जमीन पर खड़े होकर भावनाओ को उभारा। लेकिन नीतियों में तब्दील होते मोदी के वादो ने स्वदेसी जागरण मंच को झटका दिया । भारतीय मजदूर संघ को हलाल किया। किसान संघ को बाजार का रास्ता दिखा दिया। आदिवासी कल्याण आश्रम को विदेशी निवेश से विकास की लौ जगाने के सपने दिखा दिये। और बेहद बारिकी से आरएसएस के अखंड भारत या पीओके को कब्जे में लेने या बड़बोलेपन की हवा भी पाकिस्तान के साथ समझौतों को हवा देकर निकाल दी। इतना ही नहीं पाकिस्तान जाने का न्यौता उन हालातों के बीच स्वीकारा जिन हालातो के बीच 15 बरस पहले अटल बिहारी वाजपेयी बस लेकर लाहौर पहुंच गये थे। तो क्या नरेन्द्र मोदी 13 महीनों में सरकार चलाते चलाते उस मोड़ पर आ खडे हुये है जहां उन्हें परंपरा निभाते हुये पांच बरस काटने है। या फिर प्रधानमंत्री मई 2014 से पहले के हालात को नये तरीके से सरकार चलाते हुये देश के सामने रखना चाह रहे हैं। क्योंकि दर्जनभर सरकारी नारों को लागू कैसे किया जाये, इस बाबत नारो का कोई ब्लूप्रिंट अभी भी सामने आया नहीं है लेकिन नारों के प्रचार का खर्चा सरकारी खजाने से खूब लुटाया जा रहा है।

मसलन 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत के नारे पर 94 करोड़ खर्च हो चुके हैं। स्किल इंडिया के नारों के दौर में ही दो लाख बुनकरों से लेकर कुटिर इंडस्ट्री की कमाई तीस फिसदी से ज्यादा सिमटती दिखायी दे रही है। डिजिटल इंडिया के नारों के वक्त ही फोन काल ड्राप तक को रोकना मुश्किल हो चुका है। आलम इस हद तक बिखरा है कि मुंबई हमले के आरोपी को लेकर 10 दिन पहले विदेश मंत्री जो कहती हैं, उसके उलट पाकिस्तान से बात प्रधानमंत्री करते हैं और एलओसी पर बीएसएफ का जवान पाकिस्तानी फायरिंग में शहीद होता है और चंद घंटो बाद प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान जाने के निमत्रंण को स्वीकारते हैं। और झटके में बीजेपी अध्यक्ष बताते है देश ने तेरह महीने पहले जिस शख्स को पीएम बनाया वह ओबीसी है।


2 comments:

samdarshi said...

Bhai.. tujhe kitna paisa aaya congress se... Vasundhara, Shivraj pahnse matlab kya ... Sab proove ho gaya... Tumhari Maa kyun mar gayi Jab Rahul Vadra aur Priyanka ka photo aaya lalit Modi ke sath.. Tab to tum Maidan chhod ke bhag gaye... Dalaal Kahin ke..

abc said...

he is prestitute/prostitute