अगर हेडली सही है तो पाकिस्तानी सत्ता के लिये लश्कर भारत के खिलाफ जेहाद का सबसे मजबूत ढाल भी है और विदेश कूटनीति का सबसे धारदार हथियार भी । अगर हेडली सही है तो पाकिस्तानी सेना की ट्रेनिंग , विदेश मंत्रालय की मदद और खुफिया एजेंसी आईएसआई के बनाये रास्ते ही भारत के खिलाफ पाकिस्तानी सिस्टम है । जिसके आसरे पाकिस्तानी सत्ता एक तरफ आतंक को कानूनी जामा पहनाता है यानी भारत के खिलाफ आतंकी संगठनों को बेखौफ बनाता है तो दूसरी तरफ आंतकवाद पर नकेल कसने के लिये भारत के साथ खडे होने की दुहाई देता है ।
याद कीजिये 20 जून 2001 में जनरल मुशर्ऱफ सत्ता पलट के बाद पाकिस्तान के सीईओ से होते हुये राष्ट्रपति बनते हैं । 13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर लश्कर-जैश मिलकर हमला करते है । हमले के बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी आर पार की लडाई का एलान करते हैं । और मुशर्ऱफ एक तरफ आतंकवादियों पर कार्रवाई का जिक्र करते है । लेकिन अगर हेडली सही है तो 2002 में लश्कर मुखिया हाफिज सईद पर कोई रोक नहीं लगी । क्योंकि पीओके के मुज्जफराबाद में हाफिज सईद की तकरीर सुनकर ही हेडली लश्कर का दीवाना होता है । यानी हाफिज सईद की खुली तकरीर पाकिस्तना में जारी रही । अगर ह ली सही है तो पाकिस्तानी सत्ता ने ही हाफिज सईद को बचाने के लिये लशकर की जगह जमात-उल-दावा बनवाया । क्योकि जिस दौर में जमात बनती है उसी दौर में लश्कर के पीओके के ट्रनिंग कैप में हेडली ट्रेनिंग भी लेता है ।
अगर हेडली सही है भारत के खिलाफ पाकिसातनी सेना और आईएसआई के विंग के तौर पर ही लश्कर काम करता है । क्योंकि हेडली को लश्कर के साथ जो़डने से लेकर भारत में मुंबई हमले की बिसात बिछाने में पाकिसातनी सेना के रिटायर मेजर अब्दुर रहमान पाशा ,मेजर साबिर अली ,मेजर इकबाल सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । अगर हेडली सही है तो पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय को भी पाकिस्तानी सत्ता हेडली के लिये काम पर लगाती है । क्योकि इसी दौर में अमेरिका में पाकिस्तानी एंबेसडर की नियुक्ती सेना के रिटायर फौजियों की होती है । 2004-06 में जनरल जहांगीर करामत तो , 2006-08 में मेजर जनरल महमूद अली दुर्रानी अंबेसडर बनते हैं । इसी वक्त दाउद गिलानी से डेविड कोलमैन हेडली का जन्म होता है। और फर्जी पासपोर्ट बनवाने से लेकर भारत भिजवाने के काम में पाकिस्तानी सत्ता का सिस्टम काम करता है । और इसी दौर में हेडली अमेरिका से भारत कई बार रेकी के लिये आता है । और महफू लौटता है । अगर हेडली सही है तो फिर पाकिस्तान में मुशर्रफ के बाद भी चुनी हुई सरकार के लिये भी भारत के खिलाफ आतंकी हमला कूटनीति और रणनीति दोनो का हिस्सा था। क्योंकि मार्च 2008 में ही पीपीपी के युसुफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री बनते है तो सितंबर में जरदारी राष्ट्रपति बनते है । और हेडली के मुताबिक सितंबर 2008 में भी लश्कर के आंतकवादी भारत में घुसने का प्रयास करते है ।
और अक्टूबर 2008 में भी समुद्र के रास्ते भारत में घुसना चाहते है । यानी 26 नवंबर 2008 को हमले
से पहले पाकिस्तानी सेना बार बार आतंकी हमले का प्रयास करवाती है । तो हमले के बाद पाकिसातन की सत्ता भारत के हर सबूत को खारिज कर देता है । तो सवाल यही है अगर हेडली सच बोल रहा है तो हेडली पाकिसतान का मुखौटा बना रहा । और अब अगर नवाज शरीफ कहते है कि हालात बदल गये है तो लगता यही है कि मुखौटा बदला है रणनीति या कूटनीति नहीं । क्योंकि याद कीजिये मुबंई हमलों के तुरंत बाद नवंबर 2008 में ही पाकिस्तान के सूचना मंत्री रहमान मलिक खुले तौर पर कहते है कि वह आतंक पर नकेल कस रहे है । भारत के सबूत बगैर अपनी जांच को तेज कर रहे है । कई गिरफ्तारियां भी की है . और आठ बरस बाद पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता काजी खलीउल्लाह भी खुले तौर पर कहते है वह आतंक पर नकेल कस रहे हैं। सबूत के बगैर भी जैश के कैडर की घर पकड कर रहे है । जैश के तीन आंतकवादियो को गिरफ्तार भी किया है ।
यानी पाकिस्तान को लेकर भारत कैसे चक्रव्यूह में फंस रहा है यह डेविड कोलमैन हेडली की गवाही के बाद नये सिरे से पैदा हो रहा है । क्योंकि मुंबई पर हमला करने वाला फिदायिन कसाब जिन्दा पकड़ में आया । उसने लश्कर से ट्रनिंग लेने और लश्कर के कमांडर जकीउर्र रहमान लखवी का नाम लिया । मुंबई हमले के लिये रास्ता बनाने वाला डेविड कोलमैन हेडली ने गवाही में लश्कर की ट्रेनिंग और लश्कर के चीफ हाफिज सईद का नाम लिया । और हाफिज सईद फिलहाल पाकिस्तान में आजाद नागरिक है । लखवी को अदालत से जमानत
मिल चुकी है । यानी वह भी आजाद है । तो अगला सवाल यही है कि पाकिसान अगर पहले फिदायीन कसाब को अपना नहीं मानता । और अब हेडली के कबूलनामे को सच नहीं मानता । तो पाकिस्तन को लेकर भारत का रास्ता जाता किधर है । क्योकि हेडली से तो कल भी पूछताछ होनी है और तब अगर 26/11 के जरीये आतंकवाद पाकिस्तान की स्टेट पालेसी के तौर पर सामने आती है । तब भारत क्या करेगा। क्योंकि कश्मीर के जरीये आंतक को आजादी का संघर्ष एक वक्त मुशर्ऱफ ने भी कहा और याद किजिये तो पिछले दिनों नवाज शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र में भी कहा । यानी कश्मीर नीति पाकिस्तान की स्टेट पालेसी है । और कश्मीर नीति का मतलब आंतकवादी संगठनो को पनाह देना है । यानी भारत पर होने वाले हर आतंकी हमलो से पाकिस्तानी सत्ता खुद को अलग बतायेगी । और आतंक का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाकर भारत को अपने साथ खड़े होने का दबाब बनाती है । यानी शिमला समझौते से लेकर लाहैौर घोषणापत्र और अब पठानकोट हमले के बाद जैश-ए मोहम्मद पर कार्रवाई का भरोसा । हर हालात में पाकिस्तान ने अगर आंतक पर नकेल कसने के लिये सिवाय खुद को आतंक से हटकर बताने के अलावे कुछ नहीं किया और डेविड कोलमैन हेडली अगर आंतकी संगठनो और पाकिसातन के हर पावर सेंट के तार को अपनी गवाही में जोड रहा है तो फिर अगला सवाल यह भी हो सकता है कि बातचीत कभी मुश्रऱफ से हुई या अब नवाज शरीफ से हो रही है । भारत के हाथ में आयेगा क्या । क्योकि हेडली की गवाही ने भारत के सामने दोहरा संकट पैदा किया है । पहला पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार की राजनीतिक जरुरत आंतकी संगठन है । दूसरा आतंकी संगठन बेफिक्र ह र अपने काम को अंजाम दे यह सत्ता की जरुरत है ।तो नया सवाल भारत के सामने यह नहीं है कि पाकिस्तान एक टैरर स्टेट है बल्कि नया सवाल यह है कि पाकिस्तान अगर एक फेल स्टेट है तो भारत क्या करें । और शायद मौजूदा वक्त में यही सबसे बडी चुनौती मोदी सरकार के सामने भी है ।
Monday, February 8, 2016
क्या पाकिस्तान सिर्फ टैरर ही नहीं फेल स्टेट भी है
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:27 PM
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2 comments:
प्रिय बाजपेयी जी,
आपका लेख बेहद रोचक है। इसमें आपने एक ऐसी संभावनाएँ व्यक्त की हैं, जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता। पाकिस्तान में होने वाले चुनाव दरअसल दुनिया को धोखा देने के लिए ही आयोजित किए जाते हैं। इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि जनरल परवेश मुशर्रफ़ के समय में जो चुनाव हुआ था उसमें उनका कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं था और दुनिया भर में 'Musharraf Defeats No one' कहकर पाकिस्तान की चुनाव प्रणाली और लोकतांत्रिक व्यवस्था का ख़ूब मज़ाक उड़ाया गया था। वहाँ सत्ता सैनिकों और जासूसों के हाथों में है। नवाज़ शरीफ़ जैसे लोग दरअसल पाकिस्तान में बरसों पहले लुप्त हो चुके लोकतंत्र का मुखौटा भर हैं। यही मुखौटा दुनिया को बताता है कि पाकिस्तान में लोग अपनी मर्ज़ी से सरकारें चुनते हैं और सरकार भी उनका ख़याल रखती है। नवाज़ शरीफ़ और पाकिस्तान का पूरा मंत्रीमंडल सेना और गुप्तचरों के मूक प्रवक्ता भर हैं और उनके बयान, उनके निर्णय और यहाँ तक कि उनका शासनकाल भी उन्हीं के द्वारा तय किया जाता है। देखा जाए तो पाकिस्तान न तो पूरी तरह सैन्य-शासित है, न लोकतांत्रिक। वहाँ का शासन कुलीनतंत्र का एक भ्रष्ट प्रकार है। पूर्व सैनिकों और गुप्तचरों को भारत का राजदूत नियुक्त करना सिर्फ़ संयोग नहीं हो सकता। हाल ही में कई शहरों से आई.एस.आई. के एजेंटों की गिरफ़्तारी हो रही है (खेद है कि कांग्रेस के 10 वर्ष के कार्यकाल में ऐसा एक भी एजेंट पकड़ा नहीं गया)। ऐसे में, इसकी बहुत संभावना है कि राजदूत और हाई कमिश्नर जैसे ज़िम्मेदार पदोंं पर पूर्व सैनिकों और गुप्तचरों की नियुक्ति, दरअसल भारत में फैले आई.एस.आई. नेटवर्क को और मज़बूत बनाने के लिए की जाती होगी। पाकिस्तान स्वयं एक अस्थिर राष्ट्र है, अतः अपने आस-पास के देशों में भी अस्थिरता फैलाना चाहता था। इसके लिए वह तमाम हथकंडे अपना रहा है और बड़े दुःख की बात ही कि भारत में ही बसे कुछ लोग उनका साथ पैसे के लिए नहीं, बल्कि उनके झूठ से प्रभावित हो कर दे रहे हैं। पाकिस्तान एक तरफ़ तो ख़ुद को आतंकवाद का शिकार बताकर अमेरिका से करोड़ों डॉलर ऐंठता है, तो वहीं दूसरी तरफ़ पठानकोट के एयरबैस में पाकिस्तानी घुसपैठियों के पैरों के निशान किसी पाकिस्तानी जूते की कंपनी की ओर इशारा करते हैं। जूते पाकिस्तान में बने थे इसकी पुष्टि होने के बाद, अब समय आ गया है कि आतंकवाद का यह सबूत (जूता), पाकिस्तान को सौंपा न जाए, बल्कि खींचकर उसके मुँह पर मारा जाए।
उम्दा लेख!
सप्रेम,
अविनाश
लेख पढ़ कर शुरू में ऐसा लगा कि अंततः आपने अपने प्रिय विषय मोदी-संघ-शाह-मंदिर-गोमांस आदि-आदि पे फ़िज़ूल स्याही खर्च करना बंद कर दिया और असल मुद्दों की पत्रकारिता करने लगे, लेकिन आखिरी पंक्ति में आपने मोदी का नाम ले ही लिया। जय हो सबसे तेज़ की।
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