Wednesday, August 24, 2016

दो लाख कश्मीरी बच्चो के बारे में कौन सोचेगा?

सीरिया में बीते 425 दिनों से बच्चों को नहीं पता कि वह किस दुनिया में जी रहे हैं। स्कूल बंद हैं। पढ़ाई होती नहीं । तो ये बच्चे पढ़ना लिखना भी भूल चुके हैं। और समूची दुनिया में इस सच को लेकर सीरिया में बम बरसाये जा रहे हैं कि आईएसआईएस को खत्म करना है तो एक मात्र रास्ता हथियारों का है । युद्द का है। लेकिन वक्त के साथ साथ बड़े होते बच्चो को दुनिया कौन सा भविष्य दे रही है इसपर समूची दुनिया ही मौन है । इसलिये याद कीजिये तो समुद्र किनारे जब तीन बरस का एलन कुर्दी सीरियाई शरणार्थी के तौर पर दिखाई दिया तो दुनिया हिल गई । और पिछले हफ्ते जब पांच बरस का ओमरान घायल अवस्था में दुनिया के सामने आया तो दुनिया की रुह फिर कांप गई । तो क्या दुनिया भविष्य संभालने वाले बच्चो के भविष्य को ही अनदेखा कर रही है । ये सवाल दुनिया के हर हिस्से को लेकर उठ सकता है।

और ये सवाल कश्मीर का राजनीतिक समाधान खोजने वाले राजनेताओ के बरक्स भी उभर सकता है कि क्या किसी ने वाकई बच्चो की सोची है। क्योंकि कश्मीर घाटी में 46 दिनों से स्कूल कालेज सबकुछ बंद हैं। आर्मी पब्लिक स्कूल से लेकर केन्द्रीय विद्यालय तक और हर कान्वेंट से लेकर हर लोकल स्कूल तक । आलम ये है कि वादी के शहरों में बिखरे 11192 स्कूल और घाटी के ग्रामीण इलाको में सिमटे 3 280 से ज्यादा छोटे बडे स्कूल सभी बंद हैं । और इन स्कूल में जाने वाले करीब दो लाख से ज्यादा छोटे बडे बच्चे घरो में कैद हैं । बीते दो महीने से घरो में बंद है ।

ऐसे में छोटे छोटे बच्चे कश्मीर की गलियो में घर के मुहाने पर खड़े होकर टकटकी लगाये सिर्फ सड़क के सन्नाटे को देखते रहते हैं। और जो बच्चे कुछ बड़े हो गये हैं, समझ रहे है कि पढ़ना जरुरी है । लेकिन उनके
भीतर का खौफ उन्हे कैसे बंद घरो के अंधेरे में किताबो से रोशनी दिला पाये ये किसी दिवास्वप्न की तरह है। क्योंकि घाटी में बीते 46 दिनो में 69 कश्मीरी युवा मारे गये हैं। और इनमें से 46 बच्चे हाई स्कूल में पढ़ रहे थे । ऐसे में ये सवाल कोई भी कर सकता है कि इससे बडी त्रासदी किसी समाज किसी देश के लिये हो नहीं सकती कि हिंसा के बीच आतंक और राजनीतिक समाधान का जिक्र तो हर कोई कर रहा है लेकिन घरो में कैद बच्चो की जिन्दगी कैसे उनके भीतर के सपनों को खत्म कर रही है और खौफ भर रही है , इसे कोई नहीं समझ रहा है । हालांकि सरकार ने ने एलान किया कि स्कूल कालेज खुल गये हैं लेकिन कोई बच्चा इसलिये स्कूल नहीं आ पाता क्योंकि उसे लगता है कि स्कूल से वह जिन्दा लौटेगा या शहीद कहलायेगा। लेकिन घाटी में बच्चों की आस खत्म नहीं हुई है। उन्हे भरोसा है स्कूल कालेज खुलेंगे। ये अलग बात है कि किसी भी राजनेता की जुबा पर बच्चो के इस दर्द इस खौफ का जिक्र नहीं है । कोई मारे गये कश्मीरी युवाओं के हाथों में पत्थर को आतंक करार देकर मारने के हक में है तो कोई इसे सिर्फ पांच फिसदी का आंतक बताकर घाटी की हिसा को थामने के लिये हर बच्चों को अपना बताकर इनकी मौत को बर्बाद ना होने देने की बात कर रहा है । हुर्रियत तो शंकराचार्य , पोप, काबा के इमाम और दलाई लामा को पत्र लिखकर दखल देने को कह रहा है । लेकिन जिन बच्चो के कंघे पर कल कश्मीर का भविष्य होगा उन्हे कौनसा भविष्य मौजूदा वक्त में समाज और देश दे रहा है इसपर हर कोई मौन है । और असर इसी का है कि घाटी में 8171 प्राइमरी स्कूल, 4665 अपर प्राईमरी स्कूल ,960 हाई स्कूल ,300 हायर सेकेंडरी स्कूल, और सेना के दो स्कूल बीते 46 दिनों से बंद पडे है । श्रीनगर से दिल्ली तक कोई सियासतदान बच्चों के बार में जब सोच नहीं रहा है तो नया सच धीरे धीरे नये हालात के साथ पैदा भी हो रहे है । धीरे धीरे वादी की गलियो में स्कूल बैग लटकाये बच्चे दिख रहे है तो कुछ आस जगा रहे है कि शायद कही पढाई हो रही है ।

और जानकारी के मुताबिक लगातार स्कूलो के बंद से आहत कुछ समाजसेवियो ने अब अपने स्तर पर पहल की है और अपने घरों, मस्जिदों में अस्थायी स्कूल खोल लिए हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे । श्रीनगर के रैनावारी इलाक़े की मस्जिद में 200 छात्रों को वालंटियर टीचर पढ़ा रहे है तो इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढाई करने वाले बच्चों को अब प्रोफेशनल ट्यूटर पढा रहे है । यानी घाटी में बच्चो को लेकर राजनेता या राजनीतिक सत्ता नहीं बल्कि समाज और लोगो ने खुद पहल की है । कई जगहो पर मेज, कुर्सियां और ज़रूरी पैसे चंदे से इकट्ठा किये गये है । अधिकांश बच्चों को इन वैकल्पिक स्कूलों तक पहुंचने के लिए भारी सुरक्षा बलों के बीच से होकर गुजरना पड़ता है.कुछ बच्चे ऐसे रास्ते चुनते हैं जहां सुरक्षा बल कम हो । ये अलग सवाल है कि घाटी के हालात के सामधान का रास्ता सेना तले ही टटोला जा रहा है और 12 बरस बाद दुबारा घाटी में बीएसएफ की तैनाती हो गई है । और इस सवाल पर हर कोई खामोश है कि आखिर घाटी में बच्चे कर क्या रहे है ।



8 comments:

Ash Prasad said...

prasun jee,
I had witness you are always in support of Isharat jahan,hurriyat,and Islamic group supported by Pakistan.I don't have any hard feeling for you,and admirer of your knowledge of politcs,but do you think it is a right motive.

Ashutosh Mitra said...

जिस धर्म, जिस समाज के बड़े-बुजुर्ग 12 साल के बच्चों को आत्मघाती हमलावर बनाते हों उसके लिए लिखिए। आत्मघाती समाजों की बरबादी के लिए कोई दूसरा क्यों कर जिम्मेदारी लेगा। जिस काश्मीर की बात आप कर रहे हैं वहां के लोग पाकिस्तान में सिर्फ इसलिए मिलना चाहते हैं (पाक से नहीं भारत से आजादी चाहते हैं) कि वो समानधर्मी है उनको कोई समझा नहीं सकता प्रसून जी। साहस तो करिए सही लिखने का... फतवे वगैरह से कुछ न होगा, आप सुरक्षित रहेंगे।
आप उन कश्मीरियों को पाकिस्तान की चाल से वाकिफ कराने का प्रयास करें क्योंकि आप उनकी आवाज बने हैं, तो शायद कुछ बात बने।
और हाँ अगर धर्म की बात नहीं है तो बलोच लोगों पर हो रहे अत्याचार पर आपके विचारों को पढ़ने को उत्सुक हूँ... वहां के नरसंहारों के सामने फिलीस्तीन भी शर्मा जाएगा..।
फौज हमेशा से वहां पर बच्चों के लिए पहल करती रही है। आप तो खूब जानते होंगे कि अभी हाल में ही वहां के कई (शायद 200 से अधिक) युवाओं ने भारतीय फौज अपनायी है। लेकिन वो कहां दिखता है जनाब?

इंतजार रहेगा।

Unknown said...

Pandit ji

Ek bat bataiye,

kai vedio me dekha gaya ki 8 sal se 15 sal ke bachhe army jinke hatho me AK47 hai unpe bekhauff hoke pattar barsate hai. kya ye bacche challange de rahe ki hum to yahi karenge kynki hum jante hai ki aap hamara kuch nai kar sakte.

Mai khus hun ki Osama Bin laden bhart me nahi mara gaya verna kejariwal ji uski biwi ko mukhy pravah me lane ke liye sarkari job aur bachoo ko Z+ suraksha muhiyya kerva dete.

Is me bhi koi surprise nahi ki rajdeep aur barkha jaise leading journalist unki killing ko leke ha-hakar macha dete aur goverment pe dabav dalte ki ye mudda bat cheet se hal kiya ja sakta tha. Aur pandit ji app tp sayad amaran ansan pe utar jate.


Kya aap ne kabhi ye jo army ke log mar gaye hamare liye unke bacho ke liye awaj uthai, kuya app logo ke man me unke parivar ke liye kuch kar gujarne ka man nahi hota.

Godhara kand ho gaya public ne sadko pe danaga kiya police ke samne pathrav kiya lekin grande fekna aur army se do do hath kerna to tab bhi nahi huwa tha.


Ab sach nme lagne laga hai ki media kalam ko hathiyar bana chuki hai jo roj chup chap kai logo ko maut ke ghat utar rahi hai.

Kahi na kahi her reporter pre assume angle leke goverment se kuch kuch umeed ker raha hai...aur chahta hai ki sarkar vahi kare jo usne likh diya hai...kul milake reportter ab bhagy vidhata ban raha hai.

Jab uska lika huwa sarokar nahi hota to vo us sarkar ke khilaf agenda ban leta hai fatwa jaree ker deta hai. Fir chahe viansh kyun na ho, bas uske likha kyun nahi huwa bilkul vaisa jaise bhagwan ka likh vidhi ka vidhan ho jata hai.

Mai mere dost drs and enggs hai ap logo ki tarah duniya ghoomte hai dekhte hai samjhte hai, yakin maniye gaur se dekhte hai gahrai tak jate hai.

kabhi kabhi lagta hai ye sari samsyaye paida ki ja rahi hai, pali poshi ja rahi hai.

Raveesh ji ko dekha hai vo hamesha ek nichale tabke ki bat karte hai hai, kai aise log hai jo ati nichle tabke se aye aur upar chale gaye.

Ap log 60 sal se sarkar ko jag rahe the, ab ap log jan lok ko jagaiye. ek dusre ke prati farz bataiye , ye man ke chaliye kuch na kuch achha nikal ke ayega. Netao ki kumbhakarniy pratha chali a rahi hai vo chalne do.

regards
Ajaykumar
9824773929

Unknown said...


"दो लाख कश्मीरी बच्चो के बारे में कौन सोचेगा?"

Kya huriiyat ke log soch rahe hai. Army ke marte javan, unki vidhava hoti biwiya, anath hote bachhoo ke bare me kaun sochega.

Kya ye ban ka ahvan army ya sarkar ne kiya hai.

Kya 2 lakh bacho ke sochne ki surwat 2016 se ki jaye. Pahle kyun nahi ki gai. Kya nehru ji ne soch tha?

Kya jab vaha karfyu lage tabhi 2 lk bachhe yad ate hai? ya pahle kabh yad aye the. Yadi yad aye the kam kyun nahi kiya gaya jo aj fir yad karna pad raha hai?

D.K. Sharma said...

पूण्य प्रसून बाजपेई भी आतंकियों के साथ है।कश्मीरी बच्चों के लिए जब उनके माँ बाप और अलगाववादी नहीं सोच रहे तो क्या इसके लिए केंद्र सरकार या सुरक्षा बल दोषी हैं। हमारे देश में पूण्य प्रसून बाजपाई जैसे देशद्रोही पत्रकारों पर कब कार्यवाही होगी।

D.K. Sharma said...

पूण्य प्रसून बाजपेई भी आतंकियों के साथ है।कश्मीरी बच्चों के लिए जब उनके माँ बाप और अलगाववादी नहीं सोच रहे तो क्या इसके लिए केंद्र सरकार या सुरक्षा बल दोषी हैं। हमारे देश में पूण्य प्रसून बाजपाई जैसे देशद्रोही पत्रकारों पर कब कार्यवाही होगी।

Unknown said...

वाजपेयी जी , क्या सही मायने में कश्मीर का भविष्य राजनेता तय कर सकते हैं या यह पोप , लामा और संतों के फरियाद से हो सकता है ? महोदय आप कैसे पत्रकार हैं जो संवेदनशील मामले पर साहित्यिक बहस करके मन बहलाता है . अगर आप अनुभवी पत्रकार हैं तो समाधान दीजिये न . आजकल संवेदना को भी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है .
एक बच्चा जो बस्ते में बम भरकर आता है और निर्दयता से सात परिवारों की आशा को मारकर चला जाता है . उस मृत व्यक्ति का बेटा दिल्ली में लाश के सामने सलामी देते हुए फफक फफक कर रोता है . और आप यहाँ ब्लॉग लिखते हैं कि अन्याय है , कुठाराघात है . आप उन शहीदों की लाशों पर भी हाथ घुमा घुमा करके टिप्पणियां करते हैं और उन बच्चों पर भी जार जार आंसू बहाते हैं ? आप खुद अपनी औकात बताइये . आप पत्रकार हैं या सूचनाओं के कूरियर बॉय . आपका काम तथ्यपूर्ण निर्णेता का है या साहित्यिक अश्रुपूर्ण प्रवचन का . इतने दिन के अनुभवों के बाद भी आपकी नियति सिर्फ आंसू बहाने वाले विषय खोजने की है तो हमें आपकी जरुरत नही है . हर साल एक बड़ा पन्ना पाकिस्तान पर खर्च करने के बाद भी आप विडम्बना पर ही भाषण देते रहे तो फिर ऐसे दुखपूर्ण चर्चा करने को हमारे पास पर्याप्त साहित्यकार हैं . कहीं कोई समाधान नहीं . पत्रकार खुद भी कीचड़ में है और सबको यही सलाह दे रहा है कि इस कीचड़ का कोई रास्ता नही है .
आपके पास कोई जरिया नही है लोगों को बताने का की आप उन्हें कोई आशा दे सकते हैं . आप बेबसी , गरीबी , भुखमरी और मानवाधिकार की चर्चा तो करते है पर इतने दिन की पत्रकारिता के बाद भी आप सिर्फ चर्चा ही करते रहे जाते हैं . उन बच्चों के पीछे उन तत्वों पर कोई बात नही जो इसकी जड़ हैं .
आप कहते हैं कि बच्चे स्कूल जाने से डर रहे हैं क्योंकि उनको शक है वे बापस आ पाएंगे कि नही . क्या आप ये कहना चाहते हैं कि वे सैनिकों द्वारा मार दिए जाएंगे . क्या आप ये कहना चाहते हैं कि जो बच्चे मरे हैं वे स्कूल और कॉलेज जाने के लिए निकले थे . महोदय थोथी दलील मत दीजिये और अपडेट रहिये . आप उन पुरानी बातों पर टिके हैं जो कहता है कि अल्पसंख्यकों के विरोध का मतलब है बहुसंख्यकों का दवाव .
महोदय , आप कूटनीतिक स्थिति और भूराजनैतिक प्रभावों के आकलन के बिना ही अपनी बात साहित्यिक खांचों में भर देते हैं इसलिए वह लंबी होने पर भी दिशाहीन और छिछले विचारों को प्रस्तुत करता है . क्या आपने उन बच्चों की स्थिति के लिए अलगाववादी पृष्ठभूमि के तथ्यों का सहारा लिया ? क्या आपने उन सर्वाधिक संकीर्ण पडोसी व्यवहारों को ध्यान में रखा जिसे वैश्विक विद्वान और संस्थाएं जिम्मेदार मान रही हैं . क्या आप द्विपक्षीय व्यवहार के सिद्धांतों से इत्तेफाक रखते हैं जो अन्य देश के द्वारा किसी भी व्यवहार को उसकी भाषा में समझ कर उससे संबंधित क्रियाकलापों का खाका खींचती है . महोदय चूंकि आप बिना परिप्रेक्ष्य जाने ही कीड़ी विषय पर टूट पड़ते हैं इसलिए आप उसकी समूची हत्या करते हैं और उन पाठकों की भी जो आपके एकपक्षीय व्यवहारों से परिचित नही है .
आपको बजाय यह ढूंढने के की वहां क्या हो रहा है , यह ढूंढना चाहिए की आखिरकार वहां यह क्यों किया जा रहा है .

Kaushal said...

आपसे पुर्णतः सहमत हूँ। एक अच्छे और जानकार पत्रकार होते हुए भी वाजपेयी जी का यह लेख एक पक्षीय ही था। नही होना चाहिए था। ये तो बिल्कुल देश की नीति के खिलाफ जाके देश की संप्रभुता को आये दिन चोटिल करने वालों की गोद में ही बैठे हुए लगे।
बच्चो की चिंता सही है लेकिन इसके जिम्मेवार उनके अपने है और वहीँ हैं!!