देश के सबसे बड़े सियासी सूबे के मुसलमानों का चुनावी दांव ही सियासी तिकडमों तले कैसे दांव पर लग चुकी है, ये कोई आज का सच नहीं है बल्कि आजादी के तुरंत बाद से ही ये तस्वीर बनाये रखी गईं। और मुस्लिमों की इस तस्वीर को बनाये रखने की जद्दोजहद में सियासत करने वाली पीढ़ियां खप गईं। देश के पहले चुनाव में मौलाना अब्दुल कलाम को भी मुस्लिमों का नुमाइन्दा बनाकर नेहरु ने मुस्लिम आबादी वाले रामपुर से ही चुनाव लड़वाया। और 65 बरस बाद आज भी समाजवादियों के लिये रामपुर की पहचान आजम खान से जा जुड़ी है। और यूपी में रेंगती सियासत का ही सच है कि जहां मुस्लिम आबादी सत्ता में पहुंचा दें वहां मुलायम ने मौलाना बनकर मुसल्लमानो को ही दांव पर लगाया। और इस बार मायावती की जीत हार भी बीएसपी के 97 मुस्लिम उम्मीदवारों पर ही जा टिकी है। यानी यूपी की सोशल इंजीनियरिंग में मंडल-कमंडल की प्रयोगशाला में भी मुस्लिम निशाने पर आकर भी हाशिये पर रहा और सांप्रदायिक हिंसा के खौफ तले सियासत ने मुज्जफरनगर दंगों से लेकर कैराना तक के केन्द्र में मुस्लिमों को ही रखा।
ऐसे में यूपी के मुसलमानों के सच को जानने के लिये देवबंद की गलियों में चले। आजमगढ़ की जमीन पर खड़े होकर सियासी बिगुल फूंके या फिर मुज्जफरनगर-शामली के रिलिफ कैंपों में रहने वाली रेप की शिकार महिलाओं के जख्म पर ये कहकर नमक छिड़के कि लड़ते लड़ते थक गई लेकिन न्याय ने कभी दस्तक नहीं दी। या फिर मु्स्लिमों की बिसात पर सत्ता की इमारत खड़ा करने के उस मिजाज को समझे, जिसके लिये मुस्लिम ना तो वोट बैंक हैं। ना ही मुस्लिम वोट की जरुरत है। और अयोध्या कांड का एक सच ये भी रहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने आडवाणी के रथयात्रा को नकारा भी और बाबरी ढांचे के विध्वस से एक रात पहले लखनऊ में जमीन समतल करने वाला भाषण भी दिया। और नये अंदाज में हैदराबाद के निजाम की गलियां छोड़कर औवैसी भी जब यूपी की जमीन पर सियासत के दाव चल रहे है, तो उनके लिए तीन तलाक का अंदाज भी नायाब है। जहां वह सपा, बसपा और बीजेपी से तीन तलाक लेने वाले भाषण देने से नहीं हिचकते। तो दर्द या त्रासदी हिन्दू-मुसलमानों की नहीं उस सामाजिक-आर्थिक कटघरे की है जिसपर सियासत ही कुंडली मार कर बैठी है। इसीलिये सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के सच को वही सत्ता कारपेट तले दबाने से नहीं हिचकती जो कोर्ट तैयार कराती है। और यहीं से शुरु होता मुस्लिमों को लेकर ऐसा सच जिसके दायरे में यूपी वोटबैंक के तिराहे पर खड़ा नजर आता है । पहला, अखिलेश-राहुल मुस्लिमों को ही पुचकार रहे हैं। दूसरा, मायावती मुस्लिम-दलित के जोड़ को जीत का मंत्र बता रही है। तीसरा बीजेपी मुसलमानों के बंटने पर सत्ता के सपने संजो रही है। लेकिन सत्ता के लिये प्यादे बने मुस्लिम ही नहीं हिन्दुओं के सामने भी यह सवाल लोकतंत्र के नाम पर गुम कर दिया जाता है कि आखिर गंगा-जमुनी तहजीह का जिक्र करने वालों के ही दौर में ही यूपी में सबसे ज्यादा दंगे क्यो हुये। और क्या दलित। क्या मुस्लिम। क्या ओबीसी। और क्या ऊंची जाति। घायल हर कोई हुआ । और लाभ सियासत ने भरपूर उठाया। ऐसे में कोई ये कहे कि यूपी चुनाव तीन चेहरे अखिलेश, मायावती और मोदी पर जा टिका है तो फिर समझना होगा कि यूपी का सच ये तीन चेहरे नहीं बल्कि वोटबैंक में बांटे जा चुके यूपी के लोग हैं। जो गरीबी मुफलिसी में रहते हैं तो दलित कहलाते हैं। और उनकी तादाद 22 फीसदी है। जो सत्ताधारियो की किसी दंबग जाति से या फिर दलितों से जुड़ जाते हैं तो सत्ता की टोपी भी उछाल सकते हैं और सत्ता को टोपी पहना भी सकते हैं, वह मुसलमान करार दिये जा चुके हैं। जो 19 फीसदी हैं और जो दंबग है वह यादव हैं। उनकी तादाद है तो महज 8 फीसदी लेकिन सत्ता समीकरण में कही ओबीसी तो कही मुस्लिमो को साथ लेकर सोशल इंजिनियरिंग को ही सत्ता में बदलने की काबिलियत मुलायम ने दिखायी। और बिखरा हुआ ओबीसी 40 फीसदी तो बिखरी हुआ ऊंची जातियां 19 पिसदी होकर भी यूपी की बिसात पर प्यादा तो दूर हर चुनाव में रेगती नजर आई। और अक्सर कहा जाता है कि दंगों में ही पता चलता है कि आप कितने अकेले हैं और आपको क्यो समुदाय के साथ होकर वोट बैंक में बदल जाना चाहिये।
तो यूपी इसकी भी नायाब प्रयोगशाला है । क्योंकि चुनाव के मैदान में जा चुके यूपी का ये सच कितना डराने वाला है कि सांप्रदायिक हिसंसा में यूपी हर दूसरे दिन जलता नजर आया । 2013 से 2016 के दौर में यानी 1400 दिनो में जिस राज्य ने 700 घटनायें ऐसी देखी, जिसमें कही मुस्लिम तो कही हिन्दू। तो कहीं दलित तो कहीं ओबीसी और कही ऊंची जातियों के लोग । आहत हर कोई हुआ। क्योंकि 2013 में 247 घटनाये जिसमें 77 मौत हुई । तो 2014 में 133 घटनायें जिसमें 26 मौत । 2015 में 155 घटनाये जिसमें 22 मौत । और 2016 में 162 घटनाये जिसमें 29 मौत हो गई। और राज्यभर के दो हजार से लोग घायल हुये। यानी सवाल ये नही है कि कि हर जेहन में मुजफ्फरनगर दंगों और मथुरा कांड की याद इसलिये ताजा है क्योंकि ये राजनीतिक बिसात पर वोटों का खेल बना बिगाड़ सकता है। मुश्किल ये है कि यूपी के सामाजिक आर्थिक ताने बाने में ये सवाल दूर की गोटी हो चला है। इसीलिये सांप्रदायिक हिंसा का एक भी आरोपी दोषी साबित क्यों नहीं हुआ। दंगों के एक
भी आरोपी को सजा क्यो नहीं हुई कोई नहीं जानता। दंगों के पीडितों को कोई राहत क्यों नहीं मिली। और अब चुनाव में ही हर कोई राहत का जिक्र करने भी हिम्मत भी कैसे दिखा पा रहे हैं। क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा के दायरे में अगर यूपी के सच को ही परख लें तो 20 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्या में करीब 6 करोड की आबादी सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित हुई। लेकिन सियासी बिसात पर अगर यूपी को बांटा जा चुका है तो फिर हर कोई कैसे अकेला है ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फगुना गांव में झांक कर देखा जा सकता है। पेशे से लुहार शकुर अहमद का गांव में इकलौता मुस्लिम परिवार है,जबकि दंगों से पहले गांव में 2500 मुस्लिम परिवार थे। लेकिन-दंगों के बाद कोई परिवार वास लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और सरकार उन्हें ये भरोसा नहीं दिला पाई कि अब कुछ नहीं होगा। जाहिर है ये दर्द हिन्दुओं का भी है । उनके भीतर भी आक्रोश है । जिन्होंने 2013 में मुज्जफरनगर दंगों में अपने घरों को जलते हुये देखा। यानी गुस्से में यूपी हो सकता है। लोगों के भीतर आक्रोश हो सकता है। लेकिन सियासत तो मुस्कुराती है। उसे पता है लखनऊ का रास्ता दिल्ली ले जायेगा। लेकिन यूपी के गांव गांव, शहर शहर आहत लोगों का पता है उनका. रास्ता उनके अपने चारदीवारी में ही कैद रखेगा।
Wednesday, February 8, 2017
यूपी में लोकतंत्र का राग कही मुस्लिमों के घाव पर नमक तो नहीं?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 9:51 PM
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3 comments:
This is the real truth regarding rain coat . DASTAK is the best programme in the best news channels of India. WE ARE PROUD OF PUNYA PRASOON JI YOU ARE THE BEST
REGARDS
CA SURENDRA CHAWLA
Yadav family has done something which none of other political dynasty could ever do. They have established their prince independent identity under the garb of family drama regardless of his background.
Bajpai ji,aap ki problem yh hai ki har baat mein aapko har kam mein muslman ke liye hone vali smsya dikhti hai.vastvikta yah hai ki aap sirf sampradayik ho.aap se ghin aati hai.
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