बीते 25 बरस का सच तो यही है कि देश में सत्ता किसी की रही हो लेकिन किसान की खुदकुशी रुकी नहीं। और हर सत्ता के खिलाफ किसान का मुद्दा ही सबसे बड़ा मुद्दा होकर उभरा। तो क्या ये मान लिया जाये कि विपक्ष के लिये किसान की त्रासदी सत्ता पाने का सबसे धारधार हथियार है और सत्ता के लिये किसान पर खामोशी बरतना ही सबसे शानदार सियासत। क्योंकि राहुल गांधी तो विपक्ष की राजनीति करते हुये मंदसौर पहुंचे लेकिन पीएम खामोशी बरस कजाकस्तान चले गये। कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह दिल्ली छोड़ मंदसौर जाने के बदले बिहार चले गये। बाब रामदेव के साथ मोतीहारी में योग करने लगे और किसानों के हालात पर बोलने की जगह योग पर ही बोलने लगे। तो क्या ये कहा जा सकता है कि राजनीति अपना काम कर रही है और किसान की त्रासदी जस की तस। यानी एक तरफ सत्ता योग कर रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष सियासी स्टंट हो रहा है । दरअसल राजनीति के इसी मिजाज को समझने की जरुरत है क्योंकि किसान की फसल बर्बाद हो जाये तो मुआवजे के लाले पड़ जाते हैं।
कर्ज में डूब वह खुदकुशी कर लेता है लेकिन भारत में विधायक-सांसद चुनाव हार कर भी विशेषाधिकार पाये रहता है। हर पूर्व विधायक सांसद को भी किसान की आय से 300 से 400 गुना ज्यादा कम से कम मिलता ही है। देश में किसान की औसत महीने की आय 6241 रुपये है लेकिन विधायक सांसद को पेंशन-सुविधा के नाम पर हर महीने 2 से ढाई लाख मिलते हैं। तो नेताओं के सरोकार किसान के साथ कैसे हो सकते हैं और संसद के भीतर याद कीजिये तो किसानों को लेकर किसी भी बहस को देख लीजिये संकट कोरम पूरा करने तक का आ जाता है। यानी 15 फिसदी संसद में किसानों की समस्या पर चर्चा में शामिल नहीं होते। तो फिर किसानों का नाम लेकर राजनीति साधने या सत्ता चलाने का मतलब होता क्या है। क्योंकि राजनीति कर सत्ता पाने के लिये हर राजनीतिक दल को चंदा लेने की छूट है। और चंदा संयोग से ज्यादातर वही कारपोरेट और औघोगिक घराने देते हैं, जिनका मुनाफा सरकार की उन नीतियो पर टिका होता है जो किसानों के हक में नहीं होती। मसलन खनन से लेकर सीमेंट-स्टील प्लांट की ज्यादातर जमीन खेती की जमीन पर या उसके बगल में होती है।
लेकिन मुश्किल इतनी भर नहीं है। राजनीति कैसे सांसद विधायक के सरोकार किसान-मजदूर से खत्म कर सिर्फ पार्टी के लिये हो जाते है ये एंटी डिफेक्शन बिल के जरीये समझा जा सकता है । मसलन मंदसौर की घटना पर मंदसौर के ही बीजेपी सांसद किसानों पर संसद में वोटिंग होने पर अपनी पार्टी के खिलाफ वोट नहीं दे सकते। यानी मंदसौर के किसान अगर एकजुट होकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशो को लागू कराने पर अड जाये तो मंदसौर का ही सांसद क्या करेगा। व्हिप जारी होने पर पार्टी का साथ देना होगा । क्योंकि याद कीजिये बीजेपी ने भी 2014 के चुनावी घोषणापत्र में 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने का वादा किया। लेकिन 21 फरवरी 2015 को कोर्ट में एफिडेविट देकर कहा कि 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना संभव नहीं है। क्योंकि ऐसा करने से बाजार पर विपरित प्रभाव होगा । यानी चुनावी घोषणापत्र जैसे दस्तावेज में किए वादे का भी कोई मतलब नहीं। तो फिर चुनावी घोषमापत्र और सरकारो के होने का मतलब ही किसानो के लिये क्या है। क्योंकि महाराष्ट्र में तो बकायदा पीएम और सीएम दोनो ने ही लागत से पचास फिसदी ज्यादा देने का वादा किया था । यानी नेताओं के सरोकार जब सामाजिक और आर्थिक तौर पर किसानों के साथ होते नहीं है तो पिर किसानों की बात करने वाला विपक्ष हो किसानों के बदले योग करते हुये कृषि मंत्री हैं। किसानों के जीवन पर फर्क पड़ेगा कैसे। क्योंकि देश की अर्थव्यस्था में किसानी कही टिकती नहीं मसलन देश के ही सच को परख लें। किसानो पर कुल कर्ज है 12 लाख साठ हजार करोड का है जिसमें फसली कर्ज 7 लाख 70 हजार करोड का है तो टर्म लोन यानी खाद बीज का लोन 4 लाख 85 हजार करोड का है। और उसके नीचे की लकीर बताती है कि देश के 50 कॉरपोरेट का चार लाख सत्तर हजार करोड़ रुपए का कर्ज संकटग्रस्त है यानी बैंक मान चुकी है कि वापस आने की संभावना बहुत कम है। कॉरपोरेट को चिंता नहीं कि संकटग्रस्त कर्ज चुकाएगा नहीं तो क्या होगा क्योंकि उसे एनपीए मानने से लेकर री-स्ट्रक्चर करने की जिम्मेदारी सरकार की है। और एनपीए का आलम ये है कि वह 6 लाख 70 हजार करोड़ का हो चुका है । और इन सब के बीच बीते तीन बरस में केन्द्र सरकार ने देश के ओघोगिक घरानों को 17 लाख 14 हजार 461 करोड़ की रियायत टैक्स इंसेटिव के तौर पर दे दी है। तो देश में कभी एनपीए, टैक्स माफी या सकंटग्रस्त तर्ज पर बहस नहीं होती। हंगामा होता है तो किसानों के सवाल पर । क्योंकि देस में 26 करोड पचास लाख परिवार किसानी से जुडे है । तो फिर राजनीति तो किसानी के नाम पर ही होगी । और बाजार इक्नामी के साये तले किसान की अर्थव्यवस्था कहा मायने रखती है। और शायद यही से सवाल खडा होता है कि कर्जमाफी से भी किसान का जीवन बदलता क्यों नहीं।
ये सवाल इसलिए क्योंकि कर्ज माफी तात्कालिक उपाय से ज्यादा कुछ नहीं-लेकिन किसानों के दर्द पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए राजनेताओं ने इसी उपाय को केंद्रीय उपाय करार दे डाला है। सच तो यह है कि 70 बरस में ऐसी व्यवस्था नहीं हो पाई कि किसान खुद अपने पैर पर खड़ा हो सके। सिर्फ किसान ही क्यो पूंजी से पूंजी बनाने के खेल में जो नहीं है उसके लिये आगे बढने का या कहे जिन्दगी बेहतर बनाने को कोई इक्नामी प्लानिंग देश में हुई ही नहीं है । मसलन यूपी की दो तस्वीरों को याद कर लीजिये। राहुल गांधी की खाट सभा में लोग तीस सौ रुपये की खाट लूटने में ही लग गये और योगी की सभा के बाद लोग 40 रुपये का डस्टबीन लूटने में ही लग गये। जबकि दोनों ही किसान-मजदूर। सिस्टम को बेहतर बनाने की बात कर रहे थे। यानी देश में किसानों की जो माली हालत है, उसमें सुधार कैसे आये और किसान भी गर्व से सीना चौडा कर खेती करें, क्या ऐसे हालात देश में आ सकते है। ये सवाल इसलिये क्योंकि किसानी को बेहतर करने के लिए जो इंतजाम किए जाने चाहिए थे-वो तो हुए नहीं अलबत्ता दर्द से कराहते किसानों को कर्जमाफी के रुप में लॉलीपॉप थमाया गया। तो एक सवाल अब है कि क्या राज्य सरकारें किसानों का कर्ज माफ कर सकती हैं और क्या ऐसा करने से किसानों की दशा सुधरेगी। तो दोनों सवालों का जवाब है कि ये आसान नहीं। क्योंकि कई राज्यों का वित्तीय घाटा जीडीपी के 5 फीसदी से 10 फीसदी तक पहुंच गया है, जबकि नियम के मुताबिक कोई भी राज्य अपने जीडीपी के 3 फीसदी तक ही कर्ज ले सकता है । यानी पहले से खस्ता माली हालत के बीच किसानों की कर्ज माफी का उपाय आसान नहीं है क्योंकि राज्यों के पास पैसा है ही नहीं और विरोध प्रदर्शन के बीच कर्ज माफी का ऐलान हो जाए, बैंक कर्ज माफ भी कर दें तो भी साहूकारों से लिया लोन माफ हो नहीं सकता ।-किसान कर्ज माफी के बाद भी बैंक से कर्ज लेंगे और एक फसल खराब होते ही उनके सामने जीने-मरने का संकट खड़ा हो जाता है,जिससे उबारने का कोई सिस्टम है नहीं । फसल बीमा योजना अभी मकसद में नाकाम साबित हुई है । और कर्ज माफी की संभावनाओं के बीच भी किसान की मुश्किलें बढ़ती ही हैं,क्योंकि वो कर्ज चुकाना नहीं चाहता या चुका सकता अलबत्ता नए कर्ज मिलने की संभावना बिलकुल खत्म हो जाती है। तो सवाल कर्ज माफी का नहीं,सिस्टम का है। और सिस्टम का मतलब ही जब राजनीतिक सत्ता हो जाये तो कोई करें क्या । तो होगा यही कि आलू दो रुपये किलो होगा और आलू चिस्प 400 रुपये किलो । टमाटर 5 रुपये होगा और टमौटो कैचअप 200 रुपये किलो । और संसद की कैंटीन में चिप्स है, कैचअप है । और पीएम भी कैंटीन की डायरी में लिख देते है, अन्नदाता सुखी भव ।
Thursday, June 8, 2017
न कोई सरोकार, न कोई पॉलिसी फिर भी कहा "अन्नदाता सुखी भव"
Posted by Punya Prasun Bajpai at 11:15 PM
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3 comments:
सच्चाई जाहिर करने के लिए आपका धन्यवाद। पुण्य जी आप ने हमेशा किसानों की बात को सामने रखा है। यह बेहद कम होता है, जिस देश में नेशनल समाचारों के नाम पर महज दिल्ली की राजनीति या फालतू डिबेट परोसी जाती हो, उस समय आप लगातार किसानों की अावाज उठाते है, जो सही पत्रकारिता का एक बड़ा उदाहरण है।
sir dikkat kya hai.............kuch so called kisan aise haram khor ho gaye hai .........naukri sarkari karte hai a class officer hai b class hai, ya c class k karmchari magar chunavi vada sunte k sath kisan credit card banwa lete hai aur unhe 99000 se 9lakh90hazar ka loan bade aaram se mil jata hia............... kuch log 1-2 bigha jameen khareedte hi isliye hai ki unhe kam interest par loan mil jaye .......... aur kuch itne shokia kisan hai daru peene k liye hi loan lelete hai........... mai khud kisan ka baita hoo aur ek parampara hai hamari bhi bhookhe so jayenge magar loan nahi lenge. aur hamare jaise bhi bahut milenge. magar gussa tab aata hai ja kisan khud loan lekar doosro ko 24 se 48% par vyaj leta hai. aur unka loan maf bhi ho jata hai. MAGAR PISTA WO IMANDAR KISAN HAI JO APNA LOAN TIME SE JAMA KARTA HAI AUR AGLI BAR JAB USKI JAG HASAI HOTI HAI LOG BEWKOOF KEHTE HAI TO LOAN FIR SE LETA HAI AUR JAMA NAHI KARTA HAI AUR 5 SAAL BAD MAF NAHI HOTA TO WO BHARNE KE LAYAK HI NAHI REHTA KYOKI KHARCH BADH JATE HAI AUR FIR MAJBOORAN FASI LAGANI PADTI HAI
DESH KI DIKKAT YAHI HAI IMANDAR KISAN PIS RAHA HAI AUR BAIMAN ABAD HO RAHE HAI. JO KISAN LOAN CHUKATA HAI USKI JAG HASAI HOTI HAI AUR JO PAISA HOTE HUE BHI NAHI BHARTE WO KISANO KA CHEHRA BAN JATE HAI. BAIMANO KE LOAN MAF HO JATE HAI AUR IMANDAR MARTA REHTA HAI.
AUR EK KADWA SACH YE BHI HAI KI GAREEB ANPADH KISAN KO SARKARI LOAN KABHI MILTA HI NAHI HAI.
SARI MALAI TO NETAO KE RISHTEDAR KHA JATE HAI.
ISKA HAL JAB TAK NAHI HOGA JABTAK SARKAR AISE KISANO KO TRACE NA KARE AUR ADHIKARIO KI JABDEHI NA HO KI IN KISANO KI HALAT KHARAB KYO HAI..............KYOKI HINDUSTAN KE SARE SURVEY TO OFFICE K AC ME HI BAITH K HOTE HAI
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