Monday, May 28, 2018

नीति आयोग को क्यों लगा कि 5 पिछड़े राज्यों ने देश के विकास का बेड़ा गर्क कर दिया ?

बिहार, यूपी, एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़। तो नीति आयोग की नजर में देश के पांच राज्यों के पिछड़ेपन ने देश के विकास का बेडागर्क कर रखा है। पर इन पांच राज्यों का मतलब है 47,78,44,887 नागरिक यानी एक तिहाई हिन्दुस्तान। दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता यानी लोकसभा की 185 सीट। तो बेड़ा गर्क किसने किया। राजनीति ने या यहां के लोगों ने। और ये राज्य तो से है जो खनिज संपदा के लिहाज से सबसे रईस है पर औद्योगिक विकास के लिहाज से सबसे पिछड़े। 

देश के टाप 10 औगोगिक घराने जो खनन और स्टील डस्ट्री से जुडे हुये हैं, उन्हें भी सबसे ज्यादा लाभ इन्ही 5 राज्यों के उद्योगों से होता है। पर इन 5 राज्यों की त्रासदी यही है कि सबसे ज्यादा खनिज संपदा की लूट यानी 36 फिसदी यही पर होती है। सबसे सस्ते मजदूर यानी औसत 65 रुपये प्रतिदिन यही मिलते हैं। सबसे ज्यादा मनरेगा मजदूर यानी करीब 42 फीसदी इन्हीं पांच राज्यों में सिमटे हुये हैं। तो फिर दोष किसे दिया जाये। यूं इन पांच राज्यों का सच सिर्फ यही नहीं रुकता बल्कि एक तिहाई हिन्दुस्तान समेटे इन 5 राज्यो में महज 9 फिसदी उघोग हैं। देश के साठ फिसदी बेरोजगार इन्ही पांच राज्यों से आते हैं। तो फिर इन राज्यों को ह्यूमन इंडक्स में सबसे पीछे रखने के लिये जिम्मेदार है कौन। 

खासकर तब जब इन राज्यों से चुन कर दिल्ली पहुंचे सांसदों की कमाई बाकि किसी भी राज्य के सांसदों पर भारी पड़ जाती हो। एडीआर की रिपोर्ट कहती है, इन पांच राज्यों के 85 फीसदी सांसद करोड़पति हैं। पांच राज्यों के 72 फीसदी विधायक करोड़पति हैं। यानी जो सत्ता में हैं, जिन्हें राज्य के विकास के लिये काम करना है, उनके बैंक बैलेंस में तो लगातार बढ़ोतरी होती है पर राज्य के नागरिकों का हाल है, क्या ये इससे भी समझ सकते है कि पांचों राज्यों की प्रति व्यक्ति औसत आय 150 रुपये से भी कम है। यानी विकास की जो सोच तमाम राज्यो की राजधानी से लेकर दिल्ली तक रची बुनी जाती है और वित्त आयोग से नीति आयोग उसके लिये लकीर खींचता है। संयोग से हर नीति और हर लकीर इन पांच राज्यों में छोटी पड़ जाती है। सबसे कम स्मार्ट सिटी इन्हीं पांच राज्यों में है। सबसे ज्यादा गांव इन्हीं पांच राज्यों में हैं। सबसे कम प्रति व्यक्ति आय इन्ही पांच राज्यों में है। अगर इन पांच राज्यों को कोई मात दे सकता है तो वह झारखंड है। अच्छा है जो झारखंड का नाम नीति आयोग के अमिताभ कांत ने नहीं लिया। अन्यथा देश की सियासत कैसे इन राज्यों की लूट के सहारे रईस होती है और ग्रामीण भारत की लूट पर कैसे शहरी विकास की अवधारणा बनायी जा रही है वह कहीं ज्यादा साफ हो जाता । क्योंकि देश के जिन छह राज्यों को लेकर मोदी सरकार के पास कौन सी नीति है इसे अगर नीति आयोग भी नही जानता है तो फिर बिहार, यूपी, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और झारखंड के इस सच को भी समझे की देश से सबसे पिछडे 115 जिले में से 63 जिले इन्ही छह राज्यों के है । और इन पिछड़े जिलों को नाम दिया गया है एस्परेशनल डिसट्रिक्ट। यानी उम्मीद वाले जिले। पर देश की त्रासदी यही नहीं रुकती बल्कि 1960 में नेहरु ने देश के जिन 100 जिलों को सबसे पिछड़ा माना था और उसे विकसित करने के लिये काम शुरु किया संयोग से 2018 आते आते वही सौ जिले डेढ़ सौ जिलो में बदल गये और उन्हीं डेढ़ सौ जिलों में से मोदी सरकार के 115 एस्पेशनल जिले हैं। तो आजादी के बाद से हालात बदले कहां हैं और बदलेगा कौन। ये सवाल इसलिये जिन 115 जिलो को उम्मीद का जिला बताया गया है । वही के हालात को लेकर 1960 से 1983 तक नौ आयोग-कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौपी । हर रिपोर्ट में खेती पीने का पानी, हेल्थ सर्विस और शिक्षा से लेकर ह्यूमन इंडक्स को राष्ट्रीय औसत तक लाने के प्रयास का ब्लू प्रिंट तैयार किया गया। और इन सबके लिये मशक्कत उघोग क्षेत्र, निर्माण क्षेत्र, खेती में आय बढाने से लेकर खनन के क्षेत्र में होनी चाहिये इसे सभी मानते रहे हैं। पर इस हकीकत से हर किसी ने आंखे मूदी कि ग्रमीण क्षेत्रो के भरोसे शहरी क्षेत्र रईसी करते है। यानी ग्रामीण भारत की लूट पर शहरी विकास का मॉडल जा टिका है। जो बाजारवाद को बढ़ावा दे रहा है और लगातार शहरी व ग्रामीण जीवन में अंतर बढ़ता ही जा रहा है। बकायदा नेशनल अकाउंट स्टेटिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक देश की इक्नामी में ग्रामीण भारत का योगदान 48 फिसदी है। पर शहरी और ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति आय के अंतर को समझें तो शहर में 281 रुपये प्रति व्यक्ति आय प्रतिदिन की है तो गांव में 113 रुपये। 

तो सवाल तीन हैं। पहला, सिर्फ किसानों की दुगनी आय के नारे से ग्रामीणों की गरीबी दूर नहीं होगी । दूसरा, ग्रामीण भारत को ध्यान में रखकर नीतियां नहीं बनायी गई तो देश और गरीब होगा । तीसरा , विशेष राज्य का दर्जा या किसान-मजदूर-आदिवासी के लिये राहत पैकेज के एलान से कुछ नहीं होगा । यानी इक्नामी के जिस रास्ते को वित्त आयोग के बाद अब नीति आयोग ने पकड़ा है, उसमें पिछड़े जिले एस्पेशननल जिले तो कहे जा सकते है पर नाम बदल बदल कर चलने से पिछडे राज्य अगड़े हो नहीं जायेंगे और जब आधे से ज्यादा हिन्दुस्तान इसी अवस्था में है तो फिर चकाचौंध के बाजार या कन्जूमर के जरीये देश का ह्यूमन इंडेक्स बढ़ भी नहीं जायेगा । जिसकी चिंता नीति आयोग के चैयरमैन अमिताभ कांत ने ये कहकर जता दी कि दुनिया के 188 देशों की कतार में भारत का नंबर 131 है ।

2 comments:

subodh kumar misra said...
This comment has been removed by the author.
One Step IT Solutions said...

Facebook Customer Service Number +1-844-298-5888
If you are facing any issue regarding Facebook like you have lost your Facebook password or cant able to login in your Facebook personal account of Facebook page than you may call us at our Facebook Support Toll Free Number +1-844-298-5888 at anytime from anywhere, we are available 24*7 hours.
Visit at: http://www.onestepitsolutions.net/facebook-customer-service.html