Monday, September 17, 2018

मोदी जी जन्मदिन की बधाई....2019 आप जीत रहे हैं!


पहली तस्वीर....लुटियन्स दिल्ली

वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरीये पिछले दिनो प्रधानमंत्री जब सचिवों से सवाल जवाब कर रहे थे, तब किसी सवाल पर एक सचिव अटक गये। और अटके सवाल पर कोई सीधा जवाब जब सचिव महोदय नही दे पाये तो प्रधानमंत्री ने कुछ उखड़कर कहा आप ऐसे ही जवाब 2019 में हमारे चुनाव जीतने के बाद भी देते रह जायेंगे क्या? इस वीडियो कांन्फ्रेसिंग में मौजूद एक दूसरे सचिव ने जब जानकारी देते हुये ये कहा कि , "जिस अंदाज में प्रधानमंत्री ने 2019 की जीत का जिक्र किया उसमें हर किसी को लगा कि 2019 का चुनाव सरकार के लिये या कहे पीएम के लिये गैर महत्वपूर्ण है । " यानी देश में जिस तरह की बहस 2019 को लेकर चल निकली है उसमें कांग्रेस या विपक्ष क्या क्या कयास लगा रहा है। वह सब वीडियो कांन्फ्रेसिंग के वक्त काफूर सी हो गई।   

दूसरी तस्वीर...बीजेपी हेडक्वार्टर

भाई साहब जिस तरह रिलायंस ने अपनी नेटवर्किग के जरीये देश भर में सर्वे किया है और हाईकमान को जानकारी दी है कि बीजेपी 2019 में तीन प्लस सीट जीत रही है । उसके बाद से तो हर नेता की या ता बांछें खिली हुई है या हर नेता घबराया हुआ है। घबराया हुआ क्यों? क्योकि अध्यक्ष जी जिससे मिलते है, साफ कहते हैं, हम तो तीन सौ से ज्यादा सीटे जीत जायेंगे पर आप अपनी सीट की सोचिये? तो बीजेपी के सांसद ने ये बताते हुये कहा, अब समझ में नहीं आ रहा है कि    जब तीन सौ सीट जीत ही रहे हैं तो फिर हमारी ही सीट गडबड़ क्यों है। और कमोवेश हर सांसद के पास यही मैसेज है कि तीन सौ सीट जीत रहे हैं पर आप अपनी सीट देखिये। तो टिकट मिल रहा है या नहीं। या फिर टिकट से पहले खुद का आत्मचिंतन करना है। या फिर जीत तय करने के इंतजाम करने हैं। 

तीसरी तस्वीर .... बनारस

बीते चार बरस में चार हाथ का पुल बना है। पर चारसौ हाथ के गड्डे शहर में हो गये । काशी-विश्वानाथ मंदिर के रास्ते दुकान-मकान सब उजाड़ दिये गये। शिक्षा बची नहीं। रोजगार खत्म हो गया। सड़क से लेकर गंगा घाट का हाल और खराब हो चला है। करें क्या समझ नहीं आता कि कोई कहता है कलाकार हैं।  कोई कहता है तानाशाह है। कोई कुछ कहता है तो कही से कुछ और बात निकल कर आती है। पर करें क्या। आप ही बताओ। तो प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हवाईअड्डे से लेकर बीच शहर नागरी सभागार और काशी-विश्वनाथ मंदिर से लेकर गोलडन होटल के नीचले तल में बैठे विपक्ष की राजनीति करते हर दल के सामने सवाल यही है। करें क्या  । और बनारस के किसी भी कोने में सारी बात घूम फिर कर अटक जाती प्रधानमंत्री पर है। यानी संकटमोचक के शहर में सब संकट के दाता को निपटाये कैसे? बहुत घोखा हो गया । पर करें क्या।तो सत्ता की नौकरशाही , सत्ताधारी नेता और सत्ता का प्रतीक बनारस ही जिस मनोविज्ञान में जा फंसा है उसमें कोई भी पहली नजर में प्रधानमंत्री मोदी  को जन्मदिन की बधाई ये कहते हुये तो दे ही सकता है कि, " कण कण में जब आप है और विपक्ष के पास कोई पैालेटिकल नैरेटिव है ही नहीं  फिर 2019 तो आप जीत ही चुके हैं। "

सच यही है देश में बहुसंख्य तबका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 2019 में हराना चाहता है । और यही बहुसंख्यक तबका खुद को इतना बेबस और असहाय महसूस र रहा है कि उसके पास संकट बताने का तो भंडार है पर संकट से निजात कैसे पाये इसका कोई मंत्र नहीं है ।  कोई तस्वीर नहीं है । किसी पर भरोसा नहीं है । और बहुसंख्यक होकर भी अपने अपने दायरे में सभी इतने अकेले है कि कोई छोटी सी किरण उसे नजर आ जाये तो वह उसे सूरज मान कर या बनाने की चाह में  उसकी तरफ खिचता आता है । पर दूसरी तरफ कांग्रेस के पास कोई पॉलिटिकल नैरेटिव नहीं है । क्षत्रप कांग्रेस की बिना नैरेटिव राजनीति का लाभ अपनी सत्ता की जमीन मजबूत करने के लिये उठाने के सौदेबाजी बोल रहे है । और  इस मनोविज्ञान का लाभ मोदी-शाह की जोडी ने इस तरह उठाया है बिना जमीन ही 2019 की जीत का महल हर दिमाग में खड़ा कर दिया है। नौकरशाही में वही खुश है जो डायरेक्ट बेनेफेशरी फंड के निस्तारण से जुडा है। वहीं बीजेपी नेता खुश हैं, जिसको टिकट मिलेगा या जिसके पांव बीजेपी हेडक्वार्टर की पांचवी  मंजिल तक पहुंच पाते हो । जनता वही खुश है जो मान बैठे है 2019 में मौजूदा हालात से निजात मिल जायेगी। विपक्ष इसी खुशी से सराबोर है जनता परेशान है तो फिर निर्णय वहीं दें। और परेशान जनता के नाम पर राजनीतिक गठबंधन में सीटों की सौदेबाजी का खुला खेल तो होना ही है। होगा ही। नरेन्द्र मोदी को जन्मदिन पर 2019 में जीत की बधाई देने के लिये बात कही से भी शुरु कर सकते है । क्योकि यूपी की जमीन जो काफी कुछ तय करेगी , वहा समाजवादी अखिलेश यादव संघर्ष की जगह अगले तीन महीने खामोश रहना चाहते है । क्यों ? क्योकि पता नहीं किस मामले में जेल हो जाय़े या फिर जो औरा यूवा
समाजवादी का बना कर खुद ही जीये जा रहे है वह एक सरकारी दबिश में टूट ना जाये । मायावती सिवाय अपने वोट बैंक को दूसरो के खिलाफ उकसाने वाले हालात बनाकर सत्ता के खिलाफ खामोशी बरतते हुये विपक्ष की एकता में अपनी ताकत को सबसे ज्यादा दिखाकर कभी सत्ता को मोहती है। तो कभी विपक्ष को चुनौती देती हैं। यानी मोदी का नाम जपते हुये मोदी की किसी योजना के खिलाफ सड़क पर आकर संघर्ष करने की ताकत तो दूर की गोटी है। बंद कमरे में भी नही कहती। क्योंकि पता नहीं कब दीवारों के कान लग जाये और बाहर सत्तानुकुल सिस्टम घर में घुस कर दबोच ले। क्योंकि कौन सोच सकता था जिस दौर में नक्सलवाद सबसे कमजोर है, उस दौर में शहर दर शहर गैर राजनीतिक तबका ये कहने से नहीं चूक रहा है कि "मी टू नक्सल"। और जिस कांग्रेस ने नक्सवाद को लेकर ना जाने कौन कौन सी लकीरें खिंची आज उसी के वकील शहरी नक्सलियों की वकालत करते हुये भी नजर आ रहे हैं। और तो और जो कारपोरेट मनमोहन सरकार को एक दौर [ 2011-12] में चार पत्र भेज कर कहने की हिम्मत दिखाता था कि मनमोहन सरकार की गवर्नेंस फेल है अब उसी कारपोरेट को सूझ नहीं रहा है कि  रास्ता होगा क्या। क्योंकि पंसदीदा कारोपरेट सत्ता के साथ है। और पसंदीदा कारपोरेट 2019 में सत्ता बदलने पर आने वाली सत्ता के दरवाजे शाम ढलने के बाद खटखटा भी रहा है। पर रास्ता है क्या या होगा क्या ये कोई  नहीं जानता। और इसी मनोविज्ञान को मोदी-शाह ने पकड़ लिया है तो फिर नरेन्द्र मोदी को जन्मदिन की बधाई ये कहते हुये तो दी ही जा सकती है कि 2019 में आप जीत रहे हैं।
पर बधाई की सीमा सिर्फ इतनी भर भी नहीं है । उसके पीछे हो सकता है समाज में खिंचती लकीरें हों। धर्म के नाम पर बंटता देश हो। जाति-संघर्ष की नई इबारत गढ़ने की तैयारी हो। सपनों की दुनिया में और ज्यादा हिलोरे मारने की  तैयारी हो। मसलन गरीब सवर्णों को दस फिसदी आरक्षण दे दिया जाये। दलित उत्पीड़न के कानून को मजबूत करते हुये बाबा साहेब आंबेडकर के परिवार के  सदस्य आनंद तेलतुम्ब्रडे  [प्रकाश आंबेडकर की बहन के पति ]  को जेल में बंद भी कर दिया जाये। जिलेवार को जातीय आधार पर बांटा जाये । उसमें से  जातीय तौर पर नेताओ की पहचान कर सत्ता से जोड़ा जाये। हर योजना के क्रियान्वयन के लिये किसी भी अधिकारी से ज्यादा ताकत इन जातीय नेताओं के हाथ में दे दी जाये। मौजूदा 80 फीसदी सांसदों को टिकट ना दिया जाये। किसी भी दागी को टिकट ना दिया जाये। क्योंकि दूसरी तरफ जब पार्टियों का  गठबंधन होगा तो सभी 2014 के उन्ही प्यादों को टिकट देंगे, जो ये कहते हुये
सामने आयेंगे कि 2014 की हवा तो गुजरात से चली थी तो वह उड़ गये। पर अब तो दिल्ली की हवा है और जवाब देने के लिये सत्ता के पा कोई बोल नहीं है तो फिर वह जीत जायेंगे। यानी विपक्ष के 80 फिसदी वहीं उम्मीदवार होंगे  जो 2014 में थे। तो क्या वाकई नरेन्द्र मोदी को जन्मदिन की बधाई ये कहते हुये नहीं दे देनी चाहिये कि 2019 में आप जीत रहे हैं।  या फिर अपने अपने दायरे में अकेले सोचती बहुसंख्य जनता कि 2019 में बदलाव होगा। पर होगा कैसे इसकी कोई तस्वीर उनके सामने नहीं उभरती और विपक्ष ये  सोच कर खामोश है कि आने वाले तीन महीने किसी तरह बीत जाये । तो फिर उसके बाद तो सत्ता उसी की है। इस कतार में सिर्फ अखिलेश, मायावती भर नहीं है  बल्कि ममता बनर्जी , चन्द्रबाबू नायडू , देवेगौडा , चन्द्रशेखर राव , उमर अब्दुल्ला या फारुख अब्दुल्ला । हर कोई अपनी सुविधा और सत्तानुकुल हालात के नेता है । 

तो दूसरी तरफ वामपंथी महज जेएनयू की जीत से आगे जा नही पा रहे और कांग्रेस के पास सिवाय मोदी विरोध के कोई नैरेटिव नहीं है। यानी जो बहुसंख्य जनता राहुल गांधी से ज्यादा नरेन्द्र मोदी को कोस रही है, वह जनता राहुल गांधी को भी खुद की तरह मोदी को कोसते हुये सुनती है तो फिर  उसके सामने ये संकट उभर कर आता है कि विकल्प क्या है । क्योंकि कांग्रेस  को जिस दौर में पालेटिक नैरेटिव देश के सामने रखना चाहिये उस दौर में कांग्रेस सिर्फ सत्ता का खिलाड़ी बनकर खुद को पेश कर रही है। यानी इस सच  से काग्रेस सरीकी राजनीतिक पार्टी भी कोसों दूर है कि गठबंधन की आंकडेबाजी से कहीं आगे देश की राजनीति निकल चुकी है। और सपनों को सपनों से खारिज करने की जगह उस जमीन को बताने-दिखाने और उसी के लिये संघर्ष करने की  जरुरत है जिसकी चाहता किसी भी भारतीय नागरिक में फिलहाल है । वह मसला  किसान - मजदूर का हो या शिक्षा या रोजगार का । या फिर उत्पादन या कारपोरेट इक्नामी का । या कहे मौजूदा वक्त का राजनीतिक विकल्प होगा क्या  ? आने वाले वक्त में भारत कि दिशा होगी कैसी । क्यों मोदी दौर की राजनीति ने लोकतंत्र को हडप लिया है ? पालेटिकल नैरेटिव इस दिशा में जा ही नहीं
रहा है । राफेल लडाकू विमान घोटाला है । एक खास कारपोरेट को लाभ है । इसे कमोवेश हर कोई जान चुका है । गूगल पर सारे तथ्य मौजूद है । पर यह तो अतित की सत्ता का ही दोहराव है । यानी सत्ता इधर हो या उधर दोनो में फर्क चुनावी भाषणो में दिखायी - सुनायी देने वाले तथ्यों के आसरे पालेटिकल नैरिटिव बनाये नहीं जा सकते । और ये तमीज अभी तक काग्रेस को आई ही नहीं है कि संविधान और लोकतंत्र की परिभाषा में वह पालेटिकल नैरेटिव तब खोज रही है जब संविधान और लोकतंत्र को ही बेमानी बना दिया गया है । यानी मौजूबदा सत्ता के पॉलेटिकल नैरेटिव में संविधान और लोकतंत्र मायने नहीं रखता है । लेकिन कांग्रेस को लगता है कि संविधान-लोकतंत्र के दायरे तले उन  कंकडो को उटाया जाये जो चुभ रहे है । क्योकि अगर उसने पत्थर उठा लिया तो फिर 2019 के लिये राजनीतिक तौर जिसनी मशक्कत करनी होगी उसकी काबिलित उसमें है नहीं । या फिर वह इतनी दूर तक सोच पाने में ही सक्षम नहीं है ।
और जब कांग्रेस कंकड उठा रही है तो ट्वीट कर क्यों बकायदा केक काट कर प्रधानमंत्री मोदी को जन्मदिन की बधाई देते हुये राहुल गांधी को भी कह देना चाहिये 2019 आप जीत रहे हैं। 

28 comments:

arun kumar said...

इतराओ न इतना बुलंदियों को छूकर
वक्त के सिकन्दर पहले भी कई हुए हैं
जहाँ होते थे कभी शंहशाहों के महल
वहीँ अब उनके मकबरे बने हुए हैं।

abhileshmandloi said...

बहोत कुछ कह दिया आपने कोई कुछ भी कहे मोदीजी का तोड़ किसी के पास नहीं है

Unknown said...

Satta pane ki chah me saheb aaj jhuke hue hai kanhi .bahusankhyak chatak raha hai alpsankyak ke darwaje khade hue hai?

Unknown said...

Satta pane ki chah me saheb aaj jhuke hue hai kanhi .bahusankhyak chatak raha hai alpsankyak ke darwaje khade hue hai?

Nagendra Tripathi said...

बेहतरीन समीक्षा।अबतक का इतिहास बताता है कि समय खुद ब खुद एक नवीन रास्ता बता देता है।लोकतंत्र की जड़ें मजबूत है।आशा है रास्ता निकलेगा।

Unknown said...

बहुत अच्छा लिखा, मोदी सरकार की पोल खोल दी...

साहेब said...

हाहा दो कौड़ी के पत्रकार बनारस में लोग परेशान हैं मोदी से। 🤣🤣 ये तूने होश में ही लिखा है न?

Unknown said...

14 के वादे तो भक्तो के लिए ही पूरे हुए है उसी आशा पर 19 भी जीतेंगे देखते है लोकतंत्र कितना समझदार है क्योंकि आज प्रधानसेवक जी क्योटो में अपना जन्मदिन माना रहे है
कितनी खुशी मिलती होगी कि जब वो हर रोज एक नया जुमला पेश करते है और भक्त उसे अछि तरह समझ जाते है
और जिन्हें समझ नही आता वो तो देशद्रोही ही होंगे
जन्मदिन मुबारक मोदी जी

Unknown said...

प्रसून जी भक्तो को ऐसा क्यों लगता है कि
बाजपेयी, रविश, अभिसार जैसे पत्रकार एन्टी bjp है
आप लोग उनके लिए ऐसा कौन सा जहर उगलते है

NitiN Raj SHARMA said...

Master piece

Unknown said...

Ok sir

Unknown said...

आपको बहुत मिस कर रहा हूँ,
तानाशाही के इस दौर में एक शानदार पत्रकार को खामोश कर दिया गया।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को नष्ट करने के साथ ही लोकतंत्र के खात्मे की शुरुआत की गई है।
नए भारत में आपका स्वागत है।

अनिल कौशिक said...

आप विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं।आप जैसे विश्लेषक को दिलसे नमन करने को जी चाहता है। आपने एकदम सही कहा कि जनता त्रस्त होते हुये भी विकल्प नहीं खोज पा रही है। विपक्ष भी विकल्प दिखा नहीं पा रहा है। और यही मोदी जी की जीत है। इसलिए उनको हम भी आपके साथ इस जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं क्योंकि वो 2019 में जीत रहे हैं।

Unknown said...

सहीकहा है evm वो कमाल की मशीन है जिसके अहंकार में बीजेपी जी रही है evm हटाये बिना बीजेपी का विजय रथ नही रुकने वाला

blogger salman said...

बहुत ही उम्दा sir।।

Unknown said...

जमीनी स्तर पर लोगों में इतनी न तो जागरूकता है और
न ही उन्हें समझाने या विस्वास दिलाने का कोई माध्यम
है।बर्तमान हालात के मद्देनजर केवल एक ही चारा है,जो
हर राजनीतिक दल उपयोग करते है,वह अपनी अपनी
सविधनुसार झूँठ। बर्तमान लोकतंत्र की यही सच्चाई है।
और तमाम विसंगतियों का कारण भी यही है। अपनी
अपनी छमता और समझ के अनुसार सुधार का प्रयास
करना चाहिए,और सकरात्मक परिणाम की उम्मीद की
जानी चाहिए।

Unknown said...

कहते हैं कोशिशें कामयाब होती हैं!चिराग जलाए रखिये!!परिवर्तन संसार का सार्वभौमिक नियम है। जनता हूं कुछ चीजें आज नहीं दिख रही हैं परन्तु आगे जरूर दिखेंगी।
आपके इस प्रयास को इतिहास कभी भुला नही पायेगा। सादर प्रणाम

Unknown said...

नितांत वास्तविक विश्लेषण आदरणीय बाजपेई जी आज का यथार्थ सबका साथ सबका विकास का नारा देकर कर दिया सत्यानाश!
............कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए,
मगर एक चिराग भी मयस्सर नहीं एक शहर के लिए,,

Unknown said...

नितांत वास्तविक विश्लेषण आदरणीय बाजपेई जी आज का यथार्थ सबका साथ सबका विकास का नारा देकर कर दिया सत्यानाश!
............कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए,
मगर एक चिराग भी मयस्सर नहीं एक शहर के लिए,,

smartallinfo.com said...

देश के अच्छे भले नागरिक होने के नाते आप कुछ तो करिए सर! सता परिवर्तन बहुत जरुरी हो चला है इन बिपक्छी नेता से मिलिए और अपनी सारा कांसेप्ट रखिये उनके पास, समझाए उनको ये लोग नवयुबक नेता है आँख मे धुल कभी भी झोक कर बीजेपी निकल सकती हे छोरिये आपको ये लोग बुलाता हे या नही पर मेरा मानना हे कि आपके जाने पर आपको बहुत इज्जत मिलेगा|किसी न्यूज़ चेंनेल पर आप अभी होते तो उसी से सता परिवर्तन हो जाता लेकिन सिर्फ ब्लॉग लिखने से नही होगा सर समझिये इन जनता या भारत का दर्द| ये बिपक्छी नेता राजनीती तो आगे कभी भी कर सकता हे लेकिन मौजूदा हालात मे लोकतंत्र को बचाना और भारत कि धड़कन समझने कि जरुरत| बीजेपी के फ्रेवी जाल मे जो सिर्फ पढ़ लिख सकने वाले लोग फश चूका है ये लोग उतना नही जानते पाहिले उन्हें भी तो बचाने कि जरूत है||||

Unknown said...

Main to ye janta Hoon ki gas cylinder Milne laga kanpur ki sadak saf suthri ho gayee Jo labour 200 RS men Kam kerti this ab 400 men bhi mushkil se milti hai

Unknown said...

सर,अगर 2019 जीत रहे है तो मुझे यह भी लग रहा है कि 2024 मे 50 सीट भी नहीं जीत पाएंगे।

मीडिया मैनेजमेंट का तिलिस्म उतर रहा है।मात्र एक बार जनता और धोखा खा सकती है.

Unknown said...

सुप्रभात। खाका तो दुरुस्त खींचा है। वर्तमान हालात और इस आलेख को पढ़कर एक राजा/शहंशहं/बादशाह सलामस या कहें नवान बेमुल्क की बानगी याद हो चली है। कहते हैं कि वे शराब, शबाब, कबाब का शौक नहीं करते थे जुआ भी नहीं खेलते थे। कोई बुराई थी ही नहीं उनमें, बस एक ही ऐब था उनमें कि झूठ बड़ा अच्छा और सलीके से बोला करते थे। अवाम को ऐसे सब्जबाग दिखाते, ऐसे सब्जबाग दिखाते मानो सभी को ईमली के झाड़ पर चढ़ा दिया करते। इसी शगल में समय बीतता गया, जनाब मुगालते में ही बने रहे और बड़े बेआबरू होकर रुकसत हो लिये।

Ayush said...

Hello sir in which channel you are next thinking to work

Unknown said...

Tum chutiya the is liye Nikal diye gaye.journalist hokar Kuch n Kar paye...ye to bahi huaaa juz saheb mange insaf.jhel mange azadi.
,,पाखंड की पत्रकारिता छोड़ दो
पत्रकार की पत्रकारिता करना प्रारंभ करना सुरु कर दो

Unknown said...

मोदी जी अहंकार की भाषा मे बात करते है,दूसरी उनकी
कमी ये है कि उनका बॉडी लङ्गैज यह प्रदर्शित करता है
की उनके अंदर एटीएम विस्वास की कमी है क्योंकि
आकरात्मक शैली में कही गई बातें हर व्यक्ति स्वीकार
नही कर पाता साथ ही कही गई बातें ही संशय पैदा
करने लगती है,ऐसी स्थिति स्वीकार के स्थान पर
अस्वीकार की मात्रा भी बढ़ जाती है,विनम्रता से कही गई
बात ही लोगो को प्रभावित कर सकती है,जो मोदी जी
के स्वभाव में नही है।

Unknown said...

गजब,आप अपने लिखे हुये बातो को रिकॉर्ड करके भी डाले ताकि सुनने मे असानी हो

Unknown said...

Aab ki bar bjp ki Raj
Kyunki yeh hai garibo ki sarkar
Sabko ek saman dekhne wali mattr ek sarkar
Jise hum Pyar se kehte hain BJP ki sarkar