Sunday, February 24, 2019

क्या बेरोजगार युवाओ की फौज ही राजनीति की ताकत है ?

2019 के चुनाव का मुद्दा क्या है । बीजेपी ने पारंपरिक मुद्दो को दरकिनार
रख विकास का राग ही क्यो अपना लिया । काग्रेस का कारपोरेट प्रेम अब किसान
प्रेम में क्यो तब्दिल हो गया । संघ स्वदेशी छोड मोदी के कारपोरेट प्रेम
के साथ क्यो जुड गया । विदेशी निवेश तो दूर चीन के साथ भी जिस तरह मोदी
सत्ता का प्रेम जागा है वह क्यो संघ परिवार को परेशान नहीं कर रहा है ।
जाहिर है हर सवाल 2019 के चुनाव प्रचार में किसी ना किसी तरीके से
उभरेगा ही । लेकिन इन तमाम मुद्द के बीच असल सवाल युवा भारत का है जो
बचौर वोटर तो मान्यता दी जा रही है लेकिन बिना रोजगार उसकी त्रासदी
राजनीति का हिस्सा बन नहीं पा रही है और राजनीति की त्रासदी ये है कि
बेरोजगार युवाओ के सामने सिवाय राजनीति दल के साथ जुडने या नेताओ के पीछे
खडे होने के अलावा कोई चारा बच नही पा रहा है । यानी  युवा एकजुट ना हो
या फिर युवा सियासी पेंच को ही जिन्दगी मान लें , ऐसे हालात बनाये जा रहे
है । मसलन आलन ये है कि देश में 35 करोड युवा वोटर । 10 करोड बेरोजगार
युवा । छह करोड रजिस्ट्रट बेरोजगार । और इन आंकोडो के अक्स में ये सवाल उठ
 सकता है कि  ये आंकडे देश की
सियासत को हिलाने के लिये काफी है । जेपी से लेकर वीपी और अन्या आंदोलन
में भागेदारी तो युवा की ही रही । लेकिन अब राजनीति के तौर तरीके बदल गये
है तो युवाओ के ये
आंकडे राजनीति करने वालो को लुभाते है कि जो इनकी भावनाओ को अपने साथ जोड
लें , 2019 के चुनाव में उसका बेडा पार हो जायेगा । इसीलिये संसद में
आखरी सत्र में प्रदानमंत्री मोदी रोजगार देने के अपने आंकडे रखते है ।
सडक चौराहे पर रैलियो में राहुल गांधी बेरोजगारी का मुद्दा जोर शोर से
उठाते है और प्रधानमंत्री को बेरोजगारी के कटघरे में खडा करते है । और
राजनीति का ये शोर ये बताने के लिये काफी है कि 2019 के चुनाव के केन्द्र
में बेरोजगारी सबसे बडा मुद्दा रहेगा । क्योकि युवा भारत की तस्वीर
बेरोजगार युवाओ में बदल चुकी है । जो वोटर है लेकिन बेरोजगार है । जो
डिग्रीधारी है लेकिन बेरोजगार है । जो हायर एजुकेशन लिये हुये है लेकिन
बेरोडगार है । इसीलिये चपरासी के पद तक के लिये हाथो में डिग्री थामे
कितनी बडी तादाद में रोजगार की लाइन में देश का युवा लग जाता है ये इससे
भी समझा जा सकता है कि राज्य दर राज्य रोजगार कितने कम है । मसलन  आंकोडो
को पढे और कल्पना किजिये राज्सथान में 2017 में ग्रूप डी के लिये 35 पद
के लिये आवेदन निकलते है और 60 हजार लोग आवेदन कर देते है । छत्तिसगढ में
2016 में ग्रूप डी की 245 वेकेंसी निकलती है और दो लाख 30 हजार आवेदन आ
जाते है । मध्यप्रदेश में 2016 में ही ग्रूप डी के 125 वेकेंसी निकलती है
और 1 लाख 90 हजार आवेदन आ जाते है । पं बंगाल में 2017 में ग्रूप डी की 6
हजार वेकेंसी निकलती है और 25 लाख आवेदन आ जाते है । राजस्थान में साल भर
पहले चपरासी के लिये 18 वेकेंसी निकलती है और 12 हजार 453 आवेदन आ जाते
है । मुबंई में महिला पुलिस के लिये 1137 वेकेंसी निकलती है और 9 वाख
आवेदन आ जाते है । तो रेलवे ने तो इतिहास ही रच दिया जब ग्रूप डी के लिये
90 हजार वेकेंसी निकाली जाती है तो तीन दिन के भीतर ही आन लाइन 2 करोड 80
लाख आवेदन अप्लाई होते है । यानी रेलवे में ड्इवर , गैगमैन , टैक मैन ,
स्विच मैन , कैबिन मैन, हेल्पर और पोर्टर समेत देश के अलग अलग राज्यो में
चपरासी या डी ग्रू में नौकरी के लिये जो आनवेदन कर रहे थे या कर रहे है
वह कैसे डिग्रीधारी है इसे देखकर शर्म से नजरे भी झुक जाये कि बेरोजगारी
बडी है या एजुकेशन का कोई महत्व ही देश में नहीं बच पा रहा है । क्योकि
इस फेरहिस्त में 7767 इंजिनियर । 3985 एमबीए । 6980 पीएचडी । 991 बीबीए ।
करीब पांच हजार एमए या मए,, । और 198 एलएलबी की डिर्गी ले चुके युवा भी
शामिल थे । यानी बेरोजगारी इस कदर व्यापक रुप ले रही है कि आने वाले दिनो
में रोजगार के लिये कोई व्यापक नीति सत्ता ने बनायी नहीं तो फिर हालात
कितने बिगड जायेगें ये कहना बेहद मुस्किल होगा । पर देश की मुस्किल यही
नहीं ठहरती । दरअसल नीतिया ना हो तो जो रोजगार है वह भी खत्म हो जायेगा
और मोदी की सत्ता के दौर की त्रासदी यही रही कि अतिरक्त रोजगार तो दूर
झटके में जो रोजगार पहले से चल रहे थे उसमें भी कमी गई । केन्द्रीय
लोकसेवा आयोग , कर्मचारी चयन आयोग और रेलवे भर्ती बोर्ड में जितनी
नौकरिया थी वह बरस दर बरस घटती गई । मनमोहन सिंह के दौर में सवा लाख
बहाली हुई । तो 2014-15 में उसमें 11 हजार 908 की कमी आ गई । इसी तरह
2015-16 में 1717 बहाली कम हुई और 2016-17 में तो 10 हजार 874 नौकरिया कम
निकली । पर बेरोजगारी का दर्द सिर्फ यही नहीं ठहरता । झटका तो केन्द्रीय
सार्वजनिक उपक्रम में नौकरी करने वालो की तादाद में कमी आने से भी लगा ।
मोदी के सत्ता में आते ही 2013-14 के मुकाबले 2014-15 में 40 हजार
नौकरिया कम हो गई । और 2015-16 में 66 हजार नौकरिया और खत्म हो गई । यानी
पहले दो बरस में ही एक लाख से ज्यादा नौकरिया केन्द्रीय सार्वजिक उपक्रम
में खत्म हो गई । हालाकि 2016-17 में हालत संबालने की कोशिश हुई लेकिन
सिर्फ 2 हजार ही नई बहाली हुई । पर नौकरियो को लेकर देश को असल झटका तो
नोटबंदी से लगा । प्रदानमंत्री ने नोटबंदी के जरीये जो भी सोचा वह सब
नोटबंदी के बाद काफूर हो गया । हालात इतने बूरे हो गये कि बरस भर में
करीब दो करोड रोजगार देश में खत्म होगये । सरकार के ही आंकडो बताते है कि
दिसंबर 2017 में देश में 40 करोड 97 लाख लोग के पास काम था । और बरस भर
बाद यानी दिसंबर 2018 में ये घटकर 39 करोड 7 लाख पर आ गया । यानी ये सवाल
अनसुलझा सा है कि खिर सरकार ने रोजगार को लेकर कुछ सोचा क्यो नहीं । या
फिर देश में जो आर्थिक नीति अपनायी जा रही है उससे रोजगार अब खत्म ही
होगे या फिर रोजगार कैसे पैदा हो सरकार के पास कोई नीति है ही नहीं । ऐसे
में आखरी सवाल सिर्फ इतना है कि सियासत ने युवा को अगर अपना हथियार बना
लिया है तो फिर युवा भी राजनीति को अपना हथियार बना सकने में सक्षम क्यो
नहीं है ।

33 comments:

Unknown said...

शुक्रिया सर..मास्टरस्ट्रोक अच्छा उतना ही बेहद शॉकिंग था..उम्मी हे सरकार की और हमारे प्रचारमंत्री की आंखे खुलेंगी.

drb parasana said...

well said!

कुमार अभिषेक said...

रोजगार बड़ा सवाल है . कैसे इस सवाल का हल खोजा जाए . बेरोजगारी से देश मे क्राइम बड़े गा . पहले ही दिखावा बहुत हावी है .

Dharamvir Kumar said...

Very nice

Unknown said...

सरकार से इस समस्या पर चुप्पी के सिवाय कुछ सार्थक हल की बढ़ने की आशा तब की जा सकती है जब सरकार इस समस्या को स्वीकार करे। तभी निराकरण के पहले कदम की ओर बढ़ने की आशा कर सकते हैं। लेकिन इस पकौड़ा इकोनोमी सरकार के पास ऐसी कोई सोच ही नही है, अत: आशा भी ओस के बूँद की तरह बेरोजगारी की उष्ण किरण के आगे विलीन हो गयी है।

Unknown said...

Very nice article

Suresh yadav said...

Sir aaj aap nahi aaye jay hind progamp me

Fan said...

Great sir

Subhamoy Banerjee said...

बेरोजगार, बेरोजगारी और इस महंगाई के दौर से गुजर रही जनता का निर्वाह, उनके परिवार का पालन पोषण, शिक्षा, इलाज़, किराया भाड़ा, बिजली पानी का खर्चा, भविष्य निधि, तीज त्यौहार, शादी व्याह, और वो सबकुछ जो हर एक तबके को एक समाज मे रहने के लिए करना पड़ता है वो सब कैसे हो?

For the time being forget about dignified labour.

भाई नेता करे तो रासलीला और जनता मांगे तो करक्टेर ढीला?
भूखे पेट बोलते रहो भारत माता की जय। कब तक?

हाँ कहेंगे "जब तक है जान"

तो ठीक है ना, फिल्मी ही अगर है सबकुछ तो फिल्माया भी जाये।

एक उदहारण देता हूं।
एन सी आर दिल्ली।
न्युनतम मज़दूरी दिल्ली सरकार द्वारा तय किया गया है और उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा भी घोषित किया गया है।
जहां दिल्ली मे ये 14 हज़ार है तो नॉएडा और गाज़ियाबाद मे 7 हज़ार। अब अनाज, फल फ्रुट और सब्ज़ी का भाव भी सब जगह पता कर लिजिए।
उत्तर प्रदेश का मज़दूर कुछ और खाता है क्या?

दूसरी बात, खोजने निकलेंगे तो बहोतेरे प्राईवेट कम्पनियां मिलेंगे जो ये न्युनतम मज़दूरी भी नही दे रहे है।

ढंग से जीने का हक़ सब को होना चाहिए, नही तो फिर वोही फासला और फिर आन्दोलन।

आप कहेंगे पहले कुछ ना कुछ रोज़गार तो हो, अच्छी बात है, हो, होनी भी चाहिए, पर बरस दर बरस, सरकार कोई भी हो ये हो नही पा रहा है, क्यों?

क्या केवल और केवल सरकार जिम्मेदार है?

सरकार तो बड़ा ऐब्स्ट्रैक्ट शब्द है,
अधिकारी क्या कर रहे है?
कम्पनियों के मालिक क्यों अवमानना करते है?
न्यायालय के न्यायधीश क्यों कमज़ोर है?
मीडिया के एडिटर इस तरह के खबरों को क्यों नही दिखाता है?

तो जब लोकतंत्र के चारों के चारों स्तम्भ कमज़ोर हो जायेंगे तो,
कल्याण कैसे हो?
किसका हो?

Jinda Shaheed! said...

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मेरे प्रियात्मन!
पुण्यप्रसूनबाजपेईजी
प्रणाम!
॥मिनुमम गवर्नमेन्ट-मैक्सुमन गवर्नेन्स॥ बनाम ॥सबका साथ-सबका विकास॥
ये कैसे सम्भव है?
विविधता मे एकता की महान सँस्कृति वाले देश के लोकतन्त्र मेँ ये सवा सौ करोड का देश एक धर्म/ एक जाति/ एक वँश/ एक परिवार/ एक व्यक्ति की जागीर कैसे हो सकता है? जबकि दु:ख और दुर्भाग्य ये है कि आज ऐसा ही है जिसमे यू0पी0ए0 और एन0डी0ए0 मेँ कोई बुनियादी भेद नही है क्यूँकि दोनो सरकारें ढाई लोगोँ की सरकार थी जैसे यू0पी0ए0-सोनिया(1)+राहुल(1)+मनमोहन(1/2) = एन0डी0ए0-नरेन्द्रमोदी(1)+अमितशाह(1)+अरुणजेटली(1/2) जो ढाई अक्षर प्रेम का सन्देश देने के बजाए घृणा/नफरत/भय पर विभाजन की राजनीति करती हैँ जिसे हम डिवाईड एण्ड रुल की पोलिसी जानते/ मानते/ समझते हैँ जो इनकी या इनके बाप की नही अपितु लार्ड टी0वी0 मैकाले की है जिसके माध्यम से भारत ढाई सौ वर्ष गुलामी की जद मेँ रहे और आज भी उन्ही के विधान के 34735 कानूनों की गिरफ्त में हैँ जो गोरे अँग्रेजों के बजाए काले अँग्रेजोँ का शासन है तो देश को एक न एक दिन सोचना तो पडेगा ही नही कुछ करना पडेगा जिसके लिए 1857 जैसी बडी क्रान्ति को अन्जाम युवाओं को ही देना पडेगा जिसका सम्पूर्ण सफल चक्रव्यूह मेरे पास है किन्तु गुरुसत्ता/राजसत्ता के अखण्ड पाखण्ड के कारण अर्श से फर्श तक भयँकर उपेक्षित है जिसका प्रत्येक प्रमाण/परिणाम मेरे पास सुरक्षित एवम सँरक्षित है।-जयहिन्द!

Isar shaikh said...

फिर से मोदी सरकार लाओ सब हल हो जाएगा

Rajhans Raju said...

एक पक्ष ए भी है और पूरी तरत तार्किक है।

Arvind Pandey said...

सरकार बदलना होगा
तभी युवा वर्ग को कुछ लाभ होगा
ये सरकार कई युवा पीढ़ी बरबाद कर रही है है

Unknown said...

Bajpai saheb don't do propegenda on jobless you have a job becouse of you have skill I have not skill so can't take govt or corporate job I can work witch my skill

Unknown said...

Saheb give advice to terririest why they attack this time

Unknown said...

Agr ptrikarita krni h to aisy hi hon chahiye graet Bajpai Ji good luck

Vijay patil said...

प्रिय श्री पुण्य प्रसून जी
सत्ता के लिए चल रहे राजनैतिक घमासान में, बदल चुकी देश की दिशा और दशा के सन्दर्भ में आपकी चिंता और बेबसी हमसे देखी नहीं जाती
आप और आपके जैसे सभी देश के संवेदनशील मानस पर इसका बहुत गहरा असर हो रहा है लेकिन सभी बेबसी के आलम में अवाक है
इन सबको रोकने के लिए कही ना कही से कोई ना कोई शुरुआत होनी चाहिए
हम वर्तमान दिशाहीन मानस को तो बदल नहीं सकते पर आने वाली पीढ़ी को इस जहरीले राजनैतिक वातावरण में जाने से रोक सकते है अपनी छोटे ज्ञान के आधार पर एक विचार मन में आया है तो सोचता हु व्यर्थ ना जाए। इसलिए कम से कम किसी संवेदनशील व्यक्ति से शेयर ही कर लूँ।
क्या देशहित के सन्दर्भ में एक छोटी सी मुलाक़ात संभव है यदि हाँ तो कृपया बताएं आपसे कब और कैसे मिला जा सकता है
आपक शुभाकांक्षी
विजय पाटिल
7567034244
vjupan@gmail.com
laksh electronics ,
9, shri ambika nagar vijya dashmi society, near swaminarayan mandir NH 8
rajendrapark road , odhav , ahmedabad 382415

CHIRANJIT MOHANTY *(TABLU)* said...

Sir please do one video about RRBs Gr D results declaration. Corruption done in the normalisation. It's a great issue with us. Talent Ho hatya Kiya ja Raha hai...ple ple save us. I request to the 4th pillar.

Unknown said...

मेरा प्रश्न "जय हिन्द"प्रोग्रामिंग समूह से और खास कर बाजपेयी सर से है!आज 8मार्च के प्रोग्राम में मन्दिर मुद्दे का जिस तरह का एक खास तार्किक कोण से विश्लेषण कर एक खास वर्ग को खुश करने के प्रयास में हम जैसे राम भक्तों को मर्माहत कर दिए है,क्या कभी मल्हम भी देंगे!!??

Unknown said...

Ek dam sahi I support u

monu said...

This time not previous mistake.and sorry for
Previous mistake.

Unknown said...

Enlist Syurya Tv in Jio TV to watch on 4G mobile network as NDTV Watching now

Vijay patil said...

Please answer sir

Life style and problems said...

सर कोई व्यक्ति का कोई युवा तैयारी करके क्या करेगा जब कोई नौकरी ही नहीं आएगी

Unknown said...

ेरोजगार सबसे बड़ा सवाल है पर गुंडा मोदी को समझाना बेकार है

Unknown said...

Sahab ji chanda collect karke hi ek channel khol lijiye. jab partiyon ko arabo ka chanda mil sakta h to aap ke to karono fans h ydi sab ek rupya bhi chanda denge per month to hame achchi news mil jayegi aur aapko advirtisement pe depend nhi rhna padega

Subhamoy Banerjee said...
This comment has been removed by the author.
Subhamoy Banerjee said...
This comment has been removed by the author.
Subhamoy Banerjee said...
This comment has been removed by the author.
Subhamoy Banerjee said...

It is high time meaningful journalism through authentic journalists should be allowed to operate independent TV news channels. Corporate run channels succumb to the pressure exerted by power centres.

Unknown said...

Why Aajtak then ABP News and now Surya Samachar has been fired Mr. Punya Prasun Bajpai Sir?
Do you have any answer
I have because of BJP. Take it from me

NAVEEN PANDEY said...

Isar ji..! Rulawoge Kya Bhai Jan Pls yesa majak ab mat Karna Hart ka percent hu

Unknown said...

https://youtu.be/o6RJs1oDrAk

This is a short film on crisis of unemployment in Indian Youth
No diversion to this serious subject will be of any help to retain power बेराेजगारी पे हमला बाेल !
This film must reach to all