Thursday, February 12, 2009

एक कविता : अराजनीतिक बुद्दिजीवियों

कहते हैं जब सवाल परेशान करें और कोई जवाब न सूझे तो कविता पढ़ लेनी चाहिये। इसलिये इस बार ग्वातेमाला के कवि अटो रेने कस्तिइयो की एक कविता पढ़ें । चर्चा अगली पोस्ट में....

कविता का शीर्षक है - अराजनीतिक बुद्दिजीवियों

एक दिन / मेरे देश के / अराजनीतिक बुद्दिजीवियों से / जिरह करेंगे / देश के सबसे सीधे सरल लोग / उनसे पूछेगे, वे क्या कर रहे थे / जब उनका देश मरा जा रहा था / धीरे-धीरे /नरम-नरम आग की तरह नन्हा और अकेले ।

कोई उनसे नहीं पूछेगा /उनके खूबसूरत लिबास की बात / दोपहर के भोजन के बाद की / लंबी नींद की बात / कोई नहीं जानना चाहेगा / शून्यता के तमाम सिद्दान्त के साथ / उनकी बांझ लड़ाई / कैसी थी / कोई नहीं जानना चाहेगा, वह तरीका कौन सा है / जिसके जरिए उन्होंने इकठ्ठा किया - रुपया पैसा / उनसे सवाल नहीं किया जायेगा / ग्रीक - पुराणों के बारे में / या नहीं पूछा जायेगा / अपने को लेकर उन्हें कितनी उबकाई आ रही थी / जब उनके भीतर / मरना शुरु किया था एक / कायर की मौत / उनका अनूठा आत्मसमर्थन / जिसका जन्म /शुरु से अंत तक झूठ था /छाया में / उसके बार में कोई सवाल नहीं पूछेगा ।

उस दिन / आएंगे सीधे सरल लोग / अराजनीतिक बुद्दिजीवियो की किताब या कविता में / जिन्हें जगह नहीं मिली / मगर जो लोग रोज उनके लिये जुटाते गये है / उनकी रोटी और दूध / उनकी तोर्तिया और अण्डे / जिन लोगों ने उनकी कमीज की सिलाई की है /जो लोग उनकी गाड़ी चलाकर ले गये है / जो लोग उनके कुत्ते और बगीचे की देखभाल करते रहे है / और उनके लिये खटे है - / वे पूछेंगे ../ क्या कर रहे थे तुम लोग / जब दुख तकलीफ से नेस्तानाबूद गरीब लोग मरे जा रहे थे, / और स्निग्धता और जीवन / उन में जल भुन कर खाक हो रहे थे? / हमारे इस सुन्दर देश के / अराजनीतिक बुद्दिजीवियों ! / उस समय कोई जवाब नहीं दे पाओगे तुम लोग । /


चुप्पी का एक गिद्द / तुम लोगों की गूदा और अंतडी फाड़कर खायेगा, / तुम लोगों की अपनी दुर्दशा ही / खरोंच-काटकर फाड़ती रहेंगी तुम लोगों की आत्मा, / और अपने ही शर्म से सिर झुकाए / तुम लोग गूंगे बने रहोगे ।

15 comments:

Anonymous said...

वाजपेईजी, आप लोगों को हमेशा विदेशी कवि और उनकी कविताएं ही क्यों याद रहती हैं? क्या अपने देश के पुराने कवि और उनकी कविताएं आपको उस हैसियत की नजर नहीं आतीं? या यहां के पुराने कवियों की विचारधारा ही कमजोर है? बंद ठंडे-गर्म कमरों में बैठकर विदेशी कवियों को गुनगुनाते हुए लफ्फबाजी करने में आपको शायद काफी मजा आता है।

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी पोस्ट लिखी है।

अभिषेक मिश्र said...

Yeh kavita har jagah, har samay mein prasangik rahegi; aur hamara bhavishya to in panktiyon mein hai hi.

(gandhivichar.blogspot.com)

विष्णु बैरागी said...

प्रसूनजी,
आपका लिखा जितना क्लिष्‍ट और 'जलेबी' होता है, उसके मुकाबले यह कविता बहुत ही सरल और तत्‍काल ही समझ में आती है।
इस पर पोस्‍ट लिखते समय कृपया ध्‍यान रखने का प्रयास कीजिएगा कि वह भी इसी तरह सरल हो, तत्‍काल समझ में आ जाने वाली।
बहरहाल-मुद्दे की बात। कविता बहुत ही अच्‍छी है और वास्‍तविक दोषियों को चौराहे पर खडा करती है। बुध्दिजीवियों ने हमारे समाज का जितना नुकसान किया है, उतना तो किसी भी सरकार ने नहीं किया।

Sarita Chaturvedi said...

KYA DESI KYA VIDESI...KAVITA KAVITA HOTI HAI..AUR YE KAVITA TO KAAFI ALAG HAI..AUR SARAL BHI HAI....IS PAR VYARTH KI AAPATTI KARNA NAHI HAI..

gautam yadav said...

ये कविता सिर्फ एक कविता नहीं है... ये चंद पंक्तियां हमें अपने आप से सवाल पूछने को मजबूर करती है... हमारे अंदर कुछ करने का उत्साह पैदा करती है... लेकिन प्रसून जी से सवाल ये है कि क्या हम जैसे लोगों की चेतना कविता - कहानी करने तक ही सीमित है... या फिर वास्तविक्ता के ठोस धरातल पर भी हम कुछ करेंगे... नहीं तो अगली पीढ़ीया इस कविता में एक लाइन और जोड़ देंगी और वो होगी...

नहीं सुनने हमें तुम्हारी कोरी सुनहरी आशावादी कविताएं/ हमें तो ये बताओं तुमने किया क्या?

gautam yadav said...

ये कविता सिर्फ एक कविता नहीं है... ये चंद पंक्तियां हमें अपने आप से सवाल पूछने को मजबूर करती है... हमारे अंदर कुछ करने का उत्साह पैदा करती है... लेकिन प्रसून जी से सवाल ये है कि क्या हम जैसे लोगों की चेतना कविता - कहानी करने तक ही सीमित है... या फिर वास्तविक्ता के ठोस धरातल पर भी हम कुछ करेंगे... नहीं तो अगली पीढ़ीया इस कविता में एक लाइन और जोड़ देंगी और वो होगी...

नहीं सुनने हमें तुम्हारी कोरी सुनहरी आशावादी कविताएं/ हमें तो ये बताओं तुमने किया क्या?

NiKHiL AnAnD said...

"जो तटस्थ रहेगा उसका भी दोष लिखेगा इतिहास"

Gobar Pattee said...

प्रसून जी,
यह भी कहते हैं कि सवाल परेशान करे और कोई जवाब न सूझे तो जिसके पास जवाब है उसे गरिया देना चाहिए.मैं यहाँ आपको गरियाने के लिए नहीं लिख रहा हूँ.मेरा मकसद साफ है.कृपया नीचे की पंक्तियाँ पढ़ते जायें-
देशद्रोही स्वनाम धन्य पत्रकारों

एक दिन,मेरे देश के,भ्रष्ट और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे देशद्रोही पत्रकारों से,जिरह करेंगे,देश के सबसे सीधे सरल लोग,उनसे पूछेंगे,वे क्या कर रहे थे, जब उनके देश के नौकरशाह नेताओं के साथ मिलकर देश को लूट रहे थे।

कोई उनसे नहीं पूछेगा,उनके तथाकथित धारदार पत्रकारिता को,उनके खुबसूरत सी दिखने वाली दाढ़ी की मुलायमियत की बात,कोई नहीं जानना चाहेगा,उनकी बांझ लड़ाई कैसी थी।

वे पूछेंगे ../ क्या कर रहे थे तुम लोग / जब दुख तकलीफ से नेस्तानाबूद गरीब लोग मरे जा रहे थे, / और स्निग्धता और जीवन / उन में जल भुन कर खाक हो रहे थे? / और तुम क्या कर रहे थे जब देश का आई ए एस और मंत्री मिलकर भ्रष्टाचार के हथियार से सत्येन्द्र दुबे और मंजुनाथ की सरेआम हत्या कर रहे थे ? तुमसे यह भी पूछेंगे कि चुप रहने की कीमत कितनी वसूली थी?

प्रसून जी,मैंने अटो रेने कस्तिइयो की कविता को तहस-नहस करने का दुस्साहस किया है,अपनी बातें आप तक पहुँचाने के लिए.ऐसा इसीलिए भी कि आप जैसे लोगों के पास बहुत ताकत है.आप यदि देश की आम जनता के प्रति ईमानदार हो ,अपनी जवाबदेही का निर्वाह करें तो सबसे सीधे सरल लोग आप से कोई सवाल नहीं करेंगे.आप में इतनी ताकत है आप देश की सूरत बदल सकते हैं.
मैं यहाँ भ्रष्टाचार के बारे में आपका ध्यान खींचना चाहता हूँ।सत्येन्द्र दुबे और मंजुनाथ की हत्या आप भी भूले नहीं होंगे.आज भी कई-कई सत्येन्द्र दुबे और मंजुनाथ भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्धरत हैं अभिमन्यू की तरह अकेले निहत्थे.आप और हम कविताएँ कर रहे हैं.साहित्य के सृजन में लगे हुए हैं.
आज की जरुरत सत्येन्द्र दूबे और मंजुनाथ के साथ खड़ा होने की है.जो आज लड़ रहे हैं उनकी खोज खबर लें.आप बड़े न्यूज चैनलों से जुड़े रहे हैं.आप का हस्तक्षेप कई सत्येन्द्र और मंजुनाथ की जान बचा सकता है.भ्रष्टाचारियों के खिलाफ उनकी जंग को जीत में बदला जा सकता है.
दामोदर घाटी निगम में एक अभियंता उच्च प्रबंधन के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा है.सी वी सी,सीबीआई से लेकर सी आई सी तक दौड़ लगा रहा है.इधर प्रबंधन मंत्री(उर्जा मंत्री,भारत सरकार) के साथ मिलकर उस अभियंता को प्रताड़ित कर रहा है.ऐसे में यदि आप जैसे लोग उस अभियंता के साथ खड़ा न हों तो आपके पत्रकार और बुद्धिजीवी होने का क्या मतलब ?
मेरा निवेदन है कि आप इस मामले में हस्तक्षेप करें.एक योद्धा को बचा लें.भ्रष्टाचारियों को परास्त करे.
आप उन्हें जानते भी हैं. वे आपसे मिल चुके हैं.वे हैं श्री ए के जैन(09431125822),उप मुख्य अभियंता,दामोदर घाटी निगम.उनके पास सारे दस्तावेज हैं जो डीवीसी के आई ए एस अफसर और अभियंताओं के भ्रष्टाचार को प्रमाणित करते हैं.
कृपया मेरे अपील को अनदेखा न करें.

गिरिजेश्वर ,
girijeshwarpd@gmail.com

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

आदरणीय प्रसून जी,
अपने कविता तो काफी समसामयिक और विचारोत्तेजक प्रकाशित की है.ये कविता हर बुद्धिजीवी ,पत्रकार ,लेखक ,कलाकार सभी को पढ़नी चाहिए......सिर्फ़ पढ़ने से ही कम नही चलेगा .आत्म मंथन करना होगा हम सभी को .
हमने अज तक देश ,समाज ,जनता के लिए ,उसके हित में कितनी कलम चलाई ?
अच्छी कविता पढ़वाने के लिए बधाई.
हेमंत कुमार

MEDIA GURU said...

VAKAI EK MANTHAN HAI AUR AANE VALE RAJNETAO KO SAWAL CHHOD RAHA HAI.

MEDIA GURU said...

VAKAI EK MANTHAN HAI AUR AANE VALE RAJNETAO KO SAWAL CHHOD RAHA HAI.

gyanendra kumar said...

wah-wah

Please! Copy 100 times of this line

KANISHKA KASHYAP said...

The words are simple to comprehend, difficult to condemn.
Its not the simplicity, rather explicity and elecrtricity that it carry , is capable to make a sophisticated mind study it twice......

Unknown said...

प्रसून जी अपनी धार बनाए रखिए। हर देश काल में अंशुमाली, गोबर पाती, विष्णु वैरागी जैसे सियारों, घुघ्घुओं और चमगादड़ों की टर्र टें से डिगिएगा मत। ये हिटलर के अवैध संपोले हैं। जहां भी जाइएगा वहीं बिल से निकलकर फुंफकारेंगे। ये पानी वाले वाले सांप हैं दंत, रीढ़ विहीन। इनको यही काम सौंपा गया है हर जगह अपनी पूंछ डालो।