नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान का साथ छोड़कर आये गुलाम रसूल बलियावी का हाथ आपने हाथ में लेकर जैसे ही उन्हें जनतादल यूनाईटेड में शामिल करने का ऐलान किया वैसे ही दीवार पर टंगे तीन बोर्ड में से एक नीचे आ गिरा। गिरे बोर्ड में तीर के निशान के साथ जनतादल यूनाइटेड लिखा था। बाकी दो बोर्ड दीवार पर ही टंगे थे, जिसमें बांयी तरफ के बोर्ड में शरद यादव की तस्वीर थी तो दांयी तरफ वाले में नीतीश कुमार की तस्वीर थी। जैसे ही एक कार्यकर्ता ने गिरे हुये बोर्ड को उठाकर शरद यादव और नीतीश कुमार के बीच दुबारा टांगा, वैसे ही कैमरापर्सन के हुजूम की हरकत से वह बोर्ड एकबार फिर गिर गया। इस बार उस बोर्ड को टांगने की जल्दबाजी किसी कार्यकर्ता ने नहीं दिखायी। पता चला इस बोर्ड को 2 अप्रैल की सुबह ही टांगा गया था। इससे पहले वर्षों से दीवार पर शरद यादव और नीतीश कुमार की तस्वीर के बीच जॉर्ज फर्नांडिस की तस्वीर लगी हुई थी। और तीन दिन पहले ही शरद यादव की प्रेस कॉन्फ्रेन्स के दौरान पत्रकारों ने जब शरद यादव से पूछा था कि जॉर्ज की तस्वीर लगी रहेगी या हट जायेगी तो शरद यादव खामोश रह गये थे।
लेकिन 30 मार्च को शरद यादव के बाद 2 अप्रैल को नीतीश की मौजूदगी में जॉर्ज की जगह लगाया गया यह बोर्ड तीसरी बार तब गिरा, जब प्रेस कॉन्फ्रेन्स के बाद नीतीश कुमार जदयू मुख्यालय छोड़ कर निकल रहे थे । मुख्यालय में यह तीनों तस्वीरें नीतीश के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के दौरान लगायी गयी थीं। उस दिन गुलाल और फूलों से नीतीश के साथ साथ जॉर्ज और शरद यादव भी सराबोर थे। उस वक्त तीनों नेताओ को देखकर ना तो कोई सोच सकता था कि कोई अलग कर दिया जायेगा या तीनों तस्वीरों को देख कर कभी किसी ने सोचा नहीं था की जॉर्ज की तस्वीर ही दीवार से गायब हो जायेगी। और इसके पीछे वही तस्वीर होगी, जिन्हें राजनीति के फ्रेम में मढ़ने का काम जॉर्ज फर्नांडिस ने किया।
जार्ज फर्नांडिस कितने भी अस्वस्थ क्यों ना हों, लेकिन जो राजनीति देश में चल रही है उससे ज्यादा स्वस्थ्य जॉर्ज हैं, यह कोई भी ताल ठोंक कर कह सकता है। शरद यादव को जबलपुर के कॉलेज से राजनीति की मुख्यधारा में लाने से लेकर लालू यादव की राजनीति को काटने के लिये नीतीश कुमार में पैनापन लाने के पीछे जॉर्ज ही हैं। लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस की जगह नीतीश कुमार को वह जय नारायण निषाद मंजूर हैं, जो लालू यादव का साथ छोड़ टिकट के लिये नीतीश के साथ आ खड़े हुये हैं।
सवाल जॉर्ज की सिर्फ एक सीट का नहीं है, सवाल उस राजनीतिक सोच का है जिसमें खुद का कद बढ़ाने के लिये हर बड़ी लकीर को नेस्तानाबूद करना शुरु हुआ है। और यह खेल संयोग से उन नेताओं में शुरु हुआ है, जो इमरजेन्सी के खिलाफ जेपी आंदोलन से निकले हैं। हांलाकि सत्ता की राजनीतिक लकीर में जॉर्ज ज्यादा बदनाम हो गये क्योंकि अयोध्या से लेकर गुजरात दंगो के दौरान जॉर्ज बीजेपी को अपनी राजनीति विश्वनियता के ढाल से बचाने की कोशिश करते रहे। लेकिन गुजरात दंगो के दौरान नीतीश और शरद यादव में भी हिम्मत नहीं थी कि वह जॉर्ज से झगडा कर एनडीए गठबंधन से अलग होने के लिये कहते। दोनो ही सत्ता में मंत्रीपद की मलाई खाते रहे।
असल में जार्ज अगर ढाल बने तो उसके पीछे उनकी वह राजनीतिक यात्रा भी है, जो बेंगलूर के कैथोलिक सेमीनरी को छोड़ कर मुंबई के फुटपाथ से राजनीति का आगाज करती है। मजदूरों के हक के लिये होटल-ढाबा के मालिकों से लेकर मिल मालिकों के खिलाफ आवाज उठाकर मुंबई में हड़ताल-बंद और अपने आंदोलन से शहर को ठहरा देने की हिम्मत जॉर्ज ने ही इस शहर को दी। 1949 में मुंबई पहुंचे जॉर्ज ने दस साल में ही मजदूरों की गोलबंदी कर अगर 1959 में अपनी ताकत का एहसास हडताल और बंद के जरीये महाराष्ट्र की राजनीति को कराया तो 1967 में कांग्रेस के कद्दावर एस के पाटिल को चुनाव में हराकर संसदीय राजनीति में नेहरु काल के बाद पहली लकीर खिंची, जहां आंदोलन राजनीति की जान होती है, इसे भी देश समझे। जॉर्ज उस दौर के युवाओं के हीरो थे । क्योंकि वह रेल यूनियन के जरीये दुनिया की सबसे बड़ी हडताल करते हैं। सरकार उनसे डरकर उनपर सरकारी प्रतिष्ठानों को डायनामाइट से उड़ाने का आरोप लगाती है। इसीलिये इमरजेन्सी के बाद 1977 के चुनाव में जब हाथों में हथकडी लगाये जॉर्ज की तस्वीर पोस्टर के रुप में आती है, तो मुज्जफरपुर के लोगों के घरों के पूजाघर में यह पोस्टर दीवार पर चस्पा होती है। जिस पर छपा था, यह हथकड़ी हाथों में नही लोकतंत्र पर है। और नीचे छपा था- जेल का ताला टूटेगा जॉर्ज फर्नाडिस छूटेगा।
जाहिर है बाईस साल पहले के चुनाव और अब के चुनाव में एक नयी पीढ़ी आ चुकी है, जिसे न तो जेपी आंदोलन से मतलब है, न इमरजेन्सी उसने देखी है। और जॉर्ज सरीखा व्यक्ति उसके लिये हीरो से ज्यादा उस गंदी राजनीति का प्रतीक है, जिस राजनीति को जनता से नही सत्ता से सरोकार होते है। इस पीढी ने बिहार में लालू का शासन देखा है और नीतीश को अब देख रहा है। नीतीश उसके लिये नये हीरो हो सकते हैं क्योकि लालू तंत्र ने बिहार को ही पटरी से उतार दिया था। लेकिन लालू के खिलाफ नीतीश को हिम्मत जॉर्ज फर्नाडिस से ही मिली चाहे वह समता पार्टी से हो या जनतादल यूनाईटेड से। लेकिन केन्द्र में एनडीए की सत्ता जाने के बाद बिहार में लालू सत्ता के आक्रोष को भुनाने के लिये जो रणनीति नीतीश ने बनायी, उसमें अपने कद को बढाने के लिये जॉर्ज को ही दरकिनार करने की पहली ताकत उन्होने 12 अप्रैल 2006 में दिखा दी। जब पार्टी अध्यक्ष चुनाव में शरद यादव और जॉर्ज आमने सामने खड़े थे । बिलकुल गुरु और चेले की भिंडत । मगर बिसात नीतिश की थी । जार्ज को 25 वोट मिले और शरद यादव को 413 । लेकिन चुनाव के तरीके ने यह संकेत तो दे दिये की नीतीश की बिसात पर जॉर्ज का कोई पांसा नहीं चलेगा और जॉर्ज को खारिज करने के लिये नीतीश अपने हर पांसे को जार्ज की राजनीतिक लकीर मिटाकर अपनी लकीर को बड़ा दिखाने के लिये ही करेंगे ।
लेकिन, इसका अंदाजा किसी को नहीं था कि इस तिगडी की काट वही राजनीति होगी, जिस राजनीति के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की बात तीनों ने ही अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत में की थी । इसीलिये जॉर्ज को अस्वस्थ बताकर मुज्जफरपुर से टिकट काटने के बाद नीतीश ठहाका लगा रहे हैं कि बिना उनके समर्थन के जॉर्ज चुनाव मैदान में कूदकर अपनी भद ही करायेंगे । वहीं, जॉर्ज अपना राजनीतिक निर्वाण लोकसभा चुनाव लड़कर ही चाहते हैं। इसीलिये जॉर्ज ने पर्चा भरने के बाद अपने मतदाताओं से जिताने की तीन पन्नो की जो अपील की है, उसका सार यही है कि जिस तरह गौतम बुद्द के दो शिष्यों में एक देवदत्त था, जो बुद्ध को मुश्किलों में ही डालता रहा, वहीं उनके दोनों शिष्य ही देवदत्त निकले । आनंद जैसा कोई शिष्य नहीं है इसलिये इंतजार मुज्जफरपुर की जनता का करना होगा, जो बताये जॉर्ज अस्वस्थ है या राजनीति।
Wednesday, April 8, 2009
कौन ज्यादा अस्वस्थ है - जॉर्ज फर्नांडिस या संसदीय राजनीति?
Posted by Punya Prasun Bajpai at 10:25 AM
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12 comments:
लेख से महाभोज के मोरारजी देसाई की याद हो आई..नीतीश शायद ऐसे ही नेता है..जार्ज पर बेशक मुज्जफरपुर फैसला सुनाए..उनकी जीत भी सुनिश्चत है,लेकिन यकीन जानिए एक बार चार साल पहले उनसे नजदीक से मिला था..सच में अब वो वृद्ध हो गए हैं और उनकी जिद ठीक वैसी ही जैसे एक बुजुर्ग की घर में हठ को लेकर होता है।उन्हे सच में अब आराम करना चाहिए।
you are a shine of journalisum
तबियत दोनों की ही कहाँ ठीक है.
नीतीश और शरद आज जो जॉर्ज साहब के साथ कर रहे हैं कल वही उनके साथ भी होगा.....जॉर्ज के साथ हमदर्दी है.....
एक बेहतरीन मुद्दे को उठाने के लिए बधाई....
आपने पिछले डेढ़ दशक के दौरान जार्ज साहब को काफी करीब से देखा होगा, कृपा करके उनके जीवन और सिद्धांत के बारे में विस्तार से लिखे... मैंने कुछ मित्रों से सुना है कि जार्ज साहब स्लीपर में यात्रा करते है और खुद ही अपना काम भी करते हैं... जब भी कृष्ण मैनन मार्ग से निकलता हूं तो देखता हूं कि उनके कोठी पर कोई चहल पहल नहीं होती... जो अमुमन सांसद और मंत्रियों के आवास पर देखने को मिलता है... क्या सच में वो सब कुछ पाने के बाद भी साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते हैं। बड़ी कृपा होगी अगर विस्तार से लिखे...
RAJNITI SAMBHAWNAWO KA KHEL HAI AUR UN SAMBHAWNAWO KA BUDHIMATAPURWAK UPYOG RAJNITIGY KI DURDARSITA KI KAUSAUTI HAI...AB YE DEKHNI WALI BAAT HOGI KI NITISH WAQUI DURDARSI HAI YA NAHI. JO HAL MAYA NE KASIRAM KA KIYA USI LIK PE TO NITISH BHI CHAL RAHE HAI. WAISE ITIHAS BHI GAWAH HAI KI RAJNITI ME VISWASPATR HI VISWASGHAT KARTE HAI. KHASKAR NITISH USI JAMIN SE TALOOK RAKHTE HAI JAHA PUTR PITA KA BAR BAR KATL KARTA HAI. KABHI LALOO KE SATH TO KABHI JP KE NAWNIRMAN ME VISWAS KARNE WALE NITISH JARJ KE SATH SANGAT KARTE DIKHAAI DIYE. AUR BAKAYDA UNKI KHAMOSH KRANTI NE UNHE CM KI KURSI PE BITHA HI DIAA. PAR YE RAJNITI HAI JAHA TAAKAT KA KENDRIYKARAN KHUD TAK SIMIT RAKHNE KI HAR RAJNITIGY KI KHWAHIS HOTI HAI. CM BANTE HI NITISH NE BAYAN DIAA THA KI WO SAMAJWADI NITI ME DILCHASPI RAKHTE HAI KHAIR UNKI IS SAMAJWADI NITI ME AB JARJ KA KAM NAHI RAH GAYA HAI. NDA ME AHAM ROLL ADA KARNE WALE JARJ KA YE HASR NITISH KAREGE AISA SOCHNA TO NAMUMKIN HI THA KYOKI JARJ KI AIK APNI SHAILI HAI JO LOK SABHA ME GAHE BEGAHE UNKE BHASNO KE JARIYE JHALKATA THA LEKIN KAHI N KAHI UN PAR JO AAROP LAGE AUR PHIR UNKI VYKTIGAT AAPTIYAA KUCHH IS TARAH THI KI AASANI SE UNKE PRTIDWNDIYO KO MAUKA MIL GAYA. SAHI MAYNO ME JARJ KRANTI KAR SAKTE HAI PAR KUSAL RAJNITIGY WO NAHI HAI. JABKI NITISH SIRF RAJNITI KAR RAHE HAI JISKA AAJ KE SAMAY ME N KOI SIDHAANT HAI N DHARM.
prasoon ji aapaka jawab hi nahi ... behatareen post ke liye shukria.... farnandis beemar hai ya sahi yah waha ki janata tay karegi.... neetish aur sharad unko hasiye me dhakelkar sahi nahi kar rahe hai.
tabiyat dono ki jayada teekh nahi hai. jarj bujurg hai aur nitish aur sharah bhudbash ki taraf badh rahe hai khair aapne badhiya likha abhi kuch dino pahle ajay sigh ne bhi isi masle par likha tha ki sharad kah rahe hain ki jarj teekh se prachar bhi naki kar sakte jabki isi muzzafarpur se jarj bina ek din prachar ke jail se election jeete the .
यही हैं असली समाजवादी जिनकी जुबान पर कुछ होता है और हकीकत में वह कुछ औऱ होते हैं। भारतीय राजनीति का सच यही है। जब तक मतलब निकला साथ रहे। अब चींटी के पर निकल आए हैं। वह उड़ने लगी हैं। अब किसी की जरूरत नहीं। लोग ऎसे नेताओं को झेलने के लिए मजबूर हैं।
सर
नमस्कार , विषय चयन और प्रस्तुति की भाषा दोनों ही लाजबाब है .सर मुज्जफरपुर नहीं मुजफ्फरपुर नाम है हमारे शहर का ,हमारी माटी में न्याय व संस्कार सामान रूप से शामिल है . जार्ज की हथकरी तोड़ ने वाले मुजफ्फरपुर के मतदाता इस बार नीतिश ,शरद का अभिमान तोडेंगे .सर शहर में पीढी जरुर बदली है परम्परा नहीं .
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