Thursday, April 16, 2009

घायल ताज की छांव ने बदल दी चुनाव की तस्वीर

गेट-वे के सामने खड़े होकर ताज होटल की फोटो खिंचना नया टूरिज्म है । पुराना टूरिज्म ताज को पीठ दिखाते हुये गेट-वे आफ इंडिया की तस्वीर खिंचना था । आतंक को लेकर खौफजदा मुंबई शहर में कोई भी बाहरी सबसे पहले उसी जगह पहुंचना चाहता है, जहां साठ घंटे तक गोलिया चलती रही...धमाके होते रहे और समूचे देश के कमोवेश हर घर में यह सब टीवी पर लाइव देखा जाता रहा । गेट-वे पर खड़े होकर समुद्र देखने से ज्यादा हसीन घायल ताज लगता है। खासकर जब सूरज ढल रहा हो...इसीलिये ढलते सूरज को समुद्र की ओट में देखने से ज्यादा हसीन सूरज की लालिमा में ताज की फोटो को कैद करने की होड़ हर दिन देखी जा सकती है।

ये इलाका कोलाबा के नाम से जाना जाता है और चुनावी मौके पर दक्षिणी मुंबई की लोकसभा सीट के तौर पर इसकी पहचान है। लेकिन पहली बार सिर्फ ताज या गेट-वे का देखने का नजरिया ही नहीं बदला है, बल्कि दक्षिणी मुबंई की लोकसभा सीट का समूचा चरित्र बदल गया है । अगर मछली मार और बोट चलाने वालो की राह पकड़ कर आतंकवादी गेट-वे से मुबंई में घुसे और उन्होने शहर की तासीर बदल दी तो परिसीमन के बाद रईसों के इस क्षेत्र में मच्छी मार से लेकर झोपड़पट्टी वालों की बड़ी तादाद के शामिल होने से चुनावी चेहरा भी बदल गया है। पहले जो इलाका मुबंई साउथ-सेन्ट्रल में था, उसका बड़ा हिस्सा अब दक्षिण मुंबई के क्षेत्र में आ गया है। यानी डौक का वह पूरा इलाका इसी दक्षिणी मुंबई में सिमट गया है, जहां से मुंबई अंडरवर्ल्ड खड़ा होता है। हाजी मस्तान से लेकर दाऊद की कहानी भी यहीं से शुरु होती है।

डौक यानी बंदरगाह पर लगने वाले जहाजों से माल उतारने वाले कामगारों से हफ्ता वसूली सत्तर के दशक से आज भी जारी है । अमिताभ बच्चन ने दीवार में हाजी मस्तान के इस चरित्र का बखूबी जीया और प्रसिद्दी भी पायी। मुबंई के इस इलाके में कभी ट्रेड यूनियन नेता दत्ता सांमत की तूती बोलती थी। हर कामगार दत्ता सामंत की यूनियन का सदस्य था। ट्रेड यूनियन को मुबंई के विकास के खिलाफ बाल ठाकरे उस दौर से मानते रहे, जब जार्ज फर्नाडिस ढाबा और मिल मजदूरों को यूनियन के झंडे तले लाकर संघर्ष करते रहे। दत्ता सांमत के खिलाफ भी शिवसेना रही । इसलिये दत्ता सांमत की हत्या के बाद शिवसेना ने इस उलाके पर कब्जा कर लिया।

मुंबई की यह एकमात्र सीट है, जहा शिवसेना को हराना मुश्किल है । 1991 से शिवसेना के पास ही यह सीट रही है। मोहन रावले लगातार जीतते रहे है । लेकिन अब इस इलाके की तासीर बदली है तो रईसों की बस्ती में झोपडपट्टी की पकड़ ने ताज की तरह इस इलाके को भी धायल कर दिया है। यानी जो बहस ताज पर हमले के बाद मोमबत्ती जलाते लोगो को लेकर छत्रपति स्टेशन टर्मिनस यानी सीएसटी में मारे गये लोगो से बेरुखी को लेकर उभरा था । कुछ उसी तरह की स्थिति दक्षिण मुबंई की सीट को लेकर खड़ी हो गयी है। ताज पर हमले के बाद झौपडपट्टी के लोगों पर गाज गिरी थी । पांच सितारा जीवन आतंक के निशाने पर आया था तो महिनों झौपडपट्टी के लोगो की नींद हराम हुई थी। आतंकवादियो को मदद देने के नाम पर पच्चतर लोगो को गिरप्तार कर लिया गया था । दर्जनों परिवारो को कई राते थाने में काटनी पड़ी थी । जिसकी शिकायत इन झौपडपट्टी वालो ने शिवसेना से की थी । जिस पर शिवसेना भड़की भी थी। शिवसेना ने कहा भी था कि सिर्फ घायल ताज-नरीमन की रईसी को सरकार जांच में ना देखे। सीएसटी और सडको पर मारे गये आम लोगो के दर्द को भी सरकार समझे और बेगुनाहो को थानो में बंद ना करे ।

लेकिन कांग्रेस कहती रही जांच होगी तो पुलिस जिसे चाहेगी उसे तो पकड़ेगी । जाहिर है बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं की रईस बेखौफ रहें, इस पर कांग्रेस का जोर रहा । दक्षिण मुबंई के इलाके में ही हर नेता-मंत्री की रिहाइश है और अंबानी बंधुओं से लेकर मुंबई में रहने वाला हर रईस इसी इलाके में रहता है। लेकिन अब दक्षिण मुबंई की सीट में जब दोनो तबके शामिल हो गये हैं तो दोनो मिजाज भी खुलकर आमने सामने हैं ।

लेकिन, पहली बार अंडरवर्ल्ड ने भी इसी सीट पर दस्तक दी है। सोशल इंजीनियरिंग को नये तरीके से महाराष्ट्र में आजमाने निकली मायावती ने मुंबई के इसी रंग को पकड़ा है । यानी झोपडपट्टी, कामगार और दलित का मिश्रण जिस सोशल इंजिनियरिंग की ओर ले जाता है, उस दिशा में नेता नहीं अंडरवर्ल्ड की पकड़ वाला व्यक्ति ही राजनीतिक खेल खेल कर सकता है । इसलिये पहली बार बालीवुड और अंडरवर्ल्ड से निकलते हुये राजनीति में भी इसकी सेंध पांच सितारा लोगो के बीच लग रही है । दाऊद के लिये वसूली करने वाला हाजी मोहम्मद अली शेख इसी इलाके से चुनाव लड़ रहा है। शेख को मायावती ने अपनी पार्टी का टिकट दिया है । पुलिस के रिकार्ड में करोड़पति हाजी मोहम्मद अली शेख दाउद के लिये डौक से हफ्ता वसूली का काम करता है। इस समीकरण ने ताज और गेट-वे की तरह ही अंडरवर्ल्ड के रिश्तो में भी जबरदस्त बदलाव ला दिया है। असल में इस सीट पर चिंचपोकली के विधायक और अंडरवर्ल्ड से जुड़े अरुण गावली चुनाव लडना चाहते थे। लेकिन जीतने के लिये वह मायावती की सोशल इंजिनियरिंग का हिस्सा बनना चाहते थे। मायावती ने उनसे ज्यादा सीधे अंडरवर्ल्ड से जुड़े शेख को तरजीह दी। और तलोजा जेल में बंद अरुण गावली को यह भी कहलवा दिया कि अगर शेख का साथ उन्होंने इस चुनाव में दिया तो भविष्य में गावली को साथ खड़ा कर लेंगी ।

स्थिति बदली और और कभी दाउद के खिलाफ खडा होने वाला अरुण गावली चुनाव में दाउद के गुर्गे को मदद कर रहा है। लेकिन मुंबई की इस सीट के जरिये आतंकवाद के खिलाफ राजनीतिक आतंकवाद की त्रासदी यही नही रुकती। मराठी माणुस के नाम पर उत्तर भारतीयों को पहली बार इसी इलाके में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के जिस शख्स की अगुवाई में निशाना बनाया गया, वह भी चुनाव मैदान में है । एमएनएस के करोड़पति मालागावनकर ने भी आतंकवादी हमले से ज्यादा खतरनाक उत्तर भारतीयो को करार दिया था। मच्छीमार बस्तियों में और मराठी कामगारो के बीच राज ठाकरे की हैसियत ठीक उसी तरह है, जिस तरह बाला साहेब ठाकरे के दौर में दक्षिण भारतीयों पर अंडरवर्ल्ड डॉन वरदराजन की पकड़ थी । तब ठाकरे से बचाने के लिये वरदराजन की छाया दक्षिण भारतीयों को मिली और अब राज ठाकरे ने अपने आतंक से शिवसेना के वोट बैक में सेंध लगा कर मराठी माणुस शब्द अपने साथ जोड लिया। इसलिये शिवसेना के मोहन रावले को अपनी तर्ज पर राजनीतिक आतंक को परिभाषित करने में भी परेशानी हो रही है।

लेकिन आतंकवादी हमले से घायल ताज का दर्द सिर्फ झौपडपट्टी और अट्टालिकाओ में ही नहीं खोया है। पहली बार मोमबत्ती और हाथो में हाथ थामकर हूयमन चेन बनाते हुये आतंक के खिलाफ घुटने टेके सरकार को ठेंगा दिखाने वाले भी अपनी राजनीतिक सोच के साथ चुनाव मैदान में है । बहुराष्ट्रीय बैंक एबीएन एम्बरो बैंक की कंट्री हैड मीरा सान्याल भी दक्षिण मुंबई से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। हर शाम ताज में चाय की चुस्की के साथ बिगड़ती मुबंई की आबो-हवा पर चर्चा करने के दौरान पहली बार मीरा सान्याल को 26-11 यानी ताज पर हमला अंदर से हिला गया। जिन अपनों के साथ ताज में चाय की चुस्की के साथ अरब सागर की लहरो में डूबते सूरज को देखते हुये मुंबई के हालात पर चर्चा होती थी...हमले ने जब उन अपनो को ही खत्म कर दिया तो मीरा सान्याल को लगा अब चुनाव के जरीये ही रास्ता निकलेगा। बचपन से मुंबई में रही सान्याल की पहचान चाहे दो हजार से लेकर दस हजार स्काव्यर फुट के वही बंगले हैं, जिसमें हम दो हमारे दो वाले आदर्श परिवार पांच सितारा जीवन जीते है । लेकिन सान्याल के पास हर उस आतंक के सवाल है, जो घायल ताज की ओट में छुप गये है । महज एक भारी बरसात समूचे शहर को ठहरा देती है। झौपड़पट्टी में प्राथमिक शिक्षा से पहले बाल मजदूरी पहुंच जाती है। हॉस्पिटल में चाक के टुकड़े दवाई की गोली में तब्दिल हो जाते हैं। और आतंक से लड़ती पुलिस के हाथ में वह दुनाली है, जो ट्रेगर दबाने पर भी नहीं चलती।

लेकिन सान्याल के यह सवाल दस स्कावयर की उस झौपड़पट्टी में नहीं गूंज पाते, जहां आठ से पन्द्रह लोगों का परिवार रहता है। जिन्हे अपनी सफलता के लिये पुलिस कभी भी आतंकवादी बता देती है । जिन्हे राजनीतिक सफलता के लिये कभी एमएनएस मराठी माणुस का पाठ पढाते है तो कभी अंडरवर्ल्ड अपनी वसूली का निशाना बनाकर अपने आतंक को पसारता है । और राजनेता विकास का नारा लगा कर अपने पढ़े लिखे बेटे को अपनी राजनीतिक विरासत देकर अपने कुनबे को आगे बढाता है। और इन सब के बीच गेट-वे आफ इंडिया को पीठ दिखाकर घायल ताज की तस्वीर जब हर किसी को सबसे हसीन लगती है तो साफ झलकता है आतंक की कडी दर कडी में देश की पहचान बदल चुकी है ।

2 comments:

anil yadav said...

लाजवाब.........

Unknown said...

आप ने सच लिखा है। झोपडपटटी में प्राथमिक शिक्षा से पहले बालमजदूरी पहुंच जाती है। चाक अस्‍पताल में पहुंच कर दवाई में बदल जाती है। हर तरफ से गरीब की ही सामत आती है। वो आतंकवादी बनते हैं। वे अमीर की गाडी का शिकार बनते हैं वे भूख से मरते है। वे नेताओं की मक्‍कारी का शिकार बनते हैं।