Thursday, October 15, 2009

पत्रकारिता कैसे की जाये?

शोमा दास की उम्र सिर्फ 25 साल की है। पत्रकारिता का पहला पाठ ही कुछ ऐसा पढ़ने को मिला कि हत्या करने का आरोप उसके खिलाफ दर्ज हो गया। हत्या करने का आरोप जिस शख्स ने लगाया संयोग से उसी के तेवरों को देखकर और उसी के आंदोलन को कवर करने वाले पत्रकारों को देखकर ही शोमा ने पत्रकारिता में आने की सोची। या कहें न्यूज चैनल में बतौर रिपोर्टर बनकर कुछ नायाब पत्रकारिता की सोच शोमा ने पाल रखी थी। बंगाल के आंदोलनो को बेहद करीब से देखने-भोगने वाले परिवार की शोमा को जब बंगला न्यूज चैनल में नौकरी मिली तो समूचे घर में खुशी थी कि शोमा जो सोचती है वह अब करेगी। बंगला न्यूज चैनल 24 घंटा की सबसे जूनियर रिपोर्टर शोमा को नौकरी करते वक्त रिपोर्टिग का कोई मौका भी मिलता तो वह रात में कहीं कोई सड़क दुर्घटना या फिर किसी आपराधिक खबर को कवर करने भर का। जूनियर होने की वजह से रात की ड्यूटी लगती और रात को खबर कवर करने से ज्यादा खबर के इंतजार में ही वक्त बीतता।

13 अक्तूबर की रात भी खबर कवर करने के इंतजार में ही शोमा आफिस में बैठी थी। लेकिन अचानक शिफ्ट इंचार्ज ने कहा ममता बनर्जी को देख आओ। बुद्धिजीवियों की एक बैठक में ममता पहुची हैं। शोमा कैमरा टीम के साथ निकल गयी। कवर करने पहुची तो उसे गेट पर ही रोक दिया गया। ममता बनर्जी की हर सभा में गीत गाने वाली डोला सेन ने शोमा दास से कहा 24 घंटा बुद्धदेव के बाप का चैनल है इसलिये ममता से वह मिल नहीं सकती। लोकिन शोमा को लगा कोई बाईट मिल जाये तो उसकी पत्रकारिता की भी शुरुआत हो जाये। खासकर बुद्धिजीवियों की बैठक में अल्ट्रा लेफ्ट विचारधारा के लोगों की मौजूदगी से शोमा का उत्साह और बढ़ा।

क्योंकि घर में अपनी माँ-पिताजी से अक्सर उसने नक्सलबाड़ी के दौर के किस्से सुने थे। उसे ममता में आंदोलन नजर आता। इसलिये शोमा को लगा कि एक बार ममता दीदी सामने आ जाये तो वह इस मुद्दे पर बाइट तो जरुर ले लेगी। लेकिन गेट पर ममता का इंतजार कर रही शोमा दास का खड़ा रहना भी तृणमूल के कार्यकर्ताओं को इतना बुरा लगा कि पहले धकेला फिर डोला सेन ने ही कहा - तुम्हारा रेप करा देगें, किसी को पता भी नहीं चलेगा। भागो यहाँ से। लेकिन शोमा को लगा शायदा ममता बनर्जी को यह सब पता नहीं है, इसलिये वह ममता की बाईट का इंतजार कर खड़ी रही और ममता जब निकली तो उत्साह में शोमा ने भी अपनी ऑफिस की गाड़ी को भी ममता के कैनवाय के पिछे चलने को कहा। लेकिन कुछ फर्लांग बाद ही तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने गाड़ी रोकी और शोमा पर ममता की हत्या का आरोप दर्ज कराते हुये पुलिस के हवाले कर दिया। यह सब ममता बनर्जी की जानकारी और केन्द्र में तृणमूल के राज्य-मंत्री मुकुल राय की मौजूदगी में हुआ। शोमा को जब पुलिस ने थाने में बैठा कर पूछताछ में बताया कि ममता बनर्जी का कहना है कि तुम उनकी हत्या करना चाहती थीं तो शोमा के पांव तले जमीन खिसक गयी। उसने तत्काल अपने ऑफिस को इसकी जानकारी थी। लेकिन ममता बनर्जी ऐसा कैसे सोच भी सकती हैं, यह उसे अभी भी समझ नहीं आ रहा है।

लेकिन इसका दूसरा अध्याय 14 अक्टूबर को तृणमूल भवन में हुआ। जहाँ आकाश चैनल की कोमलिका ममता बनर्जी की प्रेस कान्फ्रेन्स कवर करने पहुची। कोमलिका मान्यता प्राप्त पत्रकार है। लेकिन इस सभा में तृणमूल के निशाने पर कोमलिका आ गयी। कोमलिका को तृणमूल भवन के बाहरी बरामदे में ही रोक दिया गया। कहा गया आकाश न्यूज चैनल सीपीएम से जुड़ा है, इसलिये प्रेस कान्फ्रेन्स कवर करने की इजाजत नहीं है। कोमलिका को भी झटका लगा, क्योंकि कोमलिका वही पत्रकार है जिसने नंदीग्राम के दौर में समय न्यूज चैनल में रहते हुये हर उस खबर से दुनिया को वाकिफ कराया था, जब सीपीएम का कैडर नंदीग्राम में नंगा नाच कर रहा था। जब सीपीएम के कैडर ने नंदीग्राम को चारों तरफ से बंद कर दिया था जिससे कोई पत्रकार अंदर ना घुस सके, तब भी कोमलिका और उसकी उस दौर की वरिष्ठ सहयोगी सादिया ने नंदीग्राम में घुस कर बलात्कार पीड़ितों से लेकर हर उस परिवार की कहानी को कैमरे में कैद किया जिसके सामने आने के बाद बंगाल के राज्यपाल ने सीपीएम को कटघरे में खड़ा कर दिया था। उसी दौर में ममता बनर्जी किसी नायक की भूमिका में थीं।

कोमलिका-सादिया की रिपोर्टिग का ही असर था कि सार्वजनिक मंचो से एक तरफ सीपीएम कहने लगी कि समय न्यूज चैनल जानबूझ कर सीपीएम के खिलाफ काम कर रहा है, तो दूसरी तरफ ममता दिल्ली आयीं तो इंटरव्यू के लिये वक्त मांगने पर बिना हिचक आधे घंटे तक लाइव शो में ममता मेरे ही साथ यह कह कर बैठीं कि आपकी रिपोर्टर बंगाल में अच्छा काम कर रही है। कोमलिका को लेकर ममता बनर्जी की ममता इतनी ज्यादा थी कि ममता ने कोमलिका को सलवार कमीज तक भेंट की और साल भर पहले जब कोमलिका ने शादी की तो ममता इस बात पर कोमलिका से रुठीं कि उसने शादी में उसे क्यों नहीं आमंत्रित किया।

लेकिन 14 अक्टूबर को इसी कोमलिका को समझ नहीं आया कि वह पत्रकार है और अपना काम करने के लिये प्रेस कान्फ्रेन्स कवर करने पहुँची है, तो उसे कोई यह कह कर कैसे रोक सकता है कि वह जिस चैनल में काम करती है, वह सीपीएम से प्रभावित है। नंदीग्राम और सिंगूर के आंदोलन के दौर में कोमलिका ने जो भी रिपोर्टिंग की, कभी सीपीएम ने किसी न्यूज चैनल को यह कह नहीं रोका कि आप हमारे खिलाफ हैं, आपको कवर करने नहीं दिया जायेगा। कोमलिका के पिता रितविक घटक के साथ फिल्म बनाने में काम कर चुके हैं और नक्सलबाड़ी के उस दौर को ना सिर्फ बारीकी से महसूस किया है, बल्कि झेला भी जिसके बाद कांग्रेस का पतन बंगाल में हुआ और सीपीएम सत्ता पर काबिज हुई। नंदीग्राम से लालगढ़ तक के दौरान सीपीएम की कार्यशैली को लेकर शोमा दास और कोमलिका के माता-पिता की पीढ़ी में यह बहस गहरायी कि क्या वाकई ममता सीपीएम का विकल्प बनेगी और अक्सर कोमलिका ने कहा - लोगों को सीपीएम से गुस्सा है, इसका लाभ ममता को मिल रहा है।

लेकिन नया सवाल है कि अब ममता से भी गुस्सा है तो किस तानाशाही को शोमा या कोमलिका पंसद करें। यह संकट बंगाल के सामने भी है और पत्रकारों के सामने भी। क्योंकि अगर दोनों नापंसद हैं, तो वैकल्पिक धारा की लीक तलवार की नोंक पर चलने के समान है। तो सवाल है, पत्रकारिता कैसे की जाये?

25 comments:

Kafir said...

Hi Bajpayee ji,
yeh atyant dukh ki baat hai ki mamata ji ne do patrakaaron ko sirf is kaaran se milne se mana kar diya ki wo jis channel se hain waha unke rajnitik pratidwandiyon se waasta rakhti hain.

सुमो said...

भाजपा सबसे अच्छी है, जो चैनल इसे लगातार बेवजह गालिंया निकालते रहते हैं, जिनके मुंह में भाजपा के नाम से ही गोबर भर जाता है उनका भी बहिष्कार नहीं करते. उनके भी आमंत्रण पर खुद एसे चैनलों में पहुंच जाते हैं

वैसे चैनलों की न्यूज से कुछ होता भी है? सारी मीडिया मायवती की पार्टी का बहिष्कार करती रही.. लेकिन मायावती सारे आकंड़ो पे लात मार कर यूपी की कुर्सी के ऊपर विराजमान है..

Anonymous said...

...तो सवाल है, पत्रकारिता कैसे की जाये?

भाजपा इन कांग्रेसियों और कम्युनिष्टों से बहुत अच्छी है..

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

aapko deepawali ki haardik shubhkaamnayen.....

सलीम अख्तर सिद्दीकी said...

is trha kee baatein jaankar samajh nhin aata kee kaun achha hai aur koun bura hai.

Anonymous said...

इन विरोधाभासों से अचंभित हूँ

बी एस पाबला

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस देश को तानाशाही का लगातार खतरा बना हुआ है उस का मूल वर्तमान पूंजीवाद का संकट है। जनतांत्रिक मूल्यों का लगातार पतन हो रहा है। भाजपा आज सत्ता से बाहर है और कमजोर है। वह सत्ता में होती है तो वह भी यही करती है।

Unknown said...

Respected Sir ,

You rae the great personality of the journlism , i saw you from aaj tak to zee news i am also a jourlist but a effected journlist by my seniors , sir it is my humble request to you that do some thing for journlist like us , beacuse we are facing problems by our own journlist , i was in big company but my good work create problem for me , i hate my good work ..

With Regards

Yours Faithfully

Sumit Khanna
( Punjab )
09878690013
09814038368

Nilofar said...

कम्युनिष्ट सबसे बड़े तानाशाह रहे हैं, ये जनवाद के नाम पर सर्वहारा का खून चूसते आये हैं, स्टालिन और माओ की मानवद्रोही करतूतों से कोई नावाफिक नहीं लेकिन न जाने क्यों भारतीय कम्युनिष्ट अपनी आखें बंद करके शुतुर्मुग बने रहना चाहते हैं,

हत्यारे नक्सलवादियों और मानवद्रोही कम्युनिष्टों से तो कांग्रेस भी बेहतर है

भाजपा जब सत्ता में थी तब भी वह प्रेस के प्रति कभी भी अनुदार नहीं रही,

कम्युनिष्ट देशों में तो प्रेस या किसी भी अभिव्यक्ति का गला घोंट ही दिया जाता है, वहां तो इन्टरनेट की पहुंच भी बन्द कर दी जाती है

शिवम् मिश्रा said...

खबरों के प्रति आप पत्रकारों का लोभ भी कुछ हद तक इन घटनाओ के लिए दोषी है !
'खबर हर कीमत पर'....... अब चुकाओ कीमत !!
बुरा ना माने, पर सत्य यही है !


आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

Unknown said...

hi sir,
hum bhi aap ki patrakarita dekhakar hi bade hue hai,aur socha tha aap jaise to nahi bus aap ke aas paas ya u kahe ki aap ki chatra chaya me patrakarita kare,so padai ki,sahara mey job bhi mil gai,par wo na mila jo sochkar patrakarita ki thi,sayad ab patrakarita hoti ya ho hi aisi gai hai.
thank u! harish tiwari

satish said...

आज की पत्रकारिता का एक ही दृश्य सामने उबर कर आता है कि पत्रकारिता तो कि जाय एक चापलुस, काम निकालने वाला..जो बॉस और नेताओं के पीछे रहे..बस आज की पत्रकारिता का यही अर्थ हो गया है...लेकिन सवाल है कि इस तरह की पत्रकारिता का व्यापार कब तक चलेगा...क्या इसके पहिए में कभी जंग नहीं लगेगा...आख़िर कब जनता को इस तरह की ख़बरों से हमारे पत्रकार भाई लुभाते रहेगे...पत्रकार भाइयों के विरुध ऐसा हमें नहीं कहना चाहिए क्योंकि हम भी भविष्य के..आने वाले समय के..इन्हीं पत्रकार बंधुओं में शामिल हो जायेगें...लेकिन आपसे एक सवाल कि आप किस प्रकार की पत्रकारिता से ताल्लुख़ रखते है...?

Mukesh hissariya said...

जय माता दी,
लिक से हटकर हमलोगों का ध्यान आकर्षित करने वाले लोगों के ब्लॉग में जो दो नाम सबसें उपर हैं उसमे आप और रविश कुमारजी का कोई सनी नही हैं संयोग से देनो ही बिहार के हैं .
भैया ,आप तो ममता जी से शोमा दास जी के बारें में डायरेक्ट बात कर सकतें हैं .वैसे पत्रकारों की पीडा विषय पर एक परिचर्चा आयोजित करकें सत्तासीनों को उनकी गलती का आह्सश करा सकतें आप.

Anil Pusadkar said...

बाजपेई साब अगर कोलकाता या महानगर की पत्रकार पर मुसीबत आती है तभी इसके संकट नज़र आते हैं क्या?कस्बो और छोटे शहरो मे रहने वाले पत्रकारो पर संकट क्या संकट नही होता?माफ़ किजियेगा मेरा ईरादा इस विषय पर आपसे असहमति जताने का नही है मगर इस पेशे की कुछ कड़वी सच्चाई शायद दिल्ली पहुंचते-पहुंचते मीठी हो जाती है।यंहा एक छोटे से इलाके का पत्रकार नवरतन बंग सबसे बड़ा होने का दवा करने वाले दैनिक भास्कर के लिये काम करता था।उसकी जंगल मे आग लगने की रिपोर्ट दैनिक भास्कर ने छतीसगढ के सभी संस्करणों मे प्रथम पृष्ठ पर सबसे बड़ी खबर के रूप मे प्रकाशित की और उसके बाद उस पत्रकार को फ़ारेस्ट रेंजर ने वन अधिनियम के तहत झूठे मामले मे फ़ंसा दिया जिसमे जमानत तक़ का प्रावधान नही है।वो दर-दर भटका यंहा राजधानी मे मेरे पास भी आया और हम लोगो से जो भी बन पड़ा हमने किया।ये अकेला मामला नही है।और भी हैं,खुद मेरे खिलाफ़ एक नही तीन-तीन दफ़ा 307 के तहत हत्या के प्रयास के झूठे मुकदमे दर्ज़ किये गये।मेरी नौकरी गई,व्यापार को तहस-नहस कर दिया गया।मै छोटे शहर या कस्बे का छोटा-मोटा पत्रकार नही था।क्या ये उस समय पत्रकारिता के लिये संकट नही था?एक वरिष्ठ और सारे छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश मे अपनी अलग पहचान रखने वाले पत्रकार राजनारायण मिश्र को साम्प्रदायिकता भडकाने के आरोप मे सीधे गिरफ़्तार कर जेल मे ठूंसने की तैयारी कर ली थी कांग्रेस की सरकार ने?क्या ये पत्रकारी के लिये संकट नही था?आज भी जब संपादको को मुख्यमंत्री के सामने हाथ जोड़े खड़े देखा जा सकता है?क्या ये संकत नही है?विज्ञापन के दबाव मे खबरों का दम तोडना,क्या संकट नही है?और भी बहुत सी बाते है बाजपेयी जी जो किसी दिन फ़ुर्सत मे बताऊंगा लेकिन मेरा ये कहना है कि पत्रकार,पत्रकार होता है चाहे वो कोलकाता का हो दिल्ली का हो या फ़िर छोटे से कस्बे का।संकट सब पर है और ये सवाल भी सबके लिये है,मगर चुनौतियां और खतरे छोटे इलाके के पत्रकारो पर ज्यादा है क्योंकी उनका कोई माई-बाप ही नही होता।ज्यादा मुसीबत आई तो अख़बार भी कह देता है कि वो हमारा कर्मचारी नही।क्या करोगे सारा सिस्टम ही सड़ा हुआ है।कोई बात अगर बुरी लगी हो तो माफ़ कर देना साब आप लोग बड़े पत्रकार हैं।

AMITABH BHARTI said...
This comment has been removed by the author.
AMITABH BHARTI said...

" patrakarita kyon ki jaye"

vilap..karne ki hame adat hai..hame acha lagta hai..ye hamari gene me hai...jab kuch hota hai hum vilap karte hai..karte kuch nahi hai...kyo na is baar ye janne ki kosish kare ki...... apne is haal ke liye kahi hum khud to jimmedar nahi hai....

media organisation ke kisi khas political party...ya ideology ki taraf jhukao ke kisse to aam hai...lekin iski sacchai aap behtar tarike se bata sakte hai..

hum sabhi kisi laboratory jaise perfect environment me to journalism kar nahi rahe ..jaha ideal condition me kaam hota hai...

journalism ke field me kadam rakhne walon ke pass na to itna mauka hota hai na hi choice...mission aur passion ki baat to door..sabko ek mauka chahiye hota hai...ek job ki talash hoti hai..

organisation ke ethics ke bare me sayad hi koi sochta hai...

agar soche to sayad uska career suru hone ke pehle hi khatam ho jaye...kyonki apne stand par tike rehna aur patrakarita karna..asan nahi...

aise me naye patrakaron ke liye apne senior ka hukm bajane ke alawa koi rasta nahi bachta..agar aap awaj uthate hai to hasiye par dhakel diye jate hai...

Bas chup rahiye..naukari kijiye ...salary lijiye aur mast rahiye...

kai bar lagta hai media law aur ethics ki kitab bekar padhai jati hai...

ye aap bhi jante hai..ki kai baar....khabar ki apni importance ko kai baar nazarandaz kiya jata hai...

(aap bhi kai baar aisa hote hue tv par dekhte honge..ya phir apke ankon ke samne aisa hota
hoga...tab aap kya sochte hai..aoko kaisa lagta hai...ye janna dischasp rahega...)

jahir hai dhire dhire patrakarita passion nahi rehta job ban jata hai...aur ye bimari ek generation se doosre generation me pass hoti rehti hai ...

patrakarita me sudhar ke liye bottoms up approach ho nahi sakta ...aur trickle down approach kahi dikhta nahi hai...khas kar television me...

(aap is bare me kyon nahi likhte...apke anubhav kya rahe hai..aab tak...)

lekin jab hum apne raste se bhatak jate hai ..kudh sahi galat ka dhyan nahi kar pate to dosron ki galtiyon par tan kar khade bhi nahi ho sakte...

pair ladkhadane lagte hai...ghutne jabab de jate hai...hum jhuk jate hai...aur phir ..mamta ne jo kiya ..waisi batein hone ki kafsambhawna badh jati hai...

sawal to us yuva mahila patrakar ke badle ..channel ke editor se puchna chahiye...aur agar koi ek tarafa khabar dene ka iljam laga raha hai to ...is baat ki bhi jaanch honi chahiye..

lekin ye karega kaun...? sab kuch jaisa chal raha hai waisa hi chalta rahega....aur jab aisi ghatnayen hongi hum vilap karke chup ho jayenge...

aise me sawal ye nahi hai ki "patrakarita kaise ki jaye..balki ye hai ki "patrakarita kyo ki jaye...doctor ne to nahi kaha..."

Alok Nandan said...

विरोध ब्लाग पर विमल पांडे लिख रहें हैं---
1. क्या वाजपेयी जी को यह प्रेस की आजादी पर हमला इसलिए नहीं लग रहा है कि वह चैनल जी नेटवर्क की भागीदारी में ही चलता है? आकाश बांग्ला और जी बांग्ला ने मिल कर उस 24 घंटा चैनल की स्थापना की है जिसके पत्रकारों की आजादी पर कथित हमला हुआ है.उसके पत्रकार न तो दूध से धुले हैं और न ही हरिश्चंद्र की संतान.

2.ममता के मना करने पर तमाम पत्रकार मौके से लौट गए. लेकिन सरकार और माकपा के भोंपू के तौर पर मशहूर 24 घंटा की ‘प्रखर और उत्साही’ महिला पत्रकार ममता का इंटरव्यू करने के लिए डटी रही. आखिर आधी रात को ऐसा क्या हो गया था जो उसके लिए ममता का इंटरव्यू जरूरी था? क्या कहीं कोई रेल हादसा हो गया था? शायद प्रसून जी ही इसका जवाब दे सकते हैं.

3. पत्रकारों से बात करने या न करने का फैसला संबंघित नेता या मंत्री पर निर्भर है.

वाजपेयी जी कैसे की जाये पत्रकारिता का प्रश्न उठाने के पहले जिन घटनाओं का आप हवाला दे रहे हैं वो विमल जी का काउंटर आलेख पढ़न के बाद गले नहीं उतर रहा है है।....महिला पत्रकार को यहां तक धमकी जा रही है कि तुम भाग जाओ नहीं तो तुम्हारा रेप करा दिया जाएगा, पूरा फिल्मी टाइप का मामला बना दिया है आपने...महिला पत्रकार ममता बनर्जी से प्रभावित थी, बचपन से ही। जब सारे पत्रकार समझाने के बाद चले गये तो यह डटी रही, इंटरव्यू करने के लिए....पत्रकारिता होती क्या है, रिर्पोटर बैठा झक मार रहा है तो इसका यह मतलब थोड़े ही है कि आधी रात को सनक में आकर मना करने के वावजूद व्यक्तिगत सीमाओं को तोड़ते हुये काम करे।

शेष said...

उम्मीद है, इसे पढ़ कर मामले को पूरी तरह समझने में मदद मिलेगी…

साइट का पता ये है-
http://www.thehoot.org/web/home/story.php?sectionId=6&mod=1&pg=1&valid=true&storyid=4149

arvind malguri said...

HI BAJPAYEE JI PATRKAREETA KASE KI JAYE YE BAAT NA TO AAJ K KISE PATRKAAR KO PATA HAI NA HR PATRAKAREETA K TEKDAARON KO JIN K ISAARE PAR KHABREIN BANTE AUR CHELTE HAIN AAJ HAR KISE PAARTEE K KOE NA KOI NEWS CHANEL OR NEWS PAPER HAI JO K US PAARTEE KI HE NEWS DETA HAI PAHELE IN DANDELE BAAJON SE PATRKAARITA KO BACHANA HOGA PHI AAP PATRKAARITA KA SAHE ISTEMAAL KAR SEKTE HAIN

प्रभाकर मणि तिवारी said...

वाजपेयी जी के लिखे पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. लेकिन मुझे लगता है कि उनको इस मामले की आधी-अधूरी जानकारी दी गई है. 24 घंटा तो सीपीएम का चैनल है ही, उसके पत्रकार को रात के एक बजे ममता के कानवाय का पीछा करने की मेरे ख्याल से कोई जरूरत नहीं थी. कोलकाता में भाषाई मीडिया सीधे तौर पर दो गुटों में बंटा है. या तो आप सीपीएम के साथ हैं या फिर उसके खिलाफ. और 24 घंटा पूरी तरह सीपीएम के साथ है. यहां रह कर ही इसे महसूस किया जा सकता है. जब यह घटना हुई तो मौके पर दूसरा कोई पत्रकार मौजूद नहीं था. इसे क्या मानें. क्या ममता की कथित बैठक की सूचना सिर्फ इसी चैनल के पास थी या फिर उसकी मंशा कुछ और थी. अगर यह हमला प्रेस की आजादी पर है तो कोलकाता में मीडिया चुप क्यों है…..यह समझना मुश्किल है.मुझे तो लगता है कि यह मामला उसे कहीं ज्यादा पेचीदा है जितना नजर आता है.
प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

बंगाल की टीवी रिपोर्टर शोभा दास के खिलाफ केस, चंडीगढ़ में प्रेस से जुड़े लोगों को कमरे में बंद किया, जैसी खबरें अब आम हो गई हैं। महानगरों में रहने वाले,बड़ी बड़ी तनख्वाह पाने वाले, ऊँचे नाम वाले पत्रकारों को कोई अचरज इन ख़बरों से हो तो हो हमें तो नहीं है। हो भी क्यूँ, जो बोया वही तो काट रहें हैं। वर्तमान में अखबार अखबार नहीं रहा एक प्रोडक्ट हो गया और पाठक एक ग्राहक। हर तीस चालीस किलोमीटर पर अखबार में ख़बर बदल जाती है। ग्राहक में तब्दील हो चुके पाठक को लुभाने के लिए नित नई स्कीम चलाई जाती है। पाठक जो चाहता है वह अख़बार मालिक दे नहीं सकता,क्योंकि वह भी तो व्यापारी हो गया। इसलिए उसको ग्राहक में बदलना पड़ा। ग्राहक को तो स्कीम देकर खुश किया जा सकता है पाठक को नहीं। यही हाल न्यूज़ चैनल का हो चुका है। जो ख़बर है वह ख़बर नहीं है। जो ख़बर नहीं है वह बहुत बड़ी ख़बर है। हर ख़बर में बिजनेस,सनसनी,सेक्स,सेलिब्रिटी,क्रिकेट ,या बड़ा क्राईम होना जरुरी हो गया। इनमे से एक भी नहीं है तो ख़बर नहीं है। पहले फाइव डब्ल्यू,वन एच का फार्मूला ख़बर के लिए लागू होता था। अब यह सब नहीं चलता। जब यह फार्मूला था तब अख़बार प्रोडक्ट नहीं था। वह ज़माने लद गए जब पत्रकारों को सम्मान की नजर से देखा जाता था। आजकल तो इनके साथ जो ना हो जाए वह कम। यह सब इसलिए कि आज पत्रकारिता के मायने बदल गए हैं। मालिक को वही पत्रकार पसंद आता है जो या तो वह बिजनेस दिलाये या फ़िर उसके लिए सम्बन्ध बना उसके फायदे मालिक के लिए ले। मालिक और अख़बार,न्यूज़ चैनल के टॉप पर बैठे उनके मैनेजर,सलाहाकार उस समय अपना मुहं फेर लेते हैं जब किसी कस्बे,नगर के पत्रकार के साथ प्रशासनिक या ऊँची पहुँच वाला शख्स नाइंसाफी करता है। क्योंकि तब मालिक को पत्रकार को नमस्कार करने में ही अपना फायदा नजर आता है। रिपोर्टर भी कौनसा कम है। एक के साथ मालिक की बेरुखी देख कर भी दूसरा झट से उसकी जगह लेने पहुँच जाता है।उसको इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसके साथी के साथ क्या हुआ,उसे तो बस खाली जगह भरने से मतलब है। अब तो ये देखना है कि जिन जिन न्यूज़ चैनल और अख़बार वालों के रिपोर्टर्स के साथ बुरा सलूक हुआ है,उनके मालिक क्या करते हैं। पत्रकारों से जुड़े संगठनों की क्या प्रतिक्रिया रहती है। अगर मीडिया मालिक केवल मुनाफा ही ध्यान में रखेंगें तो कुछ होनी जानी नहीं। संगठनों में कौनसी एकता है जो किसी की ईंट से ईंट बजा देंगे। उनको भी तो लाला जी के यहाँ नौकरी करनी है। किसी बड़े लाला के बड़े चैनल,अखबार से जुड़े रहने के कारण ही तो पूछ है। वरना तो नारायण नारायण ही है।

Rohit Singh said...

Patkarita.....talwal ke noke per hi hoti hai...lekin ab talwar ki mooth Kale Angrejo ke haath me hai....or hum to soye hue hi hai.....

Unknown said...

hi Prasoon ji
अपने आलेख आपने सवालों को उठाया है....पत्रकारिता का यही पहलु भी है कि सवाल खड़े कर दो और लोगों को उसका जवाब खुद ही ढ़ूंढ़ने दो...लेकिन दीगर बात ये भी है कि हममे से कितने ऐसे पत्रकार हैं जो दूध के धुले हैं....सच्चाई कड़वी है लेकिन ये भी सच है कि टी आर पी के चक्कर में हम भी खवरों को बनाते हैं...

Rajnish Chauhan said...

आदरणीय पुण्य प्रसून जी आपका आलेख वाकई एक गंभीर मुद्दे पर आधारित है| साथ ही इशारा कर रहा है की आने वाले समय में पत्रकारों को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है| कई बार संसथान के कारण पत्रकारों को किसी न किसी वर्ग से जोड़ कर देखा जाता है, जबकि पत्रकारिता का आधार ही निष्पक्षता माना जाता है| आपके इस आलेख से मुझे हाल ही लोकसभा चुनावों का एक वाक्या याद आ गया| मेरठ में लोकसभा के एक प्रत्याशी का इंटरव्यू लेने के लिए 'जन्संदेश' चैनल के कुछ पत्रकार पहुंचे| प्रत्याशी साहब को कहीं से ये भनक थी की ये चैनल बसपा समर्थित है, जैसे ही वो इन प्रत्याशी जी के पास पहुंचे उन्होंने तुंरत ये कह कर अपना मुहँ मोड़ लिया की 'तुम मेरी भलाई क्या करोगे तुम तो कुछ गलत ही दिखाने आये हो'| उस समय वहां कुछ और पत्रकार भी मौजूद थे जिनमे से एक में भी था| इस मामले में वजह चाहे जो भी रही लेकिन आँखों देखे हाल से मुझे ये पत्रकार के तिरस्कार से ज्यादा कुछ नहीं लगा| हालाँकि जिस तरह बंगाल में शोभा और कमोलिका के साथ हुआ वो बेहद अशोभनीय है| आप इस चतुर्थ स्तम्भ में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं मुझे उम्मीद है की आप पत्रकारिता के सामने आ रही इस नयी चुनौती के लिए कोई न कोई समाधान जरुर निकाल पाएंगे|

Unknown said...

आकाशीय विज्ञान; टेलिपाथिक लेखन; टेलिपाथिक सिद्धांत; टेलिपाथिक आश्चर्य; परमेश्वर के मेमने के रोल; भगवान सिद्धांत का मेमना; अल्फा और ओमेगा दिव्य रहस्योद्घाटन; अनन्त पिता अल्फा और ओमेगा की टेलिपाथिक संदेश; महान consoler; सत्य का आत्मा, Patmos (कयामत अध्याय 5) के द्वीप पर जॉन की दृष्टि की प्राप्ति; सदियों के लिए उम्मीद की तस्वीर पेश करता है; देखते हैं, सुनते हैं, विश्लेषण, तुलना, अपने खुद के निष्कर्ष निकालना और स्वतंत्र रूप से साझा; मूल स्क्रॉल हस्तलिखित कर रहे हैं; स्पेनिश corrida में गीत के साथ; (मूल भाषा का सहारा है, तो बात स्पष्ट नहीं है)।

रोल 1

भगवान की दिव्य भेड़ का बच्चा; उनकी दिव्य दर्शन; रजत दिव्य भेड़ के बच्चे; विनम्रता भेड़ के बच्चे किए गए; भगवान की दिव्य मेमने की नई विजय, मानव शक्ति और गौरव पर._
रोल 2

दर्शन के दिव्य मूल; स्थलीय और आकाशीय साम्यवाद साम्यवाद के बीच संबंध; साम्यवाद मामला है और भावना के साथ पैदा होता है; गठबंधनों सभी के लिए आम हैं._
रोल 3

दिव्य दृष्टान्तों; टेलिपाथी रहने वाले द्वारा अनुवादित; Jehova माता-पिता द्वारा जारी किए गए; आंदोलन मामले में हुई; यह पहली बार वनस्पति के रूप में उभरा; पहला संयंत्र ज्यामिति._
रोल 4

दिव्य दृष्टान्तों; टेलिपाथी रहने वाले द्वारा अनुवादित; Jehova दिव्य पिता से तय; पिछले सिद्धांत है जो ग्रह पृथ्वी प्राप्त; नए विज्ञान और नई दुनिया का जन्म._
रोल 5

पृथ्वी के सूर्य की दिव्य मूल; सौर लाइट के शाश्वत उत्तराधिकार; भगवान की दिव्य लैम्ब, सूर्य से पहले होता है; के रूप में एक सूरज उगता है; तलवों के रूप में मरने; तलवों के जी उठने._
रोल 6

दिव्य प्रशस्त सोच ब्रह्मांड; सौर chispita फैलता; वे अपने सौर द्रव बढ़े; सूक्ष्म संसार पैदा कर रहे हैं; सांसारिक paradises उठता._
रोल 7

पृथ्वी के सौर मंडल की उत्पत्ति परमात्मा; संख्या 318 अन्य ग्रहों गठबंधनों में विस्तार किया गया है; ऊपर नीचे क्या है के बराबर होता है; अपनी पहली कारणों में; गांगेय आदेश संसार._
रोल 8

संख्या 318 के दिव्य मूल; स्थलीय सृजन की संख्या; पहले अणु पृथ्वी पैदा हुई है; गुणन और अन्य अणुओं का विकास; अंतरिक्ष में ग्रहों के रूप में परिपक्व._
रोल 9

परमात्मा निर्माता संख्या; सबसे बड़ा रचनात्मक विस्फोट अल्फा और ओमेगा तलवों में शुरू होता है; एक नंबर का बचपन; परमात्मा के दिव्य करूब वाचा; पहले मनुष्य की आत्मा का जन्म._
रोल 10

मानव जीवन प्रणाली के दिव्य मूल; दिव्य वचन देहधारी बन जाता है; आकाशीय चुंबकत्व एक नया गांगेय परिवार बनाने का निर्णय लेता है; दिव्य विरासत है कि स्वर्ग के राज्य से आता है._
रोल 60

अनन्तकाल का पिता स्थलीय दुनिया के लिए टेलिपाथिक संदेश; दूसरा संदेश; पहला संदेश धार्मिक चट्टान से दुनिया से छिपा हुआ था._
https://www.youtube.com/watch?v=Wq5JBFaJSHE
http://www.ivoox.com/sucesos-ocurriran-india-audios-mp3_rf_3096544_1.html
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