सवाल पत्रकारिता और पत्रकार का था और प्रतिक्रिया में मीडिया संस्थानों पर बात होने लगी। आलोक नंदन जी, आपसे यही आग्रह है कि एक बार पत्रकार हो जाइये तो समझ जायेंगे कि खबरों को पकड़ने की कुलबुलाहट क्या होती है? सवाल ममता बनर्जी का नहीं है। सवाल है उस सत्ता का जिसे ममता चुनौती दे भी रही है और खुद भी उसी सत्ता सरीखा व्यवहार करने लगी हैं। यहां ममता के बदले कोई और होता तो भी किसी पत्रकार के लिये फर्क नहीं पड़ता। और जहां तक रेप शब्द में आपको फिल्मी तत्व दिख रहा है तो यह आपका मानसिक दिवालियापन है। आपको एक बार शोमा और कोमलिका से बात करनी चाहिये......कि हकीकत में और क्या क्या कहा गया...और उन पर भरोसा करना तो सीखना ही होगा।
जहां तक व्यक्तिगत सीमा का सवाल है तो मुझे नहीं लगता कि किसी पत्रकार के लिये कोई खबर पकड़ने में कोई सीमा होती है। यहां महिला-पुरुष का अंतर भी नहीं करना चाहिये ...पत्रकार पत्रकार होता है । जो बात प्रभाकर मणि तिवारी जी कहते कहते रुक रहे हैं....असल में उस सवाल को बड़े कैनवास पर उठाने की जरुरत है। कहीं मीडिया को पार्टियो में बांट कर पत्रकारिता पर अंकुश लगाने का खेल तो नहीं हो रहा है। तिवारी जी मीडिया सिर्फ बंगाल में ही नहीं बंटी है बल्कि दिल्ली और मुंबई में भी बंटी है....लेकिन वह बंटना संस्थानो या कहें मीडिया हाउसों की जरुरत है..कोई भी दिल्ली के किसी भी राष्ट्रीय न्यूज चैनलों को देखते हुये कह सकता है कि फलां न्यूज चैनल फलां राजनीतिक दल के लिये काम कर रहा है।
यह बंटना अंग्रेजी-हिन्दी दोनों में है। सवाल है कि पत्रकार भी बंटने लगे हैं जो पत्रकारिता के लिये खतरा है। लेकिन आपको यह मानना होगा कि कि न्यूज चैनलों से ज्यादा क्रेडिबिलिटी या विशवसनीयता कुछ एक पत्रकारों की है । ओर यह पत्रकार किसी भी न्यूज चैनलों की जरुरत हैं। मुद्दा यही है कि पत्रकार रहकर क्या किसी न्यूज चैनल में काम नहीं किया जा सकता है। मुझे लगता है कि किया जा सकता है....हां, मुश्किलें आयेंगी जरुर और यह भी तय हे कि आपके साथ पद का नहीं पत्रकार होने का तमगा जुड़ता चले जाये। लेकिन यह कह बचना कि फलां सीपीएम का है और फलां कांग्रेस या बीजेपी का है तो उसमें काम करने वाले सभी पत्रकार उसी सोच में ढले है...यह कहना बेमानी होगी।
यहां बात शोमा दास और कोमलिका से आगे निकल रही है। राजनीतिक दल और राजनेताओं के अपने अपने तरीके होते है खुद के फ्रस्ट्रेशन को लेकर । नंदीग्राम के दौर में मैंने कानू सन्याल का इंटरव्यू दिखलाया और वामपंथी सोच के दिवालियेपन पर हमला किया तो सीपीएम माओवादी प्रभावित राजनीति को बल देने का आरोप पत्रकारो पर खुल्लमखुल्ला लगाने लगी और जब सिंगूर को लेकर ममता के विकास पर सवाल लगे तो वह बीजेपी के हाथो बिके होने का आरोप पत्रकारो पर लगाने लगी।
एनडीटीवी की मोनादीपा से ममता ने कहा कि टाटा ने किसे कितने पैसे दिये हैं। यह अलग बात है कि जब सिंगूर से टाटा ने बोरिया बस्ता समेटा तो एनडीटीवी पर मोनादीपा की रिपोर्ट देखकर ममता खुश भी हुई होगी। लेकिन यहां सवाल उस राजनीति की है जो पहले संस्थानो को मुनाफे या धंधे के आधार पर बांटती है और उसके बाद उसमें काम करने वाला पत्रकार अपनी सारी क्रियटीविटी इसी में लगाना चाहता है कि वह भी संस्थान या मालिक से साथ खड़ा है । और अगर उसने सस्थान की लीक से हटकर स्टोरी कर दी तो या तो उसकी नौकरी चली जायेगी या फिर काम करने को नहीं मिलेगा। मुझे याद नहीं आता कि किसी पत्रकार को किसी संस्थान से बीते एक दशक में जब से न्यूज चैनल आये है , इसलिये निकाल दिया गया हो कि उसने मीडिया हाउस के राजनीतिक लाभ वाली सोच के खिलाफ स्टोरी की हो । जबकि राजनीतिक तौर पर जुडे मीडिया हाउसों में उनकी राजनीति सोच के उलट खबर करने वाले पत्रकारों को मैंने आगे बढ़ते और ज्यादा मान्यता पाते अक्सर देखा है ।
हां, दिनेश राय द्बिवेदी ने जो टिप्पणी कि की जो सत्ता में होता है वही तानाशाह हो जाता है.... इस दौर का यह सच जरुर है इसलिये ममता को अगर लग रहा है कि बंगाल की कुर्सी उस मिल सकती है तो वह भी उसी तानाशाही रुख को अख्तियार कर रही है जो सीपीएम ने कर रखी है । लेकिन इस तानाशाही में पत्रकार अगर एकजुट रहे और ना बंटे तो मुझे नहीं लगता कि सत्ता की मद किसी में इतना गुमान भर दें कि वह जो चाहे सो कहे या कर लें ।
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Saturday, October 17, 2009
इस रात की सुबह है....बस पत्रकार रहिये और एकजुट होइये
Posted by Punya Prasun Bajpai at 12:00 PM
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8 comments:
Sir,
You probably are right about the fact that no one has lost a job for dong a story antithetical to an employer channel's views. But here's a counterpoint...how many stories have we seen on air correctly depicting the recent Ambani spar?
How many stories have we seen on air expressing even a semblance of dissent about Quottrochi's let go?
The examples are numerous. The point being you really can not pursue a journalistic endeavor in a 24 hours, TRP driven news channel.
वाजपेयी जी आपके ब्लॉग को अक्सर पड़ता हूँ और दोस्तों से जिक्र भी करता रहता हूँ. अच्छा लिखते हैं. देश की सम सामायिक घटनाओं पर आपकी सटीक टिप्पणिया पढ़के मुझे यह ज्ञात हुआ की आप जनपक्षधर राजनीती के समर्थक है परन्तु पिछले दो महीने से गोरखपुर में चल रहे मजदूर आन्दोलन के बारे में आपकी कोई भी टिप्पणी न पढ़कर मुझे काफी आश्चर्य, दुःख व हताशा हुई है?
जय माता दी,
अब समय आ गया है जब पत्रकारों को धन ,धर्म और कर्म में से अपने लिए कुछ खोजना होगा अन्यथा हर समय सत्तासीन और सत्ता से बेदखल लोग इसी तरह पत्रकारों की जुबान बंद करते रहेंगे और हम जैसे लोग इसी तरह चार लाइन लिखकर घरयाली आंशु बहातें रहेंगे .
netaon ko darasal ab eisa lagta hai ki we patrakaron ko apni jeb mein rakh sakte hain. lalu, paswan aur mulayam jaise netaon ke dimag ki yah upaj har party tak pahunch gayee hai. jaroorat is baaat ke hai ki ham patrakar iska virodh karein aur eise netaon ka boycotte karein.
आदरणीय वाजपेयी जी, पत्रकार और पत्रकारिता को सही तरीके से परभाषित किये बिना एक पत्रकार होने के अर्थ को नहीं समझा जा सकता है। और पिछले कुछ वर्षों में पत्रकार और पत्रकारिता के जो रूप प्रकट हुये हैं उन्हें देखकर तो पत्रकार और पत्रकारिता को लेकर कोई सटीक परिभाषा निकाल पाना शायद एक कठिन और जोखिम भरा कार्य है। आप खबरों को पकड़ पाने की कुलबुलाहट की बात कर रहे हैं, शायद यह एक पत्रकार का अंदरूनी मनोवेग है। यदि इस मनोवेग को ही आधार मानकर पत्रकार और पत्रकारिता की परिभाषा खड़ी करने की कोशिश करते हैं तो निसंदेह यह और भी घातक है। खबरो को पकड़ने की कुलबुलाहट किसी भी पत्रकार को किसी के निजी जिंदगी में घुसने की इजाजत नहीं देता है। यदि आप सार्वजनिक हित के लिए किसी के निजी जीवन में घुस रहे हैं तो यह सिद्ध् करना ही होगा कि वाकई में आप जिसे सार्वजनिक हित समझ रहे हैं वो है भी या नहीं।
यदि ममता बनर्जी आधी रात को किसी पत्रकार से मिलने से इनकार करती हैं तो वह किस सत्ता को चुनौती दे रही हैं ? ममता बनर्जी को नहीं बल्कि इस देश के किसी भी व्यक्ति को पूरा हक है कि वह अपना निजी समय अपने तरीके से बेरोक टोक कहीं भी बिताये। और चूंकि वह एक सार्जनिक व्यक्तित्व हैं, ऐसे में उनके सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाना मशीनरी का एक हिस्सा है। मना करने के बावजूद यदि तथा उम्दा पत्रकारिता के नाम पर कोई व्यक्ति उस सुरक्षा तंत्र को भेदने की कोशिश करता है तो निसंदेह उसके खिलाफ सहज मामला बनता है। पत्रकारिता के नाम पर बहुत मनमानी हो चुका है, और वीआईपी लोगों की हत्याएं भी हुई हैं। रेप के संबंध में महिला पत्रकार जो कह रही हैं वह पूरी तरह से एक तरफा भी तो हो सकता है, यह सहज ज्ञान की बात है कि सिस्टम चलाने वाला कोई भी व्यक्ति किसी महिला पत्रकार को रेप कराने की धमकी नहीं दे सकता है। खबरों की कलुबुलहाट के कारण खुद खबर मे आने के लिए और अपने पक्ष को और मजबूती प्रदान करने के लिए बड़ी सहजता से कोई भी महिला पत्रकार यह बात कह सकती है। और थोड़ा सा इमोशन के साथ कहेगी तो उसका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा, और उसमें थोड़ा इमोशन मिला के सधे हुये हाथों से लिखे दिया जाये तो उसकी विश्वसनीयता और बढ़ जाती है। आप शंका को मानसिक दिवालियापन करार दे रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि असल पत्रकारिता शंका से शुरु होती है। आंख बंद करके किसी पर यकीन करने से पत्रकारिता अंधी हो जाएगी,चाहे वह महिला पत्रकार क्यों न हो। आपने सही कहा कहा है कि पत्रकारिता को लिंग के दायरे में बांधना उचित नहीं है, लेकिन क्या किसी पुरुष पत्रकार को यह धमकी दिया जा सकता है कि उसके साथ रेप करा दिया जाएगा? या फिर कोई पुरुष पत्रकार यह कहानी गढ़ सकता है कि उसे खबरो को कवर करने के दौरान रेप करने की धमकी दी गई है ? खबरों को पकड़ने की कुलबुलाहट अच्छी चीज है, लेकिन खबर पकड़ में न आने पर बिना बात के उसे खबर बनाकर खेलना, और उस नजरिये को स्थापित करना पत्रकार और मीडिया हाउसों के हित में तो सकता है, लेकिन पत्रकारिता के हित में नहीं। संवाद के सिलसिला को आपने आगे बढ़ाया, इससे पत्रकारिता के अच्छे भविष्य के प्रति उम्मीद जरूर जगी है।
आलोक नंदन
Sir
....Sahi Khabar Per Naukri jaati hai ....
@alok nandan......
Aapki kai baat sahi hai....Per sir 377 ka time hai....(kidng) per sir ...male journlist ko jaan ki dhamki....galat case me phasane ki dhamki aksar milti hai..or unke saath hota bhi hai....aap janete hai, per shyad jaan ke bhi chup rahna chaye to kuch kahna bemaani hai.....Lady reporter ko kia sunne ko milta hai agar aap nahi jaante to kis se pooch ke dhekhye......
THODA IMOTION SE KAHEGI...".........ALOK JI FILME DEKHNA BAND KAR DIJIYE AUR THODA JAMIN PE AA JAIYE. MAHILA KYA KYA SUNTI HAI AUR USE KAUN KYA KYA KAH SAKTA HAI..YADI NAZARA KARNA HAI TO AIK BAR YOO HI ISTRI VES DHARAN KAR LIJIYE. "SYSTEM CHALANE WALA KOI VYAKTI..?" ARE MAHASAY AAP KUCHH JANTE HI NAHI....DUNIYA GHUMIYE TAB DIMAG CHALAIYE AUR PHIR USE LEKNI ME UTARNE KA KAST KARE. APNI SOCH KO SIRF VISTAR NA DE GAHRAAI BHI DIJIYE...YE HOTA TO SHAYAD AAPKA YE SAWAL YAHA N HOTA "क्या किसी पुरुष पत्रकार को यह धमकी दिया जा सकता है कि उसके साथ रेप करा दिया जाएगा? " SABKO HAK HAI KI APNI BAAT KAHE PAR JIS TARAH AAPNE KHUD KO ABHVYKT KIAA HAI US PAR SIRF AAPATTI DARJ KARAAI JA SAKTI HAI.
ममता बनर्जी के लिए कुछ पंक्तियां बशीर बद्र की....
ऐ खुदा किसी को इतनी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे....
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