ठीक एक साल पहले प्रधानमंत्री अपने नये मंत्रिमंडल में जिन दो सांसदों को शामिल नहीं करना चाहते थे, संयोग से दोनो ही डीएमके के सांसद थे और दोनो पर ही भ्रष्टाचार के आरोप थे। असल में 2009 के आमचुनाव में जिस तरह कांग्रेस का आंकडा 200 पार कर गया और यूपीए गठबंधन को बहुमत मिला उसके पीछे मनमोहन सिंह की साफ छवि को एक बडा कारण बताया गया। मनमोहन सिंह के जेहन में भी यह सवाल था कि 2004 में चाहे वह कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी के आशीर्वाद से प्रधानमंत्री बन गये लेकिन 2009 में चुनावी जीत के पीछे उनकी मेहनत रंग लायी है और प्रधानमंत्री बने रहने के उनके दावे को कोई डिगा नहीं सकता। खुद सोनिया गांधी भी नहीं। इसीलिये 2004 के मंत्रिमंडल को बनाते वक्त जो मनमोहन सिंह खामोश थे, वही मनमोहन सिंह 2009 में अपने मंत्रिमंडल को लेकर कितने संवेदनशील हो गये थे, इसका अंदाज उनकी इस मुखरता से समझा जा सकता है कि उन्होंने साफ कहा कि मंत्रिमंडल में कोई दाग नहीं लगेगा। और डीएमके के टी.आर. बालू और ए राजा को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किये जाने के संकेत भी दे दिये।
लेकिन 22 मई 2009 को जिन 19 कैबिनेट मंत्रियों ने शपथ ली, उसमें टी आर बालू का तो नहीं लेकिन ए राजा का नाम था। उस वक्त कहा यही गया कि मनमोहन सिंह की यूपीए में सहयोगी दल डीएमके पर नहीं चली और डीएमके के सर्वसर्वा करुणानिधि ने बालू के नाम से तो पल्ला झाड़ लिया लेकिन अपनी तीसरी पत्नी राजाथी के अड़ जाने पर ए राजा को कैबिनेट मंत्री बनाने पर सहमति दे दी। जिसे मानना प्रधानमंत्री की मजबूरी थी। लेकिन प्रधानमंत्री की मजबूरी के संकेत यही नहीं रुके। जब पोर्टफोलियो यानी विभागों के बंटवारे की बात आयी तो डीएमके के हिस्से में कैबिनेट के जो तीन विभाग गये थे, उसमें टेक्सटाइल, संचार व सूचना तकनीक और कैमिकल-फर्टिलाइजर थे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस हकीकत को समझ रहे थे कि सबसे संवेदनशील कोई मंत्रालय है तो वह संचार व सूचना तकनीक का है, जो न सिर्फ देश को आधुनिकतम सूचना क्रांति से जोड़ेगा बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास में तालमेल बनाये रखने के लिये जो पूंजी सरकार को चाहिये होगी, वह भी संचार मंत्रालय से ही आयेगी। क्योकि स्पेक्ट्रम के जरीये ही पूंजी बनायी जा सकती है। इसलिये प्रधानमंत्री यह भी नहीं चाहते थे कि ए राजा को यह मंत्रालय दिया जाये
, क्योकि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे राजा के जरीये संचार मंत्रालय को चलाने का मतलब यह भी था कि निजी मुनाफे के लिये एक लॉबी के अनुकुल ए राजा कार्रवाई करें। प्रधानमंत्री की यहां भी नहीं चली और ए राजा देश के संचार व सूचना तकनीक मंत्री बने। लेकिन प्रधानमंत्री की अगर यहां नहीं चली तो इसके पीछे डीएमके प्रमुख करुणानिधि या उनकी तीसरी पत्नी राजाथी का भी दबाव नहीं था। फिर कौन थे राजा के पीछे जो हर हाल में संचार मंत्रालय को अपने हक में देखना चाहते थे और जिनके सामने प्रधानमंत्री भी कमजोर पड़ गये?
देश के बड़े चुनिन्दा कॉरपोरेट जगत के महारथी, जिनकी जरुरत संचार मंत्रालय के जरीये अपने काम को बेरोक-टोक विस्तार देते हुये मुनाफा कमाना था, असल में राजा के पीछे वही लॉबी थी। लेकिन संचार मंत्रालय हथियाने से लेकर उसे अपनी जरुरतों के अनुकूल चलाने का खेल जिन माध्यमों के जरीये रचा गया, उसकी सीबीआई जांच के दस्तावेज बताते हैं कि सरकार के गलियारे में सबकुछ मैनेज करने के लिये कॉरपोरेट सेक्टर को वित्तीय सलाह देने वाली चार कंपनियो की सर्वेसर्वा नीरा राडिया को हथियार बनाया गया। और नीरा राडिया का मतलब है सरकार की नीतियों तक में परिवर्तन। सरकार को करोड़ों का चूना लगाकर कॉरपोरेट के हक में अंधा मुनाफा बनाने की परिस्थितियां बना देना। और इसके लिये एक ही लाइन मूल मंत्र- किसी भी कीमत पर।
नीरा राडिया टेलीकॉम,पावर,एविएशन और इन्फ्रास्ट्रचर से जुड़े कॉरपोरेट सेक्टरों को सरकार से लाभ बनाने और कमाने के उपाय कराती हैं। इसके लिये नीरा राडिया ने चार कंपनियों को बनाया है। जिसमें वैश्नवी कॉरपोरेट कंसलटेंट प्राइवेट लिमिटेड सबसे पुरानी है। जबकि नीरा राडिया की तीन अन्य कंपनियां नोएसिस कंसलटिंग, विटकॉम और न्यूकाम कंसलटिंग भी अपने कॉरपोरेट क्लाइंट को सरकारी मंत्रालयों से लाभ पहुंचाने में लगी रहती हैं। सीबीआई ने नीरा राडिया के खिलाफ पिछले साल 21 अक्टूबर को प्रिवेंशन ऑफ करपशन एक्ट 1988 के तहत मामला दर्ज किया है।
नीरा राडिया जिन चार कंपनियों की मालिक हैं, उन सभी कंपनियों के टेलीफोन टेप किये गये। आयकर निदेशालय के मुताबिक टेलीफोन टैप से जो बाते सामने आयी,उसमें अपने कॉरपोरेट क्लाइंट की व्यवसायिक जरुरतों को पूरा करने के लिये सरकार के कई विभागो के निर्णयो को बदला गया और कई मामलो में तो नीतिगत फैसलों को भी बदलवाकर अपने क्लाइंट को लाभ पहुंचाया गया। और खासकर संचार मंत्री ए राजा ने कई फैसलों को इसलिये बदल दिया क्योंकि उससे उन कॉरपोरेट घरानों को लाभ नहीं हो रहा था, जिसे नीरा राडिया लाभ पहुंचवाना चाहती थीं। फोन टैप के रिकार्ड बताते हैं कि
- -नीरा राडिया की सीधी पहुंच संचार मंत्री ए राजा तक है। और टेलीफोन भी सीधे राजा को ही किया जाता रहा । बीच में कभी कोई राजा का निजी सचिव भी नहीं आया।
- -राजा के ताल्लुकात नीरा राडिया के साथ जितने करीबी हैं, उसकी वजह नीरा राडिया के पीछे कुछ खास कॉरपोरेट घरानो का होना है। जिनकी कीमत पर मंत्रालय में कोई पत्ता भी नहीं खड़कता ।
- -इसलिये संचार मंत्रालय के जरीये नीरा राडिया ने चंद महिनों में करोड़ों के वारे न्यारे किए गए।
- -टेलिकॉम लाइसेंस से लेकर सरकार को आर्थिक चूना लगाने का काम किया गया।
- -नये टेलिकॉम आपरेटरों का मार्गदर्शन कर यह समझाया गया कि लाइसेंस लेकर किस तरह विदेशी इन्वेस्टरों से होने वाले आपार मुनाफे को सरकार से छुपाया जाये।
नीरा राडिया ने अपने काम को अंजाम देने के लिये मीडिया के उन प्रभावी पत्रकारों को भी मैनेज किया किया, जिनकी हैसियत राजनीतिक हलियारे में खासी है। यानी जिस नीरा राडिया को सीबीआई से लेकर आयकर महानिदेशालय बिचौलिया, दलाल, फ्रॉड सबकुछ कह रहा है और जांच की सुई आपराधिक साजिश रचने से लेकर सरकार के नीतिगत फैसलों को बदलवाने तक की भूमिका को लेकर कर रहा है, उसका सीधा टेलीफोन देश के संचार मंत्री के पास जाता है और संचार मंत्री एक-दो नही कई बार बातचीत भी करते हैं।
असल में ए राजा को संचार मंत्री बनवाने वाली ताकतों का मुखौटा ही जब नीरा राडिया रहीं तो मंत्री महोदय की खासमखास नीरा राडिया क्यों नहीं होंगी। लेकिन नीरा राडिया के पीछे हैं कौन? वो इतनी ताकतवर हैं कैसे? यह नीरा राडिया के कॉरपोरेट क्लाइंट की फेरहिस्त से भी समझा जा सकता है और टेलीफोन टेप के दौरान बातचीत के जो अंश सीबीआई के इंटरनल विभागीय टॉप सीक्रेट दस्तावेज में दर्ज हैं, उससे भी जाना जा सकता है कि आखिर प्रधानमंत्री भी अपने मंत्रिमडल के विभागों को जिसे चाहते होंगे, उसे क्यो नहीं दे पाये या फिर राजा कैसे संचार मंत्री बन गये। जिस समय यूपीए-2 यानी 2009 में मनमोहन सिंह अपने मंत्रिंडल को लेकर जद्दोजहद कर रहे थे और राजा के मंत्रिमंडल में शामिल करने के खिलाफ थे, अगर उस दौर के नीरा राडिया के टेलीफोन से हुई बातचीत पर गौर किया जाये, जिसका जिक्र आयकर महानिदेशालय के टॉप सीक्रेट दस्तावेजों में है तो कॉरपोरेट सेक्टर को सलाह देने वाली नीरा राडिया और उसकी कंपनी राजा को संचार मंत्री बनवाने में लगी थी। कैबिनेट के शपथ ग्रहण से 11 दिन पहले यानी 11 मई 2009 से जो बातचीत नीरा राडिया टेलीफोन पर कर रही थी अगर उसे दस्तावेजों के जरीये सिलसिलेवार तरीके से देखे तो साफ झलकता है कि कॉरपोरेट लाबी राजा को संचार मंत्री बनवाने में लगी थी। और नीरा राडिया हर उस हथियार का इस्तेमाल इसके लिये कर रही थीं, जिसमें मीडिया के कई नामचीन चेहरे भी शामिल हुये, जो लगातार राजनीतिक गलियारों में इस बात की पैरवी कर रहे थे कि राजा को ही संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय मिले। मंत्रियों के शपथ से पहले नीरा राडिया और रतन टाटा के बीच बातचीत का लंबा सिलसिला चला। दस्तावेजों के मुताबिक टाटा किसी भी कीमत पर दयानीधि मारन को संचार मंत्री बनने देने के पक्ष में नही थे। टाटा की रुचि टेलिकॉम में एयरसेल की वजह से भी थी, जिसकी एक्वेटी पर मैक्सीस कम्युनिकेशन और अपोलो के जरीये टाटा का ही कन्ट्रोल था। और टाटा ने यहां तक संकेत दिये थे कि अगर मारन संचार मंत्री बनेंगे तो वह टेलिकॉम के क्षेत्र से तौबा कर लेंगे। टाटा इसके लिये वोल्टास के जरीये नीरा राडिया और रतनाम [करुणानिधी की पत्नी के सीए] से भी संपर्क में थे।
चूंकि नीरा राडिया अपनी सबसे पुरानी कंपनी वैश्नवी के जरीये टाटा ग्रुप से जुड़ी। टाटा के लिये मीडिया मैनेजमेंट से लेकर इन्वॉयरमेंट मैनेजमेंट तक का काम नीरा राडिया की वैश्नवी कंपनी ही देखती हैं। तो टाटा के हित की प्राथमिकता उसकी पहली जरुरत बनी। लेकिन राजा को संचार मंत्री बनवाने के बाद कॉरपोरेट जगत के एक लॉबी की किस तरह संचार मंत्रालय में चली इसका अंदेशा आयकर निदेशालय के टाप सीक्रेट दस्तावेजों से सामने आता है, जिसमें जांच विभाग की रिपोर्ट साफ कहती है कि स्वान टेलिकॉम
,एयरसेल,यूनिटेक वायरलैस और डाटाकॉम को लाइसेंस से लेकर स्पेक्ट्रम तक के जो भी लाभ मिले उसके पीछे वही लॉबी रही, जिसने राजा को संचार मंत्री बनाया। चूंकि नीरा राडिया की तमाम कंपनियों में रिटायर्ड नौकरशाह भरे पड़े हैं तो मंत्री को मैनेज करने के बाद नौकरशाहों को मैनेज करना राडिया के लिये खासा आसान हो जाता है। और कॉरपोरेट कंपनी भी सीधे नीरा राडिया की कंपनी के जरीये अपने धंधे को विस्तार देती है तो भ्रष्टाचार के आरोप के घेरे में कोई कॉरपोरेट आता भी नहीं।
दस्तावेजों के मुताबिक झारखंड में माइनिंग की लीज बढ़ाने के लिये एक वक्त राज्य के तत्कालीन सीएम मधुकोड़ा टाटा ग्रुप से 180 करोड़ रुपये की मांग रहे थे। लेकिन नीरा राडिया ने बिना पैसे के यह काम राज्यपाल से करवा लिया। इसकी एवज में नीरा राडिया को कितनी रकम दी गयी, इसका जिक्र तो दस्तावेजों में नहीं है लेकिन राडिया की जिस टीम ने इस काम को अंजाम तक पहुंचाया, उसे एक करोड़ रुपये बतौर इनाम दिया गया।
सीबीआई और आयकर निदेशालय के जांच दस्तावेजों को देखकर पहली नजर में यह तो साफ लगता है कि जिस नीरा राडिया को शिकंजे में लेने की तैयारी हो रही है उसकी पहुंच पकड़ का कैनवास खासा बड़ा है क्योंकि इसकी कंपनियां टाटा ग्रुप के अलावे यूनिटेक, मुकेश अंबानी के रिलांयस से लेकर कई मीडिया ग्रुप के लिये भी काम कर रही है। लेकिन दस्तावेजों के पीछे का सच यह भी उबारता है कि मनमोहन की अर्थव्यवस्था जिस कॉरपोरेट तबके के लिये हर मुश्किल आसान कर देश को विकास पर लाने के लिये आमादा है, असल में समूची व्यवस्था पर वही कॉरपोरेट जगत हावी हो गया है। और देश की जो लोकतांत्रिक संसदीय पद्धति है, अब वह मायने नही रख रही है क्योंकि सरकार किस दिशा में किसके जरीये कहां तक चले, यह भी कॉरपोरेट समूह तय करने लगे हैं। क्योंकि मुनाफा बनाने के खेल में किस तरह सरकार को चूना लगाकर करोड़ों के वारे न्यारे किये जाते हैं, यह फंड ट्रांसफर के खेल से समझा जा सकता है। स्वान को लाइसेंस 1537 करोड में मिला । लेकिन चंद दिनो बाद ही स्वान ने करीब 4200 करोड में 45 फीसदी शेयर यूएई के ETISALAT को बेच दिया। इसी तरह यूनिटेक वायरलैस को स्पेक्ट्रम का लाइसेंस डीओटी से 1661 करोड में मिला और यूनिटेक ने नार्वे के टेलेनोर को 60 फीसदी शेयर 6120 करोड में बेच दिये। इसी तर्ज पर टाटा टेलीसर्विसेस ने भी 26 फीसदी शेयर जापान के डोकोमो को 13230 करोड में बेच दिये।
17 दिसबंर 2008 को स्वान टेलिकॉम प्राइवेट लिमिटेड के फंड ट्रासफर के तौर तरीको से समझा जा सकता है। स्वान ने महज चार महीने पहले बनी चेन्नई के जेनेक्स इक्जिम वेन्चर को 380 करोड के शेयर एलॉट कर दिये, वह भी महज एक लाख रुपये के मर्जर कैपिटल पर। वहीं यूनिटेक वायरलैस को टेलिकॉम लाइसेंस दिलाने के लिये नीरा राडिया ने अपने प्रभाव से मंत्रालय के नीतिगत फैसलो को भी बदलवा दिया। असल में कॉरपोरेट के खेल में सरकारें कितनी छोटी हो गयी है, इसका अंदाज अगर सिंगूर प्रोजेक्ट के फेल होने पर गुजरात जाने की कहानी में छुपी है तो हल्दिया प्रोजेक्ट को लेकर कॉरपोरेट के आगे झुकती सरकारों के साथ साथ विदेशी पूंजी के लिये बनाये गये रास्तों से भी लगता है। जहां मंदी की चपेट में आकर डूबने से ठीक पहले लिहमैन ब्रदर्स का अरबों रुपया भारत पहुंचता भी है और मंदी आने के बाद जो पूंजी नहीं पहुंच पायी, उसे दूसरे माध्यमो से मैनेज भी किया जाता है। यानी विदेशी पूंजी निवेश के नियमों की धज्जियां भी खुल कर उड़ायी जाती हैं। यह खेल सिर्फ संचार व सूचना तकनीक के क्षेत्र में हो रहा हो ऐसा भी नहीं है। बल्कि पावर, एविएशन और इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भी बिचौलियों के माध्यम से कॉरपोरेट हितों को साधना और पावर प्लाट लगाने के लाइसेंस से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिये जमीन कब्जे में लेने की प्रक्रिया में किस तरह अलग अलग राज्यों के नौकरशाह लगे हुये हैं, यह भी सीबीआई जांच के दायरे में है। लेकिन सबसे खतरनाक परिस्थितियां देश की व्यवस्था के भीतर बन रही है जहा सत्ता--कॉरपोरेट जगत--नौकरशाह का कॉकटेल नीरा राडिया सरीखे बिचौलियो के जरीये बन रहा है और इसे तोड़ने वाला कोई नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ इनके आगे बंधे हुये हैं। और जांच की शुरुआत करने वाला सीबीआई के एंटी करप्शन ब्रांच के डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल आफ पुलिस विनित अग्रवाल का तबादला किया जा चुका है।
26 comments:
BTW:बस में कौन सी चीज है इनके ?
इस स्टोरी को न्यूज़ चैनल वाले क्यों दबाये बैठे हैं? क्या न्यूज़ चैनलों को भी "प्रसाद" मिला है इस लूट में से?
(काश कोई नक्सलवादी, एकाध-दो मंत्रियों और उनके चमचों को ठिकाने लगा दे…)
सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं. मजबूरी का दिखावा है... क्वात्रोची के मामले में क्या कहेंगे आप...प्रसून जी..
आज की पूरी तरह सड़ चुकी व्यवस्था का सजीव चित्रण करती इस खोजी और देश हित में ईमानदारी से सोचने से उपजी रचना के लिए ,समूचे देश के इमानदार आपके आभारी हैं /अच्छी प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद /
पता नहीं इस जनतंत्र में लुटेरे कब ठिकाने लगेगे...हम तो उन्हे शरीफ कहकर रोने को भी तैयार है...
यह खबर पहुचाने के लिये धन्यवाद
प्रसून जी,
होना हवाना तो कुछ नहीं है, इस मामले में भी.
परंतु आप ये खबरे देते रहिये ताकि सनद रहे.
यह बात अब कोई राज नहीं रह गई है कि हमारे देश की सरकारें कॉरपोरेट चला रहे हैं। चाहे वे किसी भी दल की क्यों न हों?
बहुत खुब सर
जो हँस रहा है भयानक खबर उस तक नहीं पहुँची है...
सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का नारा देंने वाली प्रदेश्ा की बसपा सरकार में अपराधियों की फौज उसके ही लिये मुसीबत बन रही है। हालात तो यहां तक पहुंच गये हैं कि इस दल की ओट लेकर अपराधी फोरस की हाथी की तरह अपनी ही सेना को कुचल रहे हैं। ताजा घटना कुछ ही दिन पहले गोण्डा में हुई।
chiplunkarji news channel wale bade patrakaron ka naam hai, Neera radia NdtV imagine se bhi judi hain, woh kaise ujagar jarenge
Kuch to baat hai jo teri tahriro me tasir nahi, ya to kalam jhuti hai ya phir fankar jhute hai.Par yaha ye bhi kahna jayaj nahi hoga kyoki baat isase bhi aage jati hai ,shayad guge,bahro aur dritrastr jaiso ki fauj kadi ho gai hai aur yoo lagata ki ab kisi bhi shabd ke apne mayne nahi hai.kuch bhi kahiye,kuch bhi likhiye sab kuch simatta sa ja raha hai. Ise simtna khaiye ya in guge bahro ki takat ka kamal kahiye ki kalam apni takat khoti ja rahi hai to shabd apne arth khote ja rahe hai, us par aisi udasinta ? Kyo likhna bhi aik khanpurti karna sa lag raha hai?Lagta hi nahi ki kuch bhi kahi asar karne wala hoga?
इस बार का उन्मुक्त यूपीए शासन शायद घोटालों के लिये जाना जायेगा।
वैसे सारे न्यूज़ चैनल मध्य प्रदेश के कैलाश विजयवर्गीय मामले पर भी चुप हैं…प्रसाद की ख़बर पक्की है क्या भाई साहब!
MERA SAR FAT RAHA HE. BHAGWAN MUJE TAKAT DE KI IS MULK KI MRUTYU HO JAYE TO BHI MUJE RONA N AAYE.
This article is really an eye-opener
es report ko padh kar ek tis ubharti hai....kash dosio ko saja mil pati....bahut bahut dhanyabad es report ke liy.....ek diya hi kafi hai es andhere ke liy....we r always with u.thanks a lot
sir jee .Bhagwaan aapko khub taakt de aur mazboot kare ki aap inlogon ko nnga karte rahe....inko thik karne ka upay sirf jungalwasiyon ke pass hai ..thora media ke loginko apna samrthen de ..aur delhi me inke liye ek gropu bane jo inke liye fight kare ...bas dekhiye neera ko kaise kheera ban jati hain inke dhar ke liye ...aur manmohan to gulaam hai aur kuch nahi
Why u hide the Names of Media People .?
But there aren't strong reasons in the article why Neera Radia is able to influence the government to such an extent and even PM had succumbed to her influence.
But there aren't strong reasons in the article why Neera Radia who is no way associated with the government is able to influence the government to such an extent and even PM had succumbed to her influence.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ इनके आगे बंधे हुये हैं।
क्यों हमें प्रधान (प्रधानमन्त्री ) की जरुरत है.
बड़े मीडिया घराने, किसके लिए समाचार मेहनत से बनाती और परोसती है.
....आपने ब्लॉग पर खुलासा लिया, बहुत धन्यवाद आपका. परन्तु अब हमारी बेचैनी का क्या होगा. हम क्यूँ राष्ट्र निर्माण के लिए मेहनत करते हैं.
सच पूछिये तो आज बहुत दिनों बाद रोने की स्थिति में हूँ.
Darshit रावल के प्रश्नों पर भी गौर करें...
ए राजा..
दुन्नो हाथे
चौचक चीरा।
अपने पीएम के हाथे
लाठी नाहीं..
खाली अंखिए में हौ ..
नीरा।
Satbir Singh gogayan said.....
Ratan Tata has revealed in media that a politician demanded money from me. Now he himself is bribing and hurting the nation very badly. Is not it an act anti nation activity and it si one such exposition. It seems that he earned all what he has by bribing the ministers and administerators.
सत्ता के गलियारों में धमक रखने वाले जिन पत्रकारों के नाम नीरा राडिया के साथ जुड़े हैं। वे नाम ही सरकारों को बचा ले जाने में सफल हो जाएंगे। बीजेपी भी एक सीमा (2004 के बाद) तक इसकी जांच चाहती है। यहां हर कोई शर्त के साथ जांच चाहता है। पूरी जांच नहीं होने वाली और पांच दस अफ़सरों को नपाकर इतिश्री हो जाएगी।
जांच वगैरह हो ना हो.. मेरा तो बस इतना कहना है कि कंपनियों से बढ़े दाम वसूलकर लाइसेंस दे दिए जाएं। बस्सस..पैसा सरकारी खज़ाने में जाए । भ्रष्ट अफ़सर, नेता और पत्रकारों को सज़ा मिले ना मिले कोई उम्मीद नहीं।
इस खुलासे से तथाकथित सरोकारवादी पत्रकारों पर उंगलियां ज़रूर उठ गई हैं। कम से कम नेटिजन्स की नज़रों से गिर ही गए। काश मेरे देश में विकिलीक्स होता। परेशानी ये है कि यहां तो हर आदमी 'सैट' हो सकता है। कहते हैं-- हर कोई छिप छिपके बिका करता है यहां.. शर्त यह है कि मोल चुपके से बताया जाए।
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