Friday, August 27, 2010

आजाद के एनकाउंटर पर सवाल

नागपुर का आंनद होटल। सुबह का नाश्ता करने सीताबर्डी के इसी होटल में किसी ने आजाद को बुलाया था। यहीं पर आजाद के साथ हेम पांडे भी था। और जिस तीसरे शख्स ने इस होटल को सुबह बातचीत और नाश्ते के लिये चुना, वह जानता था कि इस गली से निकलने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं। करीब दो सौ मीटर की इस सड़क के बीचोंबीच ही यह होटल है और होटल में कौन जा रहा है कौन निकल रहा है, इस पर गली के दोनों सिरे से ही नज़र रखी जा सकती है। यानी होटल में घुसते-निकलते व्यक्ति को अंदाज ही नहीं हो सकता कि उस पर कोई नज़र रखे हुये है। सुबह के वक्त इस होटल के अलावा अगर कोई दुकान खुली रहती है तो वह मैगजीन कॉर्नर है।

अब सवाल है कि वह तीसरा व्यक्ति कौन है, जिसने आजाद को बुलाया। आजाद के साथ नाश्ता किया। और उसके बाद वह गायब हो गया। और सीताबर्डी से डेढ़ किलोमीटर दूर स्टेशन रोड पर स्थित बस स्टैंड से बस पकड़कर आजाद को गढ़चिरोली रवाना होना था। वहीं इस सीताबर्डी सड़क का मुहाना सीधे उस वर्धा रोड से मिलता है, जो सड़क सीधे नागपुर के बाहर से ही वर्धा होते हुये चन्द्रपुर, गढ़चिरोली होते हुये आंध्र प्रदेश की सीमा में घुस जाती है । और जिस गाड़ी में आजाद को ले जाया गया, वह गाड़ी कार थी। यानी सरकारी पुलिस जीप नहीं थी। सबकुछ योजना के तहत हुआ।

लेकिन तीसरा व्यक्ति कौन था और उस पर अगर आजाद को भरोसा था तो फिर वह व्यक्ति उसके बाद से गायब क्यों है। यह आजाद की मौत के बाद नागपुर में तैनात नक्सल विरोधी पुलिस[ एंटी नक्सल आपरेशन ] की अपनी रिपोर्ट है। अपनी पहल पर नागपुर के एंटी नक्सल ऑपरेशन की यह रिपोर्ट कई मायने में महत्वपूर्ण है। रिपोर्ट तैयार करने का मतलब है कि समूचे रेड कारिडोर में सिर्फ नागपुर ही वह जगह है, जहां एडीजी रैंक के आईपीएस की तैनाती एंटी नक्सल ऑपरेशन के तहत है और वही जांच करा रहे है कि नागपुर से आजाद को बिना उनकी जानकारी के कैसे उठा लिया गया। यानी एंटी नक्सल आपरेशन भी मान रहा है कि आजाद को नागपुर से आंध्रप्रदेश के अदिलाबाद में ले जाया गया। रिपोर्ट के अंश यह भी संकेत दे रहे हैं कि हाल के दौर में आंध्र प्रदेश की एसआईबी महाराष्ट्र पुलिस या एंटी नक्सल ऑपरेशन के अधिकारियों को जानकारी दिये बगैर दो दर्जन से ज्यादा ज्यादा लोगों को उठा चुकी है।

इससे पहले महाराष्ट्र के इस एंटी नक्सल आपरेशन ने कभी आंध्र प्रदेश पुलिस की ऐसी कारर्वाइयों के लेकर कोई पहल की नहीं। लेकिन आजाद के एनकाउंटर के बाद जब राजनीतिक तौर पर इसे फर्जी बताते हुये इसकी जांच की मांग की जा रही है तो एंटी नक्सल ऑपरेशन के सामने यह भी सवाल खड़ा हुआ है कि इसमें उसकी भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। इसलिये एक अपनी रिपोर्ट तैयार की गयी है। महाराष्ट्र में इस एंटी नक्सल आपरेशन का महत्व क्या है, इसे इस रुप में भी समझा जा सकता है कि यहां एडीजी रैंक के आईपीएस की तैनाती नब्बे के दशक से है। नब्बे के दशक में जब आंध्र में सक्रिय नक्सली संगठन पीपुल्स वार ग्रुप ने आंध्र की सीमा से सटे महाराष्ट्र के विदर्भ में पैर पसारे तो उस दौर में महाराष्ट्र सरकार को लगा कि नक्सल अभियान को फैलने से रोकने के लिये एक आईपीएस की तैनाती अलग से होनी चाहिये। और 1990 में पहले भंडारा इसका केन्द्र बना। क्योंकि तब नक्सलियों ने सिर्फ चन्द्रपुर, गढ़चिरोली और भंडारा में पैर पसारे थे। लेकिन 1992 में नक्सल विरोधी अभियान के कमिश्नर का हेडक्वाटर नागपुर बनाया गया। लेकिन पिछले नौ महीने छोड़ दें तो 18 साल में ऐसा कभी मौका नहीं आया कि नागपुर में तैनात नक्सल विरोधी अभियान के पुलिसकर्मियों की जानकारी के बगैर कोई माओवादी आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ या झारखंड पुलिस के घेरे में आया हो। या फिर दूसरे राज्य की पुलिस ने बिना महाराष्ट्र की पुलिस के सहयोग के महाराष्ट्र में अपने काम को अंजाम दिया हो।

रिपोर्ट बताती है कि नागपुर से आजाद को पकड़ने से लेकर उसके एनकाउंटर की खबर आने के बाद तक महाराष्ट्र की नक्सल विंग को कोई जानकारी नहीं थी कि आंध्र प्रदेश एसआईबी कैसे महाराष्ट्र में बिना जानकारी के घुसी। कैसे नागपुर में आकर उसने अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया। कैसे महाराष्ट्र के चार जिलों को पार कर आंध्र के अदिलाबाद तक आजाद को बिना जानकारी ले जाया गया। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि आंध्र एसआईबी के अधिकारी 27 जून को ही नागपुर आ गये थे। यह दिन रविवार का था। यानी उन्हें आजाद के नागपुर पहुंचने की जानकारी पहले से थी। और इसके लिये पहले से व्यूह रचना की गयी। जितनी गाड़ियों ने महाराराष्ट्र की सीमा पार की और नागपुर से आंध्र की सीमा पर कदम रखने से पहले दो जगहों पर टोल टैक्स दिया, उसमें आंध्र की किसी पुलिस जीप के नंबर का कोई जिक्र नहीं है। अन्य गाड़ियों को लेकर जांच रिपोर्ट ने सिर्फ तीन वाहनों पर संदेह जाहिर किया है, जिसमें टाटा इंडिका कार, बुलेरो और टाटा सूमो हैं। लेकिन इन गाडियो के नंबरों की वैधता पर जांच रिपोर्ट में संदेह किया गया है। जो रिपोर्ट महाराष्ट्र के गढचिरोली से आयी है, उसमें इन तीनो गाड़ियों के फर्जी नंबर होने के संकेत भी दिये गये हैं। यानी संकेत यह भी है कि जिन तीन गाड़ियों के नंबर प्लेट संदेहपूर्ण पाये गये, उन्हीं को जांच के दायरे में लाया गया है।

लेकिन अब एंटी नक्सल ऑपरेशन के सामने नया सवाल यह है कि दस्तावेजों में जब इससे पहले कभी भी आंध्र प्रदेश की पुलिस महाराष्ट्र में घुसने से पहले अपने आपरेशन की जानकारी देती रही है तो इस बार उसने क्यों नही दी। हालांकि सीमावर्ती जिले गढ़चिरोली या चन्द्रपुर में नक्सल विरोधी कार्रवाई को अंजाम देने के लिय लिये आंध्र पुलिस ने स्थानीय स्तर पर जानकारी देकर ही काम किया है। मगर चार जिलों के पार नागपुर आकर अपनी कार्रवाई को अंजाम देने के बावजूद नागपुर के नक्सल आपरेशन के हेडक्वाटर को अगर इसकी जानकारी नहीं दी गयी तो क्या यह समझ-बूझ कर किसी निर्देश के तहत किया गया या फिर इसकी जानकारी ऊपरी अधिकारियों को थी और नागपुर में ही एंटी नक्सल आपरेशन को इसकी जानकारी नहीं दी गयी।

महत्वपूर्ण यह भी है कि पिछले एक- डेढ़ साल में जब से नक्सल गतिविधियों ने सीधे सरकार को चुनौती दोनी शुरु की है, इसी दौर में नागपुर के एंटी नक्सल अभियान का कद छोटा किया गया है। अब एडीजी की जगह आईजी रैंक के आईपीएस की अगुवाई में डेढ़ साल से एंटी नक्सल ऑपरेशन काम कर रहा है। लेकिन आजाद के एनकाउंटर में अपनी चूक की जांच कर रहे महाराष्ट्र की एंटी नक्सल ऑपरेशन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस टीम को अदिलाबाद के जंगलों में अपनी जांच को अंजाम देने जाने नहीं दिया गया। जबकि आंध्रप्रदेश की मानवाधिकार टीम नागपुर-अदिलाबाद का दौरा कर अपनी रिपोर्ट तैयार कर चुकी है। इस पर एंटी नक्सल ऑपरेशन की जांच रिपोर्ट में टिप्पणी भी है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में सरकारी तौर पर इजाजत ले कर जाने को मंजूरी नहीं मिलती लेकिन बिना इजाजत कोई भी कही जा कर किसी भी कार्रवाई को अंजाम दे सकता है। लेकिन इस रिपोर्ट का सबसे संवेदनशील पहलू यह है कि इसमें आजाद के नकाउंटर को आंध्रप्रदेश की जगह महाराष्ट्र सीमा में ही अंजाम देने की बात कही गयी है। क्योंकि अदिलाबाद सीमा चेकपोस्ट पर तैनात फारेस्ट विभाग के एक कर्मचारी ने महाराष्ट्र एंटी नक्सल ऑपरेशन को इसकी जानकारी दी है कि आंध्र के एसआईबी टीम की आवाजाही उसने उसी दौर में जरुर देखी, जिस दौर में आजाद के एनकाउंटर की खबर आयी।

लेकिन उसने गाड़ियों की आवाजाही में कभी किसी नये चेहरे को नहीं देखा। क्योंकि आजाद का चेहरा तो भी आंध्रवासी का है, मगर उत्तराखंड के पत्रकार हेमचंद पांडे का चेहरा किसी भी आंध्रवासी से बिलकुल अलग था और एकदम नया चेहरा आंध्र पुलिस के साथ देखा नही गया । गौरतलब है कि आंध्र-महाराष्ट्र पर पुलिस जांच दल या किसी सरकारी अधिकारी की गाड़ियों की चैकिंग नहीं की जाती है। इसलिये रिपोर्ट इस बात के भी संकेत देती है कि सरकारी अधिकारियों की गाड़ी के अंदर अगर कोई मरा हुआ व्यक्ति भी हो तो उसके बारे में भी बाहर खड़े व्यक्ति को पता नहीं चल सकता है।

जाहिर है यह रिपोर्ट अपने बचाव के लिये पहले से ही महाराष्ट्र के एंटी नक्सल आपरेशन ने अपने डिपार्टमेंट के लिये किया है। लेकिन इस दौर में आंध्रप्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने अदिलाबाद के पहाड़ी जंगलों के इर्द-गिर्द गांवों को टटोल कर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें एनकाउंटर के कोई तथ्य यहां नहीं मिले हैं। यह कहा जा सकता है कि अगर अदिलाबाद में एनकाउंटर के चिन्ह नहीं मिले तो यह फर्जी रहा होगा लेकिन आंध्र पुलिस की मानें तो जो मानवाधिकार कार्यकर्त्ता अदिलाबाद के जंगलों में पहुंचे वह माओवादियो के हिमायती ही है। लेकिन समझना यह भी होगा कि अगर महाराष्ट्र की एंटी नक्सल ऑपरेशन को अपनी डिपार्टमेंट इन्क्वारी के लिये अदिलाबाद के जंगलों में जाने की इजाजत नहीं मिलती लेकिन उसकी रिपोर्ट नागपुर से आजाद के तार जुड़े होने की पुष्टि करती है तो फिर एनकाउंटर सही है या नहीं यह कोई बहुत अबूझ सवाल नहीं है।

जाहिर है ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि अगर चेमकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के एनकाउंटर को लेकर माओवादियों से लेकर सोशल एक्टीविस्ट स्वामी अग्निवेश और मेघा पाटकर से लेकर केन्द्रीय मंत्री ममता बनर्जी अगर जांच की मांग कर रही हैं, तो इसके पीछे सिर्फ सरकार से बातचीत को रोकने की मंशा के लिये एनकाउंटर की थ्योरी भर नहीं है। बल्कि महाराष्ट्र के एंटी नक्सल ऑपरेशन की जांच में भी इसके खुले संकेत है कि माओवादी अब अपना आधार पूरी तरह बंगाल-झारखंड के सीमावर्ती इलाके में शीफ्ट कर रहे हैं। और इसकी शुरुआत 2004 में एमसीसी के साथ पीडबल्युजी के गठन से शुरु हुई थी। इसीलिये सरकार से बातचीत के दिशा-निर्देश भी सीपीआई माओवादी के महासचिव के बदले पोलित व्यूरो सदस्य किशनजी के जरीये आ रहे हैं। जबकि इससे पहले 2002 और 2004 में जब आंध्र सरकार से पीपुल्स वार ने बातचीत की थी तो उसके दिशा-निर्देश बकायदा पार्टी महासचिव के जरिए जारी किये गये थे। लेकिन नक्सल संगठनों में यह बदलाव आंध्र पुलिस के लिये एक बड़ा झटका है क्योकि बीते बीस बरस की कहानी नक्सलियों को लेकर आंध्र में यही रही है कि राज्य के बजट के बराबर केन्द्र और राज्य से उन्हें नक्सलवाद को खत्म करने के लिये आर्थिक मदद मुहैया करायी जाती रही है। और नागपुर में जिस तीसरे व्यक्ति का जिक्र रिपोर्ट में किया गया है, वह भी आंध्र प्रदेश का ही था इसके संकेत एलआईबी दे रही है।

8 comments:

honesty project democracy said...

इसे सरकार में बैठे भ्रष्ट नेताओं की गन्दी राजनीती से उपजा आतंकवाद ही कहा जा सकता है ,इन भ्रष्ट और कुकर्मियों की वजह से पुलिस भी आतंकवादी से कम नहीं रह गयी है ...? भ्रष्टाचारियों को बीच चौराहे पे फांसी देने से ही इस समस्या का समाधान हो सकता है और पुलिस में दुबारा अनुशासन को लौटाया जा सकता है ...

anoop joshi said...

sir kya kahien? kuch din pahele kuch nirdosh bus me baithe logo ko jaan se maara tha in nakashiliyo ne.

Jaynti Charan Jha said...

sir

आज कल देखने मैं ये आ रहा हैं की जो नक्सली अपने आपको गरीब जनता के हिमायेती कहलाते थे. इधर इनदिनों इन्होने उसी आम जनता को पेरशान की हैं. ज्ञानेश्वरी हादसा और CRPF को मारा हैं जो किसी भी सूरत मैं सही नहीं. हम मानते हैं की उनकी कुछ मज़बूरी रही होगी तो इसका मतलब ये ही हैं की हम बन्दुक उताह ले उने जी वयस्था से परेशानी हैं उसके बारे मैं सरकार से बात करे. नहीं तो इनको इन्ही के भाषा मैं जवाब देना चाहिए ये हमारे अपने नहीं हो सकते जिश तरह इन्हों ने आम आदमी को परेशां कर रखा हैं आम आदमीं ने इनका क्या बिगारा हैं. इन्हें तो सिर्फ सेना ही जवाब दे सकती हैं मगेर हमारे माननीय नेतागन को राजनीती करनी हैं तो प्रॉब्लम को जिन्दा रखना हैं ने. आज इन नेताओं के अपने खोए रहेते तो इन्हें मालूम चलता की किशी अपने को खोने क्या गम होता हैं . इसलिए इन्हें बात करनी चाहिए नहीं तो सरकार इनेह सबक सिखए. और हर चीज़ मैं राजनेति नहीं करनी चाहिए.

vikram7 said...

जाहिर है ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि अगर चेमकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के एनकाउंटर को लेकर माओवादियों से लेकर सोशल एक्टीविस्ट स्वामी अग्निवेश और मेघा पाटकर से लेकर केन्द्रीय मंत्री ममता बनर्जी अगर जांच की मांग कर रही हैं, तो इसके पीछे सिर्फ सरकार से बातचीत को रोकने की मंशा के लिये एनकाउंटर की थ्योरी भर नहीं है। बल्कि महाराष्ट्र के एंटी नक्सल ऑपरेशन की जांच में भी इसके खुले संकेत है कि माओवादी अब अपना आधार पूरी तरह बंगाल-झारखंड के सीमावर्ती इलाके में शीफ्ट कर रहे हैं।
बिलकुल सही कहा आपने,

बाजपेयी जी ,हमारी व्यवस्था दूध की धुली नही है,व नक्सली भी मानवता के समर्थक नही लगते। पर इनके समर्थन में जिस तरह देश के कुछ जाने माने लोग परोक्ष रूप से दिख रहे है,क्या वह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के हित में होगा? आजाद का कथित फर्जी एनकाउंटर मामला पहला नही है,देश की पुलिस पर पहले भी सवालिया निशान लग चुके है,पर आज तक हमारी संसद में शोर सराबे के अलावा इसके हल के लिए सार्थक चर्चा नही हुयी,न प्रशासनिक ढाचे में बदलाव। अगर यह सच्चाई है तो निश्चय ही मामला गंभीर है,और ऐसे मामलों की पुनरावृति न हो यह जरूरी है,पर इसके आड़ में नक्सलवाद का समर्थन ,देश की चरमराई प्रशासनिक व्यवस्था में कही घी का काम न करे ,और इससे परेशान लोग इसे व्यवस्था परिवर्तन का आसान हल न मानने लगे?......

vikram7 said...

जाहिर है ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि अगर चेमकुरी राजकुमार उर्फ आजाद के एनकाउंटर को लेकर माओवादियों से लेकर सोशल एक्टीविस्ट स्वामी अग्निवेश और मेघा पाटकर से लेकर केन्द्रीय मंत्री ममता बनर्जी अगर जांच की मांग कर रही हैं, तो इसके पीछे सिर्फ सरकार से बातचीत को रोकने की मंशा के लिये एनकाउंटर की थ्योरी भर नहीं है। बल्कि महाराष्ट्र के एंटी नक्सल ऑपरेशन की जांच में भी इसके खुले संकेत है कि माओवादी अब अपना आधार पूरी तरह बंगाल-झारखंड के सीमावर्ती इलाके में शीफ्ट कर रहे हैं।
बिलकुल सही कहा आपने,

बाजपेयी जी ,हमारी व्यवस्था दूध की धुली नही है,व नक्सली भी मानवता के समर्थक नही लगते। पर इनके समर्थन में जिस तरह देश के कुछ जाने माने लोग परोक्ष रूप से दिख रहे है,क्या वह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के हित में होगा? आजाद का कथित फर्जी एनकाउंटर मामला पहला नही है,देश की पुलिस पर पहले भी सवालिया निशान लग चुके है,पर आज तक हमारी संसद में शोर सराबे के अलावा इसके हल के लिए सार्थक चर्चा नही हुयी,न प्रशासनिक ढाचे में बदलाव। अगर यह सच्चाई है तो निश्चय ही मामला गंभीर है,और ऐसे मामलों की पुनरावृति न हो यह जरूरी है,पर इसके आड़ में नक्सलवाद का समर्थन ,देश की चरमराई प्रशासनिक व्यवस्था में कही घी का काम न करे ,और इससे परेशान लोग इसे व्यवस्था परिवर्तन का आसान हल न मानने लगे?......

Sarita Chaturvedi said...

REPORT KUCHH BHI KAHE PAR ITNA TO SACH HAI KI SARKAR HAR BAAR KADAM BADHAKAR USE PICHE KHICH LETI HAI.IS BISAY PAR SATTA KE HI DO KENDR BAN CHUKE HAI..AIK WO JO NAKSLIYO SE SAWAD KAYAM KARNA CHAHTA AUR AIK WO JISE DAR IS BAAT HAI KI KAHI SAHMATI BAN GAI TO AADIWASWO JAMINE WAPAS LAUTANI PADEGI. AISE ME SAMADHAN KAHA..

rahul52 said...

sarkar kahti hai naksali log desh ke apne log hai to kya jo desh ke liye shahid hote hai javan vo kya desh ke log nahi hai???

rahul52 said...

PRASUN JI ME APKE IS BLOG PAR YE TIPPIDI IS LIYE KAR RAHA HU KYUKI MUJHE LAGTA HAI AAP MERI BAAT KO JAYDA ACHE SE RAKHEGE ISILIYE APKE PASS YE TIPIDI HEJ RAHA HU......


MNS NAYA FARMAAN KI MAHARASHT ME GADESH PANDALO ME SIRF MARATHI GANE HI BAJAGE KYA KARNA CHAHTA HAI MNS KYA DESH KO PURA TODNA HI CHAHTA HAI AUR MAHARASHT KE LOG KYA CHAHTE HAI KHAS TOR SE VO JO MNS KA SAMARTHAN KARTE HAI AUR USME BHI KHAS VO JO MNS KE NETAO KO VOTE DEKAR JITATE HAI KHUD APNE BACHO KE BHAVISHYE KE SATH KHILVAD KAR RAHE HAI BHAVISHYE ME VO KYA DENA CHAHTE HAI APNE BACHO KO YAHI KHUN KHARABA KYUKI AHBI TO YE SIRF SHURUVAT HAI JO KI MNS KE JARIYE RAJ THAKRE NE KI HAI KAHI ESA NA HO YE DUSRE RAJYO ME BHI HO JAYE TAB ANYA RAJYO KE LOGO KA KYA HOGA JO US RAJYE KE NAHI HAI FIR TO NISCHIT HI KHUN KHARABA HOGA HI NA ISILIYE MAHARASHT KI JANTA KO VOTE DENE SE PAHLE AUR DETE SAMAY 10 BAR SOCHNA CHAHIYE KI VO ANE VALA BHAVISHYA KEISA CHAHTE HAI YE KHUD MAHARSHT KI JANTA PAR HI NIRBHAR KARTA HAI KYUKI ISKI SHURUVAT MAHARSHT SE HI HO RAHI HAI.................

MERA LAKSHYA SIRF AUR SIRF AKHAND BHARAT MAHAN BHARAT JAI HIND RAHUL CHANDWANI