नरेन्द्र मोदी ने आखिर क्यों गुलबर्गा सोसायटी इलाके के विकास की बात कही? क्या मोदी कांग्रेस की राजनीति को जवाब देना चाहते हैं? क्या मोदी गुजरात से बाहर अपनी छवि को ठीक करना चाहते हैं? क्या मोदी अब गुजरात छोड़ राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने की सोच रहे हैं? यह सारे सवाल अहमदाबाद से लेकर राजकोट तक हर उस शख्स को परेशान किये हुये हैं, जिसकी जरा भी रुचि नरेन्द्र मोदी की राजनीति को लेकर है। संयोग से गांधीनगर से सौराष्ट्र के इलाके में एसआईटी की उस रिपोर्ट के असर को समझने पहुंचा, जिसमें मोदी सीधे कटघरे में खड़े हैं।
लेकिन जिस दिन एसआईटी की रिपोर्ट तहलका के जरिए लीक हुई और दिल्ली के अखबारो में गुजरात दंगों के लिये मोदी को दोषी माना गया, उसी दिन गुजरात के समाचार पत्रों में पहले पेज पर श्री श्री रविशंकर के साथ योगा करते नरेन्द्र मोदी की तस्वीर दिखायी दी। और एसआईटी की रिपोर्ट बड़े बेमन से अखबारों के एक किनारे कुछ इस तरह छपी दिखायी दी जैसे दिल्ली की जरुरत को पूरा करने के लिये एसआईटी रिपोर्ट को भी जगह दे दी गयी है।असल में नरेन्द्र मोदी को दिल्ली से देखने और गुजरात में खड़े होकर नरेन्द्र मोदी को समझना 180 डिग्री का फेर है। क्योकि एसआईटी जैसे ही मोदी पर सवालिया निशान लगाती है, वैसे ही ग्रामीण गुजराती सवाल करता है कि हमें पैसा-शोहरत तो नरेन्द्र भाई ने ही दी है। सौराष्ट्र की चार हजार एकड़ से ज्यादा जमीन उद्योगों के हवाले कर दी गई है। जिससे हजारों किसान के पास इस वक्त मुआवजे का इतना पैसा है कि सौराष्ट्र के केन्द्र राजकोट में साग-भाजी से लेकर दुकान खोलने की कीमत मुबंई के बराबर की है।
आलम यह है कि राजकोट सिर्फ हवाई रूट से जुडा है और मुबंई का हवाई भाड़ा भी 8 हजार रुपये से शुरु होता है और हर दिन तीन फ्लाईट सौराष्ट्रवासियों या उघोग लगाने वालो से भरी रहती हैं। जबकि अहमदाबाद से दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई या गुवाहाटी तक का किराया भी छह हजार से ज्यादा का नहीं है। असल में गुजरात के गांवों को शहरी मिजाज में जिस तरह नरेन्द्र मोदी ने बदला है, उसमें हर किसी का हीरो मोदी हो गये हैं। यानी गुजरात की अर्थव्यवस्था का मर्म गुजरात को हाई प्रोफाइल बना कर हर चीज महंगा करना भी है और उसके एवज में गुजरातियों को ठसक भरा मुआवजा दिलाना भी है। इसलिये गुजरात में नरेन्द्र मोदी गांधीनगर से लेकर समुद्र पार बेट द्वारका तक के हर जिले के कलक्टर भी है और एसपी भी। राज्य के किसी भी होटल में बैठ जाइए और कहिये कि यहां का मालिक तो नरेन्द्र मोदी है तो इस पर कोई इंकार नहीं करेगा। पंचायत में किसी बीडीओ से लेकर गांव के जमींदार तक के अधिकार की बात करके देख लीजिये, अगर नाम नरेन्द्र मोदी का आ गया तो बीडीओ बोल पड़ेगा-जो है सो मोदी है और यही हाल जमींदार का भी है।
यानी गुजरात का मतलब जब मोदी है तो फिर एसआटी रिपोर्ट का कटघरा जो दिल्ली से दिखायी देता है वह गुजरात में फूलों का हार है या मोदी की बिसात यह कोई भी गुजराती हमेशा ताल ठोंक कर कहने की स्थिति में है । लेकिन पहली बार यह सवाल सभी को परेशान किये हुये है कि नरेन्द्र मोदी ने दस दिन पहले गुजरात के विकास से इतर गुलबर्गा इलाके के विकास की बात अलग से क्यों कही। राजकोट के राम सपारा हो या अहमदाबाद के मनीन्द्र। उनके सवाल सीधे हैं कि जब गुजरात का बच्चा बूढ़ा खुद को गुजरात से ज्यादा नरेन्द्र मोदी से जुड़ा हुआ समझने लगा है तो गुलबर्गा सोसायटी के इलाके में विकास की बात अलग से मोदी ने क्यों कही। क्या मोदी पहली बार बिहार चुनाव परिणाम से हिले हुये हैं, जहा उन्हें पहले नीतीश ने खारिज किया और फिर भाजपा ने भी नीतिश के सुर में सुर मिलाने में देरी नहीं की। यानी जिस वैचारिक समझ के आसरे नीतीश ने झटके में भाजपा के सबसे कद्दावर मोदी को ही आइना नहीं दिखाया बल्कि भाजपा को भी अपनी छांव में खड़ा रहने के लिये मजबूर कर दिया , वह समझ नरेन्द्र मोदी अब अपने में विकसित करना चाहते हैं। या फिर मोदी भाजपा के भीतर अपनी छवि में राष्ट्रीय पैनापन लाना चाहते हैं। क्योंकि भाजपा ने इस दौर में तीनों महत्वपूर्ण मुद्दो पर मोदी को कहीं फटकने नहीं दिया । अयोध्या मुद्दे पर अदालत के फैसले के दिन मोदी गांधीनगर में ही थे। केन्द्र के हिन्दु आतंकवाद के मुद्दे पर मोदी को जवाब देने नहीं दिया गया और तिरंगा यात्रा के दौर में भाजपा के साथ संघ परिवार भी सक्रिय हुआ लेकिन नरेन्द्र मोदी खामोश रहे।
तो क्या मोदी की मुस्लिम बहुल इलाको का नाम लेकर विकास से जोड़ने की पहल गुजरात से बाहर एक नयी राजनीति लकीर खिंचने की वैसी ही कवायद है, जैसी 2002 में मुस्लिम बहुल इलाको पर निशाना साधने को लेकर एसआईटी ने उठायी है। यानी गुजरात में जो राजनीति कांग्रेस करना चाहती है, उसी का जवाब पहले से ही मोदी तैयार कर रहे हैं। क्योकि इससे पहले मोदी ने हमेशा गुजरात के विकास को ही अपनी सियासत का हिस्सा बनाया और उसमें अलग से मुस्लिम इलाको का कभी जिक्र यह कहकर नहीं किया कि वह पिछडे हैं। मोहन ढोलकिया की मानें तो नरेन्द्र मोदी की ताकत जब वाइब्रेंट गुजरात के मौके पर अंबानी बंधुओं के भाषण तक को अपने मुताबिक लिखाने की है। और मंच से समूचा कारपोरेट अगर मोदी में प्रधानमंत्री की छवि देख कर ऐलान करने से नहीं कतराता तो फिर भाजपा के भीतर की कश्मकश को समझना चाहिये, जहां दिल्ली में बैठे भाजपा के राष्ट्रीय नेता अपनी कतार से मोदी को दूर रखना क्यों चाहते हैं। तो क्या मोदी का हर प्रयोग सिर्फ गुजरात के लिये है और गुजरात में बंधे मोदी अब गुजरात के विकास के नये पैमाने में राजनीति का छौंक लगाने के लिये तैयार हैं । सौराष्ट्र के सबसे बडे जमींदारो में से एक प्रवीण भाई की माने तो नरेन्द्न मोदी राजनीति के देवराहा बाबा { इंदिरा गांधी से लेकर विहिप नेता अशोक सिंघल तक के गुरु } सरीखे हैं, जहा कॉरपोरेट और सियासत करने वाले अपने अपने लाभ के लिये जमा होते हैं और मोदी हर किसी की जरुरत जो दूसरे से पूरी होती है, उसमें पुल का काम करते हैं। और इस भूमिका को बनाये रखने के लिये गुजरात की सत्ता मोदी का रास्ता बनाती है और मोदी गुजरात के लिये। यानी गुजरात के भीतर मोदी का कोई विकल्प है नहीं और गुजरात के बाहर मोदी किसी का विकल्प है नहीं। ऐसे में एसआईटी की कोई भी रिपोर्ट क्यो ना हो वह गुजरात में दंगो या मौतो की वजह से नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी की वजह से जानी जाती है। यानी 2002 में जो शख्स गुजरात दंगो का मोदी था 2011 में वह गुजरात का मोदी हो चुका है।
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Wednesday, February 9, 2011
एसआईटी की रिपोर्ट 180 डिग्री में घूम जाती है गुजरात में
Posted by Punya Prasun Bajpai at 12:17 PM
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नरेंद्र मोदी
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4 comments:
लभग दो साल पहले गुजरात घूमने गए थे ,तो वहाँ की सड़के एवम व्यवस्था देख कर आश्चर्य हुआ था कि क्या में भारत में ही हूँ .भ्रष्ट तो सभी नेता हैं पर काम करने वाले कुछ ही हैं ..मुझे लगता है कि उनमें से एक मोदी हैं और आज राष्ट्रीय स्तर पर उन की जररूत भी है .
इतनी सशक्त रिपोर्टिंग के लिए आभार..
युवराज की ताजपोशी का जो 'पावर पाइन्ट प्रेज़ेंटेशन" दिल्ली से एक्ज़ीक्यूट किया जा रहा है उसमें स्ट्रेटीज़ी मोदी को गुजरात में ब्लोक करके रखने की है।
एसआईटी की रिपोर्ट दिल्ली में भी 180 डिग्री इसी कारण घूमी दिखती है, सापेक्षिता का सिद्धांत है!
pasunji lagata hai aap modiji ko lekar kuchh jyada hi gambhir hain. jo kuchh aapne likha hai yahi to rajneta aur rajniti ka kam hai. baki aap behtar samjhate hain.
राजकोट के राम सपारा हो या अहमदाबाद के मनीन्द्र। Sir yahan par thoda correction hai ki अहमदाबाद ka मनीन्द्र nam ka koi ilaka nahi hai aur modi jahan se ladte hai wo MANI NAGAR Ilaka hai to aap jara is naam main sudhar karnge to achha rahega.
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