Thursday, February 17, 2011

संकट देश का जवाब पीएम का

क्या किसी देश का कोई प्रधानमंत्री देश को इस आधार पर भी चला सकता है, जहां मंत्रियों को बनाने में उसकी न चले और वही मंत्री जब कोई नीतिगत फैसला ले तो उसकी जानकारी प्रधानमंत्री को न हो। क्या यह भी संभव है कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को तो न रोक पाये लेकिन देश से इस बात पर क्लीन चीट चाहें कि भ्रष्टाचारियों का नाम सामने आते ही उनके खिलाफ कार्रवाई करने से वह नहीं हिचकते। क्या लोकतंत्र या मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी तले किसी प्रधानमंत्री को वाकई इसलिये मिस्टर क्लीन कहा सकता है कि साथी-सहयोगी मंत्री-मंत्रालयों ने प्रधानमंत्री को ही किसी निर्णय पर अंधेरे में रखा तो प्रधानमंत्री क्या करें।

क्या किसी प्रधानमंत्री को इस मासूमियत पर छोडा जा सकता है कि वह अपने किये की गलती तो बतौर पीएम मान रहा है या देश की बदहाल स्थितियों के लिये वह नैतिक जिम्मदारी तो ले रहा है मगर प्रधानमंत्री पद छोड़ने को बेवकूफी मानता है। और समाधान का रास्ता बतौर पीएम रहते हुये घोटाले के लिये किसी भी समिति के सामने पेश होने को भी तैयार है और सरकार को पटरी पर लाने के लिय मंत्रिमंडल में फेरबदल का ऐलान भी कर रहा है। यानी 360 डिग्री का ऐसा खेल, जिसमें चोर व्यवस्था चले भी और कोतवाल बनकर चोरों को पकड़ने का रुतबा भी दिखाया जाये। अगर यह सब जायज है तो यकीन करना होगा कि मनमोहन सिंह से बेहतर प्रधानमंत्री वाकई इस देश को नहीं मिल सकता। ऐसे में मनमोहन सिंह का विकल्प छोड़, उनके कामकाज के दौरान उनके अन्तविरोधो में देश की वर्तमान व्यवस्था को परखना ही एकमात्र रास्ता है। जो बताता है कि मनमोहन सिंह की खटपट वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी से चरम पर है। यानी कॉरपोरेट के धंधेबाजों को ठिकाने लगाने से और कोई नहीं वित्त मंत्री ही अडंगा लगाये हुये हैं। जो खुल्लम खुल्ला कभी अंबानी बंधुओं को बचपन से जानने का दावा बतौर मंत्री करते हैं तो कारपोरेट घरानो को लाभ पहुंचाने की नीतियों को बेरोक-टोक जारी रखना चाहते हैं। चाहे वह स्पेक्ट्रम घोटाले के दायरे में ही क्यों न फंसे हुये हों। इसलिये मनमोहन सिंह पहली बार 2जी स्पेक्ट्रम के निर्णयो की जानकारी वित्त मंत्रालय को होने की बात कहने से नहीं चूकते।

इसरो के एस बैंड को बेचने की जानकारी पीएमओ को 2005 से 2009 तक नहीं मिली। यानी जो विभाग प्रधानमंत्री के ही अधीन है, उसी के निर्णय अगर पीएम तक नहीं पहुंचते तो प्रधानमंत्री को अंधेरे में कौन रख रहा है या प्रधानमंत्री से ताकतवर कौन है। इस सवाल का जवाब सिर्फ इतना है कि जानकारी मिलते ही पीएम ने करार रद्द करने की दिशा में कदम उठा लिये। तो क्या मंत्रीमंडल ही नहीं नौकशाही और कारपोरेट के काकस की भी एक सत्ता इसी दौर में बन चुकी है, जिस पर नकेल कसने की स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं हैं। और जिस ए राजा को लेकर भ्रष्टा चार के सवाल 2007 में ही उठे थे, उस ए राजा को 2009 में दुबारा कैबिनेट मंत्री बनाना सरकार बने रहने की जरुरत थी और मनमोहन सिंह की वहां भी नहीं चली। यकीनन यह सच है क्योंकि मनमोहन सिंह खुद मानते हैं कि गठबंधन पर उनका जोर नहीं है।

तो क्या देश को चलाने वाले यूपीए का सिर्फ एक सिर बल्कि दस सिर हैं। अगर हां तो जिस भ्रष्टाचार और महंगाई के सवाल पर नकेल कसने की बात मनमोहन सिंह कर रहे हैं, उसका कौन सा छोर पीएमओ पकड़ सकता है। समझना यह भी जरुरी है। दरअसल,देश के सामने मौजूद किसी भी मुद्दों के समाधान के लिये कोई समयसीमा देने के लिये पीएम तैयार नहीं है। लूटने वालो की फेरहिस्त में जब मंत्री ए राजा, कॉरपोरेट के शाहिद बलवा और नौकशाह पूर्व सचिव सिद्दार्थ बेहुरा सीबीआई के फंदे में फंस चुके है तो फिर ईमानदार पहल अब किस संस्थान से किस तर्ज पर होगी इसका जवाब भी पीएम के पास नहीं है। इतना ही नहीं देश के हर संस्थान के ही दामन पर दाग क्यों हैं और आम आदमी का भरोसा ही आखिर क्यों हर संस्थान से टूटने लगा है जब इसका जवाब मनमोहन सिंह के पास सिर्फ इतना ही हो कि सीजंर की पत्नी के तर्ज पर पीएम को शक के दायरे से उपर रखना होगा। तो सवाल वाकई पहली बार यही निकल रहा है कि क्या मनमोहन सिंह बतौर पीएम इतने अकेले हैं या खुद को अकेले दिखाकर अपने असहायपन की नीलामी देश की व्यवस्था सुधारने के नाम पर कर रहे हैं। जहां उनकी पहली और आखिरी प्रथामिकता प्रधानमंत्री बने रहने की है। और चूंकि देश के सामने वैकल्पिक व्यवस्था के तौर वही नौकरशाह,कारपोरेट और राजनेताओ का काकस है, जिसकी प्रथमिकता देश को लूटकर अपना खजाना भरने की है तो फिर भ्रष्टाचार की फेरहिस्त में आदर्श सोसायटी,कामनवेल्थ गेम्स, सीवीसी, कालाधन, स्पेक्ट्रम,एस बैंड या महंगाई क्या मायने रखेगी। क्योंकि लूट के हर चेहरे को जब कार्यपालिका,विधायिका या न्यायपालिका से ही निकलना है तो फिर प्रधानमंत्री कोई भी हो उसे बदलने की दिशा में कदम बढ़ेगा कैसे। यानी कानून के राज की परिभाषा ही जब हर कोई गढ़ने के लिये तैयार हैं तो फिर सवाल भ्रष्टाचार का नहीं सरकारी व्यवस्था का होगा जो आर्थिक सुधार के दौर में लूटने वाली संसथाओ से लेकर हर लूटने वाले शख्स के लिये रेड कारपेट बना हुआ है। और इसी व्यवस्था को विकसित होते इंडिया में चकाचौंघ भारत का नारा दिया गया। इसीलिये जो एफडीआई कल तक देश के विकास की जरुरत थी, आज उसे हवाला और मनी लॉडरिंग का हथियार माना जा रहा है। कल तक कॉरपोरेट की जो योजनायें देश की जरुरत थीं, आज उसमें देश के राजस्व की लूट दिखायी दे रही है। कल पीएमओ की जिस रिपोर्टकार्ड में हर मंत्रालय की उपलब्धि का ग्रेड कारपोरेट की योजनाओ तले रखा गया था, आज उसे भ्रष्टाचार माना जा रहा है। तो संपादको के सवालो पर प्रधानमंत्री का जवाब भी देश का आखिरी सच है कि पीएम बदलने से रास्ता नहीं निकलेगा। और इसके अक्स में छुपा हुआ जबाव यह भी है की पीएम के बरकारार रहने से उम्मीद और भरोसा और टूटेगा।

9 comments:

Admin said...

आडवाणी ने तो मनमोहन को कमजोर प्रधानमंत्री कह कर छोड़ दिया था। लेकिन वो अपाहित, असहाय, अकुशल, नेतृत्वहीन धृतराष्ट्र हैं। जो अपनी जिद के लिए देश को नीलाम कर रहा है।

Unknown said...

बेसरम तो वे मिडिया के प्रतिनिधि लोग भी थे जो वहा गए ? एक ने तो उनसे क्रिकेट के बारे में भी पूछ डाला ? जग घर में लगी हो आग तो गए राग मल्हार ?

Sarita Chaturvedi said...

SABHI KE BAARE ME AISA NAHI KAHA JA SAKTA..KUCH AISE BHI THE JINHONE PATRAKARITA KE UDDESY KO JINDA RAKHA..JO TARIF KE LAYAK HAI ,USKI TARIF JAROOR HONI CHAHIYE..

manoj said...
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Unknown said...

Prasoon ji bada sawal ye bhi hai ki media ka 1 tabka abhi bhi PM ko pak saf bta rha hai KYA KIJIYEGA

Unknown said...
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बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

इस देश को शायद ही कोई ऐसा बेचारा प्रधान मंत्री मिला हो अभी तक. जहां तक नैतिकता की बात है तो जिस उत्तरदायित्व को निभा सकने में बेचारगी आड़े आ रही हो तो नैतिकता तो वहीं समाप्त हो जाती है.....पद पर बने रहने की कोई विवशता नहीं है .......यदि वे अपने को विवश मानते हैं तो उन्हें यह भी सरे आम स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनका स्तेमाल किया जा रहा है. ...इतने बड़े लोकतांत्रिक देश के प्रधान मंत्री का स्तेमाल ?????????

Unknown said...

Infact Manmohan Singh Gi ji is a vertual Prime Minister. The centre of power is Mrs. Sonia Gandhi & his few very powerfull leaders such as Sharad Pawar, Pranav Mukhergee & many more, who doesn't want to take action against currept leaders

Uttam Kumar Verma

IMRAN said...

WHAT HAPPEN IF OUR GOVERMENT FELT DOWN IN 6 MONTHS ? Aisa jayada se jyada 2 ya 3 time hoga kunki uske baad shayed hamara Constitution hi badal jaye. Hamare sanvidhan ka badalna hi desh me imandari aur kartavey parayanta la sakta hai yahi desh ke hit me hoga . Kyuki hamara constitution ab desh ke layek nahi raha. Bhrastachar, aarakshan jaise chijo ne desh ke vikas me mitti dalne ka kam kiya he yahi nuksaan hai hamare constitution ke. He koi samajhdar veyakti jo inhe sahi tehra sakta hai. Agar ye sahi hai to hame hamare p.m. Saheb ke kamo ke kaside padne chahiye. Agar Aisa nahi he to phir hame aise savidhaan par kam karne valo aur banane valo par afsos karna chahiye. Hamare p.m. Sahab ki halat vaisi hai jaisi ki ek majboor pita ki hoti hai jisne apni beti ko aise hato me diya jo use dahej ke liye pratarit karte hai lekin ve pita kuch nahi kar sakta kunki ve majboor hai aur saath hi hamare desh ka kanoon bhi vo bhi tab tak intejaar karenga jab tak ki use jala nahi diya jata.
Wo waqt bhi jaldi aane vaala hai jab koi jwala mukhi phatne ke baad apne piche ek naye jivan ke poshak tatv chod jayega.