Saturday, April 30, 2011

लोकपाल के पहले के ट्विस्ट

तो सरकार ऐसे चलती है

भारत आने से पहले मै इग्लैड में रह रही थी । मेरे पिता स्व. इकबाल नारायण मेनन की कंपनी क्राउन मार्ट इंटरनेशनल थी । और मैने पिता के साथ काम करके बिजनेस के बारे में काफी कुछ सिखा । मेरे ससुर की कंपनी एयर इंटरनेशनल थी । मैने उनके जरीये भी एविशन के क्षेत्र में खासी जानकारी हासिल की । मै चाहती थी मेरे बच्चे भारतीय संस्कृति और रीति-रिवाजो को जाने-समझे । तो मै 1994 में भारत आ गयी । यह कहानी मशहूर कारपोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया की है । जो उसने सीबीआई को कही । संयोग से जिस वक्त सरकार भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिये सिविल सोसायटी के नुमाइन्दो के साथ लोकपाल विधेयक पर चर्चा करने बैठी उसी वक्त राडिया की कहानी कहता सीबीआई का 25 पेजी दस्तावेज सामने आया । असल में नीरा राडिया से पूछताछ के यह दस्तावेज देश चलाने वालो की ऐसी कहनी बया करता है जिसमें कैबिनेट मंत्री से लेकर नार्थ-साउथ ब्लाक का संतरी और मंत्रालयो के सचिवो से लेकर टाप कारपोरेट घराने किस तरह कारपोरेट लाबिस्ट, नौकरशाह के बिचौलियो और राजनीतिक दलालो के जरीये एकजूट होकर देश की नीतियों को बेच या खरीदकर अपना-अपना मुनाफा बनाने में ही जुटते है । और चूकि चकाचौंघ विकास की सरकार की थ्योरी के दायरे में देश का राजस्व कौंन किस तरह हडप रहा है यह मायने नही रखता तो मुनाफा तंत्र भी धीरे धीरे एक ऐसी व्यूह रचना करती है जिसमें लाबिस्ट पहले जिन नौकरशाहो के जरीये मंत्री तक पहुंचती है और मंत्रियो को नौकरशाहो के जरीये ही भरोसा दिलाती है कि नीतियो का खाका उसके प्रिय कारपोरेट के लिये बनाने में कोई हर्ज नही है ।

बाद में मंत्रियो से करीबी का लाभ उठाकर नौकरशाहो को मनपसंद जगह पर नियुक्ति का काम भी यही लाबिस्ट करती है और रिटायर होने पर नौकरशाह को लाबिंग की नौकरी भी नीरा राडिया अपनी कंपनी में देती चली जाती है । इतना ही नहीं नौकरशाह भी कारपोरेट हित में कैसे बंटते चले जाते है और सरकार के भीतर नौकरशाहो की पहचान इसी से होने लगती है कि फला नौकरशाह टाटा के करीब का है या सुनिल मित्तल का हित साधता है । या फिर फंला सचिव अनिल की कंपनियो को फायदे में रखता है या मुकेश अंबानी का हित चाहता है । दरअसल सीबीआई के एएसपी विवेक प्रियदर्शी और राजेश चहल ने 21 दिसबंर और जनवरी में 25, 27, 29 को जो पूछताछ नीरा राडिया से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के संदर्भ में की उसने उस लकीर से कही बडी लकीर खिच दी जो टेलिफोन टैप में सात महिने पहले आये थे । टेलीफोन टैप से उभरे तथ्यो पर सवालिया निशान नीरा राडिया ने भी लगाया कारपोरेट घरानो ने भी ।
यहा तक की ए राजा और कानीमोझी ने भी आवाज को टैंपर्ड करने की बात कही । लेकिन सीआरपीसी की धारा 161 के तहत जो बातचीत आमने-सामने बैठकर सीबीआई अधिकारियो ने नीरा राडिया से की और उसे रिकार्ड कर दस्तावेज की शक्ल दी । उसने 2001 से लेकर 2010 तक के दौर में सत्ता के उस चेहरे को ही सामने ला दिया जिसमें यह कहना किसी भी राजनीतिक दल के लिये मुश्किल काम होगा कि वह पाक-साफ है । क्योकि नीरा राडिया का सफर एनडीए यानी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से शुर होता है और देश के सामने लाबिस्ट का यह सफर यूपीए यानी मनमोहन सिंह सरकार के वक्त थमता है । यानी बीते दस बरस में जब देश के हर राजनीतिक दल ने गठबंधन का लाभ उठाकर सत्ता की मलाई चखी है तो फिर इस दौर में ईमानदार कौन रहा यह सवाल वाकई अबुझ है । क्योकि नीरा राडिया के मुताबिक वाजपेयी सरकार के मंत्री अंनत कुमार से करीबी का खेल सिर्फ इतना नहीं था कि तब एविएशन में उसकी रुची थी बल्कि सत्ता के गलियारे के भीतर घुसकर सत्ता के सामानांतर देश का सबसे पावरफुल काकस बनाने की तैयारी की शुरुआत भी तभी हुई थी ।

अंनत कुमार के जरीये दक्षिणी दिल्ली के पुथ्थुस्वामी मंदिर के निर्माण का समूचा फाइनेन्स कराकर तबके गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के बगल में खडा होकर नीरा राडिया ने अगर नौकरशाहो को रिझाया था तो प्रधानमंत्री वाजपेयी के दत्तक पुत्र रंजन भट्टाचार्य से भी करीबी गांठ कर कई मंत्रालयो में पैठ बनायी । और सत्ता के गलियारे की हर नयी दस्तक के साथ साथ एक के बाद एक नयी कंपनिया खोलती चली गयी । जिसे आगे बढाने का काम वही नौकरशाह करते जो कभी सरकार में थे । और नौकरशाह लाबी अपने पुराने साथी नौकरशाह के लिये काम करके अपने भविष्य का जुगाड भी करते चलती । और नौकरशाहो के इस नैक्सस से जुडने में किसी मंत्री को भी कोई परेशानी नहीं होती । जैसे 2005 में टेलीकाम सचिव बैजल से करीबी टाटा को लाभ पहुंचाने के लिये कैबिनेट मंत्री मारन की टेबल पर रखी फाइलो की जानकारी तक राडिया हासिल करती है फिर बैजल रिटायर होने के बाद मार्च 2007 में नीरा राडिया की कंपनी नोएसिस में डायरेक्टर हो जाते है । और यह कंपनी भी दो महिने पहले जनवरी 2007 में लांच की जाती है । और बैजल का काम यही होता है कि टेलिकाम में वह अपने पुराने नैक्सस का लाभ कंपनी के मातहत उन कारपोरेट घरानो को पहुंचाये जिनके लिये नीरा राडिया काम कर रही है । यह गोटी कितने दूर तक फेंकी जाती है , यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि ट्राई के अभी के चैयरमैन डा.शर्मा के संपर्क में पहली बार नीरा राडिया 2005 में आयी । और सीबीआई से बाचतीच में बेहद साफगोई से नीरा राडिया कहती भी है कि नौकरशाहो से एकबार दोस्ती का मतलब है कभी परेशानी ना आना । दस्तावेजो में 22 नौकरशाह , 9 कारपोरेट टायकून , 7 नेता-मंत्री और 9 मिडियाकर्मियो का नाम नीरा राडिया इस तरह लेती है जैसे यह सभी उसकी अंगुलियो के इशारे पर चलते रहे । या फिर टाटा, रिलांयस और यूनिटेक के कारपोरेट लाबिस्ट की भूमिका में लोकतंत्र के हर खम्भे को एक काकस में नीरा राडिया ने इस तरह समेट लिया जिसकी पाठशाला का पहला पाठ ही यही था कि जो नेता,नौकरशह,मंत्री , मिडियाकर्मी उसके कारपोरेट कलाइंट के अनुकुल है वह साथ है अन्यथा दुश्मन ।

दयानिधि मारन टाटा के अनुकुल नही है इसका एहसास 2005 में ही नीरा राडिया को हो गया । और तभी से दयानिधि मारन को हटाने या अपने अनुकुल परिस्थितियो को बनाने में कारपोरेट लाबिस्ट लगी रही । और इसमें हर उस नेता , नौकरशाह, मिडियाकर्मी की मदद ली जा रही थी जो उसे अनुकुल लगे । सत्ता के सामानातंर इस सत्ता के मायने क्या है यह बंगाल के एनआरआई प्रसून मुखर्जी के देश में नये घंघो में घुसने के लिये नीरा राडिया के साथ बैठको के दौर से भी समझा जा सकता है । जिसका मतलब यही है कि एनआरआई के लिये भी देश की नीतिया या सरकारी कानून से ज्यादा लाबिंग करने वाले कितने मायने रखते है । यानी 25 पेजी दस्तावेज एक पूरी तस्वीर एक ऐसी व्यवस्था की है जिसमें भ्रष्टाचार ही वयवस्था है और व्यवस्था ही सत्ता है । और ऐसी परिस्थियों में अगर यह कहा जाये कि लोकपाल के जरीये भ्रष्ट् व्यवस्था का खाका ठीक हो जायेगा तो नया नजरिया यह भी है कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर नतमस्तक नहीं है बल्कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने वाले लोकपाल विधेयक पर अण्णा के आंदोलन के सामने झुकी । क्योकि देश का जनमानस इससे जुडा । वही इस आंदोलन को लेकर समूची राजनीति बिरादरी एकजूट होकर जिस तरह गुस्से में है , उसने यह भी सवाल खडा किया कि क्या पहली बार लोकपाल के सामने समूची राजनीतिक सत्ता खडी है । क्योकि सरकार के मंत्री और ड्राफ्ट कमेटी के सदस्य कपील सिब्बल हो या सलमान खुर्शीद, या विपक्ष की कमान संभाले आडवाणी या सुषमा स्वराज, या फिर सपा के मोहन सिंह,राजद के रघुवंश प्रसाद, एनसीपी के तारिक अनवर या सत्ताधारी दल के दिग्विजय सिंह लोकपाल को लेकर कमोवेश सभी की भाषा एक सरीखी ही रही । यानी राजनीति में जो सुर कभी एक मुद्दे पर ना मिल पाये वह अण्णा हजारे के आंदोलन में एक हो गये । इसलिये सवाल अब यह भी नहीं है कि सिविल सोसायटी के नुमाइन्दे और राजनेताओ के बीच तलवारे खिंचेगीं और संघर्ष तेज होगा । बल्कि सवाल यह है कि जो जनमानस अण्णा के आंदोलन से देशभर में जुटा उसका दवाब क्या वाकई देश की संसदीय व्यवस्था मे एक ऐसी नाव का निर्माण करेगा जिसमें लोकपाल बैठा दिखेगा या नीरा राडिया की कहानी की तर्ज पर नाव में घास,बकरी,बाघ और लोकपाल सभी होगें ।

9 comments:

आशुतोष की कलम said...

भारतीय व्योस्था को बदलने के लिए VVV ..
विप्लव विकल्प और फिर विकास पर काम करना होगा..अन्ना ने विप्लव कर दिया भारतीय जनमानस दबा कुचला था जय हो जय हो करते हुए चला आया..मगर उनके पास विकल्प नहीं था..
लोकपाल की ड्राफ्टिंग व्योस्था परिवर्तन का विकल्प नहीं है..
अब कपिल सिब्बल और चिदम्बरम जैसे लोग ड्राफ्ट बनायेंगे और प्रधनमंत्री जी सबके ऊपर हैं जिनके नाक के निचे राजा से लेकर कलमाड़ी पलते रहे..
१५ अगस्त की ही बात है वो भी बित जायेगा ..देखते हैं इस विप्लव का विकल्प के बिना क्या हश्र होता है??प्रसून जी अभी अगले कई साल लगने है
शासन -प्रसाशन-मीडिया के कुख्यात गठजोड़ को ख़तम कर नयी व्योस्था लाने में....
रही बात मीडिया की तो उसे बेचने से मतलब है जो भी बिके अन्ना ,रामदेव ,नंगी तस्वीरे या युवराज(इटली वाले,भारत में तो राजशाही ख़तम है )...छद्म सेकुलरिज्म का तड़का भी लगा लेते हैं ये कभी कभी हिन्दू विरोध के ढाबे में..
आप की विवेचन यथार्थपरक और आइना दिखाती है..

दीपक बाबा said...

@22 नौकरशाह , 9 कारपोरेट टायकून , 7 नेता-मंत्री और 9 मिडियाकर्मियो का नाम नीरा राडिया इस तरह लेती है जैसे यह सभी उसकी अंगुलियो के इशारे पर चलते रहे..

मन में एक भ्रम शुरू से रहता है की इतना बड़ा देश.... दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश, इस देश को कौन चला रहा है, नेता या फिर नौकरशाह..... पर आपकी आज की पोस्ट एक तीसरा 'लाबिस्ट' नामक व्यवस्था और दिखता है....
देश में राडिया के अलावा और भी लाबिस्ट होंगे, और शायाद देश यही चला रहे हैं.

हाँ, आपका ईमेल आई डी चाहिए..... कल शाम को कुछ प्रशन रह गए थे, आपके पास समय की कमी के कारन, वो प्रशन आपसे शेयर करना चाहता हूँ.... मेरी ईमेल आई डी deepak.mystical@gmail.com

Unknown said...

दरअसल नीरा राडिया सरकार और कारपोरेट के बिच की वो कड़ी है जो नेताओ का स्वार्थ कार्पोरेट के द्वारा और कार्पोरेट का स्वार्थ नेताओ से पूरा करवाती है ...........
मरने के बाद हिन्दू आस्था के मुताबिक वैतरणी पर करने के लिए एक गाय दान की जाती है निरा राडिया उसी गाय के सामान है जिसे कार्पोरेट घराने और नेता सभी अपनी वैतरणी पर करने के लिए उपयोग कर रहे है और किस तरह एक सामान्य सी गाय किसी को स्वर्ग में मुक्ति दिलाकर सामान्य से विशिष्ट हो जाती है वही अक्स नीरा राडिया में दीखता है .......................

Satish Saxena said...


उपरोक्त लेख पढ़कर लगा कि जब तक आप जैसे निष्पक्ष पत्रकार मिडिया में हैं, देश कि व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश रहेगी ! शुभकामनायें आपको !

यह एक निर्विवाद सत्यता ही तो है कि वी आई पी लोबिंग का एक खम्बा प्रेस क्लब से शुरू होता है, कोई भी काम कराने का तरीका किसी भी छुटभैये से पूँछिये ...वह आसानी से बता देगा ! फिर मीडिया ऐसे रहस्योद्घाटन करती है जैसे यह अचरज की बातें हैं :-)

हर भ्रष्टाचार मिटाने की बाते करता, चिल्लाता पत्रकार अथवा नेता सुबह सुबह अपने कामों को आसानी से करवाने के लिए, कहाँ फोन करते हैं ....

अपनी व्यस्त लाइफ में से लाइन में लगने का अब किसी के पास समय नहीं !

कुछ समय पहले तक पत्रकार सबसे कमजोर जमात में माने जाते थे और आज वे प्रथम वी आई पी हैं भाई जी !

भ्रष्टाचार मिटाने की दौड़ में,जो जितना बड़ा बना उसे उतना ही बड़ा सफ़ेद कालर और धन चाहिए...

और धन की, इन गलियारों में कोई कमी नहीं ....

हार्दिक शुभकामनायें !

Brajesh said...

Prasoonji,

Desh ko kaun chala raha hai, aaj ki paristhiyon ko dekh kar bada kathin sawal lagta hai?

Janta ke Chune hue numainde? Corporates? Lobbyists? Beaurocrates or Spreme court?

Janta to bas gehun me mile hue ghoon ki tarah pis rahi hai...

Ye janta rupi ghoon agar jyada paresan ho gayi to system rupi "jata" bhi lahoo luhan ho jayegi.

सम्वेदना के स्वर said...

121 करोड के देश में छल-बल से मात्र 13/14 करोड़ ईवीएम के बटन दबाने का इंतजाम करना है और पांच साल लूट का लाईसेंस आपका!

लोकतंत्र का अपहरण कब का हो चुका है और "वाच डाग" मीडिया जिसे इस अपहरण का सबसे अधिक शोर मचाना था उसके मुहँ मे हड्डीयां डाल कर उसे "लैप डाग़" मीडिया बना लिया इन अपहरणकर्ताओं ने!

नीरा राडिया के सभी टेपों का दिन-रात अपने चैनल पर प्रसारण कीजिये, खोलिये पोल इन लोकतंत्र के अपहरणकर्ताओं की! अपने मीडिया सहकर्मीयों के नाम भी बेझिझक लीजिये, इन्हे सजा नहीं मिल सकती लेकिन शर्मिदा तो किया ही जा सकता है??

सम्वेदना के स्वर said...

एक और अनुरोध है, लोक सभा चैनल पर आने वाले "आप की आवाज़" कार्यक्रम की तर्ज़ पर "खबरची से भी बड़ी खबर" कार्यक्र्म शुरू कीजिये जिसमे देश के ज्वलंत विषयों पर देश के गावँ,कस्बों और छोटे शहरॉं के लोगों के विचार/भावनाऑं को, बिना किसी एंकरिंग का क्रीम पाउडर लगाये, जस का तस अपने चैनल पर दिखायें।

यदि ऐसा कोई कार्यक्र्म कोई बड़ा चैनल शुरू करता है तो, दिल्ली में बैठे लोकतंत्र के अपहरणकर्ताओं को देश के असली मिजाज़ का पता चलेगा।

और यह भी पता चलेगा कि इस देश के चौपाल और चौक पर कितने अन्ना हज़ारे हैं जिन्हे इस देश का लैपडाग मीडिया अभी भी "इगनोर" कर रहा है।

Gyan Darpan said...

ये सब बाते अपने चेनल पर भी बताओ भाई |
वाजपेयी सरकार से नीरा राडिया के सम्बन्ध वाली बात तो ठीक लिखी पर मनमोहन सरकार में जिन लोगों से नीरा के सम्बन्ध रहे उनके नाम लिखते हुए कलम क्यों रुक गयी ? उनके नाम भी तो लिखते !!

bartwal said...

प्रसून जी नीरा राडि़या तो सीबीआई को सब कुछ बता चुकी हैं लेकिन प्रभु चावला और रजत शर्मा जैसे पत्र कारो का
क्या होगा । जो ये सोच कर बैंठे थे की हम तो पत्र कार हैं सब सभाल देगे,लेकिन मौजूदा दौर में जो स्थिती बन पड़ी
हैं उससे तो ये लगता हें कि इन लोगो के अब ज्यादा दिन नहीं है। लेकिन आप ने जो भी जानकारी अपने लेख के माध्यम से
पहुचाई हैं। मैं उसके लिए आप का तहदिल से शुक्रया अदा करता हूॅ। ...एक छोटा पत्र कार हाल फिलहाल शिमला हिमाचल प्रदेश मैं हूॅ