Thursday, June 30, 2011

इस बार 15 नहीं 16 अगस्त का इंतजार

जनलोकपाल अगर सरकारी लोकपाल नहीं हो सकता और सरकारी लोकपाल का मतलब अगर भ्रष्‍टाचार का लाइसेंस सरकार के ही पास रखने वाला है, तो फिर अन्ना हजारे का आंदोलन भी अब महज भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुनादी वाला नहीं हो सकता। क्योंकि सिविल सोसायटी के लिये जो मुद्दे भ्रष्‍टाचार के घेरे में आते हैं सरकार के लिये वह संसदीय व्यवस्था का तंत्र है। शायद इसलिये पहली बार लोकतंत्र के तीनो पाये चैक एंड बैलेंस करने की जगह आपसी गठजोड़ बनाये दिख रहे हैं। और सरकार यह कहने से नहीं हिचक रही है कि नौकरशाही पर सत्ता का नियंत्रण जरूरी है।

न्यायपालिका की संवैधानिक सत्ता को चुनौती देना संविधान में सेंध लगाना है और संसद के सर्वोपरि होने पर कोई सवाल खड़ा करना सामानांतर सत्ता को बनाने की दिशा में बढ़ने वाला कदम है। जबकि सिविल सोसायटी सत्ता के नियत्रंण में सब कुछ को ही भ्रष्‍टाचार की जड़ मान कर देशभर में बहस शुरु करने पर आमादा है। और सरकार नियत्रंण को ही संसदीय व्यवस्था मान रही है। कह सकते हैं इस बहस ने जनता की ताकत है क्या इसे ही चुनौती दी है, क्योंकि जिस जनता के लिये संविधान बना और जिस संसद को जनता की नुमाइन्दगी करने वाला मंच माना गया 61 बरस में पहली बार उसी जनता की जरुरत, उसकी असल नुमाइन्दगी और जरुरतों को पूरा करने वाले तंत्र को बनाने के लिये संसद नहीं सड़क को मंच बनाने की बात हो रही है।

सवाल यहीं से निकल रहे है कि क्या आंदोलन संसद बनाम सिविल सोसायटी का हो चुका है। क्या संविधान से संसद को मिलने वाली ताकत पर सिविल सोसायटी सवालिया निशान लगा रही है। क्या लोकपाल राजनेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ की संसदीय व्यवस्था को तोड़ देगा। क्या सरकार यह मान चुकी है कि सिविल सोसायटी का रास्ता सत्ता के उस तंत्र को ही खत्म कर देगा जिसके आसरे नीतियों को देश में लागू किया जाता है और रुपये का दस पैसा भी गांव तक नहीं पहुंच पाता। क्या अन्ना हजारे वाकई आंदोलन को अब देश की दूसरी आजादी का सवाल बनाकर आम लोगों को सरकार के खिलाफ खड़ा करने पर आ तुले हैं। और पहली बार देश को 15 अगस्त का नहीं 16 अगस्त का इंतजार है। यानी इस बार लाल किले पर प्रधानमंत्री के तिरंगा फहराने से ज्यादा इंतजार 16 अगस्त को जंतर-मंतर पर हजारों हाथों में तिरंगा लहराते देखे जाने का इंतजार देश को है। अगर ऐसा है तो फिर कांग्रेस के लिये स्थिति 1947 वाली ही है। क्योंकि 15 अगस्त 1947 को जब जवाहर लाल नेहरु तिरंगा पहरा रहे थे, तो महात्मा गांधी कोलकत्ता के एक घर में अंधेरा किये बैठे थे। उन्होंने उस वक्त अपने घर में रोशनी करने से इंकार किया था। बीबीसी के रिपोर्टर के उस लालच पर भी मौन रखा था जब इंटरव्यू देने की दरख्वास्त कर रिपोर्टर ने दुनिया की कई भाषाओं में इंटरव्यू को अनुवाद करने की बात कही थी।

क्या इस बार 16 अगस्त को अन्ना हजारे कुछ इसी रुप में ले जाने की तैयारी में हैं और आजादी की दूसरी लड़ाई का मतलब 15 अगस्त के मायने बदल देगा, क्या देश की जनता में नैतिक तौर पर इतना साहस आ चुका है कि गैर-राजनीतिक आंदोलन के जरिये वह राजनीतिक व्यवस्था की चूले हिला दें। क्या शहरी मध्य-वर्ग में राजनीतिक तौर पर इतना पैनापन आ चुका है कि वह जिन्दगी की तमाम जद्दोजहद के बीच आंदोलन के रास्ते व्यवस्था सुधार का सपना पाल सकें। जाहिर है, अन्ना के आंदोलन का एसिड टेस्ट 15-16 अगस्त को होना है। लेकिन, इस दौर में जो सवाल सरकार ने उठाये उसने ही संसदीय राजनीति में सत्ता की तानाशाही का चेहरा भी पारदर्शी बना दिया। 5 अप्रैल को अन्ना हजारे के आंदोलन में अगर देश भर में आम आदमी को अपने आक्रोश का मंच दिखायी दिया, तो सरकार ने भी तीन दिन के भीतर जनता के आक्रोश में सफल होती सिविल सोसायटी के जरिये संसदीय व्यवस्था को गांठने के बदले सिर्फ कांग्रेस की सियासी ताकत को ही उभारा। यानी दो दर्जन से ज्यादा राजनीतिक दलों की अनदेखी कर सत्ता की महत्ता को ही जनलोकपाल के डॉफ्ट से जोड़ा। जबकि इस दौर का सच यही है कि भ्रष्‍टाचार में सरकार और कांग्रेसियों के दामन पर ही सबसे ज्यादा दाग दिखायी दिये।

यानी सत्ता भ्रष्‍ट हो या ईमानदार संसदीय राजनीति में महत्व सत्ता का ही होता है और संसदीय चुनाव का मतलब सत्ता पाने के लिये संघर्ष करना होता है। ऐसे में विपक्ष या सकारात्मक विरोधी की भूमिका संसदीय राजनीतिक व्यवस्था के लिये मायने नहीं रखती। इसलिये सिविल सोसायटी ने जब सरकार को भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर घेरा और अपनी भूमिका विरोधी या विपक्ष की बनायी तो सियासी दलो ने आंदोलन को हवा में ही उड़ाया, क्योंकि संसदीय व्यवस्था में राजनीतिक दलों को ट्रेनिंग ही यही मिली है कि विरोध या विपक्ष की भूमिका सत्ता पाने के लिये होती है ना कि मुद्दों के आसरे व्यवस्था बदलने की। और नीतियों में परिवर्तन जब संसद के जरिये ही होता है तो फिर संसद पहुंचना ही हर नेता और राजनीतिक दल का पहला और आखिरी संघर्ष होता है। ऐसे में सिविल सोसायटी के उठाये मुद्दों को भी जब संसद के रास्ते ही गुजरना है, तो संसद में ठसक के साथ बैठे सांसदों में यह सहमति भी है कि उनकी सत्ता को इस दोष में कोई चुनौती नहीं दे सकता। और सत्ता का मतलब जब नौकरशाही पर राजनेताओं की नकेल, सीबीआई सरीखे स्वायत्त जांच एंजेसियों पर भी नियंत्रण और सीवीसी पद तक पर भ्रष्‍टाचार का दाग लगे व्यक्ति को बैठाने से गुरेज ना होना हो, तो फिर संसद के जरिये रास्ता निकल कैसे सकता है।

इन सबके बीच पहली बार पूर्व चीफ जस्टिस बालाकृष्णन समेत एक दर्जन से ज्यादा जज भ्रष्‍टाचार के घेरे में आते हो और खुले तौर पर मंत्री, नौकरशाह और कारपोरेट का गठबंधन एक वक्त देश के विकास की लकीर खींचता हुआ भी दिखता है और पकड़ में आने पर देश के राजस्व की लूट करता हुआ भी दिखायी देता हो, तो रास्ता संसद से कैसे निकल सकता है। इतना नहीं भ्रष्‍टाचार की अंगुली पीएमओ पर भी उठे और उसी दौर में लोकपाल के दायरे से पीएम को बाहर रखने की खुली मुनादी करने से सरकार भी ना हिचके, तो इसका एक मतलब तो साफ है कि सिविल सोसायटी के आंदोलन को अब भी सरकार अपनी बिसात पर प्यादे से ज्यादा नहीं मान रही है। यानी अन्ना हजारे का आंदोलन अभी संसदीय सत्ता या सरकार को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है या फिर अन्ना को सरकार अपने मुताबिक महत्व देकर संसदीय राजनीति की गडबडि़यों से आम आदमी का ध्यान बांट रही है और मौका पड़ने पर अपनी ताकत दिखा भी सकती है।

हो सकता है सरकार के जेहन में ऐसा ही कुछ हो लेकिन सरकार, सत्ता, संसदीय व्यवस्था या सिविल सोसायटी की सोच में चलेगी किसकी, यह संगठन, राजनीतिक दल या चुनावी राजनीति को नहीं बल्कि देश के नागरिकों को तय करना है। और पहली बार अन्ना हजारे के जरिये 61 बरस के संसदीय व्यवस्था से बाहर इन्हीं नागरिकों को एक मंच दिखायी दे रहा है। इसलिये इस बार सवाल चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाले आंदोलन का नहीं है जिसे लोहिया, जेपी से लेकर वीपी सिंह और अयोध्या के आसरे बीजेपी ने जीया। बल्कि इस बार रास्ता आजादी की तारीख 15 अगस्त पर भारी पड़ते 16 अगस्त का है। और अगर देश के नागरिकों ने तय कर लिया कि 15 अगस्त को लाल किले पर प्रधानमंत्री को झंडा फहराते देखने की जगह 16 अगस्त को जंतर-मंतर पर दूसरी आजादी की लडाई को लडने तिरंगा लेकर उतरेंगे। तो यह सत्ताधारियों के लिये खतरे की घंटी है।

7 comments:

Divyesh Dwivedi said...

jee sir bilakul intazar rahega magar dekhna ye bhi hoga ki baba ramdev ka andolan daba dene wali sayani sarkar anna hajare ko kitna kamayab hone deti hai?

ankit said...

और अगर देश के नागरिकों ने तय कर लिया कि 15 अगस्त को लाल किले पर प्रधानमंत्री को झंडा फहराते देखने की जगह 16 अगस्त को जंतर-मंतर पर दूसरी आजादी की लडाई को लडने तिरंगा लेकर उतरेंगे। तो यह सत्ताधारियों के लिये खतरे की घंटी है
Ab hawaein hi karengi Roshni ka faisla,
Jis diyen mein jaan hogi vo diya Jal jaega

16 august se ek nai aazadi ki ladai ladi jaegi..
pura desh anna ji ke sath utrega..

aur aap jaise kalam ke sache sipahi ko sallam .

Arun sathi said...

यही होगा...कुर्सी खाली करो की जनता आती है.

आशुतोष की कलम said...

जब तक आधे पेट रोटी भी मिलती रही इस जनता को असफल क्रांतियाँ ही होगी..
हमारे नस नस में स्वार्थ की भावना भर गयी है ..अन्ना और बाबा को अभी कई साल लग जायेंगे देशहित या समाजहित की भावना जगाने में..
सकारत्मक होते हुए हम भी यही उम्मीद रखते हैं की ये भ्रष्ट गठजोड़ टूटे..सामान्य हिंदुस्थानी की तरह हमारा सहयोग अन्ना और बाबा दोनों को है

NIVEDITA KHANDEKAR said...

Lokpal or no Lokpal, will the common man forgo his "little money for small comforts" before taking on the system? After all, Lokpal shoudn't just mean stringent punitive action against corrupt ministers, including the Prime Minister. It also necessarily means individuals' integrity.

आम आदमी said...

बेशक इंतज़ार १६ अगस्त का रहेगा लेकिन क्या होगा अगर सरकार अन्ना जी के साथ भी वही सलूक करे जो बाबा रामदेव के साथ किया था ! तब आम आदमी किसके पास जायेगा ? उस वक्त आम आदमी की आवाज़ कौन बुलंद करेगा ?

बाबा रामदेव पर लाठी चार्ज का आर्डर डाईरेक्ट पीएमओ से आया था !तीन चार दिन तक यह मामला मीडिया में रहा और फिर ठंडे बस्ते में चला गया! क्या होगा अगर इस बार भी मनमोहन सिंह ने अन्ना जी पर लाठीचार्ज का आर्डर दिया ? यह मामला भी एक दो हफ्तों में ठंडे बस्ते में चला जाएगा और अन्ना जी की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा !

उपरवाले से प्राथना करता हूँ की मेरे कहे हुए शब्द गलत साबित हों बट आफ्टर वाचिंग द ब्रुटल पोल्लिस क्रैकडाउन ऐेट रामलीला ग्राऊंड आई एम स्केप्टिक अबाउट दिस मूवमेंटस सक्सेस ! आई थिंक डेट गवर्नमेंट विल फोर्सफुल्ली ब्रेक थिस मूवमेंट !

JEEVAN KA SAFAR said...

AGAR DESH KA KKHAMOSH YUVA JAG JAY TO SANGARSH NAHI BA RAN HOGA AUR YE MAHA BHISHAN HOGA , ANNA HUM APKE SATHA HAI , HAME INTJAR HAI 16 AUGUST KA ,

ANSHUL SATYANWESHI