यह पहला मौका है जब सरकार भ्रष्टाचार की सफाई में जुटी है तो उसके सामने अपनी ही बनायी व्यवस्था के भ्रष्टाचार उभर रहे हैं। आर्थिक सुधार की जिस बिसात को कॉरपोरेट के आसरे मनमोहन सिंह ने बिछाया, अब वही कॉरपोरेट मनमोहन सिंह को यह कहने से नही कतरा रहा है कि विकास के किसी मुद्दे पर वह निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना हजारे, रामदेव, श्री श्री रविशंकर से लेकर आडवाणी की मुहिम ने सरकार को गवर्नेस से लेकर राजनीतिक तौर पर जिस तरह घेरा है, उससे बचने के लिये सरकार यह समझ नहीं पा रही है कि गवर्नेंस का रस्ता अगर उसकी अपनी बनायी अर्थव्यवस्था पर सवाल उठता है तो राजनीतिक रास्ता गवर्नेंस पर सवाल उठाता है। दरअसल महंगाई,घोटालागिरी और आंदोलन से दिखते जनाक्रोश ने सरकार के भीतर भी कई दरारे डाल दी हैं। इन परिस्थितियो को समझने के लिये जरा भ्रष्टाचार पर नकेल कसती सरकार की मुश्किलों को समझना जरुरी है। कालेधन को लेकर जैसे ही जांच के अधिकार डायरेक्टर आफ क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन यानी डीसीआई को दिये गये वैसे ही विदेशो के बैंक में जमा यूपी, हरिय़ाणा और केरल के सांसद का नाम सामने आया। मुंबई के उन उघोगपतियो का नाम सामने आया, जिनकी पहचान रियल इस्टेट से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनी के तौर पर है। और जिनके साथ सरकार ने इन्फ्रास्ट्रचर,बंदरगाह, खनन और पावर सेक्टर में मिलकर काम किया है। यानी यूपीए-1 के दौर में जो कंपनिया मनमोहन सिंह की चकाचौंध अर्थव्यवस्था को हवा दे रही थी वह यूपीए-2 में कालेधन के चक्कर में फंसती दिख रही है।
लेकिन जांच के दौरान की दौरान की फेहरिस्त चौकाने वाली इसलिये है क्योंकि जेनेवा के एचएसबीसी बैंक में जमा 800 करोड से ज्यादा की रकम हो या फ्रांस सरकार के सौंपे गये 700 बैंक अकाउंट, संयोग से फंस वही निजी कंपनियां रही हैं, जो यूपीए-1 के दौर में मनमोहन सरकार के अलग अलग मंत्रालयो की मोसट-फेवरेट रहे। और वित्त मंत्रालय में उस वक्त बैठे पी चिंदबरंम ने अभी के फंसने वाली सभी कंपनियो को क्लीन चीट दी हुई थी। सरकार की मुश्किल यह भी है कि जर्मन के अधिकारियो ने जिन 18 व्यक्तियों की सूची थमायी है और डायरेक्ट्रेट आप इंटरनेशनल टैक्ससेसन ने बीते दो बरस में जो 33784 करोड़ रुपया बटोरा है। साथ ही करीब 35 हजार करोड़ के कालेधन की आवाजाही का पता विदेशी बैको के जरीये लगाया है उनके तार कही ना कहीं देश के भीतर उन योजनाओं से जुड़े हैं, जिनके आसरे सरकार को इससे पहले लगता रहा कि उनकी नीतियों को अमल में लाने वाली कंपनियां मुनाफा जरुर बनाती है लेकिन इससे देश के भीतर विकास योजनाओ में तेजी भी आ रही है। लेकिन पिछले पांच महीने के दौरान जब से वित्त मंत्रालय के तहत जांच एंजेसियों ने विदेशी बैंको के खाते और ट्रांजेक्शन टटोलने शुरु किये तो संदिग्ध 9900 ट्राजेक्शन में से 7000 से ज्यादा ट्रांजेक्शन सरकार के आधा दर्जन मंत्रलयों की नीतियो को अमल में लाने से लेकर सरकार के साथ मिलकर काम करने वाली कंपनियो के है। यानी विकास का जो खांचा सरकार कारपोरेट और निजी सेक्टर के आसरे लगातार खींचती रही उससे इतनी ज्यादा कमाई निजी कंपनियो ने की कि उस पूंजी को छुपाने की जरुरत तक आ गई। सरकार के साथ मिलकर योजनाओ को अमली जामा पहनाते कॉरपोरेट-निजी कंपनियो की फेरहिस्त में एक दर्जन कंपनियो ने खुद को इसी दौर में बहुराष्ट्रीय भी बनाया और बहुराष्ट्रीय कंपनी होकर सरकारी योजनाओं को हड़पा भी। खास कर खनन, लोहा-स्टील,इन्फ्रस्ट्रचर, बंदरगाह और पावर सेक्टर में देश के भीतर काम हथियाने के लिये जो पैसा दिखाया गया वह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नाम पर हुआ। और जो काम अंजाम देने में लगे उसमें वही बहुरष्ट्रीय कंपनी देसी कंपनी के तौर पर काम करते हुये बैको से पैसा उठाने लगी। इसका असर यह हुआ कि कंपनियो ने कमोवेश हर क्षेत्र में सरकारी लाईसेंस लेकर अपनी ही बहुराष्ट्रीय कंपनी से अपनी ही देसी कंपनियों को बेचा। जिससे कालाधन सफेद भी हुआ और कालाधन नये रुप में बन भी गया। हवाला और मनी-लैंडरिंग मॉरीशस के रास्ते इतना ज्यादा आया कि अगर आज की तारीख में इस रास्ते को बंद कर दिया जाये तो शेयर बाजार का सेंसेक्स एक हजार से नीचे आ सकता है। करीब दो सौ बड़ी कंपनियों के शेयर मूल्य में 60 से 75 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। यानी अर्थव्यवस्ता की जो चकाचौंध मनमोहनइक्नामिक्स तले यूपीए-1 के दौर में देश के मध्यम तबके पर छायी रही और कांग्रेस उसी शहरी मिजाज में आम आदमी के साथ खड़े होने की बात कहती रही, वह यूपीए-2 में कैसे डगमगा रही है यह भी सरकार की अपनी जांच से ही सामने आ रहा है।
लेकिन मुश्किल सिर्फ इतनी भर नहीं है असल में सरकार अब चौकन्नी हुई है तो देश के भीतर के उन सारी योजनाओं का काम रुक गया है, जिन्हे हवाला और मनी-लैंडरिग के जरीये पूरा होना था। और अभी तक सरकार की प्रथमिकता भी योजनाओं को लेकर थी ना कि उसे पूरा करने वाली पूंजी को लेकर। लेकिन कालेधन और भ्रष्टाचार के सवाल ने सरकार को डिगाया तो अब पुराने सारे प्रोजेकट इस दौर में रुक गये। खासकर पावर सेक्टर और इन्फ्रास्ट्रक्चर। साठ से ज्यादा पावर प्लांट अधर में लटके है। पावर प्लांट के लिये कोयला चाहिये। कोयले पर सरकार का कब्जा है। और बिना पूंजी लिये सरकार कोयला बेचने को तैयार नहीं है। क्योंकि मुफ्त में कोयला देने का मतलब है, आने वाले दौर में एक और घोटाले की लकीर खींचना। पावर प्रोजेक्ट का लाइसेंस लेकर बैंठे निजी कंपनियों का संकट है कि वह किस ट्राजेक्शन के जरीये सरकार को पैसा अदा करें। इससे पहले बैक या मनी ट्राजेंक्शन पर सरकार की नदर नहीं थी तो कालाधन इसी रास्ते सफेद होता रहा। लेकिन अब वित्त मंत्रालय की एजेंसियो की पैनी नजर है तो इन्फ्रास्ट्रचर को लेकर भी देशभर में 162 प्रोजेक्ट के काम रुके हुये हैं। बंदरगाहों के आधुनिकीकरण से लेकर मालवाहक जहाजो की आवाजाही के मद्देजनर निजी कंपनियो को सारी योजनाये देने पर यूपीए-1 के दौर में सहमति भी बन चुकी थी। लेकिन अब इस दिशा में भी कोई हाथ डालना नहीं चाहता है क्योंकि निजी कंपनियो के ट्रांजेक्शन मंत्री-नौकरशाह होते हुये ही किसी प्रोजेक्ट तक पहुंचते रहे हैं। लेकिन घोटालो ने जब मंत्री से लेकर नौकरशहो और कारपोरेट के धुरंधरों तक को तिहाड़ पहुंचा दिया है तो सरकार के भीतर सारे काम रुक गये है। जिससे कारोपरेट घरानो के टर्न-ओवर पर भी असर दिखयी देने लग है। सरकार को गवर्नेंस का पाठ पढाने वाले विप्रो के अजीम प्रेमजी हो या गोदरेज के जमशायद गोदरेज, एक सच यह भी है कि अब के दौर में नौकरशाही और मंत्रियों ने कोई फाइल आगे बढाने से हाथ पीछे खींचे हैं तो विप्रो का टर्न ओवर 17.6 बिलियन डॉलर से घटकर 13 बिलियन डालर पर आया है और गोदरेज का 7.9 बिलियन डालर से कम होकर 6.8 बिलियन डॉलर पर। लेकिन इस पेरहिस्त में अंबानी भाइयों से लेकर रुइया और लक्ष्मी मित्तल से लेकर कुमार बिरला तक शामिल है।
लेकिन सरकार की मुशिकल यही नहीं थमती कि उसके सामने अब बडी चुनौती सबकुछ निजी हाथो में सौपनें के बाद निजी हाथों की कमाई को रोकने की है। सवाल है महंगाई के सवाल में आम आदमी को सरकार समझाये कैसे। बिजली, पानी, घर से लेकर सडक, शिक्षा, स्वास्थय तक को निजी सेक्टर के हवाले कर दिया गया है। जमीन की किमत से लेकर महंगे होते इलाज और शिक्षा तक पर उसकी चल नहीं रही। और तमाम क्षेत्रो में जब ईमानदारी की बात सरकार कर रही है निजी सेक्टर सफेद मुनाफे के लिये कीमते बढ़ाने का खेल अपने मुताबिक खेलना चाह रहे हैं। पेट्रोल डीजल, रसोई गैस इसके सबसे खतरनाक उदाहरण हैं। जहां निजी कंपनियां अपने मुनाफे के मुताबिक कीमत तय करने पर आमादा है और सरकार कुछ कर नहीं सकती क्योंकि उसने कानूनी रुप से पेट्रोल-डीजल और गैस को यह सोच कर निजी हाथों में बेच दिया कि कीमतो पर लगने वाला टैक्स तो उसी के खजाने में आयेगा। लेकिन सरकार कभी यह नहीं सोच पायी कि निजी कंपनियां मुनाफे के लिये कीमतें इतनी भी बढ़ा सकती है कि आम आदमी में सत्ता को लेकर आक्रोष बढता जाये और यह राजनीतिक आंदोलन की शक्ल लें लें। असल में यही पर सरकार की चल नहीं रही। क्योंकि अभी तक का रास्ता कॉरपोरेट,राजनेता,नौकरशाह और पावर ब्रोकर के नैक्सस का रहा है। लेकिन नया रास्ता भूमि,न्यापालिका,चुनाव और पुलिस सुधार की मांग करता है। जिसके लिये सत्ता में अर्थशस्त्री नहीं स्टेट्समैन चाहिये, जो कहीं नजर आता नहीं। इसीलिये यह परिस्थितियां सत्ता को चेता भी रही और विकल्प का सवाल भी खड़ा कर रही है।
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Tuesday, November 8, 2011
अपनी बनाई अर्थव्यस्था के चक्रव्यूह में सरकार
Posted by Punya Prasun Bajpai at 4:43 PM
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यूपीए सरकार
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6 comments:
बहुत अच्छा आलेख,पर प्रस्तुतीकरण नकारात्मक सोच हावी, हम पुरे विश्व की व्यवस्था और अपने लगातार सुधरने जीवन स्तर को नजरअंदाज नही कर सकते, शुरूआत स्वंय मीडियाजगत से ही कर सकते हैं, कहां था, आज कहां हैं क्या करता था आज क्या कर रहा हैं .......
सारगर्भित..
विचारनीय एवं गंभीर आलेख...
यूंपीए-१ ने पालपोस के जिस भास्मसुर को खड़ा किया वही आज सरकार को भस्म करने पर अड़ा हुआ है, और सरकार लाचार ...
नज़र रखिये साहेब.
प्रसूम जी आप यु पि ये की जो तस्वीर दिखाए है उससे जरुर कांग्रेस में फर्क पड़ेगा लेकिन इसमे भी दो चहरे है एक प्रधानमंत्री का तो दूसरा वित्तमंत्री ' मेरा मानना है वित्तमंत्री चाहते है की पीएमओ की कुर्शी उन्हें मिले क्योकि सरकार के संकट मोचन है और प्रधानमंत्री का कोई रोल नहीं है क्योकि महंगाई भ्रस्ताचार बेरोजगारी काला धन एसी बहुत सी समस्या है जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं लाचार और कमजोर प्रधानमंत्री को इस पद पर बने रहना सही नहीं है . उन्हें पीएमओ पर बने रहने का गद्दाफी जैसा ललक पड़ गै है , हमे लगता मीडिया का उनपर कोई जोर नहीं है .सिर्फ और सिर्फ सोनिया जी की बात का ही असर होता है .राजा ,कलमाड़ी , कनिमोज़ी , के गुरु मनमोहन सिंह जी है हिंदुस्तान की जनता को समज आ जायेगा .
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prasoon ji aap lekh padh kar sarkar k liye jo cheez sabse pahle maan main ayi vo hai"boya paid babool ka to aam kahan se khaye".Bageeche k maali (pradhanmantri ji) se kahin na kahin to galti hui hai.lekin kahte hain vipreet paristhitiyon main liye gaye kathor aur sarthk nirdyan aap ka bhavishya nirdharit karte hain sarkar k samne bhi lagbhag aisi hi paristhiti hai.Anna ji pecha nahi chorne wale aur bhrashtachar aur manhgayi dam todne ka naam nahi le rahi hain.mujhe lagata hai abki baar congress ki punch line "congress ka haat aam admi k sath" k bajye "All Is Well Hoga".
सरकार ने राहत दी है न..2 . 20 रूपये की.बहुत ज्यादा है न .
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