Friday, December 23, 2011

कैसे बिछी लोकपाल पर मठ्ठा डालने की सियासी बिसात

यह पहला मौका है जब सरकार ने किसी बिल को पेश करने से ज्यादा मशक्कत बिल पास न हो इस पर की। और अन्ना टीम को बात बात में पहले ही यह संकेत दे दिया गया कि अगर वाकई लोकपाल के मुद्दे में दम होगा तो आने वाले वक्त में अन्ना टीम का भी राजनीतिकरण होगा और उस वक्त कांग्रेस राजनीतिक तौर पर इस लड़ाई को लड़ लेगी। दरअसल, लोकसभा में लोकपाल के मसौदे को पेश करने से पहले सरकार और कांग्रेस के बीच असल मशक्कत इसके राजनीतिक लाभ को लेकर हुई। तीन स्तर पर समूची बिसात को बिछाया गया। पहले स्तर पर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना टीम को टोटला की वह कहां किस मुद्दे पर कितना झुक सकती है। दूसरे स्तर पर बीजेपी का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों की नब्ज को सरकार ने पकड़ा और तीसरे स्तर पर अन्ना के आंदोलन से आने वाले पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की राजनीति पर पड़ने वाले असर को परखा गया। इसको बेहद महीन तरीके से इस अंजाम तक ले जाया गया जिससे सरकार के हाथ में लोकपाल की डोर भी हो और यह नजर भी ना आये कि अगर लोकपाल अटका हुआ है तो उसकी डोर भी सरकार ने ही थाम रखी है।

यह सिलसिला जिस तरह से बीते पांच दिनो में अंजाम तक पहुंचा वह अपने आप में सियासत का अनूठा पाठ है। क्योंकि कानून मंत्री सलमान खुर्शीद लगातार अन्ना टीम के संपर्क में यह कहते हुये रहे कि सरकार की मंशा मजबूत लोकपाल बनाने की है,लेकिन अन्ना टीम को ही यह सुझाव देने होंगे कि संसद के भीतर कैसे सहमति बने और सीबीआई सरीखे मुद्दे पर अगर सरकार की राय अलग है तो उसका कोई फार्मूला अन्ना टीम को बताना होगा। 34 मुद्दों को लेकर सलमान खुर्शीद के साथ चली चर्चा में अन्ना टीम के हर तरीके से रास्ता सुझाया और सलमान खुर्शीद यह संकेत भी देते रहे कि रास्ता निकल रहा है। लेकिन चर्चा में ब्रेक एक ऐसे मोड़ पर आया जब सलमान खुर्शीद ने लोकपाल के सवाल को राजनीतिक लाभ-हानि के आइने में देखना और बताना शुरु किया। और महाराष्ट्र कारपोरेशन चुनाव में शरद पवार की सफलता का उदाहऱण देते हुये सलमान खुर्शीद ने कहा कि जब चुनाव में हार जीत पर भ्रष्ट्रचार का मुद्दा या अन्ना आंदोलन महाराष्ट्र में ही असर नहीं डाल पाया तो फिर सरकार अन्ना आंदोलन के सामने क्यों झुके। और अगर लोकपाल को लेकर आंदोलन में इतनी ताकत हो जायेगी तो अन्ना टीम का भी राजनीतिककरण हो जायेगा। तो लड़ाई उसी वक्त लड़ लेंगे। और यह स्थिति तीन दिन पहले ही आयी और उसके 24 घंटे बाद ही सोनिया गांधी ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में अन्ना हजारे को चुनौती दे दी और पांच राज्यों में काग्रेस की चुनावी जीत का मंत्र भी कांग्रेसियो में फूंक दिया। वहीं इसी दौर में कांग्रेस ने मुलायम सिंह यादव की नब्ज को पकड़ा और कांग्रेस के दो कद्दावर नेताओं ने मुलायम को यही समझाया कि अगर मायावती भी सरकार के लोकपाल के खिलाफ है और समाजवादी पार्टी अन्ना के लोकपाल के हक में है तो फिर यूपी चुनाव में मुलायम के हाथ में आयेगा क्या।

यानी एक तरफ कांग्रेस ने अन्ना आंदोलन से बढ़ते बीजेपी के कद के संकट को बताया तो दूसरी तरफ लोकपाल के सवाल पर मायावती का सामने मुलायम को कोई लाभ ना मिलने की स्थिति पैदा की । इसी जोड़-तोड़ में अल्पसंख्यक का दांव मुलायम सिह यादव के सामने रखा गया । यानी यूपी के राजनीतिक समीकरण में मुस्लिम कार्ड को ही अगर लोकपाल से जोड दिया जाये तो लोकपाल का रास्ता भी रुक सकता है और मायावती पर मुलायम का दांव भी भारी पड़ सकता है। जबकि इसी के समानांतर राजनीतिक तौर पर कांग्रेस ने लगातार सरकार को भी इस सच से रुबरु कराया कि जब तक लोकपाल के सवाल को वोट बैंक की सियासत से नहीं जोड़ा गया और जब तक लोकपाल पर कोई भी कदम उठाने के बाद राजनीतिक लाभ कांग्रेस को नहीं मिले तब तक लोकपाल पर मठ्ठा डालना ही होगा। चूंकि राजनीतिक तौर पर लाभ उठाने या वोट बैंक को रिझाने के लिये ही सारे दल लोकपाल का खेल खेल रहे हैं तो ऐसे में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन के साथ ही सरकार को भी चलना होगा । और इसी के बाद उन मुद्दो पर ही मठ्टा डालने की दिशा में अभिषेक मनु सिंघवी स्टैंडिंग कमेटी के जरीये लगे जिसपर अन्ना का अनशन तुड़वाते वक्त संसद में सरकार की ही पहल पर सहमति बनी थी। यानी जिस अन्ना हजारे को लेकर अभी तक सरकार से लेकर सोनिया गांधी का रवैया फुसलाने-बहलाने वाला था, उसी अन्ना से उन्हीं के मुद्दो पर टकराव का रास्ता राजनीतिक बिसात के तौर पर अख्तियार किया गया। जिससे लोकपाल को लेकर आगे यह ना लगे कि टकराव बीजेपी से है।

यानी जब समझौते की स्थिति भी आये तो गैर राजनीतक तौर पर काम कर रहे अन्ना हजारे ही नजर आयें और बीजेपी राजनीतिक संघर्ष का लाभ उठाने के घेरे से बाहर हो जाये । इस बिसात का पहला राउंड लोकपाल पेश करने के साथ ही सरकार के पक्ष में रहा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता । लेकिन सरकार की असल परीक्षा 27 दिसंबर से शुरु होगी। क्योंकि तब संसद के सामानांतर सड़क पर जनसंसद का भी सवाल होगा । और अब सरकार-कांग्रेस के धुरंधर अपनी राजनीतक बिसात पर इसी मशक्कत में लगे है कि कैसे संसद के सामने सड़क के आंदोलन को हवा का झोंका भर बना दिया जाये।

8 comments:

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) said...


सडक से ससद तक और संसद से सड़क तक का मार्ग का गेट है - चुनाव


ये चुनाव ही तय करता है कि कौन संसद जाये और कौन सड़क पे रहे और इस गेट का चौकीदार है जनता ।
ये चौकीदार देख तो सकता है पर न बोल सकता है और न ही चल सकता है न ही इसके पास लाठी है और न ही ये सीटी बजा सकता है ।

जैसे 121 करोड की जनता मे 11 करोड ही सरकार चुनती है और 110 करोड को गर्व है भारतीय होने पे और नेतओ को चुनकर अपना वोट बेकार नही करना चाहते है और अनेकता के कारण
इधर उधर देखा करते है ।

क्योकि ये 11 करोड ही वोट बैक है क्योकि ये ही सरकार तय करता है |

तो क्या कोई ऎसा सिस्टम है कि कम से कम पप्पू पास हो जाये 60 नही तो 33 ही सही पर पास हो जाये ।

चौकीदार अगर सही देखने लगा और रोकने और टोकने की ताकत आ गयी तो चोर कभी भी लोकत्रंत के मन्दिर मे जा कर उस के गहने नही चुरा पायेगा ।

कुछ लोग 3 साल से पत्थर (समस्या )रगड रगड के आग पैदा कर रहे थे और कह रहे थे कि ये आग आप की उर्जा के रुप मे काम करेगा ।

अंग्रेजी मे एक कहावत है कि line को बिना छुये छोटी करने के लिये क्या उपाय है । बहुत से लोग जानते है कि अन्ना का आना और कुछ मुद्दे का पीछे होना । क्या एक इतेफाक है , क्या संसद की बढी तारीख और उसके बाद अन्ना का अनसन भी उनही तारीखों तक क्या है ।

खैर आम के पेड गिनने की जरुरत नही बस चौकीदार इतना ज्ञान वाला हो जाये कि वो चीजे समझ ले ,देख ले , जान ले , बोल सके ,

क्योकि संघर्ष अभी बाकी है ...........

संतोष त्रिवेदी said...

इस घुमाव-फिराव को जनता देख-समझ रही है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हमारे इस लोकतंत्र का दुखद पहलू यह है कि इस देश का भाग्य निर्धारित करने का जिम्मा लालू, मुलायम, करूणानिधि, मायावती, राजा, चिदंबरम और पंवार जैसे लोगो और खासकर कौंग्रेस के हिस्से आया ! जो यह सोचते है कि भारत के नागरिक बेवकूफ है ! दुर्भाग्यबश इसमें भी काफी हद तक सच्चाई है कि वोट का इस्तेमाल करने वाला एक बहुत बड़ा तबका वाकई बेवकूफ है! यह आज वक्त की एक अहम् मांग थी कि यहाँ की जनता एक सुर में अपनी आवाज उठाये, और अन्ना ने इसके लिए अवसर प्रदान किया था! मगर यहाँ के अनेक वोटरों को तो सिर्फ लॉलीपॉप खाने का ही शौक है! सब जानते है कि स्वामी अग्निवेश एपिसोड की ही भांति यह लालू-मुलायम प्रकरण भी एक फूट डालो और राज करो वाली नीति का ही हिस्सा है, फिर भी पूरा देश एक सुर में बोलने को राजी नहीं ! यदि ये तथाकथित अल्पसंख्यकों के शुभचिंतक वाकई उनके प्रति इतने ही चिंतावान थे, तो सिर्फ लोकपाल में ही आरक्षण की मांग क्यों ? क्यों नहीं संसद और विधानसभाओं में भी अल्पसंख्यकों के लिए ५० प्रतिशत सीटे आरक्षित करने की मांग ये उठाते है ? अगर एक बार संसद और विधानसभाओं में ५० प्रतिशत आरक्षण और ३० प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए तुरंत व्यवस्था करने की मांग जोर-शोरों से उठे तो फिर देखिये इन अल्पसंख्यकों के चेह्तों के असली चेहरे ! मगर अफ़सोस कि समाज तो इन्होने इस तरह चतुराई से पहले ही बाँट के रख छोड़ा है कि आमजन कुछ नहीं कर सकता !

सतीश कुमार चौहान said...

अन्‍ना जिस मीडिया की सीढी से उचाई पाने की जुगत में हैं, बेहतर होता उसके सुधार की बाते करते क्‍योकी , सिर्फ मीडिया ही काबिल और ईमानदार हो जाऐ तो लोकपाल से बेहतर काम हो सकता हैं,देश में आल‍पिन उठाने से लेकर खजाना लुटने तकसबके लिऐ तो कानून हैं,ये सबको समझ आ रहा हैं कि सिविल सोसाइटी किसी भी परह तान नही सकती जब तक कांग्रेस सत्‍ता पर हैं ,दरअसल यह उसकी दुकानदारी हैं और सवा सौ करोड में कुछ लाख लोगो का समर्थन जो मिल रहा हैं वे सब सब भी गैर काग्रेसी मुहिम का हिस्‍सा हैं, न्‍यायलय का कहना ठीक हैं कि जब बात संसद में हैं तो सडक पर कैसी दुकानदारी, या फिर संवैधान बलने की ही बात कर लो,क्‍या मीडिया की तमाम पौरूषता भी अन्‍ना कि चौखट पर घूठने टेके नही बैठी हैं ?

कविता रावत said...

mathha dalne walon ki koi kami nahi...
abhi to janta uth rahi hai jaagi kahan hai!!
bahut badiya jagruk post..aabhar!

ashok kumar singh said...

its the tragedy with the common man... he is the king maker, but in reality he is considered a comodity to be used in the elections for votes,by the politicians..

durgesh nandan said...

kindly check this song ..........
( kadam 2 badhaye ja mp4) on you tube uploaded by sonia nigam.

durgesh nandan said...

क्रोध की अग्नि में
तपती कसती प्रत्यंचा को
शांत रहने की
सलाह देता
आदर्श ....
... ... करता प्रार्थना
कपि राज से
समस्या के निराकरण को !

काल की समस्या को
सेतु से बांधते
सुशिक्षित युवा कपि

होता प्रशस्त
दशानन पर
विजय का मार्ग !!!

दुर्गेश /
27-12