Friday, February 3, 2012

लाइसेंस रद्द हो सकता है सिस्टम नहीं

साढ़े चार बरस पहले ट्राई के जिन नियमों की अनदेखी मनमोहन सरकार ने थी, साढे चार साल बाद वही मनमोहन सरकार ट्राई से उन्हीं नियमों को बनवाने की बात कह रही है। अंतर सिर्फ इतना है कि तब ए राजा मंत्री थे और आज कपिल सिब्बल हैं। तब ए राजा ने बतौर संचार मंत्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर यह जानकारी दी थी कि वह ट्राई के नियमों को नहीं मान रहे और आज कपिल सिब्बल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर मीडिया के सामने आये तो ट्राई के जरीये अगले 10 दिनो में उन्हीं नियमों को बनवाने की बात कह गये जो पहले से ही संचार मंत्रालय के दफ्तर में पड़े पड़े धूल खा रही है।

असल में 28 अगस्त 2007 में ही भारतीय दूरसंचार नियमन प्राधिकरण यानी ट्राई ने स्पेक्ट्रम लाइसेंस की कीमतों का निर्धारण करने के लिये प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया को अपनाने का आग्रह संचार मंत्रालय से किया था। और इस बारे में 32 पेज की एक व्याख्या करती हुई रिपोर्ट भी तब के संचार मंत्री ए राजा को सौपी थी। लेकिन संचार मंत्रालय ने बिना देर किये छह घंटों के भीतर ही 28 अगस्त 2007 को ही ट्राई के आग्रह को खारिज करते हुये 2001 की बनाई नीति पहले आओ-पहले पाओ पर चल पड़े। दरअसल ऐसा भी नही है कि उस वक्त संचार मंत्रालय में बैठे किसी भी अधिकारी ने ए राजा के इस कदम का विरोध नहीं किया और ऐसा भी नहीं है कि पीएमओ इन सारी बातों से एकदम दूर था। बकायदा दूरसंचार विभाग के सचिव और वित्तीय मामलों के सदस्य के विरोध करने पर दोनो की फाइल पीएमओ भी गई और एक को सेवानिवृत होना पड़ा तो दूसरे को इस्तीफा ही देना पड़ा। यह सब दिसंबर 2007 में हुआ और इसकी आंच कहीं संचार मंत्रालय में ना सिमटी रहे, इसके लिये राजा ने प्रधानमंत्री को नयी टेलीकॉम नीति के मद्देनजर पत्र भी लिखा और दिल्ली के विज्ञान भवन में एक भव्य कार्यक्रम भी किया।

ऐसा भी नहीं है कि जो हो रहा था वह सिर्फ संचार मंत्रालय और पीएमओ की जानकारी में था। बकायदा उस वक्त के कानून मंत्री हंसराज भारद्राज के मंत्रालय से भी यह नोट पहुंचा था कि जिन्हें लाइसेंस दिया जा रहा है उनके गुण-दोष को परखना जरुरी है साथ ही राजस्व का घाटा तो नहीं हो रहा इसे भी देखना जरुरी है। लेकिन राजस्व के सवाल को उस वक्त के वित्त मंत्री पी चिदबरंम की उस टिप्पणी तले दबा दिया गया कि जिन्होंने राजस्व की फिक्र के बदले 2001 के खुले नियम पहले आओ-पहले पाओ को ही आधार बनाने पर ए राजा का साथ लिया। यानी कानून मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और पीएमओ की नजरों तले संचार मंत्रालय काम कर रहा था। इसलिये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब सवाल यह नहीं है कि सिर्फ 9 हजार करोड़ में वैसी कंपनियों को लाइसेंस बांट दिये गये जो टेलिकाम के क्षेत्र में सिर्फ स्पेक्ट्रम लाइसेंस ले कर मुनाफा बनाने के लिये ही आये। असल में सवाल यह है कि विकास के जिन नियमों को पीएमओ ने बनाया और यूपीए-1 के दौरान हर मंत्रालय ने उसे अपनाया वह सिर्फ मुनाफा बनाने की विस्तारवादी नीति का ही चेहरा है। क्योंकि 15 नंवबर 2008 को जब सीवीसी ने संचार मंत्री को नोटिस भेजा और पीएमओ को इससे अवगत कराया तो पीएमओ के एक डायरेक्टर ने सीवीसी को यह कहकर चेताया कि वह सिर्फ वॉच-डाग की भूमिका निभाये। और दिसबंर 2008 में जब मंत्रालयों के कामकाज को लेकर प्रधानमंत्री ग्रेड दे रहे थे तो उसमें दो ही काम का खासतौर से जिक्र उपलब्धियों के साथ किया गया जिसमें एक टेलीकॉम था तो दूसरा खनन। तीसरे नंबर पर पावर यानी ऊर्जा को रखा गया। और संयोग देखिये टेलीकॉम का लाइसेंस पाने वालो में रियल इस्टेट से लेकर ग्लैमर की दुनिया से जुडे धंधेबाज जुडे तो खनन का लाइसेंस पाने वालो में गीत-संगीत का कैसट बेचने वालो से लेकर गंजी-जांगिया और कार बनाने वाली कंपनियां जुड़ गयीं। इतना ही नहीं न्यूनतम जरुरतो पर काम कर रहे मंत्रालयों ने भी जिन निजी हाथों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने का पानी से लेकर किसानी के लिये बीज और खाद दिये, संयोग से उस फेरहिस्त में भी लाइसेंस वैसे हाथो में सिमटा जिनका इन तमाम क्षेत्रो से कभी कोई जुड़ाव नहीं रहा। लेकिन पीएमओ की निगाह में उस वक्त वही मंत्री महान था जो अपने मंत्रालयों के जरीये निजी क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा दुकान खुलवा पाने में सक्षम हुआ। और इसकी एवज में ज्यदा से ज्याद पैसा बाजार में आया। यानी विकास की थ्योरी को बाजारवाद के जरीये फैलाने में मंत्रालयों की भूमिका ही बिचौलिये वाली होती चली गई।

दरअसल, बतौर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस नजरीये की मार्केटिंग को करना अगर देश के मंत्रियो को उनके कामकाज के पैमाने को नापने के डर से सिखाया या कहें अपनाने की दिशा में बढ़ाया तो समझना यह भी होगा कि खुद प्रधानमंत्री ने भी अपनी सफलता का रास्ता इसी लीक पर चल कर पकड़ा। यूपीए-1 के दौर में 12 बार अमेरिकी यात्रा पर गये मनमोहन सिंह की काबिलियत को अमेरिका में बताने के लिये कोई भारतीय प्रतिनिधिमंडल या भारत की चकाचौंध काम नहीं कर रही थी बल्कि अमेरिकी लाबिंग कंपनी बार्बर ग्रिफ्रिथ एंड रोजर्स { बीजीआर } काम कर रही थी। 2005 में इस कंपनी को करीब साढ़े तीन करोड़ सालाना दिये जाते थे। और देश के भीतर प्रधानमंत्री की हर अमेरिकी यात्रा के बाद जो उपलब्धि गिनायी हतायी जाती रही, उसके पीछे बीजीआर की लांबिग ही काम करती रही। यहां तक की 26/11 मुद्दे पर प्रस्ताव के लिये सीनेट और प्रतिनिधि सभा से संपर्क भी इसी बीजीआऱ कंपनी ने किया जिसके बाद अमेरिकी संसद से प्रस्ताव आया और जब ओबामा राष्ट्रपति बने तो भी उस वक्त भारत के राजदूत रोनेन सेन की ओबामा से मुलाकात कराने के लिये सारी मशक्कत लाबिंग कंपनी बार्बर ग्रिफिथ एंड रोजर्स ने ही किया।

जाहिर है इसी तरीके को भारत में भी मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद मंत्रालयों में अपनाया गया। और हकीकत यह है कि हर मंत्री के पास उसके मंत्रालय में कॉरपोरेट या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये लाबिंग करने के लिये बकायदा लॉबिंग कंपनियों की सूची रहती है। फिलहाल इस फेहरिस्त में 124 लाबिंग कंपनियां काम कर रहीं हैं। जिसमें 38 लॉबिंग कंपनियो को तब ब्लैक-लिस्ट किया गया जब राडिया टेप और दस्तावेजो ने 2009 में यूपीए-2 के दौर में ए राजा को दुबारा टेलीकॉम मंत्री बनाने के पीछे के कॉरपोरेट का खेल को देश के सामने आया। इसलिये सवाल 11 निजी कंपनियों के 122 लाइसेंस रद्द करने के बाद का है। जहां प्रतिस्पर्धा के जरीये भी आपसी खेल से देश के राजस्व को चूना लगेगा और विकास की बाजारवादी दौड़ में कोई ऐसा खिलाड़ी सामने आ नहीं पायेगा। और यही लाइसेंस ज्यादा बोली के साथ या तो इन्हीं कंपनियों के पास चले जाएंगे या फिर 3 जी और 4 जी की विकसित टेक्नालाजी का आईना दिखाकर 2जी की बोली पहले से भी कम में लगेगी। उस वक्त कोई कैसे कहेगा कि घोटाला हुआ।

4 comments:

AMBRISH MISRA ( अम्बरीष मिश्रा ) said...

Sach !

Ek baar phir cmpnyo ko smjhuta krna hoga systm se,





to kya systm unhi chalata rhega . . .


Aur kb tk . . . .


Kya bharat ma ke pas aur koi swmi hai jo har roj uski jholi bharne ko soche. . . . . . .



To kya gnga mata me dale gyee gndgi ko saaf kiya jayega us systm ko nhi socha jayega jo ise gnda krta ho.



Kuch bhi ho pr phli baar logon ne safai ke baare me sarthak kadam to uthaya hai. . . . . . . .

सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी कॉरपोरेट या बहुराष्ट्रीय कंपनियों किस कदर देश को लपेट रही हैं इसका नमूना हैं काले बैग और टाई पहनने वाला हर कोई अब शक के दायरे में हैं

Brajesh said...

Prasoonji,

Main kai dino se aapke blog ko visit kar raha tha ki kab aap is topic apna article dalenge. Aaaj mila, aur aaj hi hamare grih mantri ko nichli adalat se thodi rahat mili.

Mujhe ek bahot hi simple si baat nahi samajh me nahi aati ki ek aadmi jisko sab galat bata rahe hain, aur wo jail me bhi hai, par kya wo itna powerful tha ki kya cabinet me baithe itne anubhwi aur gyani log uski mansa ko nahi samajh sake? Kya itne sare so called academically brilliant babulog sirf apne mantri ji ki khidmatgari me lage rahte hain? Kya kisi desh ka PM sirf papers sign karne ke liye baitha hai. Kya uska param kartwya desh ke prati nahi hai. Mana ki wo nominated PM hai, par jis din usne PM pad ka sapath liya kya wo usdin hi pure desh ka nahi ho gaya? Kya aapki imandari sirf itni bhar hai ki apne upar koi dag nahi lage den, bhale desh ka nuksan ho jaye. Dikkar hai aisi imandari par.

Aai 2G to ek aisa case hai jo hamare system me kitni kamiyan hain usko ujagar karta hai, ki kaise ek aadmi pure system ka mazak bana kar desh ko itna bada nuksan pahocha sakta hai. Bade bade imandar/beiman/gyani/anpadh neta ya babu ek galat kam ko rok nahi sakte.

Grih mantri ya PM ka 2G case me koi jimmedari nahi banti? Jab ek Raja sabke aakhon ke samne itna bada loot macha sakta hai to is baat ki kya guarantee hai ki koi ek aur Raja desh ke aur bhi important resources yuhi muft me bech de. Kal koi raja sarikha defence minister ya foreign minister ya home minister aa jaye to ho gaya desh ka bantadhar.

Samay aa gaya hai ki media, nagrik aur sare padhe likhe aur desh premi log ye sochen ki kaise is loot system ko roka jaye.

Jis tarah 2G licence ko supreme court radd kar sakta hai...usi tarah hum bharat ke log in netaon ko radd kar sakte hain. Is gahri sacchai ko pata nahi kab hum log samajh payenge. Jab tak is desh ka har nagrik ek ek vote ka value nahi samjhega, tab tak is desh me rajaon ki bharmar lagi rahegi. Jaruri hai sabke liye must-n-must education jo logon ko ek jimmedar nagrik banati ho na ki kitabi kida ya opportunist. Aur jaruri hai is puri sadi gali system ko badlne ki jisme nagrik, media, samaj sevi, neta, vaivashai, majdoor aur kisan sabki bhagidar ho aur sabse upar ho Desh-Prem.

आम आदमी said...

scam हर डिपार्टमेंट में हैं और 2G से कई गुना बड़े भी हैं पर कभी सामने नहीं आ पाते ! असली scam तो गांवों में होते हैं, हैण्ड-पम्प से लेकर बिजली के खम्बे लगाने तक, मिट्टी के तेल से लेकर 2 जून की रोटी देने तक हर चीज़ में धाँधली है ! ऐसे बात भी नहीं है कि यह बात किसी को पता नहीं, पता सब को है लेकिन कोई कुछ करता नहीं या ऐसा कहें कि आम आदमी कुछ कर नहीं पाता! भारत के किसी भी शहर के 50 Km के दाईरे से बहार जाकर किसी भी पड़े-लिखे युवक से पूछिये कि उसके इलाके में चल क्या रहा है, वह आपको चंद मिनटों में अपने इलाके के नेताओं और नौकरशाहों के सारे कारनामें बता देगा लेकिन सब कुछ पाता होने के बावजूद वह युवा उन लोगों के खिलाफ कभी आवाज़ नहीं उठता क्यूंकि जब पानी पीने के लिए रोज़ कुआँ खोदना पड़े तो ऐसे में शक्तिशाली नेताओं से लड़ा कैसे जाये! इस ही बात का फ़ायदा उठाकर नेतालोग और नौकरशाह बार बार घपला करते रहे हैं और करते रहेंगे! इस देश में सैकड़ों घोटाले हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे!

जिस देश में कुशल शासन से ज्यादा त्व्जोह शासन करने को दिजाये, जिस देश का प्रधानमंत्री coalition dharm के नाम पर देश को लुटने दिये जाये, जिस देश में मंत्री प्रधानमंत्री कि एक ना सुने और प्रधानमंत्री उस पर action तक ना लेपाए उस देश में भ्रष्टाचार मिट जायेगा, ऐसा सोचना भी पाप है !!