Tuesday, February 21, 2012

जल्दी में क्यों है मनमोहन सिंह ?

राहुल गांधी जिस तेजी से चुनाव प्रचार के जरिए यूपी को नाप रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा तेजी से मनमोहन सिंह इस वक्त आर्थिक सुधार के रास्ते पर चल निकले हैं। राहुल के निशाने पर यूपी का पिछड़ापन और विकास का नारा है, तो मनमोहन सिंह का रास्ता पहली बार हर मंत्रालय के कामकाज में तेजी लाने के लिये सीधे निर्देश देने में लगा है। राहुल गांधी के सामने यूपी में संकट अगर काग्रेस के संगठन का ना होना है तो मनमोहन सिंह के सामने विकास दर सात फीसदी से नीचे जाने का है। हालांकि राहुल गांधी के सामने परिणाम की तारीख 6 मार्च तय है, लेकिन मनमोहन सिंह के सामने कोई निश्चित तारीख नहीं है जहां वह ठहरकर कह सकें कि उनका काम पूरा हुआ और देश के सामने जो परिणाम वह देना चाहते थे वह आ गया। लेकिन इस दौर में पीएमओ कितना सक्रिय है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सीमेंट फर्मो को सर्टिफिकेट देने से लेकर कोयला उगाही तक के निर्देश पीएमओ ही दे रहा है।

पावर प्लांट, खनन, बंदरगाह, सडक से लेकर फॉर्मा सेक्टर और तेल गैस मंत्रालय तक को पीएमओ यह बता रहा है कि अगले तीन महीनों में कैसी रूपरेखा उसे बनानी है जिससे कारपोरेट या निजी क्षेत्र के निवेश में कोई रुकावट ना आये। इतना ही नहीं देश के इन्फ्रास्‍टक्‍चर के दायरे में हर उस परियोजना को भी कैसे लाया जाये जिससे रुकी हुई योजनायें रफ्तार भी पकड़ सकें और अंतराष्‍ट्रीय तौर पर अब यह संकेत भी ना जाये कि स्पेक्ट्रम घोटाले के उलझे तार में नौकरशाही कोई काम कर नहीं रही है। असल में सरकार के नीतिगत फैसलों के बावजूद बीते डेढ़ बरस से जिस तरह हर मंत्रालय से कोई फाइल आगे बढ नहीं रही कारपोरेट और निजी कंपनियो की किसी भी मंत्रालय में किसी भी फाईल पर नौकरशाह चिडि़या बैठाने से कतरा रहे हैं और मंत्री को यह भरोसा नहीं है कि नौकरशाह के नियम-कायदों पर हरी झंडी दिये बगैर वह कैसे किसी योजना को हरी झंडी दे दे।


इससे आहत मनमोहन सिंह ने अब सीधे कमोवेश हर उस मंत्रालय का काम अपने हाथ में ले लिया है जहां फाइल आगे बढ़ ही नहीं रही थी। इस वक्त देश में दो दर्जन से ज्यादा पावर प्लांट ऐसे है जिन्हें कोयला मिलने लगे तो वह अगले छह महीनों में बिजली पैदा करने की स्थिति में आ सकते हैं। लेकिन कोल इंडिया कोई निर्णय ले नहीं रहा। तो पीएमओ कोयला मंत्रालय के सचिव को पत्र लिखकर निर्देश दे रहा है कि जिन विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर देश में पावर प्लांट का काम ठप पड़ा है उन्हें तुरंत कोयला उपल्बध कराने के लिये विस्तार योजना फौरन बने और अगर जरूरी हो तो कोयला आयात किया जाये। इस तरह के निर्देश कमोबेश हर मंत्रालय के सचिव के पास आ चुके हैं। आलम तो यह है कि सीमेंट बनाने वाली कंपनियों के सर्टिफिकेट के मद्देनजर भी कारपोरेट अफेयर मंत्रालय के पास यह कहकर चिट्टी भेजी गई कि वह अपनी राय दें कि कौन सही है कौन गडबड़ी कर रहा है।

पीएमओ काम किस तेजी से करना चाहते है इसका अंदाजा इससे भी लग सकता है कि ऐसा ही पत्र एसआईएफओ और सीसीआई यानी सीरियस फ्रॉड इंवेस्टिगेशन ऑफिस और कंपीटिशन कमीशन ऑफ इंडिया को भी भेजा गया। लेकिन पीएमओ के कामकाज की इस तेजी को सिर्फ पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था को ठीक करने या फिर विकास दर को 8 फीसदी के पार पहुंचाने भर से देखना भी भूल होगी, क्योंकि जिन मंत्रालयों में अटकी फाइलो को निपटाने के लिये पीएमओ सक्रिय है उन योजनाओं में नब्बे फीसदी ऐसी है जो किसी ना किसी रूप में बहुराष्ट्रीय कंपनियो के मुनाफा कमाने को रोके हुये है. और अमेरिका सरीखे देश का रोजगार तक उन अटकी योजनाओं से अटका पड़ा है। मसलन मध्यप्रदेश के सिंगरौली में अगर पांच-पांच करोड़ रुपये खर्च कर भी चार पावर प्लांट कोयला ना मिलने से रुके हुये हैं तो रिलांयस के अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट को इसलिये हरी झंडी मिली है क्योंकि 40 हजार करोड के इस प्लांट में 1700 करोड रुपये एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ अमेरिका का फंसा हुआ है।

अमेरिकी कंपनी बूसायरस रिलांयस के इस प्लांट को सारी मशीने बेच रही है। जिससे हजार से ज्यादा अमेरिकियों को रोजगार मिल रहा है। अमेरिकियों के बेरोजगारी का असर यह है कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण एनजीओ ग्रीनपीस ने जब सिगरौली के ग्रीन बैल्ट को लेकर पावर प्लांट पर अंगुली उठायी और वहां के कोयले में सल्फर की मात्रा ज्यादा होने के तथ्यों को सामने रखा तो पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने काम रुकवा दिया, लेकिन अमेरिका में जब एक्सोर्ट-इंपोर्ट बैक और बूसायरस केपनी ने अपनी लॉबिंग ओबामा तक यह कहकर कि इससे अमेरिका में रोजगार भी रुकेगें तो दिल्ली से प्लांट का काम शुरू करवाने में देर नहीं लगी और ना सिर्फ प्लांट में काम शुरु हुआ बल्कि रिलांयस के कोयला खादान भी चलने लगे। दरअसल इस वक्त मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड और उड़ीसा में स्टील फैक्‍टरी से लेकर पावर प्लांट और खनन से लेकर सड़क-बदरगाह तक के इन्फ्रस्‍टक्‍चर से जुड़े 90 से ज्यादा योजनाओं के पीछे निवेश करने वाली कंपनियां या बैक ना सिर्फ बहुराष्ट्रीय हैं बल्कि आलम यह भी है उन इलाकों में अब चीन से लेकर जापान तक मजदूर भी काम कर रहे हैं। और यह योजनायें रुके नहीं इसके लिये खासतौर से हर उस मंत्रालय को निर्देश हैं जिसके दायरे में योजनायें आ रही हैं।

यानी देश में बनती योजनायें कैसे भारत को सिर्फ बाजार मान रही है और इसी बाजार के आसरे कैसे भारत अपने विकास दर की छलांग को देख रहा है इसका सबसे अद्भुत नजरा बोकारो के करीब नक्सल प्रभावित क्षेत्र चंदनक्यारी में स्टील प्लाट के कामकाज को देखकर भी समझा जा सकता है. यहां साहूकार की भूमिका में अमेरिका है, विशेषज्ञ की भूमिका में ऑस्ट्रेलियाई आफिसरो की जमात है, और माल सप्लाई से लेकर कामगारों की भूमिका में चीन है। यहां आदिवासियों के बीच चीनी मजदूर पुलिस की खास सुरक्षा में काम करते हैं और जमीन गंवा चुके ग्रामीण आदिवासी विदेशी कामगारों की सेवा करते हैं। ऐसे में यह सवाल वाकई अबूझ है कि जिन विकास योजनाओं में तेजी लाने की जल्दबाजी में पीएमओ है उसकी वजह है क्या। क्योंकि यूपी के चुनाव परिणाम सिर्फ राहुल गांधी को प्रभावित करेंगे ऐसा भी नहीं है। जीत-हार दोनों ही परिस्थितियों की आंच केन्द्र सरकार तक भी पहुंचेगी इससे इंकार नहीं किया जा सकता।

4 comments:

सतीश कुमार चौहान said...

वाह प्रसून जी कल तक आप कहते थे की प्रधानमंत्री काम नही करते अब शिकायत हैं कि "जल्दी में क्यों है मनमोहन सिंह ?"
अब तो आप की कलत ही कठघरे में हैं, कहां की स्‍याही भरवा रहे हैं .....?

sakshibharat said...

हाल ही में मुझे कांग्रेस के पुराने और विश्वसनीय माने जाने वाले एक कार्यकर्ता ने जब बताया कि हमारे देश के सारे प्रधानमंत्राी अमेरिका जाकर वहां के राष्ट्रपति से मिलते हैं और निर्देश भी लेते हैं तो यह सुनने में किसी भी अन्य देशभक्त नागरिक की तरह मुझे भी बहुत बुरा लगा. मैं इस पर विश्वास नहीं करना चाहता था. परंतु उन्होंने कई उदाहरण देकर अपनी बात को पुख्ता किया तो उस वक्त मैं बहुत निराश भी हुआ. मैं समझ रहा था कि देश अब आजाद हो चुका है इसलिए देश की सारी नीतियां, सारे कार्यक्रम देश की जनता के लिए बनते हैं. पर यहां तो बात ही अलग है. धन्यवाद उस कांग्रेसी कार्यकर्ता का भी जिसे सामान्य रूप से अपनी पार्टी की आलोचना नहीं करनी चाहिए थी. पर उसने जिस दिलेरी से सच्चाई बयां की मैं इसके लिए उसका धन्यवाद देना चाहूंगा. आपके इस लेख में भी कुछ वैसी सच्चाई का जिक्र हुआ है. आंखें खोलनेवाले लेख के लिए आपको भी धन्यवाद!
अरविंद गुप्ता
संपादक, साक्षी भारत

Devesh said...

सत्ता चलने में जो कठिनाइयाँ आती है उसका एहसास आज उन्हें हो रहा होगा . एक वित्तमंत्री होते हुए नीतिओं को कार्यान्वित करना और इक साझा सरकार के मुखिया के तौर पैर नीतिओं को लागू करना इसमें बहुत फर्क है. आज मनमोहन सिंह अगर मनमोहन सिंह है तो इसका श्रेय मनमोहन सिंह को पूर्ण रूप से नहीं जाता है बल्कि इसका श्रेय उस प्रधानमंत्री को जाता है जिसने उनके वित्त्मंत्रित्व काल के फैसले को कार्यान्वित किया एवं विपक्ष को भोरसे में लेकर उन्हें नीतिओं को कार्यान्वित करने का निर्बाध रास्ता प्रदान करवाया. हमारे प्रधानमंत्री जी इक सच्चे आर्थशास्त्री हैं शायद राजनीतिज्ञ नहीं होना ही उनके रस्ते में बाधक बन रहा है.

Unknown said...

The rift between america backed India and Mahatma Gandhi's Bharat is widening. The policies framed since second five year plan indicates that the formulation of policies is done keeping in mind the profit of foreign elements rather than the poor BHARTIYA... I want to site certain examples:-
1) Seed Policy:- The promotion of Hybrid seeds and termination seeds by government agencies in rural market will worsen the condition of Bhartiya Kisan, but will increase the profits of foreign companies.
2) Defence Sector:- Till now, we are not self dependent as far as the needs of defence sector is considered. The Terrorism in Kashmir, or in India will result in more defence imports, resulting in evasion of tax payers money and increase in profit of american defence companies...
The policy formulation in every sector in India is directed towards benefit of foreign elements, be it power,manufacturing, mining, agriculture etc. According to my observation, MGNREGA is aimed to kill the traditional Indian Farming to facilitate entry of corporates.
INDIA has attained selective freedom for selective Indians.