Friday, May 25, 2012

गडकरी को शह देकर संजय जोशी को मात दी मोदी ने


नरेंद्र मोदी तैयार थे भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी छोड़ने के लिए

'जब अटल बिहारी वाजपेयी के लिए गोविंदाचार्य को बीजेपी से बाहर बैठाया जा सकता है, तो नरेंद्र मोदी के लिए संजय जोशी को बीजेपी से बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाया जा सकता.' संजय जोशी के इस्तीफे से ठीक पहले नरेंद्र मोदी का यही आखरी वाक्य रामवाण की तरह आरएसएस को भी लगा और नीतिन गडकरी को भी.

जिसके बाद नीतिन गडकरी ने संजय जोशी को राष्ट्रीय कार्यकरिणी से इस्तीफा देने को कह दिया. लेकिन मोदी ने इस रामबाण से पहले जो बिसात संजय जोशी को लेकर बिछायी, उसने बुधवार रात को बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी के भी होश फाख्ता कर दिये.

असल में नरेंद्र मोदी यह जानते थे कि नीतिन गडकरी सिर्फ कहने भर से संजय जोशी को बीजेपी से बाहर करेंगे नहीं, क्योंकि संजय जोशी से गडकरी का रिश्ता दिल्ली के राजनीतिक गलियारे या बिहार-यूपी चुनाव के दौर का नहीं है. दोनों लड़कपन से नागपुर में संघ मुख्यालय को देखते हुए राजनीति का पाठ पढ़े हैं. गडकरी का घर अगर संघ मुख्यालय से दो सौ मीटर की दूरी पर महाल में ही है, तो संजय जोशी का घर महाल के संघ मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर त्रिमूर्ती नगर में है. इसलिए मोदी की दुश्मनी के बावजूद नीतिन गडकरी ने अपनी पहल पर संजय जोशी की वापसी बीजेपी में की. और यही नरेंद्र मोदी को बर्दाश्त नहीं हुआ.

इसलिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी से ऐन पहले की रात (बुधवार को) गुजरात के नेता और बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम रुपाला ने बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी से मुलाकात कर संजय जोशी को राष्ट्रीय कार्यकरिणी से बाहर निकालने के लिए ऐसा अल्टीमेटम दिया कि गडकरी को भी तुरंत संघ प्रमुख मोहन भागवत से पूछना पड़ा.

असल में पुरुषोत्तम रुपाला ने बीजेपी अध्यक्ष नीतिन गडकरी के सामने सीधा प्रस्ताव रखा कि अगर संजय जोशी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाया नहीं जाता और भविष्य में राष्ट्रीय राजनीति से दूर रखने का निर्णय नहीं लिया गया, तो गुजरात के पांच सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा दे देंगे. जानकारी के मुताबिक पुरुषोत्तम रुपाला ने खुदे के नाम सहित जिन पांच लोगों के नाम गडकरी को गिनाये, उसमें हरेन पाठक, भीखूभाई डलसनिया, बालकृष्णा शुक्ला और नरेंद्र मोदी का भी नाम था. हरेन पाठक अहमदाबाद के सांसद हैं और लालकृष्ण आडवाणी के गुजरात में पाइंटपर्सन के तौर पर जाने जाते हैं. वही भीखू भाई डलसनिया संगठन मंत्री हैं और बालकृष्ण शुक्ला बड़ोदरा के सांसद होने के साथ- साथ गुजरात बीजेपी के महामंत्री भी हैं.
यानी पुरुषोत्तम रुपाला ने नरेंद्र मोदी की चाल के जरिये नीतिन गडकरी को इसका एहसास करा दिया कि अगर संजय जोशी पद पर बरकरार रहे, तो खतरा नीतिन गडकरी के दोबारा अध्यक्ष बनने पर मंडरायेगा. क्योंकि नरेंद्र मोदी समेत राष्ट्रीय कार्यकारिणी से गुजरात के पांच इस्तीफे सीधे-सीधे गडकरी को दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी संविधान में संशोधन के विरोध के तौर पर देखे जायेंगे. और मुश्किल आरएसएस के सामने भी खड़ी हो जायेगी. आरएसएस ने ही गडकरी को दोबारा अध्यक्ष पद पर बैठाने के लिए दो महीने पहले नागपुर में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बीजेपी के संविधान में संशोधन पर मुहर लगायी थी.

लेकिन संघ की उस कार्यकारिणी में सरसंघचालक मोहन भागवत ने 2014 की लीक पकड़ने के लिए बीजेपी को राजनीतिक पाठ पढ़ाने पर भी जोर दिया था. और पहली बार इसके संकेत भी दिये थे कि हेडगेवार, देवरस और रज्जू भइया की ही तर्ज पर वह भी सामाजिक, राजनीतिक तौर पर संघ के सहयोग से बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाना चाहते हैं. इसीलिए संघ के कोर ग्रुप में इसकी भी सहमति बनी कि बीजेपी को हिंदुत्ववादी नहीं बल्किराष्ट्रवादी रास्ते को राजनीति के लिए पकड़ना होगा. और 2014 के लिए वही नेता अगुवाई करेगा, जिसे जनता पसंद करेगी. यानी हर नेता को चुनाव मैदान में तो उतरना ही होगा. और संघ का यह संकेत जेटली के लिए है और गडकरी के लिए भी.

यानी जब राजनीतिक तौर पर सरसंघचालक मोहन भागवत 2014 को लेकर इस तरह लकीर खींच रहे हैं, तो संजय जोशी को लेकर वह इस रास्ते का बंटाधार करना भी नहीं चाहेंगे. इसलिए पुरुषोत्तम रुपाला के अल्टीमेटम पर नीतिन गडकरी को आरएसएस का जवाब भी यही मिला कि जब गोविंदाचार्य बीजेपी से बाहर होकर भी संघ के लिए काम कर सकते हैं, तो संजय जोशी भी बीजेपी से बाहर होकर संघ परिवार का हिस्सा बन कर काम क्यों नहीं कर सकते.

और राजनीतिक तौर पर लोकिप्रय नेताओं के लिए रास्ता साफ करना ही पड़ता है. यानी नरेंद्र मोदी के लिए संघ सकारात्मक है और नीतिन गडकरी को दोबारा अध्यक्ष बना कर संघ फिलहाल बीजेपी के कामकाज में कोई हलचल पैदा करना नहीं चाहते, इसके सीधे संकेत आरएसएस ने नीतिन गडकरी को दिये. और इसी के तुरंत बाद बुधवार रात को ही संजय जोशी से इस्तीफा लिया गया और यह तय हो गया कि मुंबई के अधिवेशन में नरेंद्र मोदी आयेंगे.

3 comments:

Unknown said...

बीजेपी में कलह की जड़ संघ है शायद संघ यह भूल रहा है कि वह जितना ताकतवर अपने को समझता है अब उतना है नहीं...उत्तर भारत में संघ का संगठन लगातार कमजोर हो रहा है उसकी विचारधरा को आगे बढ़ाने वाले स्कूल लगभग समाप्ति की ओर है. शिशु मंदिर और विद्या मंदिरों की जगह आज कांबेंट स्कूलओ ने लेली है मोदी एक अच्छे प्रशासक हो सकते है लेकिन न तो बीजेपी में और न ही भारत में अभी वह आडवानी से बड़े नेता हैं महज़ १०००० के सेम्पल से और मीडिया के एजेंडे पर प्रधानमंत्री का उमीदवार घोषित करना संघ की सबसे बड़ी भूल होगी...और मोदी के लिए पार्टी यदि माँ है तो उन्हें सबसे पहले संगठन को मज़बूत करना चाहिए २०१४ उनके लिए उपयुक्त समय नहीं है.........

dr.dharmendra gupta said...

i have seen rss n bjp very closely since childhood. they just played with people's emotions, they r equally greedy for power n very sad aspect is their intolerance to other religions. they r just "box of paradox"....
they r not clean what they pretend.....

jitendra kumar gupta said...

जब नरेंद्र मोदी को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने के लिये कोर कमेटी की बैठक बुलाई गई तो उसमें बीजेपी के सारे वरिष्ठ नेता मौजूद थे। मुख्यमंत्री के लिये पहले प्रवीण तोगड़िया का नाम तय किया गया पर उन्होंने मुख्यमंत्री बनने से इनकार कर दिया था। उसके बाद जब नरेंद्र मोदी का नाम आया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विरोध जताते हुए कहा था कि यह गलती मत करना। अगर यह मुख्यमंत्री बन गया तो सिर पर पिस्तौल रख कर फैसले करवाएगा। बाद में उनकी आशंका सही साबित हुई।