Thursday, April 18, 2013

मोदी को लेकर हिचकोले क्यों


नरेन्द्र मोदी के भरोसे जीते और जीत के बाद आरएसएस को ठप होते हुये देखें या फिर आरएसएस के अनुकुल परिस्थितियों के बनने का इंतजार करते हुये 2014 की जगह 2019 के लिये व्यूह रचना करें। यह उलझन सरसंघचालक मोहन भागवत की है। जिसका जिक्र खुले तौर पर पहली बार जयपुर में हुई बैठक में किया गया। यानी पहली बार सरसंघचालक का राजनीति प्रेम कुछ इस तरह जागा है, जहां उन्हें दिल्ली की सत्ता पर स्वयंसेवको के बैठने-बैठाने की चाहत भी है और सत्ता पाने के बाद स्वयंसेवकों से यह आंशका भी है कि कही संघ सत्ताधारी स्वंयसेवकों की वजह से ही हाशिये पर ना चली जाये।

असल में नरेन्द्र मोदी का सवाल एनडीए से कही ज्यादा बड़ा संघ परिवार के भीतर हो चला है। इसीलिये एनडीए का कोई भी घटक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर अपनी पंसद की परिभाषा गढ़ने से चूक नहीं रहा और संघ के भीतर की ऊहापोह भाजपा में टोपी उछालने के खेल को बढ़ा रही है। अगर मौजूदा वक्त में किसी भी नोता को लेकर उसकी अपनी सतह को टोटलना शुरु कर दें तो हर किसी की सियासी जमीन कितनी पोपली है यह साफ होने लगता है। मसलन नीतीश कुमार। वह जिस रास्ते चल निकले है , उस रास्ते पर ले जाने वाले उनके सलाहकार नौ रत्न कौन हैं। नामो की फेहरिस्त देखेंगे तो समझ में आ जायेगा की नीतिश के नौ रत्न में किसी को चुनाव लड़ने की फिक्र नहीं है। एन.के सिंह, शिवानंद तिवारी, साबिर अली , आर, सी. पी सिंह, देवेशचन्द्र ठाकुर ,संजय झा। कोई राज्यसभा में । कोई विधान परिषद में । आम आदमी से सरोकार का मतलब कही नौकरशाही का मिजाज, कही रणनीति का गणित। कही जातीय समीकरण। सभी की राय है नीतिश को मोदी से लड़ता हुआ हमेशा दिखायी देना चाहिये । यानी नीतिश का कद मोदी से टकरा कर ही बड़ा हो सकता है। एक दूसरे घेरे में संघ भी इसी लकीर पर चलने को बेताब है। संघ के मुखपत्र आरगाइजर और पांचजन्य के संपादकों को बीते दिनो इसलिये बदल दिया गया क्योंकि उनका झुकाव नरेन्द्र मोदी की तरफ था।
और खुद मोदी अपने घेरे में कहां जा टिके हैं, यह माया कोडनानी और बाबू बंजरंगी के लिये फांसी की सजा मांगने से समझा जा सकता है। मोदी अपने दामन को पाक साफ दिखाना-बताना चाहते हैं या फिर दाग हैं इसे अनदेखा करने वालो को बार बार एहसास कराना चाहते हैं कि उनकी आंखें भटकनी नहीं चाहिये। क्योंकि वह मोदी ही हैं, जिन्होने 2007 में माया कोडनानी को यह कहकर मंत्री बनाया कि नरोदा पाटिया का रक्षा करने वाली माया ने बहुत सहा है। तो उन्हें बाल और महिला कल्याण मंत्री बनाया जा रहा है । और उस दौर में बाबू बंजरेगी भी आंखों के तारे थे। लेकिन 2007 की चुनावी जीत के बाद मोदी को पहली बार लगा कि सत्ता का नजरिया संघ या वोटर की मानसिकता पर नहीं चलता है बल्कि इसके लिये अब पूंजी और कारपोरेट जरुरी हो गया है। और 2007 से ही मोदी ने कारपोरेट की जो सवारी शुर की उसने 2014 से पहले जो रंग पकड़ा है असल में उसी का नतीजा है कि माया कोडनानी और बाबू बजरंगी के लिये सजा-ए-मौत मांगने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं है ।

ध्यान दें तो कारपोरेट के छोटे चेहरे नीतिन गडकरी की सवारी आरएसएस ने भी की। पहली बार सरसंघचालक को यह लगा कि धंधेवाले स्वयंसेवक आधुनिक कारपोरेट पूंजी को टक्कर दे सकते हैं। जबकि रज्जू भइया के सरसंघचालक रहते तक का सच यही था कि स्वदेशी थ्योरी कारपोरेट पर भारी है यह सोच संघ के भीतर रही। नीतिश कुमार के लिये भी दिल्ली में नुमाइन्दगी करने वाले नेता का नाम एनके सिंह ही है। जो वित्त सचिव रह चुके है। और यह मान कर चलते है कि पूंजी और कारपोरेट का जुगाड़ हो जाये तो नीतिश को भी दिल्ली आने से कोई रोक नहीं सकता।

यानी सभी रास्ते सरोकार छोड़ नये मिजाज के साथ दिखने-दिखाने में ही जुटे है। और यह समझ राजनीतिक नहीं देश को मुनाफे-घाटे में तौलने वाले कारपोरेट की समझ का है। और इस दायरे में राष्ट्रवाद या देश नहीं आता।  

8 comments:

सतीश कुमार चौहान said...

मोदी पी एम बनने के दांव मात्र से ही बी जे पी से नीतीश और नीतीश से बिहार की सरकार छिटक जाऐगी

Unknown said...

You can't trust, this Punya Pasun as he is AAJTAK's chamcha, he is trying to create a 'rift' between RSS and MODI...a childish remark by him...Dear...People are not fool as much as you think now a days...

Pankaj kumar said...

बहुत गहरी परख रखते हैं आप !!!

Unknown said...

Kolgate per jaha aaj c.b.i. Ke halapname ke baad sare news channal per charcha hai bahi aaj tak per koi charcha nahi? Mennage hota hai media

Unknown said...

Koyle mai hanth kala

rajivtripathi52@blogspot.com said...

Fear syndrome is causing such uncalled for writeups! India had many serious issues for attention but meaning ful activities are not under taken.If modi topic be sidetracked then what can be issue for concern.As truth this all hood wink is to put issue of corruption and scams under carpet.Look to the media of other countries as they really add to their county and do not play fiddle of power to defraud peoples.In nut shell its much ado about nothing.

Unknown said...

Sach me Punya prasun jee aap kabi kabhi itani bebkufi aur bachkana baat karte ho ki pucho mat, lagta hai aapne apana bidya ka durupyg karna suru kar diye..pata nahi ye paise ki chah hai ya satta rudh party ka prabhav. Sir aap 1 achhe aur sachhe political analyst ho...aap hame sahi rah dikhao prabhu.

Unknown said...

Sach me Punya prasun jee aap kabi kabhi itani bebkufi aur bachkana baat karte ho ki pucho mat, lagta hai aapne apana bidya ka durupyg karna suru kar diye..pata nahi ye paise ki chah hai ya satta rudh party ka prabhav. Sir aap 1 achhe aur sachhe political analyst ho...aap hame sahi rah dikhao prabhu.