Monday, May 20, 2013

अर्थशास्त्री ली कचियांग ने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को ताड़ा


क्या अर्थशास्त्री ली कचिंयांग ने अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को ताड़ लिया है। क्या मनमोहन के बाजारवाद में अब चीनी सामानों की खुली घुसपैठ होगी। क्या उत्पादन समझौते से चीन भारत की खेती पर भी कब्जा करेगा। क्या चीन पड़ोसियो के जरीये भारत को सरहद पर घेरेगा। क्या चीन की नयी विदेश नीति भारत की आत्मनिर्भरता खत्म करने की है। यह सारे सवाल इसलिये क्योंकि जिस तरह चीन के साथ मीट, मछली, पानी, उत्पाद, इन्फ्रास्ट्रकचर और आपसी संवाद या रिश्तों को लेकर समझौते हुये, उसने कई सवाल समझौते के तौर तरीको को लेकर ही खड़े कर दिये हैं। मसलन चीनी सैनिकों ने लद्दाख में खुल्लम-खुल्ला घुसपैठ की। 22 किलोमीटर तक घुस आये। टैंट अभी भी भारत की सीमा के भीतर लगे हुये हैं। लेकिन चीन के प्रधानमंत्री के साथ खडे हुये तो मनमोहन सिंह घुसपैठ शब्द तक नहीं कह पाए। बोले घटना हुई। समझौते को लेकर कहा गया कि बॉर्डर मेकैनिज्म को और कारगर बनाया जाएगा। लेकिन कैसे, ना विस्तार से चर्चा हुई और ना ही कुछ बताया गया। और तो और चीन ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव की जानकारी साझा करेगा यानी भारत में बाढ़ आने से पहले चीन बता देगा कि क्या होने वाला है, लेकिन मनमोहन सिंह यह भी पूछ नहीं पाये कि नदी पर जो डैम बनाए गए हैं, उस पर तो कोई जानकारी दीजिये ।

फिर आर्थिक-व्यापारिक समझौतों ने बता दिया कि जो कारोबार अभी 66 अरब डॉलर का है वह समझौतों के बाद बढ़कर 100 अरब डालर हो जायेगा। यानी अभी चीन की कमाई भारत के साथ तमाम व्यापारिक रिश्तों के 80 फिसदी लाभ की है, वह समझौते के बाद 90 फिसदी तक पहुंच जायेगी । तो फिर मनमोहन सिंह कर क्या रहे थे। जबकि इसी दौर में समझना यह भी चाहिये कि चीन भारत को चौतरफा घेर रहा है। पाकिस्तान के पीओके और अक्साई चीन ही नहीं बल्कि ग्वादर बंदरगाह उसके रणनीतिक कब्जे में हैं। श्रीलंका के हम्बटोटा बंदरगाह पर उसी का कब्जा है। बांग्लादेश की सेना में जल, थल वायु तीनो के लिये चीनी हथियार, टैंक, जहाज सभी चीनी ही हैं। जबकि यह वही चीन है जो बांग्लादेश को मान्यता देने के लिये 1971 में तैयार नहीं था। यही हाल म्यांमार का है। वहां भी चीन ने भारी निवेश किया है। नेपाल के साथ तो हर स्तर पर अब चीन जा खड़ा हुआ है । यानी भारत की चौतरफा घेराबंदी चीन के प्रधानमंत्री ली कचिंयाग ने शुरु की है। यह अलग बात है ली कचिंयाग ने राजनीति 1962 के बाद शुरु की। लेकिन जो रणनीति चीन बिछा रहा है उस बिसात को चीनी प्रधानमंत्री की मौजूदा यात्रा से ही समझना चाहिये कि दिल्ली से मुंबई होते हुये वह पाकिस्तान ही जायेंगे।

11 comments:

सागर said...

dil ki baat... thanx sir.....

Sarita Chaturvedi said...

LEKH CHOTA HAI PAR PURI KAHANI KAHNE ME SACHAM HAI.PRIR BHI ISE VISTAR KI JAROORAT HAI. KRIPYA CHIN KI UN KAMJORIYO PAR BHI PRAKASH DAALE JISKE JARIYA USE BACK FOOT PE LE JAYA JA SAKE !

Unknown said...

This is all because India thinking about corrective action while china doing for improvement,But who cares...for all this need clear policy which is dependent factor on leadership...Abhay Kulkarni




सतीश कुमार चौहान said...

प्रसून जी ,चीन भारत के अप‍ेक्षा ताकतवर देश हैं , और नीति यही कहती हैं कि ताकतवर ये लडने के बजाय बात करने के लिऐ टेबल तक ले आना ही बहादूरी हैं जो आपको विपक्ष की भूमिका में रह तो समझ आऐगा नह‍ी,या पत्रकार को चाहिये टी आर पी जो अस्‍ि‍थरता और मारकाट में ही ज्‍यादा दिखती हैं

Unknown said...

sir ye wo kadwa sach jise hum accept nahi kar pa rahe hai bahas TRP ki nahi ho rahi jo mojooda halat hai wo bataye ja rahe hai

Unknown said...

mam aap India ke best anchor aur best writer ko likhne ki nasihat de rahi hai ......

Anonymous said...

Prasoon ji
Agar koi Sarkar Bahumat se aa jaye aur wo apne aap ko hi sab kuch manane lage phir janta ke pas kya vikalp hai...
sirf 5 saal wait karne ka ya kuch aur ????

Anonymous said...

Prasoon ji
Agar koi Sarkar Bahumat se aa jaye aur wo apne aap ko hi sab kuch manane lage phir janta ke pas kya vikalp hai...
sirf 5 saal wait karne ka ya kuch aur ????

Anonymous said...

Prasoon ji
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sirf 5 saal wait karne ka ya kuch aur ????

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