संथाल परगना : आजादी के बाद से जहां एक भी योजना पूरी नहीं हुई
चुनाव में मोदी विकास की डुगडुगी बजाकर हाशिये पर पड़े समाज में सपना तो जगा गये लेकिन सरकार बनने के बाद जो रास्ता सरकार ने पकड़ा है, उसमें चुनावी डुगडुगी की आवाज गायब क्यों हो गयी है। प्रधानमंत्री मोदी को कश्मीर की धारा ३७० की फिक्र है तो फिर संथाल परगना टेनेन्सी एक्ट की फ्रिक क्यों नहीं है। मोदी को विकास की इतनी ही फिक्र है तो एक बार संथाल परगना में झांक लें। क्योंकि १८५५ के जिस संथाल विद्रोह ने अंग्रेजों को गुलामी की जंजीरें तोड़ने का पहला पाठ पढ़ाया था, उसी संथाल परगना में आजादी के ६७ बरस बाद भी ना राष्ट्रीय राजमार्ग है ना रेलगाड़ी पहुंची है और ना ही हवाई अड्डा। जिस भ्रष्टाचार और कोयला खादान
लूट की किस्सागोई संसद से सडक तक सत्ता में आने से पहले बीजेपी करती रही उसका उसका असल केन्द्र तो संथालपरगना है। ३६ कोयला ब्लाक हैं। राजमहल कोयला क्षेत्र एशिया का सबसे बड़ा कोयला खादान केन्द्र है लेकिन संथाल परगना के छह जिलों की हथेली तले लूट का लाईसेंस दिल्ली ही दे रही है। दुनिया का बेहतरीन आयरन ओर और बाक्साइट संथालपरगना में होता है लेकिन दुनिया के बाजार में बेचकर करोड़ों कमाने वाले संथाल परगना को कुछ भी पहुंचने देना चाहते ही नहीं हैं। आजादी के बाद से सैकड़ों योजनाओ का उदघाटन नेहरु से लेकर मनमनोहन सिंह तक ने किया। सैकडो योजनाओं का शिलान्यास देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक ने किया। लेकिन पूरा कोई नहीं हुआ।
इन सबके बीच २०१४ के चुनाव ने दस्तक दी तो नरेन्द्र मोदी ने किसानो का रोना रोया। १८ से २८ बरस के युवाओ का रोना रोया। विकास के नाम पर आजादी के बाद से लूट का जिक्र कर भारत के गांव को जगाने का ख्याल जगाया। लगा कुछ होगा लेकिन संथाल परगना के छह जिलो में से किसी भी जिले के किसी भी गांव के भीतर झांक कर देख लें तब समझ में आयेगा कि नेपाल में बदलाव लाने वाले माओवादी प्रचंड भी कई महीनो तक क्यो और कैसे संथाल परगना में छुपे रह गये। दरअसल पहली बार या कहें अर्से बाद संथाल परगना में विद्रोह की लौ विकास को लेकर सुलग रही है । गोड्डा, दुमका, पाकुड, साहेबगंड, जामताडा और देवघर में
विकास नहीं पहुंचा तो माओवाद पहुंचा। माओवाद पहुंचा तो एनजीओ पहुंचे। एनजीओ पहुंचे तो कारपोरेट पहुंचे। कारपोरेट की लूट पहुंची तो राजनीति महंगी और मुनाफे वाली हो गयी। मुनाफा राजनीति की सोच बनी तो फिर दिल्ली की सत्ता को भी लूट में मजा आने लगा। संथाल परगना से लेकर रांची और रांची से लेकर दिल्ली तक की इस लूट में झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासियों के नाम पर वजीर बना । कभी काग्रेस ने साधा कभी बीजेपी ने। देश के टॉप दस कारपोरेट ने भी लूट में हिस्सदारी के लिये दिल्ली और रांची की सियासत को खरीदने में सबकुछ लूटाया। बीजे दस बरस में झारखंड के खनीज संपदा से करीब दस लाख करोड रुपये का खुला खेल हुआ। एनओसी और खादानो के लाइसेंस झपटने से लेकर हर योजना को ठंडे बस्ते में डालकर संथाल परगना को १८ वी सदी में रखने का प्रयास जी जान से सियासत और कारपोरेट ने मिलकर किया । सभी सफल भी हुये। क्योंकि झारखंड के छह जिलो को लेकर मिले संथाल परगना का सच यही है कि यहा आज भी पीने का पानी पहाड़ों से बहते सोते और कुंओं से ही जुगाडा जाता है । सिंचाई की कोई व्यवस्था कही नहीं है। बीते २५० बरस का सच है कि एक बरस बरसात को दो बरस सूखा पडता है। १९५१ में दुमका में मसानजोर डैम की नींव देश के पहले राष्ट्रपति ने रखी लेकिन आजतक झांरखड को एक बूंद पानी इस डैम से नहीं मिलता । जनता पार्टी की सरकार के दौर में देवघर में २६ करोड के उन्नासी डैम का कामकाज शुरु हुआ । आज इसकी कीमत ६५० करोड पार कर गयी लेकिन हालात जस के तस। मधुलिमये साहब ने १९७७ में मधुपुर में बुढई डैम का शिलान्यास किया । लेकिन हालात अब भी १९७७ वाले । दिल्ली में सेन्द्रल वाटर कमीशन भी फाइल पर बैठ गयी तो ४००० मेगावाट का अल्ट्रा पावर प्रोजेक्ट भी बैठ गया ।
इसी वक्त गोड्डा में सुग्गा बथान डैम २ करोड १२ लाख रुपये के बजट के साथ शुरु किया गया लेकिन आज यह ११० करोड खर्च कर भी जस का तस है। हां, एनजीओ को आदिवासी दिखायी दिये और झामुमो को आदिवासी
आस्मिता । विकास में लूट का नारा लगाते हुये बंदूक लटकाये माओवादियों ने भी दस्तक दे दी । संयोग से माओवाद पर नकेल के नाम पर इसी दौर में दो हजार करोड़ से ज्यादा का बजट भी पुलिस प्रसासन डकार गये। अटका सबकुछ । संथाल परगना और बिहार की सिचाई के लिये १९७९ की बटेश्वर पंप नहर योजना हो या गोमानी बराज योजना सबकुछ लूट के लिये विकास के नाम पर स्वाहा हुआ । आजादी के बाद १९९५ में पहली बार सोचा गया कि संथाल परगना के जिलों के भीतर रेलगाड़ी पहुंच जाये । नब्बे के दशक में ही संथानपरगना को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने का कौतूहल भी दिल्ली में दिखा। लेकिन एनएच १३३ ए [ डुमरीपुर से रामपुर हाट ] , एनएच १३३ [देवघर से साहेबगंड वाया गोड्डा ],और एनएच ३३३ [वरियापुर से देवघर ] सिर्फ सोच के स्तर पर ही रहा । नेहरु ने साहेबगंज में गंगा पर पुल का सपना देखा । अंग्रेजों के दौर में सबसे विकसित कलकत्ता बंदरगाह को विकास की धारा से जोडने का सपना संजोया । लेकिन पुल बना नहीं। अंग्रेजों का विकसित पोर्ट भी बंद हो गया। तो क्या संथाल परगना । उल्टे उडीसा और बंगाल का रास्ता भी बंद हो गया। कोई मेडिकल कॉलेज हास्पीटल है नहीं । देश के टाप ५० टूरिस्ट प्लैस में देवधर भी एक है क्योंकि हर बरस यहां पांच करोड भक्त देवघर में बाबाधाम के दर्शन के लिये पहुंचते है तो पिछले बरस राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी पहुंचे और २५ हजार पर्यटकों के ठहरने के लिये ४० करोड की योजना का उद्घटान कर आये । लेकिन जब आजादी के बाद से कोई योजना पूरी नहीं हुई तो फिर संथाल परगना में नया क्या होता ।
दो बरस पहले देवघर में हवाई अड्डे का शिलान्यास भी हो गया । लेकिन सडक,रेल, हवाई जहाज सबसे कटे संथाल परगना में पहली बार नरेन्द्र मोदी की चुनावी डुगडुगी पर लोग लट्टू हो गये और आस जगी कि इस बार विकास होगा । लेकिन जैसे ही कश्मीर घाटी में लागू धारा ३७० की आवाज मोदी सरकार से उठी बैसे ही संथाल परगना में यह सवाल उठने लगा कि कश्मीर में तो बाहरी कश्मीरियों पर रोक है। लेकिन संथाल परगना में तो भाई भाई भी जमीन एक दूसरे को नहीं दे सकता। क्योकि संथाल परगना टेनेन्सी एक्ट १९३७ में ही रोक है। तो फिर किसी भी परियोजना का शिलान्यास यहां कर लीजिये। जमीन मिलेगी नहीं तो लूट होगी ही। और खादान-खनिज तो राष्ट्रीय संपदा है तो उसपर लूट का हक तो दिल्ली को है। तो मोदी की डुगडुगी ने पहली बार संथल परगना में उम्मीद जगायी तो अब गुस्सा भी जगाया है। सवाल सिर्फ इतना है कि पहले यहां सरकार की योजना पहुंचती हैं। या कारपोरेट का तंत्र । माओवादी बंदूक गूंजती है या फिर इन सभी का मिलाजुला बजट जो बीते दस बरस में आदिवासी विकास से लेकर खनिज संपदा का उपयोग और पावर प्लांट से लेकर माओवादी बजट के तहत सिर्फ बारह लाख करोड का चूना इस इलाके को लगा चुका है । और राजनीतिक ताकते अपने वारे न्यारे कर चुकी है । मुश्किल यह है कि मोदी के गरीब-गुरबो के पाठ को विकास का ककहरा हर कोई मान चुका है। डर सिर्फ इतना है कि विकास हुआ नहीं लूट रुकी नहीं तो क्या संथाल विद्रोह होगा। जिसे दबाने का भी बजट होगा और लूट उसपर भी मचेगी।
Saturday, June 7, 2014
विद्रोह की मशाल जलाने वालों ने पाला है मोदी का सपना
Posted by Punya Prasun Bajpai at 6:26 PM
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8 comments:
Kya Bhai, abhi Modi ko 15 din hue nahi PM bane aur tum us se 67 baras ki loot ka hisaab mangne lage. Bhai thoda dheeraj dharo...ye Modi koi roj-roj media me "krantikari" interview dekar "bahut reaction aayega" wale logo me se nahi hain. Aur vaise bhi Modi par tumhara har vishleshan galat hi sabit hua hai....Bhai dheeraj dharo....aur agar itni fikar hai to ye letter PMO ko likho....jawab na aaye to ek lekh aur likhna....aur fir hum bhi tumhara saath denge....lekin abhi nahi.
उम्दा।
Bhut dino bad..aap..ka kamaal ka blog padha
बहुत खूब लिखा है सर
You want everything in few days ?? I sometimes feel few of you are ruining everything & anything. Your words in studio are exactly opposite of those on bloc. Commenting is your right, but there should be some patience as well. And Btw I like the way you write !!
You want everything in few days ?? I sometimes feel few of you are ruining everything & anything. Your words in studio are exactly opposite of those on bloc. Commenting is your right, but there should be some patience as well. And Btw I like the way you write !!
हो सकता है घोषणा औ बजट के इतर इस बार कोई नया प्रयोग हो, हमें कुछ इंतजार तो करना ही होगा।
Sir neta sirf logo ko pagal banane ke siva kuch kar nahi rahe kya Bharat mai kabhi badlaab ki rajneeti hogi kya kabhi ghotale band hoge honge.
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