Tuesday, July 15, 2014

ट्रैक टू डिप्लोमेसी पर हाफिज का दाग

प्रधानमंत्री मोदी के साथ बाबा रामदेव। और बाब रामदेव के साथ प्रताप वैदिक। यह दो तस्वीरे मोदी सरकार से वेद प्रताप वैदिक की कितनी निकटता दिखलाती है। सवाल उठ सकते हैं। लेकिन देश में हर कोई जानता है कि चुनाव के दौर में नरेन्द्र मोदी के लिये बाब रामदेव योग छोड़कर राजनीतिक यात्रा पर निकले थे और वेद प्रताप वैदिक ने सबसे पहले मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने पर लेख लिखा था। तो फिर पाकिस्तान में ऐसी तस्वीरों को किस रुप में देखा जाता होगा। खासकर तब जब कश्मीर को लेकर बीजेपी लगातार गरजती रही हो और संघ परिवार हमेशा कश्मीर के लिये दो दो हाथ करने को तैयार रहता हो । ऐसे मोड़ पर मोदी के पीएम बनने के बाद पाकिस्तान में भी भारत के ऐसे चिंतकों को महत्व दिया जाने लगा, जिनका पाकिस्तान पहले से आना जाना हो और जिनकी करीबी संघ परिवार या कहे मोदी सरकार की विचारधापरा से हो। वेद प्रताप वैदिक इस घेरे में पाकिस्तान के लिये फिट बैठते हैं, क्योंकि बीते एक बरस के दौर में मनमोहन सरकार के खिलाफ लगातार लिखने वाले वैदिक बीजेपी और मोदी के हक में लिख रहे थे। वैसे माना यह भी जाता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ मोदी के शपथ ग्रहण में आ जाये इसके लिये वेद प्रताप वैदिक भी लगातार अपनी डिप्लामेसी चला रहे थे। वह लगातार पाकिस्तान सरकार के संपर्क में थे। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष में रहने के दौरान बीजेपी ने हमेशा पाकिस्तान को जिस तल्खी के साथ निशाने पर लिया उसके बाद सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार के सामने भी संकट रहा कि वह कैसे संबंधों को आगे बढाये। क्योंकि युद्द या हमले का रास्ता मोदी की उस छवि को धो देता जिसके आसरे विकास का ककहरा चुनाव प्रचार के दौरान देश में पढ़ाया गया। इसलिये ध्यान दें तो पाकिस्तान क पीएम के साथ पहली मुलाकात के बाद से ही विकास की लकीर खिंचने के मद्देनजर ही समझौतों का जिक्र पाकिस्तान से हुआ न। यहां तक कि सार्क सैटेलाइट का जिक्र पर प्रधानमंत्री मोदी ने जतलाया कि भारत का रुख पाकिस्तान को लेकर बिलकुल अलग ही नहीं संबधों को खासा आगे बढ़ाने का है।

इसी दायरे में वेद प्रताप वैदिक ने पाकिस्तान की यात्रा की और पाकिस्तान के प्रभावी लोगों से मुलाकातों में मोदी सरकार के प्रति राय बदलने की पहल भी की। यानी चाहे सरकार ने अधिकारिक तौर पर वैदिक को ट्रैक टू डिप्लामैसी के लिये अधिकृत नहीं किया हो लेकिन वैदिक की समूची पहल सरकार के साथ अपनी निकटता को बताते हुये संबंधों को मोदी सरकार के अनुकुल बनाने की ही रही। लेकिन हाफिज का जिन्न समूची डिप्लोमैसी को ही पटरी से उतार देगा, यह जनादेश की खुमारी में किसी ने सोचा नहीं। और यह खुमारी उतर जाये यह संघ परिवार के लिये जरुरी है। इसीलिये ना आरएसएस ना ही बीजेपी या कहे मोदी सरकार में से कोई वैदिक के बचाव में आया। क्योंकि वैदिक की डिप्लामैसी कश्मीर को लेकर पाकिस्तानियों को लुभाने वाली भी है और कश्मीर पर संघ की धारा के खिलाफ भी। याद कीजिये तो कश्मीर के नक्शे को भारत के हक में बदलने के लिये संघ हमेशा से ताल ठोंकते आया है। यानी आरएसएस हमेशा इस हक में रहा है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भारत अपने कब्जे में ले ले। लेकिन संघ की इस मोटी लकीर पर भारत पाकिस्तान के बीच एलओसी हमेशा से हावी रही है। यानी दिल्ली की कोई सरकार एलओसी को मिटा दें और पीओके को अपने कब्जे में ले ले यह किसी सत्ता ने सोचा नहीं। या कहे इस दिशा में कभी कोई कदम बढ़ाने के लिये कदम नहीं बढाये। लेकिन नरेन्द्र मोदी के पीएम बनते ही संघ परिवार के विचार राजनीतिक धारा के तौर पर रेगने लगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता । क्योंकि पहली बार मोदी के चुनाव प्रचार में संघ परिवार राजनीतिक तौर पर ना सिर्फ सक्रिय हुआ बल्कि अपनी विचारधारा को भी राजनीतिक तौर विस्तार देने
के लिये मैदान में उतरा। और संघ लगातार कश्मीर को लेकर अपनी बात को कैसे रखता रहा यह बीते 12 बरस के पन्नो को पलटकर समझा जा सकता है। 2002 में केन्द्र में वाजपेयी की सरकार थी लेकिन उस वक्त भी आरएसएस के तेवर कश्मीर को तल्ख थे ।

2002 में तो हिन्दुवादी पार्टी के नाम पर आरएस अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने के लिये भी तैयार हुआ था । और विधानसभा चुनाव में कई जगह संघ का मोर्चा और बीजेपी उम्मीदवार चुनावी
मैदान में टकराये भी। फिर दो बरस पहले संघ के मुखिया मोहन भागवत ने दशहरा भाषण के वक्त नागपुर में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की खुली वकालत यह कहकर की थी। सेना भेजकर पीओके को अपने कब्जे में ना लेना सरकारों की कमजोरी रही है। अब सवाल है कि संघ के विचारों को मोदी सरकार अपनायेगी या नहीं। क्योंकि पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध बनाने की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी के शपथग्रहण के साथ ही शुरु हुई । और जिस तरह पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ भारत आये और उसके बाद पाकिस्तान जाकर वेद प्रताप वैदिक ने नवाज शरीफ से मुलाकात की । उसने ही इस सच को बल दिया कि पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्तो की खोज  में ट्रैक टू डिप्लोमैसी का रास्ता बनाया जा रहा है । और इसी कड़ी में हाफिज सईद से वैदिक की मुलाकात हुई । लेकिन सरकार ने यह कहकर तो पल्ला झाड़ लिया कि वैदिक और हाफिज सईद की मुलाकात की कोई जानकारी उन्हें नहीं थी । लेकिन यही से सबसे बडा सवाल उठता है कि आखिर सरकार को क्या पता नहीं चला कि वेद प्रताप वैदिक हाफिज सईद से मुलाकात कर रहे हैं। क्या पाकिस्तान में भारत के हाईकमीशन को कोई जानकारी नहीं थी । क्या भारत की खुफिया एंजेसी वाकई
अंधेरे में रही । जबकि पाकिस्तान गये भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य तो लौट आये लेकिन वैदिक ने अपना वीजा 20 दिन बढ़ाया । और पाकिस्तान ने वैदिक को 20 दिन रहने की इजाजत भी दी। तो यह असंभव है कि भारत और पाकिस्तान के उच्चायोग के अधिकारियो को जानकारी ही ना हो कि वैदिक पाकिस्तान में क्यों रुक रहे हैं। फिर दूसरा बड़ा सवाल है कि हाफिज सईद के साथ जब कोई मुलाकात बिना कई दरवाजों से इजाजत मिलने से पहले हो ही नहीं सकती है तो फिर अचानक कैसे वैदिक की मुलाकात हाफिज सईद से हो गयी। जबकि लाहौर में हर कोई जानता है कि जौहर टाउन मोहल्ले में हाफिज सईद के घर तक कोई आसानी से नहीं पहुंच सकता है। पत्रकार को भी हाफिज सईद से मुलाकात से पहले कई माध्यमों से गुजरना पड़ता है। खासकर अमेरिका ने जब से हाफिज सईद को आतंकवादी करार दिया है, उसके बाद से हाफिज की सुरक्षा का सबसे मजबूत घेरा आईएसआई है। अगर वेद प्रताप वैदिक को इन चैनलों से नहीं गुजरना पड़ा तो इसका मतलब साफ है कि सरकार को पहले से पता था कि मुलाकात होगी या मुलाकात होनी चाहिये। यह जानकारी भारतीय उच्चायोग को भी जरुर होगी। फिर वेद प्रताप वैदिक की कोई अपनी पहचान एसी नहीं कि जिससे लगे कि पाकिस्तान की पीएम से लेकर हाफिज सईद तक मिलने को बेताब हो। क्योंकि समाचार एंजेसी में काम करने के अलावे अंतरराष्ट्रीय विषयों पर कालम लिकने वाले वेद प्रताप वैदिक दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर क्लास भी लेते रहे है । यानी सरकार अगर पीछे ना खड़ी हो तो फिर पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष से लेकर दुनिया के सबसे बडे आतंकवादी का वैदिक से मुलाकात के लिये मचलने का कोई मतलब नहीं है। तो सवाल है कि क्या वाकई ट्रैक टू डिप्लोमेटक ट्रिप पर पाकिस्तान गये थे। इसीलिये प्रधानमंत्री मोदी को लेकर खुले विचार हाफिज सईद व्यक्त कर रहा था और वे प्रताप वैदिक सुन रहे थे।

5 comments:

Anonymous said...

वैदिक भाजपा के लिए वैसे ही न्यूज़ ट्रेडर हैं जैसे बरखा दत्त कांग्रेस की और पुण्य प्रसून बाजपाई केजरीवाल के न्यूज़ ट्रेडर हैं।

Unknown said...

फिर से एक बार मुझे आप का ये लेख और ख़ास तौर से आपकी स्टाइल ऑफ़ राइटिंग का बड़ा फें हु।
मगर मुझे ऐसा लगता है मामले को कुछ ज्यादा ही टूल दिया जा रहा है।

Unknown said...

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल ने गला काट TRP के चलते दिल्ली यूनिवर्सिटी 4 साला पाठ्यक्रम और हाफिज सईद-वेद प्रताप वैदिक को एकता कपूर सरीखे डेली सोप की कतार में ला खड़ा कर दिया।

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

प्रिय joshim 27
कृप्या example देके हमें भी समझाएं की पुण्य प्रसून बाजपाई जी को कैसे आप आरोप लगा रहे हो।
मैं आपसे कतई सहमत नही हूँ।