Sunday, July 27, 2014

क्या ईद मिलन के लिये ७ रेसकोर्स का दरवाजा खुलेगा ?

इस बार ७ रेसकोर्स में ईद-मिलन होगा या नहीं। यह सवाल मुश्किल होना नहीं चाहिये, लेकिन रमजान के दौर में लुटियन्स की दिल्ली जिस तरह इफ्तार पार्टियों से महरुम रही और इसी दौर में सत्ताधारियों का विचार हिन्दुस्तान हिन्दुओं का है, का सवाल हवा में उछलने लगा उससे यह सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि ७ रेसकोर्स में ईद मिलन होगा कि नहीं। जबकि पिछले बरस तो जो सत्ता में नहीं थे. उनके इफ्तार पार्टी से लुटियन्स की दिल्ली भी गुलजार रहती थी और इफ्तार में तमाम मंत्री और राजनेताओं से लेकर प्रधानमंत्री भी शिरकत करते। संयोग से उनमें से एक रामविलास पासवान मौजूदा वक्त में तो मोदी सरकार के नगीने हैं लेकिन पासवान ने भी इस बार लुटियन्स की दिल्ली में इफ्तार पार्टी दी नहीं। जबकि पासवान की इफ्तार पार्टी लुटियन्स की दिल्ली में उनके अल्पसंख्यक प्रेम की ताकत दिखाती। जिसमें इतनी बड़ी तादाद में लोग शरीक होते ही रात ढलते ढलते कबाब और सेवई खत्म हो जाती लेकिन खाने वाले कम नहीं होते। वही बीजेपी का अल्पसंख्यक चेहरा शहनवाज हुसैन की इफ्तार पार्टी में तो प्रधानमंत्री रहते हुये मनमोहन सिंह भी पहुंचते और सत्ता में रहते हुये जब अटलबिहारी वाजपेयी जब ७ रेसकोर्स में इफ्तार नहीं दे पाते तो शहनवाज हुसैन को ही कह देते कि इफ्तार पार्टी वह दे दें। और याद कीजिये तो २००२ में गुजरात में राजधर्म का पाठ पढ़ाकर दिल्ली लौटे अटलबिहारी वाजपेयी ने समूची रमजान बिना इफ्तार पार्टी के खामोश लुटियन्स की दिल्ली में ईद मिलन का आयोजन ७ रेसकोर्स में किया था तब लालकृष्ण आडवाणी भी नहीं पहुंचे थे। और सोनिया गांधी भी नहीं आयी थीं । जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी भी नहीं आये थे। लेकिन बावजूद इसके ७ रेसकोर्स के दरवाजे तब अल्पसंख्यकों के लिये खुले जरुर और हर दिल के पास सरकार की नीयत से लेकर राजधर्म का पाठ भी तब शहनवाज हुसैन और मुख्तार हुसैन नकवी लगातार पहुंचते रहे। तब एनडीए का साथ छोड़ने के बावजूद उमर अबदुल्ला भी पहुंचे और बड़े ही गर्मजोशी से प्रधानमंत्री वाजपेयी से मिले।

गंगा-यमुनी तहजीब में गुथे भारत को लेकर आजादी के बाद नेहरु की सत्ता से लेकर वाजपेयी सरकार के दौर तक कभी किसी ने यह सवाल उछालने की हिम्मत की नहीं होगी कि ईद मिलन होगा की नहीं। पाकिस्तान बनने से घायल भारत को मलहम लगाने के लिये नेहरु ने ईद के मौके पर ना सिर्फ जामा मस्जिद की सिठियों को मापा बल्कि रमजान के दौर में इफ्तार पार्टी की परंपरा भी शुरु की। तब ७ जंतर मंतर पर कांग्रेस का दप्तर हुआ करता था और नेहरु तीन मूर्ति की जगह कांग्रेस के दफ्तर ७ जंतर मंतर में ही इफ्तार पार्टी देने से नहीं चूकते। सिलसिला १९६५ में पाकिस्तान युद्द के वक्त थमा। उस वक्त लालबहादुर शास्त्री तो देश से एक वक्त का उपवास कर अन्न बचाने और देश को एकजूट कर पाकिस्तान से लोहा लेने में लगे। संयोग देखिये लाल प्रधानमंत्री बहादुर शास्त्री का घर १० जनपथ था, जहां कभी इफ्तार पार्टी नहीं हुई लेकिन इस बार पहली बार २७ जुलाई २०१४ को १० जनपथ पर इफ्तार पार्टी होगी।  वैसे १९७१ के युद्द में पाकिस्तान का जमीन सूघांने के बाद इंदिरा गांधी ने १९७२ में लुटियन्स की दिल्ली में खासा बडा इद मिलन समारोह आयोजित किया। जिसमें जयप्रकाश नारायण भी शरीक हुये । सिर्फ ईद मिलन ही नहीं इंदिरा गांधी के दौर में तो दीवाली मिलन, गुरु पर्व मिलन, होली मिलन और क्रिसमस मिलन तक के लिये एक सफदरजंग का दरवाजा खुलता रहा। वहीं ७ आरसीआर का दरवाजा राजीव गांधी के दौर से कमोवेश हर प्रधानमंत्री के दौर में ईद मिलन के लिये खुलता रहा। उत्तराखंड हादसे की वजह से पिछले बरस इफ्तार और ईद मिलन के लिये ७ रेसकोर्स का दरवाजा नहीं
खुला । लेकिन क्या आजादी के बाद पहली बार यह सवाल वाकई महत्वपूर्ण हो चला है कि अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से ज्यादा तरजीह कांग्रेस की राजनीति ने दी तो अब उसे बदलने का वक्त आ गया है। क्योंकि नेहरु की पहली कैबिनेट में मंत्री रहे हिन्दु महासभा के श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ६ अप्रैल १९५० को इसी मुद्दे पर इस्तीपा देकर जनसंघ बनाने की दिसा में कदम बढ़ाया क्योंकि नेहरु अल्पसंख्यकों के अधिकारो के लिये अल्पसंख्यक आयोग बनाने के पक्ष में थे और इसके लिये पाकिस्तान के पीएम लियाकत अली खान को उन्होंने दिल्ली आमंत्रित किया था। फिर राष्ट्रीय स्वयंससेवक संघ तो शुरु से ही 'हिन्दुस्तान हिन्दुओं का है' की थ्योरी को मानता रहा। काशी की एक भरी सभा में जब एक वक्ता ने व्यंग्यपूर्वक पूछा--कौन मूर्ख कहता है कि यह हिन्दु राष्ट्र है? तो सीना ठोक कर उच्च स्वर में डा हेडगेवार बोले, 'मैं डा केशव बलिराम हेडगेवार कहता हूं -यह सदा सर्वदा से हिन्दु राष्ट्र था, आज भी है और जन्म-जन्मांतर तक हिन्दू राष्ट्र रहेगा।'

संघ के प्रचारकों के लिये यह सूत वाक्य है। और पहली बार आरएसएस की राजनीतिक सक्रियता ने ही नरेन्द्र मोदी को बहुमत के साथ पीएम की कुर्सी तक पहुंचाया है। या कहें आजादी के बाद से ही कांग्रेस की अल्पसंख्यक नीति का सिरे से विरोध करने वाले आरएसएस को पहली राजनीतिक सफलता इतनी बड़ी मिली है जहा संघ के स्वयंसेवकों को अब हिन्दुत्व की राजनीतिक धार भी दिखानी है । और किसी का राजनीतिक दबाब भी उनपर नहीं है जैसा वाजपेयी सरकार के दौर में था । असर इसी का है कि आजादी के बाद सबसे कम अल्पसंख्यक समुदाय के नेता इस बार लोकसभा चुनाव जीत पाये । असर इसी का है कि चुनाव के बाद विश्व हिन्दु परिषद के नेता अशोक सिंघल यह कहने से नहीं चुके कि मुसलमानों के बगैर भी दिल्ली की सत्ता मिल सकती है। असर इसी का है कि लोकसभा के भीतर बीजेपी सांसद विधुडी मुस्लिम लीग के सांसद औवेसी को पाकिस्तान जाने की खुली नसीहत देने से नहीं चुकते और बीजेपी सांसदों को पहली बार संसद के गलियारे में गर्व महसूस होता है कि विधुडी उनका नायक है और अब उनकी सत्ता आ गयी है। तो वह खामोश नहीं रहेंगे। हो सकता है कि असर इसी का हो शिवसेना नेताओं का आक्रोश भी धीरे धीरे महाराष्ट्र सदन की घटना के बाद माफी मांगने के बदले शिकायत करने के अंदाज से होते हुये धमकी के अंदाज तक जा पहुंचा । और असर इसी का है कि कल तक जो न्यूज चैनल हिन्दुत्व के नाम को कटघरे में खडा कर हिन्दू आतंकवाद को बार बार चला कर टीआरपी बटोरते रहे और अब सत्ता बदली है तो वही न्यूज चैनल हिन्दू राष्ट्र और पाकिस्तान जाने की धमकी को बार बार चलाकर टीआरपी बटोरते हैं। यानी सत्ता बदलने से राष्ट्र की परिभाषा बदलने से लेकर अगर विचारवान मीडिया के धंधे का उत्पाद ही बदलने लगे तो फिर सवाल ७ रेसकोर्स का दरवाजा ईद मिलन के लिये खुलेगा या नहीं का नहीं है। बल्कि पहली बार पूंजी के खेल से देश की परंपरा और तहजीब बचाने का है।

5 comments:

Anonymous said...

भारत के सेकुलरों का सेकुलरिस्म दिल्ली में तो बहुत चलता है लेकिन दिल्ली से उत्तर में जाते हुए कश्मीर पहुँचते-पहुँचते ख़त्म हो जाता है। जो तथाकथिक सेकुलरिस्ट दिल्ली में इफ्तार दावत न मिलने का रोना रोते हैं उन्हें जम्मू में आज भी बदतर अमानवीय स्थिति में रहते कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं दिखाई देता जिनको उनके पूर्वजों की धरती से धर्म के आधार पर धकेल दिया गया। और आज कुछ क्रन्तिकारी पत्रकार और राराजनेता उसी कश्मीर को आज़ादी देने की बात करते हैं तो सेकुलारिस्म से उनका सीना चौड़ा हो जाता है। भारतीयता को इंच भर भी न जानने वाले राहुल बाबा जब अमरीकन राजदूत से ये कहते हैं की भारत को असल खतरा हिन्दू आतंकवाद से है, तो भी सेकुलरिस्टों के कान पर जूं नहीं रेंगती। वाह, मेरा भारत महान।

tapasvi bhardwaj said...

Nice

Unknown said...

बेहतरीन सरजी। में चाहुगा और आपके प्रशंसक होने के नाते मेरी आपसे गुजारिश हे की आप कांग्रेस की हालया स्थिति पर भी अपने विचार रजु करे।

पूरण खण्डेलवाल said...

सेक्युलरिज्म के नाम पर छद्म सेक्युलरिज्म का लबादा ओढने वाली सरकार इस बार नहीं है !

Unknown said...

Accha lekh.