Saturday, August 16, 2014

आजादी के जश्न तले बीजेपी-संघ का सच

दृश्य - एक , ११ अशोक रोड , बीजेपी हेडक्वार्टर, तिंरगा फहराते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह । मौजूद बीजेपी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को संबोधित करते हुये । पहली बार बीजेपी के किसी के किसी कार्यकर्ता ने
लालकिले के प्राचीर पर तिंरगा फहराया है। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जरुर थी । लेकिन वाजपेयी जी और मोदी सरकार में बहुत अंतर है। उस वक्त सरकार गठबंधन पर टिकी थी । इसबार अपने दम पर है । इस बार सही मायने में एक कार्यकर्ता लालकिले तक पहुंचा है । हमें गर्व होना चाहिये।

दृश्य -दो , बीजेपी हेडक्वार्टर में अध्यक्ष का कमरा । कमरे में गद्दी वाली कुर्सी पर बैठ कर झुलते हुये चाय की चुस्किया लेते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह। अगल बगल बडे कद्दावर नेताओं की मौजूदगी। रामलाल, जेपी नड्डा,जितेन्द्र सिंह, गोयल समेत दर्जनो पदाधिकारियो की मौजूदगी । अमित शाह चालीसा का पाठ। लेकिन बीजेपी अध्यक्ष खामोशी से चाय की चुस्कियों में ही तल्लीन। ना किसी से चाय का आग्रह । ना किसी से कोई संवाद । बस बीच बीच में किसी को देख कर मुस्कुरा देना।

दृश्य- तीन, हेडक्वार्टर के परिसर में घुमते-टहलते कार्यकर्ता । झक सफेद कमीज या फिर सफेद कुर्ते पजामें में तनावग्रस्त हंसते मुस्कुराते चेहरे। हर की बात में मुहावरे की तरह मोदी । नेता का अंदाज हो या सफल बीजेपी का मंत्र। हर जुंबा पर प्रधानमंत्री मोदी। लालकिले से दिये भाषण में समूची दुनिया को जितने की चाहत बटोरे कार्यकर्ताओं का जमावड़ा। बीच बीच में अध्यक्ष अमित शाह के कमरे की तरफ टेड़ी निगाह। कौन निकल रहा है । कौन जा रहा है। बिना ओर-छोर की बातचीत में इस बात का भी एहसास की कि सांस की आवाज भी कोई सुन ला ले। खासकर जिस सांस से वाजपेयी के दौर का जिक्र हो । तो आने वाले वक्त में कही ज्यादा मेहनत से काम करने की अजब-गजब सोच…कि इसे तो कोई सुन ले।

दृश्य-चार, झंडेवालान, संघ हेडक्वार्टर । छिट पुट स्वयंसेवकों की मौजूदगी । अपने काम में व्यवस्त स्वयसेवकों में पीएम मोदी के लालकिले से तिरंगा फहराने के बाद प्रचारक मोदी की याद। गर्व से चौड़ा होता सीना। शाम चार बजे की चाय को गर्मजोशी से बांटते स्वयंसेवकों में उत्साह। बीच बीच में स्वयंसेवक प्रचारक की सियासी समझ के सामने नतमस्तक संसदीय राजनीति पर बहस से भी गुरेज नहीं।

दृश्य पांच, संघ के सबसे बुजुर्ग स्वयंसेवकों में से एक के साथ बातचीत । तिरंगा तो प्रचारक रहे वाजपेयी ने भी फहराया था तो इस बार प्रचारक से पीएम बने मोदी को लेकर इतना जोश क्यों। वाजपेयी की सरकार अपने ढंग की सरकार थी। वाजपेयी के दौर में ऱाष्ट्रवादी मानस की पूर्ण अभिव्यक्ति हो ही नहीं सकी। प्रधानमंत्री बने रहे और गठबंधन बरकार रहे…सारा ध्यान इसी पर रहा। भाग्य के धनी थे वाजपेयी। उन्हे पीएम बनना ही था। तो बन गये । इसलिये लालकिले पर तिरंगा फहराना सिर्फ तिरंगा फहराना भर नहीं होता है।

दृश्य - छह, संघ के युवा स्वयंसेवक से बातचीत। तो इस बार प्रधानमंत्री ने नहीं प्रधान सेवक ने लालकिले से तिरंगा फहराया। नहीं उन्हें यह नहीं कहना चाहिये। क्यों। प्रधानमंत्री संवैधानिक पद है। तो क्या यह पीएम का
नहीं प्रचारक का प्रवचन था। आप कह सकते हैं। प्रचारक की पूरी ट्रेनिंग ही तो चार 'पी' पर टिकी होती है। पीक अप । पीन अप । पुश अप । पुल अप । मैं समझा नहीं। देखिये प्रचारक अपने अनुभव और ज्ञान से सबसे पहले दिलों को अपने संवाद से चुनता है। जिसे पिक-अप कह सकते है। उसके बाद चुने गये व्यक्ति को संघ से जोड़ता है। यह जोड़ना शाखा भी हो सकता है और संगठन भी ।मसलन किसान संघ या मजदूर संघ या बनवासी कल्याण संघ या फिर किसी भी संगठन से। इसे पीन-अप कहते है। इसके बाद प्रचारक संघ से जोड़े गये शख्स को प्रेरित करते है। आगे बढ़ाते है। धकियाते है । आप कह सकते है कि कुम्हार की तरह मिट्टी को थाप देते है जिससे उसका साफ चेहरा उभर सके। इसे पुश-अप कहते है। और आखिर में इस शक्श को समाज-व्यवस्था में ऊपर उठाते है । आप कह सकते है कि कोई बड़ी जिम्मेदारी के लिये तैयार मान लेते है। इसे पुल-अप कहते हैं। तो स्वयंसेवक से प्रचारक और प्रचारक से पीएम बने मोदी भी तो इसी प्रक्रिया से निकले होंगे। बिलकुल । तो फिर लालकिले से प्रधानमंत्री की जगह प्रचारक वाला हिस्सा ही क्यो बलवती रहा । आपका सवाल ठीक है। क्योकि संघ के जहन में तो सामाजिक शुद्दीकरण होता है। लेकिन पद संभालने के बाद नीति लागू कराने में संघ का चरित्र काम करता है ना कि संघ के शुद्दीकरण के प्रचार प्रसार को ही कहना।

१५ और १६ अगस्त के इन छह दृश्यो ने मोदी सरकार और बीजेपी को लेकर तीन अनसुलझे सच को सुलझा दिया । पहला सच , संघ के भीतर पुरानी पीढी और नयी पीढी की सोच में खासा अंतर है । पुरानी पीढी अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से अब भी खार खाए हुये है और वाजपेयी-आडवाणी को खारिज करना उसकी जरुरत है क्योंकि अपने दौर का स्वर्ण संघर्ष संघ के स्वयसेवको ने वाजपेयी-आडवाणी के सत्ता प्रेम में गंवा दिया। जिसका हर तरह का लाभ मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिल रहा है। और नरेन्द्र मोदी को किसी भी हालत में संघ खारिज करना नहीं चाहता। दूसरा सच, संघ के भीतर नयी पीढी में इसबात को लेकर कश्मकश है कि बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो बडे निर्णय लेकर देश के हालात जमीनी तौर पर बदल सकते है वह भी प्रचारक की तरह भावुकता पूर्ण बात क्यों कर रहे है। समूचे देश को डिजिटल बनाना। उसका माध्यम गूगल ही होगा। और गूगल के जरीये जो पोर्नोग्राफी। जो नग्नता खुले तौर पर परोसी जा रही है उसपर कैसे रोक लगायी जाये इसपर कदम उठाने के बदले मां-बाप को अगर प्रचारक की तरह सीख दी जा रही है कि बेटियों से पूछते हैं तो बेटों से भी पूछें। इससे रास्ता कैसे निकलेगा। क्योंकि मोदी की विकास राह तो गांव को भी शहरी चकाचौंध में बदलने को तैयार है। और तीसरा सच, जनादेश का नशा बीजेपी और सरकार के भीतर खुशी या उल्लास की जगह खौफ पैदा  कर रहा है। क्योंकि पहली बार खाओ और सबको खाने दो की जगह ना खाउगा और ना ही खाने दूंगा की आवाज कही ज्यादा गहरी हो चली है। और साउथ-नार्थ ब्लाक से लेकर ११ अशोक रोड तक में कोई कद्दावर ऐसा है नहीं जिसका अपना दामन इतना साफ हो कि वह खौफ को खुशी में बदलने की आवाज उठा सके । क्योंकि इसके लिये जो नैतिक बल चाहिये वह बीते २० बरस में किसी के पास बचा नहीं तो हेडक्वार्टर में बीजेपी अध्यक्ष की चाय की चुस्की और लालकिले से प्रचारक का प्रवचन भी इतिहास रचने वाला ही दिखायी-सुनायी दे रहा है ।

4 comments:

रोहित said...

बेहद उम्दा लेख।

Anonymous said...

प्रवचन सुनते रहिये, क्या पता इससे ही क्रन्तिकारी क्रोनी न्यूज़ ट्रेडर्स की मुक्ति का कोई मंत्र मिले।

Unknown said...

पुण्य प्रसून बाजपेयी जी को पढ़कर या सुनकर वाकई आनंद होता है । आप विद्वान हैं,सफल पत्रकार हैं और क्रन्तिकारी विचारक भी ।

आपने १५ और १६ अगस्त को भाजपा मुख्यालय और संघ मुख्यालय के छः दृश्य का जो वर्णन किया है क्या ये आपके आँखों देखी है या सूत्रों के हवाले से । खैर आपका संघ प्रेम, संघ कार्य की समझ, कार्यपद्धति और प्रचारकों से संपर्क, आपको संघ मामलों का अग्रणी पत्रकार बनाता है !

आपने जो ये तीन सच लिखा है ।

"पहला सच , संघ के भीतर पुरानी पीढी और नयी पीढी की सोच में खासा अंतर है । पुरानी पीढी अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से अब भी खार खाए हुये है और वाजपेयी-आडवाणी को खारिज करना उसकी जरुरत है क्योंकि अपने दौर का स्वर्ण संघर्ष संघ के स्वयसेवको ने वाजपेयी-आडवाणी के सत्ता प्रेम में गंवा दिया। जिसका हर तरह का लाभ मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिल रहा है। और नरेन्द्र मोदी को किसी भी हालत में संघ खारिज करना नहीं चाहता।

दूसरा सच, संघ के भीतर नयी पीढी में इस बात को लेकर कश्मकश है कि बतौर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो बडे निर्णय लेकर देश के हालात जमीनी तौर पर बदल सकते है वह भी प्रचारक की तरह भावुकता पूर्ण बात क्यों कर रहे है। समूचे देश को डिजिटल बनाना। उसका माध्यम गूगल ही होगा। और गूगल के जरीये जो पोर्नोग्राफी। जो नग्नता खुले तौर पर परोसी जा रही है उसपर कैसे रोक लगायी जाये इसपर कदम उठाने के बदले मां-बाप को अगर प्रचारक की तरह सीख दी जा रही है कि बेटियों से पूछते हैं तो बेटों से भी पूछें। इससे रास्ता कैसे निकलेगा। क्योंकि मोदी की विकास राह तो गांव को भी शहरी चकाचौंध में बदलने को तैयार है। और

तीसरा सच, जनादेश का नशा बीजेपी और सरकार के भीतर खुशी या उल्लास की जगह खौफ पैदा कर रहा है। क्योंकि पहली बार खाओ और सबको खाने दो की जगह ना खाउगा और ना ही खाने दूंगा की आवाज कही ज्यादा गहरी हो चली है। और साउथ-नार्थ ब्लाक से लेकर ११ अशोक रोड तक में कोई कद्दावर ऐसा है नहीं जिसका अपना दामन इतना साफ हो कि वह खौफ को खुशी में बदलने की आवाज उठा सके । क्योंकि इसके लिये जो नैतिक बल चाहिये वह बीते २० बरस में किसी के पास बचा नहीं तो हेडक्वार्टर में बीजेपी अध्यक्ष की चाय की चुस्की और लालकिले से प्रचारक का प्रवचन भी इतिहास रचने वाला ही दिखायी-सुनायी दे रहा है ।"

आदर के योग्य पुण्य प्रसून बाजपेयी जी अब मेरी सुनिए

1.संघ के भीतर पुरानी पीढी और नयी पीढी की सोच में खासा अंतर नहीं है । पुरानी पीढी भी अटल बिहारी वाजपेयी का सम्मान करती है और नई पीढ़ी भी उनका उतना हैं सम्मान करती है ।

2. संघ के भीतर नयी पीढी में किसी बात को लेकर कोई कश्मकश नहीं है, क्यों कि उसे इस बात की शिक्षा पहले ही मिली हुई है कि राजनीति के रास्ते संघ का संकल्प पूरा नहीं होने वाला है । उसे अपना सध्या और साधन पता है ।

3. जनादेश बीजेपी और सरकार के भीतर खुशी या उल्लास की जगह जिम्मेदारी का भाव पैदा कर रहा है, क्योंकि पहली बार खाओ और सबको खाने दो की जगह ना खाउगा और ना ही खाने दूंगा की आवाज कही ज्यादा गहरी हो चली है।

अस्तु

राजीव पाठक

raviranjan kumar said...

संग संग संघ!