Tuesday, August 26, 2014

नेहरु मॉडल से आगे मोदी मॉडल

5 लाख 21 हजार करोड़ के बजट वाले योजना आयोग ने 2013-14 में किया क्या यह अपने आप में सबसे बड़ा सवाल है। जबकि योजना आयोग की ताकत इससे भी समझी जा सकती है कि इस दफ्तर में योजना सचिव के अलावा 45 एडिशनल सचिव, 29 डायरेक्टर, 23 वरिष्ट सलाहकार, 18 डिप्टी सचिव और डेढ़ हजार कर्मचारी काम करते हैं। बावजूद इसके बीते दस बरस में कोई उपलब्धि भरा काम योजना आयोग के दफ्तर से नहीं निकला। और ध्यान दें तो सालाना 5 लाख करोड़ के बजट पर बैठे प्लानिग कमीशन को लेकर जनता के बीच अर्से बाद गुस्सा तब फूटा जब पता चला की योजना आयोग ने एक टॉयलेट पर 35 लाख रुपये खर्च कर दिये। और महज 35 रुपये की कमाई वाले लोगो को भी गरीब नहीं माना । असल में योजना आयोग की दुर्गती मनमोहन सिंह के दौर में बद से बदतर हुई । पीडीएस से लेकर मनरेगा और इन्फ्रास्ट्रकचर को टालने से लेकर राज्यों के मांग पर खुली मनमानी बीते दस बरस में देखी गयी। कही कोई सुधार हुआ नहीं और योजना आयोग की मनमानी का आलम यह रहा कि मोंटेक सिंह ने अपने सलाहकारों को ही खुला खेल करने की आजादी दे दी। मसलन इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में मोटेंक सिंह के सलाहकार गजेन्द्र हल्दिया ने इन्फ्रास्ट्रक्चर की कोई भी योजना पास होने ही नहीं थी। खुद गजेन्द्र हल्दिया योजना आयोग में अधिकारी रहे फिर मोटेंक के सलाहकार हो गये । लेकिन किसी भी काम को कभी अंजाम नहीं दिया जा सका।

हालांकि मनमोहन सिंह के दौर में भी कई कैबिनेट मंत्रियों ने प्लानिंग कमीशन में बदलाव करने की आवाज उठायी लेकिन चिदंबरम, मोटेंक और मनमोहन की तिकडी ने अर्थव्स्था का ऐसा खाका देश के लिये बवनवाया कि आर्थिक तौर पर देश का बंटाधार ही हुआ। शायद इसीलिये यह सवाल खड़ा हो गया है कि 1950 में प्लानिंग कमीशन को लेकर जो नेहरु ने सोचा 2014 में उसे पलटने का फैसला नरेन्द्र मोदी ले रहे है या फिर प्लानिंग कमीशन के जरिये नये सिरे से देश की आंतरिक व्यवस्था को मथने की तैयारी मोदी कर रहे हैं। होगा क्या और आने वाले वक्त में योजना आयोग किस नाम से क्या काम करेगा इसका इंतजार तो करना ही होगा। लेकिन जो सवाल प्रधनमंत्री के जहन में है और आज जिस तरह यशवन्त सिन्हा की अगुवाई में 18 विशेषज्ञ बैठे उसने इसके संकेत तो दे ही दिये कि मौजूदा सरकार को नेहरु मॉडल मंजूर नहीं है।

क्योंकि इतिहास के पन्नों को पलटे को योजना आयोग को लेकर नेहरु की यह सोच सामने आती ही है कि प्रधानमंत्री नेहरु कई बार वित्त मंत्रालय से कई मुद्दों पर टकराये । और जब जब इनके सामने मुश्किल आयी तब तब योजना आयोग के जरिये नेहरु ने काम किया। नेहरु के दौर में चार वित्त मंत्री नेहरु से टकराये और उन्होने इस्तीफा भी दिया। वित्त मंत्री षणमुगम शेट्टी ने 15 अगस्त 1948 को पद छोड़ा। तो वित्त मंत्री जान मथई ने नियोजन मंडल के अधिकार और कार्यप्रणाली के सवाल पर 1950 में पद छोड़ा। वहीं वित्त मंत्री सीडी देशमुख ने 1956 में इस्तीफा दिया। हालांकि तब सवाल महाराष्ट्र राज्य के गठन और आंदोलन बड़ी वजह थी। वहीं वित्त मंत्री वीटी कृष्मामाचारी ने 1958 में इस्तीपा दिया। वैसे वित्त मंत्रियों का प्रधानमंत्री से टकराने का सिलसिला इंदिरा और राजीव गांधी के दौर में भी रहा। याद कीजिये तो मोरारजी देसाई ने 1969 में इंदिरा की आर्थिक नीतियों को लेकर विरोध किया और फिर इस्तीफा दे दिया । वही राजीव गांधी के दौर में वीपी सिंह प्रधनामंत्री से टकराये। और एक सच यह भी है कि मुशकिल दौर में नेहरु से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुये वित्त मंत्रालय संभाला। और ध्यान दें तो प्लानिंग कमीशन के जरीये हर प्रधानमंत्री ने नेहरु के इस मॉडल को ही अपनाया जहां वित्त मंत्रालय से इतर देश में नयी योजना लागू की जा सके। 1951 को लेकर पहली योजना कृषि को विकसित करने पर टिकी थी। और 12 वीं योजना राज्यों को राजनीतिक बजट मुहैया कराने पर ही टिकी रही। लेकिन मोदी मॉडल योजना आयोग के उस नये चेहरे को विकसित करना चाहता है, जहां भविष्य की योजना बने । यानी 2020 का भारत कैसा हो या फिर आरएसएस के सौ बरस पुरे होने पर 2025 का माडल हो क्या इसकी कल्पना के साथ उसे जमीन पर उतारने की दिशा में आयोग काम शुरु कर दें । शाय़द इसीलिये योजना आयोग के नये नामो में भारत भविष्य वेद से लेकर इंडिया फ्यूचररामा तक का नाम लिया जा रहा है।

3 comments:

Unknown said...

521000 crore Shayad ye dhan sahi mein desh ke hit ki yojnao mein lagaya gaya hota to shayad desh aur yojna aayog ki tasvir hi Kuch Aur hoti.
Dhanyawaad Prasun ji is blog ko post karne ke liye.

Anonymous said...

हर बात को संघ से जोड़ना बंद करो। वैसे ही भारत में कई सेक्युलर दलालों की दुकानें सिर्फ संघ को गाली देकर चल रही हैं।

गलियारा said...

नेहरु मॉडल से आगे मोदी मॉडल.... पढ़ने के बाद दिमाग की बत्ती खुल गई.... किस तरह योजना आयोग ने जनता के लिए तो कुछ नहीं किया लेकिन अपने बाथरुम में 35 लाख रुपए पानी की तरह बहा दिया...वाकई में इस योजना आयोग को खत्म ही कर देना चाहिए....